चार्टर अधिनियम, 1833 (Charter Act, 1833)

कारण - पृष्ठभूमि  

  • 1813 के बाद भारत में यूरोपियनों की बढ़ती संख्या 

  • जो व्यापारिक एवं धार्मिक उद्देश्यों से भारत के नगरों में रहने लगे थे 

  • राजनीतिक एकाधिकार की समाप्त होती अवधि 

  • ब्रिटेन में सरकार पर अन्य कंपनियों का ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को (पूर्णतः) समाप्त करने का दबाव  

 

चार्टर अधिनियम 1833 के प्रावधान  

  • इसके द्वारा कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को पूर्णतः समाप्त कर दिया गया 

  • अब कंपनी का कार्य ब्रिटिश सरकार की ओर से मात्र भारत का शासन करना रह गया 

  • ईस्ट इंडिया कंपनी की एक व्यापारिक निकाय के रूप में की जाने वाली गतिविधियों को समाप्त कर दिया गया 

  • अब यह विशुद्ध रूप से प्रशासनिक निकाय बन गया 

  • इसने बंगाल के गवर्नर जनरल को “भारत का गवर्नर जनरल” बना दिया 

  • “लॉर्ड विलियम बैंटिक” भारत के प्रथम गवर्नर जनरल थे 

  • बम्बई तथा मद्रास की परिषदों की विधि निर्माण की शक्तियों को वापस ले लिया गया 

  • भारत के गवर्नर जनरल को पूरे ब्रिटिश भारत में विधायिका के असीमित अधिकार प्रदान कर दिए गए 

  • क़ानून निर्माण की प्रक्रिया जटिल हो गयी (मात्र बंगाल तक सीमित थी)

  • अतः कार्यकारिणी परिषद में एक विधि सदस्य (लॉर्ड मैकाले) की नियुक्ति की गयी 

  • परंतु इसे अंशकालिक सदस्यता दी गयी (मत देने का अधिकार नहीं)

  • गवर्नर जनरल को दास प्रथा के सम्बंध में कदम उठाने को कहा गया 

  • 1843 में दास प्रथा का उन्मूलन कर दिया गया 

  • अधिनियम की धारा 87 के तहत कंपनी के अधीन पद धारण करने के लिए किसी व्यक्ति को धर्म, जन्मस्थान, मूलवंश या रंग के आधार पर अयोग्य न ठहराए जाने का उपबंध किया गया 

  • गवर्नर जनरल की परिषद को राजस्व के संबंध में पूर्ण अधिकार प्रदान करते हुए गवर्नर जनरल को सम्पूर्ण देश के लिए एक ही बजट तैयार करने का अधिकार दिया गया 

  • चार्टर ऐक्ट 1833 ने सिविल सेवकों के चयन के लिए खुली प्रतियोगिता का आयोजन करने का प्रयास किया  

  • हालांकि कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स के विरोध के कारण इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया \

  • भारतीय क़ानूनों का संहिताकरण करने हेतु एक विधि आयोग का गठन किया गया 

  • लॉर्ड मैकाले प्रथम विधि आयोग का अध्यक्ष था 

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