सैयद वंश के शासक निम्नलिखित थे-
1. खिज्र खां (1414–1421ई.)
2. मुबारक शाह (1421–1434ई,)
3. मुहम्मद शाह (1434–1445ई.)
4. अलाउद्दीन आलम शाह (1445–1451ई.)
खिज्र खाँ:- खिज्र खाँ सैय्यद वंश का संस्थापक था। खिज्र खाँ ने सुल्तान की बजाय रैयत -ए- आला (किसानों का प्रमुख) की उपाधि ली। यह स्वयं को तैमूर का उत्तराधिकारी शाहरुख मिर्जा का सिपहसालार मानता था।
- खिज्र खाँ तैमूरलंग का सेनापति था। भारत से लौटते समय तैमूरलंग ने खिज्र खाँ को मुल्तान, लाहौर एवं दिपालपुर का शासक नियुक्त किया।
- खिज्र खां अपने को तैमूर के लड़के शाहरूख का प्रतिनिधि बताता था और साथ ही उसे नियमित 'कर' भेजा करता था। उसने खुतबा में तैमूर और उसके उत्तराधिकारी शाहरूख का नाम पढ़वाया। खिज्र खां के शासन काल में पंजाब, मूल्तान एवं सिन्ध पुनः दिल्ली सल्तनत के अधीन हो गये।
- फरिश्ता ने खिज्र खां को एक न्यायप्रिय एवं उदार शासक बताया है।
- 20 मई, 1421 को खिज्र खां की मृत्यु हो गई।
- खिज्र खाँ सैय्यद वंश का संस्थापक था। खिज्र खाँ ने सुल्तान की बजाय रैयत -ए- आला (किसानों का प्रमुख) की उपाधि ली। यह स्वयं को तैमूर का उत्तराधिकारी शाहरुख मिर्जा का सिपहसालार मानता था।
- खिज्र खाँ तैमूरलंग का सेनापति था। भारत से लौटते समय तैमूरलंग ने खिज्र खाँ को मुल्तान, लाहौर एवं दिपालपुर का शासक नियुक्त किया।
- खिज्र खां अपने को तैमूर के लड़के शाहरूख का प्रतिनिधि बताता था और साथ ही उसे नियमित 'कर' भेजा करता था। उसने खुतबा में तैमूर और उसके उत्तराधिकारी शाहरूख का नाम पढ़वाया। खिज्र खां के शासन काल में पंजाब, मूल्तान एवं सिन्ध पुनः दिल्ली सल्तनत के अधीन हो गये।
- फरिश्ता ने खिज्र खां को एक न्यायप्रिय एवं उदार शासक बताया है।
- 20 मई, 1421 को खिज्र खां की मृत्यु हो गई।
मुबारक शाह:- खिज्र खां ने अपने पुत्र मुबारकशाह को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उसने ‘शाह’ की उपाधि ग्रहण कर अपने नाम के सिक्के जारी किये।
- उसने अपने नाम से खुतबा पढ़वाया और इस प्रकार विदेशी स्वामित्व का अन्त किया।
- मुबारक शाह ने वीरतापूर्वक विद्रोहों का दमन किया, सुल्तान के पद की प्रतिष्ठा बढ़ायी और अपने राज्य की सीमाओं को सुरक्षित किया। इस प्रकार मुबारक शाह सैयद सुल्तानों में योग्यतम सुल्तान हुआ।
- इसने याहिया -बिन- अहमद सरहिंद को संरक्षण दिया जिसने तारीख-ए-मुबारकशाही ग्रंथ को फारसी भाषा में लिखा। यह ग्रंथ सैयद वंश का एक मात्र समकालीन ग्रंथ है, जो सैयद वंश की जानकारी प्रदान करता है।
मुहम्मद शाह:
- मुबारकशाह के बाद दिल्ली की गद्दी पर मुबारक का भतीजा मुहम्मद बिन फरीद खां, मुहम्मदशाह के नाम से बैठा।
- इसके शासनकाल में दिल्ली पर मालवा के शासक महमूद खिलजी ने आक्रमण किया,जिसे रोकने के लिये मुहम्मदशाह ने अपने अधिकारी बहलोल लोदी से सहायता मांगी। तथा बहलोल लोदी को खाने-जहां की उपाधि दी। इसके समय की प्रमुख घटना रही- बहलोल लोदी का उत्थान।
- 1445 ई. में मुहम्मदशाह की मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के साथ हा सैयद वंश पतन की ओर अग्रसर हो गया।
आलमशाह:
- मुहम्मदशाह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अलाउद्दीन ‘अलाउद्दीन आलमशाह’ की उपाधि ग्रहण कर सिंहासन पर बैठा।
- अलाउद्दीन आलमशाह को अपने वजीर हमीद खां से अनबन होने के कारण दिल्ली छोड़कर बदायूं में शरण लेनी पड़ी तथा हमीद खां ने बहलोल लोदी को दिल्ली आमंत्रित किया। दिल्ली आने के कुछ दिन पश्चात् बहलोल ने हमीद खां की हत्या करवाकर 1450 ई. में दिल्ली प्रशासन को अपने कब्जे में कर लिया। दूसरी तरफ 1451 ई. में आलमशाह ने बहलोल लोदी के पक्ष में सत्ता त्याग दी तथा स्वयं बदायूं ( यू.पी.) चला गया। वहीं पर 1476 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार लगभग 37 वर्ष के बाद सैयद वंश समाप्त हो गया।
- इसके समय सल्तनत का साम्राज्य दिल्ली से 20 कोस दूर तक ही था। (पालम तक)
- इसके साम्राज्य के बारे में एक कहावत भी थी- आलम से पालम तक सल्तनत का साम्राज्य।
- खिज्र खां ने अपने पुत्र मुबारकशाह को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उसने ‘शाह’ की उपाधि ग्रहण कर अपने नाम के सिक्के जारी किये।
- उसने अपने नाम से खुतबा पढ़वाया और इस प्रकार विदेशी स्वामित्व का अन्त किया।
- मुबारक शाह ने वीरतापूर्वक विद्रोहों का दमन किया, सुल्तान के पद की प्रतिष्ठा बढ़ायी और अपने राज्य की सीमाओं को सुरक्षित किया। इस प्रकार मुबारक शाह सैयद सुल्तानों में योग्यतम सुल्तान हुआ।
- इसने याहिया -बिन- अहमद सरहिंद को संरक्षण दिया जिसने तारीख-ए-मुबारकशाही ग्रंथ को फारसी भाषा में लिखा। यह ग्रंथ सैयद वंश का एक मात्र समकालीन ग्रंथ है, जो सैयद वंश की जानकारी प्रदान करता है।
- मुबारकशाह के बाद दिल्ली की गद्दी पर मुबारक का भतीजा मुहम्मद बिन फरीद खां, मुहम्मदशाह के नाम से बैठा।
- इसके शासनकाल में दिल्ली पर मालवा के शासक महमूद खिलजी ने आक्रमण किया,जिसे रोकने के लिये मुहम्मदशाह ने अपने अधिकारी बहलोल लोदी से सहायता मांगी। तथा बहलोल लोदी को खाने-जहां की उपाधि दी। इसके समय की प्रमुख घटना रही- बहलोल लोदी का उत्थान।
- 1445 ई. में मुहम्मदशाह की मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के साथ हा सैयद वंश पतन की ओर अग्रसर हो गया।
- मुहम्मदशाह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अलाउद्दीन ‘अलाउद्दीन आलमशाह’ की उपाधि ग्रहण कर सिंहासन पर बैठा।
- अलाउद्दीन आलमशाह को अपने वजीर हमीद खां से अनबन होने के कारण दिल्ली छोड़कर बदायूं में शरण लेनी पड़ी तथा हमीद खां ने बहलोल लोदी को दिल्ली आमंत्रित किया। दिल्ली आने के कुछ दिन पश्चात् बहलोल ने हमीद खां की हत्या करवाकर 1450 ई. में दिल्ली प्रशासन को अपने कब्जे में कर लिया। दूसरी तरफ 1451 ई. में आलमशाह ने बहलोल लोदी के पक्ष में सत्ता त्याग दी तथा स्वयं बदायूं ( यू.पी.) चला गया। वहीं पर 1476 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार लगभग 37 वर्ष के बाद सैयद वंश समाप्त हो गया।
- इसके समय सल्तनत का साम्राज्य दिल्ली से 20 कोस दूर तक ही था। (पालम तक)
- इसके साम्राज्य के बारे में एक कहावत भी थी- आलम से पालम तक सल्तनत का साम्राज्य।
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