मगध राज्य का उत्कर्ष

मगध प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था। आधुनिक पटना तथा गया ज़िला इसमें शामिल थे। इसकी राजधानी गिरिव्रज (वर्तमान राजगीर) थी। मगध के सबसे प्राचीन वंश के संस्थापक बृहद्रथ था। गंगा और सोन जैसी नदियाँ मगध से होकर बहती थीं। ये - (क) यातायात(ख) जल-वितरण (ग) जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण थीं। मगध में बिम्बिसार, अजातशत्रु और महापदमनंद जैसे महत्त्वाकांक्षी शासकों ने लगातार इसके विस्तार से इसे मजबूत किया। मगध राज्य ने ही पहली बार अपने पड़ोसियों के विरुद्ध युद्ध में हथियारों का प्रयोग किया, जो देश के पूर्वांचल से मगध शासकों के पास पहुँचते थे।


हर्यक वंश (544 ई. पू. से 412 ई. पू.)


बिम्बिसार (544 ई. पू. से 493 ई. पू.)

बिम्बिसार ने हर्यक वंश की स्थापना 544 ई. पू. में की । बिम्बिसार को मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक/राजा माना जाता है। बिम्बिसार ने गिरिव्रज (राजगृह) को अपनी राजधानी बनायी । उसने वैवाहिक सम्बन्धों (कौशल, वैशाली एवं पंजाब) की नीति अपनाकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया ।

बिम्बिसार एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी शासक था । उसने प्रमुख राजवंशों में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर राज्य को फैलाया ।

सबसे पहले उसने लिच्छवि गणराज्य के शासक चेटक की पुत्री  चेल्लना के साथ विवाह किया । दूसरा प्रमुख वैवाहिक सम्बन्ध कौशल राजा प्रसेनजीत की बहन महाकौशला के साथ विवाह किया । इसके बाद भद्र देश की राजकुमारी क्षेमा के साथ विवाह किया ।

महावग्ग के अनुसार बिम्बिसार की 500 रानियाँ थीं । उसने अवंति के शक्ति्शाली राजा चन्द्र प्रद्योत के साथ दोस्ताना सम्बन्ध बनाया । सिन्ध के शासक रूद्रायन तथा गांधार के मुक्कुस रगति से भी उसका दोस्ताना सम्बन्ध था । उसने अंग राज्य को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया था वहाँ अपने पुत्र अजातशत्रु को उपराजा नियुक्त किया था।

बिम्बिसार ने अपने बड़े पुत्र “दर्शक" को उत्तराधिकारी घोषित किया था।

भारतीय इतिहास में बिम्बिसार प्रथम शासक था जिसने स्थायी सेना रखी।

बिम्बिसार ने राजवैद्य जीवक को भगवान बुद्ध की सेवा में नियुक्त् किया था।

बौद्ध भिक्षुओं को निःशुल्क जल यात्रा की अनुमति दी थी ।

बिम्बिसार महात्मा बुद्ध का मित्र और संरक्षक था। विनयपिटक के अनुसार बुद्ध से मिलने के बाद उसने बौद्ध धर्म को ग्रहण किया। 

बिम्बिसार की हत्या उसके पुत्र अजातपुत्र ने कर दी। 

बिम्बिसार ने मगध पर करीब 52 वर्षों तक शासन किया। 


अजातशत्रु (लगभग 493 ई.पू.) 

अपने पिता बिम्बिसार की हत्या करके अजातपुत्र 493 ईसा पूर्व में मगध की गद्दी पर बैठा।

उसके बचपन का नाम 'कुणिक' था। 

अजातपुत्र ने वीर और प्रतापी राजा के रूप में अपनी ख्याति प्राप्त की थी। अपने पिता के समान ही उसने भी साम्राज्य विस्तार की नीति को अपनाया और साम्राज्य की सीमाओं को चरमोत्कर्ष तक पहुँचा दिया। 

सिंहली अनुश्रुतियों के अनुसार अजातशत्रु ने लगभग 32 वर्षों तक शासन किया और 463 ई.पू. में अपने पुत्र उदयन द्वारा वह मारा गया।

साम्राज्य विस्तार:

अजातशत्रु ने अंग, लिच्छवी, वज्जी, कौशल तथा काशी जनपदों को अपने राज्य में मिलाकर एक विशाल साम्राज्य को स्थापित किया था। पालि ग्रंथों में अजातशत्रु का नाम अनेक स्थानों पर आया है, क्योंकि वह बुद्ध का समकालीन था और तत्कालीन राजनीति में उसका बड़ा हाथ था। गंगा और सोन नदी के संगम पर पाटलिपुत्र की स्थापना उसी ने की थी। उसका मन्त्री वर्षकार(वरस्कार) एक कुशल राजनीतिज्ञ था, अजातशत्रु ने इसकी सहायता से वैशाली पर विजय प्राप्त की। 

कौशल  के राजा प्रसेनजित को हराकर अजातशत्रु ने राजकुमारी 'वजिरा' से विवाह किया था, जिससे काशी जनपद स्वतः ही उसे प्राप्त हो गया था। इस प्रकार उसकी इस नीति से मगध शक्तिशाली राष्ट्र बन गया। परंतु पिता की हत्या करने और पितृघाती कहलाने के कारण इतिहास में वह सदा अभिशप्त रहा। पिता की हत्या करने के कारण इसका मन अशांत हो गया। यह अजीवक धर्म प्रचारक गोशाल और जैन धर्म प्रचारक महावीर स्वामी के निकट भी गया, किंतु इसे शांति नहीं मिली। फिर यह बुद्ध की शरण में गया, जहाँ उसे आत्मिक शांति मिली। इसके बाद यह बुद्ध का परम अनुयायी बन गया।

मल्ल संघर्ष- अजातशत्रु ने मल्ल संघ पर आक्रमण कर अपने अधिकार में कर लिया। इस प्रकार पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक बड़े भू-भाग मगध साम्राज्य का अंग बन गया।

अजातशत्रु ने अपने प्रबल प्रतिद्वन्दी अवन्ति राज्य पर आक्रमण करके विजय प्राप्त की।

अजातशत्रु धार्मिक उदार सम्राट था। अजातशत्रु जैन मत के अनुयायी माने जाते हैं लेकिन भरहुत स्तूप की एक वेदिका के ऊपर अजातशत्रु बुद्ध की वंदना करता हुआ दिखाया गया है।

अजातशत्रु ने बुद्ध के महापरिनिर्वाण(483 ईसा पूर्व)  के बाद उनके अवशेषों पर राजगृह में स्तूप का निर्माण करवाया और महाकश्यप की अध्यक्षता में राजगृह की सप्तपर्णि गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन किया । इस संगीति में बौद्ध भिक्षुओं के सम्बन्धित पिटकों को सुतपिटक और विनयपिटक में विभाजित किया ।

सिंहली अनुश्रुतियों के अनुसार उसने लगभग 32 वर्षों तक शासन किया और 461 ई. पू. में अपने पुत्र उदयन द्वारा मारा गया।

अजातशत्रु के शासनकाल में ही महात्मा बुद्ध 483 ई. पू. महापरिनिर्वाण तथा महावीर का भी निधन 468 ई. पू. हुआ था ।

आम्रपाली-यह वैशाली की नर्तकी एवं परम रूपवती काम कला प्रवीण वेश्या थी। आम्रपाली के सौन्दर्य पर मोहित होकर बिम्बिसार ने लिच्छवि से जीतकर राजगृह में ले आया। उसके संयोग से जीवक नामक पुत्ररत्नक हुआ । बिम्बिसार ने जीवक को तक्षशिला में शिक्षा हेतु भेजा । यही जीवक एक प्रख्यात चिकित्सक एवं राजवैद्य बना।


उदायिन (461 ई.पू.-445 ई.पू.)

अपने पिता अजातशत्रु की हत्या कर उदायिन 461 ई. पू. मगध की गद्दी पर बैठा। बौद्ध ग्रन्थानुसार इसे पितृहन्ता लेकिन जैन ग्रन्थानुसार पितृभक्तन कहा गया है । इसकी माता का नाम पद्मागवती था ।

उदयन शासक बनने से पहले चम्पा का उपराजा था। वह पिता की तरह ही वीर और विस्तारवादी नीति का पालक था।

इसने पाटलिपुत्र (गंगा और सोन के संगम ) को बसाया तथा अपनी राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र स्थापित की।

मगध के प्रतिद्वन्दी राज्य अवन्ति के गुप्तचर द्वारा उदयन की हत्या कर दी गई।

अजातशत्रु जैन धर्म का अनुयायी था। 

बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार उदयन के तीन पुत्र अनिरुद्ध, मंडक और नागदशक थे। उदयन के तीनों पुत्रों ने राज्य किया। अन्तिम राजा नागदशक था। जो अत्यन्त विलासी और निर्बल था। शासनतन्त्र में शिथिलता के कारण व्यापक असन्तोष जनता में फैला। राज्य विद्रोह कर उनका सेनापति शिशुनाग राजा बना। इस प्रकार हर्यक वंश का अन्त और शिशुनाग वंश की स्थापना 412 ई.पू. हुई।

शिशुनाग वंश(412 ई0पू0 से 394 ई0पू0)

शिशुनाग (412 ई0पू0 से 394 ई0पू0)–नागदशक को उसके अमात्‍य शिशुनाग ने 412 ई. पू. में अपदस्‍थ करके मगध पर शिशुनाथ वंश की स्‍थापना की । इसकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि अवन्ति राज्य को जीतकर अपने राज्य में सम्मिलित करना था। इसने अपनी राजधानी पाटिलपुत्र से हटाकर वैशाली स्थानान्तरित कर ली।
कालाशोक या कांकवर्ण (394 ई0 366 ई0पू0)- शिशुनाग का उत्तराधिकारी कालाशोक मगध की गद्दी पर बैठा। कालाशोक के समय में ही द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन वैशाली में हुआ।
इसने अपनी राजधानी वैशाली से पाटिलपुत्र स्थानान्तरित कर ली। इस प्रकार पाटिलपुत्र मगध राजवंश की स्थायी राजधानी बन गई।
शिशुनाग वंश का अंतिम राजा नंदिवर्धन था। 

नन्द वंश(344 ई.पू. से 322 ई.पू.)

महापदमनन्द- 344 ई. पू. में महापदमनन्द ने नन्द वंश की स्थापना की। पुराणों में इसे महापद्म तथा महाबोधिवंश में उग्रसेन कहा गया है। उसे महापदम एकारट, सर्व क्षत्रान्तक आदि उपाधियों से विभूषित किया गया है।  
इसी ने सर्वप्रथम कलिंग की विजय की तथा वहाँ एक नहर खुदवायी गयी। इसका उल्लेख प्रथम शताब्दी ई0पू0 में खारवेल के हाँथी गुम्फा अभिलेख में मिलता है। वह कलिंग जिनसेन की जैन प्रतिमा भी उठा लाया। इससे पता चलता है कि महापदमनन्द जैन धर्म का अनुयायी था पुराणों में इसे एकराट् और एकछत्र शासक कहा गया है। प्रसिद्ध व्याकरणाचार्य पाणिनी और काव्यायन इसके काल के थे।
महापदमनन्द के प्रमुख राज्य उत्तराधिकारी हुए हैं- उग्रसेन, पंडूक, पाण्डुगति, भूतपाल, राष्ट्रपाल, योविषाणक, दशसिद्धक, कैवर्त, घनानन्द। 
घनानन्द: नन्द वंश का अन्तिम शासक घनानन्द था। 
इसके शासन काल में भारत पर सिकन्दर द्वारा आक्रमण किया गया। सिकन्दर के भारत से जाने के बाद मगध साम्राज्य में अशान्ति और अव्यवस्था फैली। 
घनानन्द एक लालची और धन संग्रही शासक था, जिसे असीम शक्‍ति और सम्पत्ति के बावजूद वह जनता के विश्‍वास को नहीं जीत सका। 
उसने एक महान विद्वान ब्राह्मण चाणक्य को अपमानित किया फलस्वरूप चन्द्रगुप्त मौर्य की सहायता से उसने घनानन्द को गद्दी से हटाकर एक नवीन राजवंश मौर्य वंश की स्थापना की।

मगध राज्य का उत्कर्ष से प्रश्नोत्तर:

  1. हर्यंक वंश के किस शासक को ‘कुणिक’ कहा जाता था – अजातशत्रु
  2. किस शासक ने गंगा एवं सोन नदियों के संगम पर पाटलिपुत्र नामक नगर की स्थापना की – उदायिन
  3. शिशुनाग वंश का वह कौन से शासक था, जिसके समय में वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया, उसे ‘काकवर्ण’ के नाम से भी जाना जाता है – कालाशोक
  4. नंद वंश का संस्थापक कौन था – महापद्मनंद
  5. ग्रीक / यूनानी लेखकों द्वारा किसे ‘अग्रमीज’ / ‘जैन्ड्रमीज’ कहा गया – घनानन्द
  6. प्राचीन भारत में पहला विदेशी आक्रमण किनके द्वारा किया गया – ईरानियों द्वारा
  7. प्राचीन भारत में दूसरा विदेशी आक्रमण एवं पहला यूरोपीय आक्रमण किनके द्वारा किया गया – यूनानियों द्वारा
  8. हर्यंक वंश के संस्थापक कौन थे – बिम्बिसार
  9. कालाशोक ने किस वंश की स्थापना की – शिशुनाग वंश
  10. नंद वंश की स्थापना किसने की – महापद्मनंद
  11. किस शासक द्वारा सर्प्रथम पाटलिपुत्र का राजधानी के रूप में चयन किया गया – उदायिन द्वारा
  12. मगध का कौन-सा राजा सिकंदर महान का समकालीन था – घनानन्द
  13. प्रथम मगध साम्राज्य (magadha empire) का उत्कर्ष किस सदी में हुआ था – छठी सदी ई० पू०
  14. मगध के राजा अजातशत्रु का सदैव किस गणराज्य के साथ युद्ध रहा – वज्जि संघ (वैशाली)
  15. वज्जि संघ के विरुद्ध मगध राज्य के किस शासक ने प्रथम बार ‘रथमूसल’ तथा ‘महाशिलाकंटक’ नामक गुप्त हथियारों का प्रयोग किया – अजातशत्रु
  16. नंद वंश का अंतिम सम्राट कौन था – घनानन्द
  17. मगध सम्राट बिम्बिसार ने अपने राजवैद्य जीवक को किस राज्य के राजा की चिकित्सा के लिए भेजा था – अवन्ति
  18. किस शासक ने अवन्ति को जीतकर मगध का हिस्सा बना दिया – शिशुनाग
  19. किस मगध सम्राट ने अंग का विलय अपने राज्य में कर लिया – बिम्बिसार
  20. काशी और लिच्छवी का विलय मगध साम्राज्य में किसने किया – अजातशत्रु
  21. ईसा पूर्व 6ठी सदी में, प्रारंभ में भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली नगर राज्य कौन था – मगध
  22. किसे ‘सेनिया’ (नियमित और स्थायी सेना रखने वाला) कहा जाता था – बिम्बिसार
  23. किसे ‘उग्रसेन’ (भयानक सेना का स्वामी) कहा जाता था – महापद्मनंद
  24. मगध के किस प्रारंभिक शासक ने राज्यारोहण के लिए अपने पिता की हत्या की एवं इसी कारणवश अपने पुत्र द्वारा मारा गया – अजातशत्रु
  25. बिम्बिसार की हत्या किसने की – अजातशत्रु
  26. बिम्बिसार के पुत्र का नाम क्या था – अजातशत्रु
  27. उदायिन किस धर्म का अनुयायी था – जैन धर्म
  28. अजातशत्रु का उपनाम क्या था – कुणिक
  29. अजातशत्रु के मंत्री का क्या नाम था – वर्षकार
  30. हर्यंक वंश का अंतिम राजा कौन था – नागदशक
  31. अजातशत्रु की हत्या किसने की – उदायिन ने
  32. शिशुनाग वंश का अंतिम राजा कौन था – नंदिवर्धन
  33. बिम्बिसार ने किसको हराकर अंग राज्य को मगध में मिला लिया – ब्रह्मदत्त
  34. बिम्बिसार किस धर्म का अनुयायी था – बौद्ध धर्म
  35. शिशुनाग ने किसको अपदस्थ करके मगध पर शिशुनाग वंश की स्थापना की – नागदशक
  36. किस शासक ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से हटाकर वैशाली में स्थापित की – शिशुनाग
  37. घनानन्द को किस शासक ने युद्ध में हराकर मगध पर ‘मौर्य वंश’ की स्थापना की – चंद्रगुप्त मौर्य

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