पुष्यभूति या वर्धन वंश
- गुप्तों के पतन के बाद उत्तर भारत में सबसे विस्तृत साम्राज्य पुष्यभूति वंश या वर्द्धन वंश की स्थापना पुष्यभूति द्वारा की गयी। इस वंश का वर्णन हर्षचरित्र में मिलता हैं।
- पुष्यभूति ने अपनी राजधानी थानेश्वर (हरियाणा) बनाई।
- इस वंश के शासकों को वैश्य या क्षत्रिय माना गया हैं।
- ऐसा माना जाता हैं कि पुष्यभूति गुप्त राज्य के सामंत थे। केंद्रीय सत्ता के कमजोर होते हैं उन्होंने पूर्वी पंजाब (हरियाणा) में अपनी सत्ता स्थापित कर ली थी।
- पुष्यभूति शैव धर्म का अनुयायी था तथा इस पर भैरवाचार्य नामक शैव सन्यासी का प्रभाव था।
प्रभाकरवर्धन (580 -605 ई.)
- वर्धन वंश की वास्तविक शक्तिशाली राज्य बनाने का श्रेय प्रभाकरवर्धन को जाता हैं।
- प्रभाकरवर्धन ने परमभट्टारक और महाराजाधिराज उपाधियाँ धारण की।
- अपनी राजनीतिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए प्रभाकर वर्धन ने उस समय के शक्तिशाली राज्य कन्नौज के मौखरि वंश के शासक ग्रहवर्मा के साथ अपनी पुत्री राज्यश्री का विवाह किया।
- हर्ष चरित्र से उनके मालवा पर प्रभाव के बारे में पता चलता हैं मालवा राज्य के दो राजकुमार कुमार गुप्त और माधव गुप्त उनके दरबार में रहते थे।
- प्रभाकरवर्धन के अंतिम समय में हूणों ने पश्चिमोत्तर भारत पर आक्रमण कर दिया, जिसे दबाने के उसने अपने बड़े पुत्र राज्यवर्धन को भेजा।
- प्रभाकर वर्धन सूर्य का उपासक था तथा उनकी पत्नी का नाम यशोमति था।
- प्रभाकरवर्धन की तीन संताने थी– राज्यवर्धन, हर्षवर्धन तथा पुत्री राज्यश्री
राज्यवर्धन (605 -606 ई.)
- जिस समय राज्यवर्धन हूणों के आक्रमण का सामना कर रहा था उस समय उसे अपने पिता के बीमार होने की सूचना मिली।
- जब वह वापस आया तो उसके पिता प्रभाकरवर्धन की मृत्यु हो चुकी थी। उसके बाद वह थानेश्वर की गद्दी पर बैठा।
- गद्दी पर बैठते बंगाल के शासक शशांक ने मालवा के शासक देवगुप्त के साथ मिलकर कन्नौज पर आक्रमण कर दिया। ग्रहवर्मा की हत्या कर उनकी बहिन राज्यश्री को बंदी बना लिया।
- राज्यवर्धन ने मालव नरेश देवगुप्त की सेना को तो पराजित कर दिया लेकिन बंगाल के गौड़ राजा शशांक ने धोखे से राज्यवर्धन की हत्या कर दी।
- राज्य वर्धन की मृत्यु के बाद 16 वर्ष की आयु में हर्षवर्धन 606 ई. में थानेश्वर का राजा बना। राजा बनते ही वह शशांक और देवगुप्त को सजा देने के लिए कन्नौज की और बढ़ा।
- कन्नौज जाते समय हर्षवर्धन को रास्ते में कामरूप के राजा भास्कर वर्मन का दूत हंसबेग मिला। जिसने अपने राजा की ओर से मित्रता का प्रस्ताव हर्षवर्धन को दिया। जिसे हर्षवर्धन ने स्वीकार कर लिया।
- जब वह आगे चलकर मंडी पहुंचा तो वहां उसे पता चला की उसकी बहिन राज्यश्री कैद से आजाद होकर विंध्याचल की ओर चली गई हैं तो वह कन्नौज के बजाय विंध्याचल की ओर चला गया।
- आचार्य दिवाकरमित्र की सहायता से उसने सती होने जा रही अपनी बहिन को खोज लिया।वह उसे अपने साथ लेकर कन्नौज चला आया।
- कन्नौज के मंत्रियों और राजयश्री की सहमति से वह कन्नौज का राजा बन गया और उसने अपनी राजधानी भी थानेश्वर से कन्नौज स्थानांतरित कर दी।
- उसके पश्चात् मगध के राजा पूर्णवर्मन जो की सम्भवत: मौखरि वंश की एक शाखा का राजा था, ने हर्षवर्धन की अधीनता स्वीकार कर ली।
- हर्षवर्धन ने ओड्र (उत्तरी उड़ीसा) तथा कोगोंडा (द. उड़ीसा, गंजाम जिला) तथा कलिंग पर भी विजय प्राप्त कर ली। जिसके फलस्वरूप वह उत्तर भारत एक मात्र शक्तिशाली राजा बन गया।
- इन विजयों के उपरांत उसने सकलोत्तरापथनाथ की उपाधि धारण की।
- हर्षवर्धन के समय चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया। ह्वेनसांग के यात्रा वृत्तांत मुख्यतः हर्षवर्धन के काल की जानकारी देते हैं।
- हर्षवर्धन के दरबार में कादंबरी और हर्षचरित्र के रचयिता बाणभट्ट, सुभाषितवलि के रचयिता मयूर तथा चीनी यात्री ह्वेनसांग रहते थे।
- हर्षवर्धन निसंतान था इसीलिए उसकी मृत्यु के उपरांत ही पुष्यभूति वंश का अंत हो गया।
- हर्षवर्धन शिव का उपासक था।
- नर्मदा नदी के पास हर्षवर्धन का युद्ध चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय से हुआ। इस युद्ध का उल्लेख वाणभट्ट नहीं करता है। परन्तु इसकी जानकारी ऐहोल अभिलेख और ह्वेनसांग की सी-यू-की से प्राप्त होती है। इस युद्ध में हर्षवर्धन की पराजय हुयी।
- हर्ष के समय में नालन्दा महाविहार महायान बौद्ध धर्म की शिक्षा का प्रधान केन्द्र था।
- प्रियदर्शिका, रत्नावली तथा नागानन्द नामक तीन संस्कृत नाटक ग्रंथो की रचना हर्ष ने की थी।
- हर्ष को भारत का अन्तिम हिन्दू सम्राट कहा गया है, लेकिन वह न तो कट्टर हिन्दू था और न ही सारे देश का शासक ही।
- प्रयाग का मशहूर कुंभ मेला भी हर्ष ने शुरू करवाया था।
- हर्ष की अधीनस्थ शासक महाराज अथवा महासामन्त कहे जाते थे।
- हर्ष को भारत का अन्तिम हिन्दू सम्राट कहा गया है, लेकिन वह न तो कट्टर हिन्दू था और न ही सारे देश का शासक ही।
- हर्ष के मंत्रीपरिषद के मंत्री को सचिव या आमात्य कहे जाते थे।
- हर्ष और चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय के बीच 618 में नर्मदा नदी के पास एक युद्ध हुआ जिसमें हर्षवर्धन पराजित हुआ।
- हर्षवर्धन के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया। हर्षवर्धन को यात्रियों में राजकुमार, नीति का पंडित एवं वर्तमान शाक्यमुनि कहा जाता था। नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ने एवं बौद्ध ग्रंथ संग्रह करने के उद्देश्य से भारत आया था उस समय नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति शीलभद्र थे। हर्ष ने 641 ई. में अपने दूत चीन भेजें 643 एवं 645 ई. में दो चीनी दूत उस के दरबार में आए। चीनी यात्री ह्वेनसांग से मिलने के बाद हर्ष ने बौद्ध धर्म की महायान शाखा को राज्य आश्रय प्रदान किया तथा वह पूर्ण रुप से बौद्ध बन गया।
- प्रशासन की सुविधा के लिए हर्ष का साम्राज्य कई प्रकार के प्रांतों में विभाजित था हर प्रांत को भुक्ति कहा जाता था प्रत्येक भक्ति का शासक राष्ट्रीय कहलाता था।
- हर्ष चरित्र में प्रांतीय शासक को लोकपाल कहा गया है।
- ग्राम प्रशासन के प्रधान को ग्रामाक्षपटलिक कहा जाता था।
- पुलिसकर्मियों को चार्ट या भाट कहा जाता था।
- अश्व सेना के अधिकारियों को बृहदेश्वर पैदल सेना के अधिकारियों को महाबल अधिकृत कहा जाता था।
हर्षवर्धन का प्रयाग सम्मलेन-
हर्षवर्धन वस्तुतः बौद्ध धर्म का समर्थक था परंतु वह ब्राम्हण धर्म में भी रुचि रखता था| वह प्रत्येक 5 वर्ष पर प्रयाग में महामोक्ष परिषद का आयोजन करवाता था और इस महामोक्ष परिषद में बुद्ध, सूर्य और शिव की पूजा होती थी| हर्षवर्धन इस अवसर पर अपने 5 वर्षों की अर्जित की गई संपत्ति यहां पर दान में दे देता था|
वह अपने वस्त्र भी दान में दे देता था| चीनी यात्री ह्वेनसांग ने छठे प्रयाग परिषद का उल्लेख करते हुए लिखा है कि इस अवसर पर लगभग 5 लाख व्यक्ति प्रयाग में एकत्रित हुए थे और यह परिषद 75 दिनों तक चली थी| इस परिषद में प्रथम दिन बुद्ध की पूजा होती थी इसके बाद दूसरे दिन सूर्य तथा तीसरे दिन शिव की पूजा होती थी| चौथे दिन दान दिया जाता था|
हर्षवर्धन के अभिलेख-
सम्राट हर्षवर्धन के दो महत्वपूर्ण अभिलेख प्राप्त हुए हैं-
- मधुबन अभिलेख- मधुबन आजमगढ़ उत्तर प्रदेश में स्थित है|
- बांसखेड़ा अभिलेख- बांसखेड़ा शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश में स्थित है|
बांसखेड़ा अभिलेख में राजा हर्षवर्धन के शासन काल की महत्वपूर्ण घटनाओं और उसकी प्रशासनिक व्यवस्थाओं का उल्लेख मिलता है| इसके अतिरिक्त हर्षवर्धन के काल की दो मुहँरें भी नालंदा और सोनपत से प्राप्त हुई हैं| पुलकेशिन द्वितीय का ऐहोल अभिलेख हर्षवर्धन के जीवन पर प्रकाश डालता है| इस अभिलेख में हर्षवर्धन और पुलकेशिन द्वितीय के मध्य युद्ध का विवरण किया गया है जिसमें पुलकेशिन द्वितीय ने हर्षवर्धन को पराजित कर दिया था|
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