सिंधु घाटी सभ्यता

  • भारत का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से प्रारंभ होता है जिसे हम हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जानते हैं।
  • रेडियोकार्बन C14 जैसी नवीन विश्लेषण पद्धति के द्वारा सिन्धु सभ्यता की सर्वमान्य विधि 2350 ई0 पू0 से 1750 ई0 पूर्व तक मानी गयी है,जो कि वर्तमान में पाकिस्तान तथा पश्चिमी भारत के नाम से जाना जाता है।
  • सिन्धु सभ्यता के मुख्य निवासी द्रविड एवं भूमध्यसागरीय थे, जिनको प्रागैतिहासिक अथवा कांस्य युगीन में रखा जा सकता है। 
  • सिंधु घाटी सभ्यता मिस्र,मेसोपोटामिया,भारत और चीन की चार सबसे बड़ी प्राचीन नगरीय सभ्यताओं से भी अधिक उन्नत थी।
  • 1920 में, भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा किये गए सिंधु घाटी के उत्खनन से प्राप्त अवशेषों से हड़प्पा तथा मोहनजोदडो जैसे दो प्राचीन नगरों की खोज हुई।
  • सिन्धु सभ्यता की खोज सर्वप्रथम 1921 में रायबहादुर दयाराम साहनी ने की थी। 
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात हडप्पा संस्कृति के सर्वाधिक स्थल गुजरात से प्राप्त (खोजे) हुए है। 
  • सिन्धु सभ्यता की लिपि भावचित्र्रात्मक है। यह लिपि दांयी ओर से बांयी ओर को लिखी जाती थी। जब अभिलेख एक से अधिक पंक्तियों का होता था तो पहली पंक्ति दांयी से बांयी और दूसरी बांयी से दांयी ओर लिखी जाती थी। 
  • संभवतः सिन्धु सभ्यता का शासन वणिक वर्ग के हाथो में था। 
  • पाकिस्तान के सिन्धु प्रांत में स्थित पुरातात्त्विक स्थान, जहाँ सिन्धु घाटी सभ्यता बसी थी। मुअनजो-दड़ो का अर्थ है मुर्दों का टीला। वर्तमान समय में इसे मोहनजोदड़ो के नाम से जाना जाता है।

हड़प्पा सभ्यता के महत्त्वपूर्ण स्थल-

स्थल

खोजकर्त्ता

अवस्थिति

महत्त्वपूर्ण खोज

हड़प्पा

दयाराम साहनी
(1921)

पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में मोंटगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है।

·         मनुष्य के शरीर की बलुआ पत्थर की बनी मूर्तियाँ

·         अन्नागार

·         बैलगाड़ी

मोहनजोदड़ो
(
मृतकों का टीला)

राखलदास बनर्जी
(1922)

पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के लरकाना जिले में सिंधु नदी के तट पर स्थित है।

·         विशाल स्नानागर

·         अन्नागार

·         कांस्य की नर्तकी की मूर्ति

·         पशुपति महादेव की मुहर

·         दाड़ी वाले मनुष्य की पत्थर की मूर्ति

·         बुने हुए कपडे

सुत्कान्गेडोर

स्टीन (1929)

पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी राज्य बलूचिस्तान में दाश्त नदी के किनारे पर स्थित है।

  • हड़प्पा और बेबीलोन के बीच व्यापार का केंद्र बिंदु था।

चन्हुदड़ो

गोपाल मजुमदार
(1931)

पाकिस्तान के सिंधु नदी के तट पर सिंध प्रांत में।

  • मनके बनाने के कारखाने
  • बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के पदचिन्ह

आमरी

एन .जी . मजूमदार (1935)

सिंधु नदी के तट पर।

·         हिरन के साक्ष्य

कालीबंगन

बी0बी0 लाल एवं बी0के0 थापर
(1953)

राजस्थान में घग्गर नदी के किनारे।

·         अग्नि वेदिकाएँ

·         घोडे के अस्थिपंजर

·         लकड़ी का हल

लोथल

रंगनाथ राव
(1955 
एवं 1962)

गुजरात का अहमदाबाद जिला भोगवा नदी के किनारे।

·         मनके बनाने के कारखाने

·         मानव निर्मित बंदरगाह

·         गोदीवाडा

·         चावल की भूसी

·         अग्नि वेदिकाएं

·         शतरंज का खेल

·         घोडे के अस्थिपंजर

सुरकोतदा

जे.पी. जोशी
(1964)

गुजरात।

·         घोडे के अस्थिपंजर

·         मनके

बनावली

रविन्द्र सिंह बिष्ट
(1974)

हरियाणा के हिसार जिले में स्थित।

·         मनके

·         जौ

·         हड़प्पा पूर्व और हड़प्पा संस्कृतियों के साक्ष्य

धौलावीरा

रविन्द्र सिंह बिष्ट
(1990-91)

गुजरात में कच्छ के रण में स्थित।

·         जल निकासी प्रबंधन

·         जल कुंड


सिंधु घाटी सभ्यता के तीन चरण हैं-

  1. प्रारंभिक हड़प्पाई सभ्यता (3300ई.पू.-2600ई.पू. तक)
  2.  
  3. परिपक्व हड़प्पाई सभ्यता (2600ई.पू-1900ई.पू. तक)
  4.  
  5. उत्तर हड़प्पाई सभ्यता (1900ई.पु.-1300ई.पू. तक)
  • प्रारंभिक हड़प्पाई चरण ‘हाकरा चरण’ से संबंधित है, जिसे घग्गर- हाकरा नदी घाटी में चिह्नित किया गया है।
  • हड़प्पाई लिपि का प्रथम उदाहरण लगभग 3000 ई.पू के समय का मिलता है।
  • इस चरण की विशेषताएं एक केंद्रीय इकाई का होना तथा बढते हुए नगरीय गुण थे।
  • व्यापार क्षेत्र विकसित हो चुका था और खेती के साक्ष्य भी मिले हैं। उस समय मटर, तिल, खजूर , रुई आदि की खेती होती थी।
  • कोटदीजी नामक स्थान परिपक्व हड़प्पाई सभ्यता के चरण को प्रदर्शित करता है।
  • 2600 ई.पू. तक सिंधु घाटी सभ्यता अपनी परिपक्व अवस्था में प्रवेश कर चुकी थी।
  • परिपक्व हड़प्पाई सभ्यता के आने तक प्रारंभिक हड़प्पाई सभ्यता बड़े- बड़े नगरीय केंद्रों में परिवर्तित हो चुकी थी। जैसे- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो वर्तमान पाकिस्तान में तथा लोथल जो कि वर्तमान में भारत के गुजरात राज्य में स्थित है।
  • सिंधु घाटी सभ्यता के क्रमिक पतन का आरंभ 1800 ई.पू. से माना जाता है,1700 ई.पू. तक आते-आते हड़प्पा सभ्यता के कई शहर समाप्त हो चुके थे ।
  • परंतु प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के बाद की संस्कृतियों में भी इसके तत्व देखे जा सकते हैं।
  • कुछ पुरातात्त्विक आँकड़ों के अनुसार उत्तर हड़प्पा काल का अंतिम समय 1000 ई.पू. - 900 ई. पू. तक बताया गया है।

नगरीय योजना -

  • हड़प्पाई सभ्यता अपनी नगरीय योजना प्रणाली के लिये जानी जाती है।
  • मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के नगरों में अपने- अपने दुर्ग थे जो नगर से कुछ ऊँचाई पर स्थित होते थे जिसमें अनुमानतः उच्च वर्ग के लोग निवास करते थे।
  • मोहनजोदड़ो से प्राप्त स्नानागार संभवतः सैंन्धव सभ्यता की सबसे बडी इमारत है। 
  • दुर्ग से नीचे सामान्यतः ईंटों से निर्मित नगर होते थे,जिनमें सामान्य लोग निवास करते थे।
  •  सिन्धु सभ्यता के लोगो ने नगरों तथा घरों के विन्यास के लिए ग्रिड पद्धति अपनायी।  इसके अंतर्गत सडकें एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं ।
  • लोथल को छोडकर घरो के दरवाजे और खिडकियां सडक की ओर न खुलकर पीछे की ओर से खुलते थे। 
  • अन्न भंडारों का निर्माण हड़प्पा सभ्यता के नगरों की प्रमुख विशेषता थी।
  • जली हुई ईंटों का प्रयोग हड़प्पा सभ्यता की एक प्रमुख विशेषता थी क्योंकि समकालीन मिस्र में मकानों के निर्माण के लिये शुष्क ईंटों का प्रयोग होता था।
  • हड़प्पा सभ्यता में जल निकासी प्रणाली बहुत प्रभावी थी।
  • हर छोटे और बड़े घर के अंदर स्वंय का स्नानघर और आँगन होता था।
  • कालीबंगन के बहुत से घरों में कुएँ नही पाए जाते थे।
  • नक्काशीदार ईंटों के प्रयोग के साक्ष्य कालीबंगन से प्राप्त हुआ है। 
  • अग्निकुण्ड लोथल एवं कालीबंगन से प्राप्त हुए है। 
  • सैंधव सभ्यता के लोग यातायात के लिए दो पहियों एवं चार पहियों वाली बैलगाड़ी या भैंसगाड़ी का उपयोग करते थे। 

कृषि-

  • सिन्धु सभ्यता की मुख्य फसल ‘गेहूँ’ और ‘जौ’ थी। 
  • गेहूँ, जौ, सरसों, तिल, मसूर आदि का उत्पादन होता था। गुजरात के कुछ स्थानों से बाजरा उत्पादन के संकेत भी मिले हैं,जबकि यहाँ चावल के प्रयोग के संकेत तुलनात्मक रूप से बहुत ही दुर्लभ मिलते हैं।
  • सिंधु सभ्यता के मनुष्यों ने सर्वप्रथम कपास की खेती प्रारंभ की थी।
  • रंगपुर एवं लोथल से चावल के दाने जिनसे धान की खेती होने का प्रमाण मिले। लोथल से चावल के प्रथम साक्ष्य प्राप्त हुए। 
  • वास्तविक कृषि परंपराओं को पुनर्निर्मित करना कठिन होता है क्योंकि कृषि की प्रधानता का मापन इसके अनाज उत्पादन क्षमता के आधार पर किया जाता है।
  • कालीबंगन से जुते हुए खेत के साक्ष्य मिले हैं।
  • अधिकांश हड़प्पा स्थल अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में स्थित हैं जहाँ संभवतः कृषि के लिए सिंचाई की आवश्यकता पड़ती होगी। 
  • अफगानिस्तान में शोर्तुघई नामक हड़प्पा स्थल से नहरों के कुछ अवशेष मिले हैं, परंतु पंजाब और सिंध में नहीं।
  • हड़प्पाई लोग कृषि के साथ -साथ बड़े पैमाने पर पशुपालन भी करते थे ।
  • धौलावीरा (गुजरात) में मिले जलाशयों का प्रयोग संभवतः कृषि के लिए जल संचयन हेतु किया जाता था।

अर्थव्यवस्था-

  • अनगिनत संख्या में मिली मुहरें ,एकसमान लिपि,वजन और मापन की विधियों से सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के जीवन में व्यापार के महत्त्व के बारे में पता चलता है।
  • मापन की इकाई संभवतः 16 के अनुपात में थी। 
  • हड़प्पाई लोग पत्थर ,धातुओं, सीप या शंख का व्यापार करते थे।
  • धातु मुद्रा का प्रयोग नहीं होता था। व्यापार की वस्तु विनिमय प्रणाली मौजूद थी।
  • अरब सागर के तट पर उनके पास कुशल नौवहन प्रणाली भी मौजूद थी।
  • उन्होंने उत्तरी अफगानिस्तान में अपनी व्यापारिक बस्तियाँ स्थापित की थीं जहाँ से प्रमाणिक रूप से मध्य एशिया से सुगम व्यापार होता था।
  • दजला -फरात नदियों की भूमि वाले क्षेत्र से हड़प्पा वासियों के वाणिज्यिक संबंध थे।
  • हड़प्पाई प्राचीन ‘लैपिस लाजुली’ मार्ग से व्यापार करते थे जो संभवतः उच्च लोगों की सामाजिक पृष्ठभूमि से संबधित था ।
  • सिन्धु सभ्यता के लोग सूती एवं ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे। 
  • पर्दा प्रथा एवं वेश्यावृत्ति सैंधव सभ्यता में प्रचलित थी। 

शिल्पकला -

  • हड़प्पाई कांस्य की वस्तुएँ निर्मित करने की विधि ,उसके उपयोग से भली भाँति परिचित थे।
  • तांबा राजस्थान की खेतड़ी खान से प्राप्त किया जाता था और टिन अनुमानतः अफगानिस्तान से लाया जाता था ।
  • बुनाई उद्योग में प्रयोग किये जाने वाले ठप्पे बहुत सी वस्तुओं पर पाए गए हैं।
  • बड़ी -बड़ी ईंट निर्मित संरचनाओं से राजगीरी जैसे महत्त्वपूर्ण शिल्प के साथ साथ राजमिस्त्री वर्ग के अस्तित्व का पता चलता है।
  • हड़प्पाई नाव बनाने की विधि,मनका बनाने की विधि,मुहरें बनाने की विधि से भली- भाँति परिचित थे। टेराकोटा की मूर्तियों का निर्माण हड़प्पा सभ्यता की महत्त्वपूर्ण शिल्प विशेषता थी। आग से पकी हुई मिट्टी को टेराकोटा कहा जाता है। 
  • जौहरी वर्ग सोने ,चांदी और कीमती पत्थरों से आभूषणों का निर्माण करते थे ।
  • मिट्टी के बर्तन बनाने की विधि पूर्णतः प्रचलन में थी,हड़प्पा वासियों की स्वयं की विशेष बर्तन बनाने की विधियाँ थीं, हड़प्पाई लोग चमकदार बर्तनों का निर्माण करते थे ।

संस्थाएँ-

  • सिंधु घाटी सभ्यता से बहुत कम मात्रा में लिखित साक्ष्य मिले हैं ,जिन्हें अभी तक पुरातत्त्वविदों तथा शोधार्थियों द्वारा पढ़ा नहीं जा सका है।
  • एक परिणाम के अनुसार, सिंधु घाटी सभ्यता में राज्य और संस्थाओं की प्रकृति समझना काफी कठिनाई का कार्य है ।
  • हड़प्पाई स्थलों पर किसी मंदिर के प्रमाण नहीं मिले हैं। अतः हड़प्पा सभ्यता में पुजारियों के प्रुभुत्व या विद्यमानता को नकारा जा सकता है।
  • हड़प्पा सभ्यता अनुमानतः व्यापारी वर्ग द्वारा शासित थी।
  • अगर हम हड़प्पा सभ्यता में शक्तियों के केंद्रण की बात करें तो पुरातत्त्वीय अभिलेखों द्वारा कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती है।
  • कुछ पुरातत्त्वविदों की राय में हड़प्पा सभ्यता में कोई शासक वर्ग नहीं था तथा समाज के हर व्यक्ति को समान दर्जा प्राप्त था ।
  • कुछ पुरातत्त्वविदों की राय में हड़प्पा सभ्यता में कई शासक वर्ग मौजूद थे ,जो विभिन्न हड़प्पाई शहरों में शासन करते थे ।

धर्म-

  • स्त्री मृण्मूर्तियाँ(मिट्टी की मूर्तियाँ) अधिक संख्या में मिलने से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सैंधव समाज मातृसत्तात्मक था। 
  • टेराकोटा की लघुमूर्तियों पर एक महिला का चित्र पाया गया है, इनमें से एक लघुमूर्ति में महिला के गर्भ से उगते हुए पौधे को दर्शाया गया है।
  • हड़प्पाई पृथ्वी को उर्वरता की देवी मानते थे और पृथ्वी की पूजा उसी तरह करते थे।
  • पुरुष देवता के रूप में मुहरों पर तीन शृंगी चित्र पाए गए हैं जो कि योगी की मुद्रा में बैठे हुए हैं ।
  • देवता के एक तरफ हाथी, एक तरफ बाघ, एक तरफ गैंडा तथा उनके सिंहासन के पीछे भैंसा का चित्र बनाया गया है। उनके पैरों के पास दो हिरनों के चित्र है। चित्रित भगवान की मूर्ति को पशुपतिनाथ महादेव की संज्ञा दी गई है।
  • अनेक पत्थरों पर लिंग तथा स्त्री जनन अंगों के चित्र पाए गए हैं।
  • सिंधु घाटी सभ्यता के लोग शिव, वृक्षों तथा पशुओं की पूजा किया करते थे।
  • सिंधु घाटी सभ्यता में सबसे महत्त्वपूर्ण पशु एक सींग वाला गैंडा था तथा दूसरा महत्त्वपूर्ण पशु कूबड़ वाला सांड था।
  • सिन्धु सभ्यता में मातृदेवी की उपासना सर्वाधिक प्रचलित थी। 
  • शवों को जलाने एवं दफनाने वाली दोनो प्रथाएँ प्रचलित थी। हड़प्पा में शवों को दफनाने जबकि मोहनजोदडो में जलाने की प्रथा विद्यमान थी। लोथल एवं कालीबंगा में युग्म समाधियाँ मिली है। 

सिंधु घाटी सभ्यता का पतन-

  • सिंधु घाटी सभ्यता का लगभग 1800 ई.पू. में पतन हो गया था, परंतु उसके पतन के कारण अभी भी विवादित हैं।
  • एक सिद्धांत यह कहता है कि इंडो -यूरोपियन जनजातियों जैसे- आर्यों ने सिंधु घाटी सभ्यता पर आक्रमण कर दिया तथा उसे हरा दिया ।
  • सिंधु घटी सभ्यता के बाद की संस्कृतियों में ऐसे कई तत्त्व पाए गए जिनसे यह सिद्ध होता है कि यह सभ्यता आक्रमण के कारण एकदम विलुप्त नहीं हुई थी ।
  • दूसरी तरफ से बहुत से पुरातत्त्वविद सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का कारण प्रकृति जन्य मानते हैं।
  • प्राकृतिक कारण भूगर्भीय और जलवायु संबंधी हो सकते हैं।
  • यह भी कहा जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के क्षेत्र में अत्यधिक विवर्तिनिकी विक्षोभों की उत्पत्ति हुई जिसके कारण अत्यधिक मात्रा में भूकंपों की उत्पत्ति हुई।
  • एक प्राकृतिक कारण वर्षण प्रतिमान का बदलाव भी हो सकता है।
  • एक अन्य कारण यह भी हो सकता है कि नदियों द्वारा अपना मार्ग बदलने के कारण खाद्य उत्पादन क्षेत्रों में बाढ़आ गई हो ।
  • इन प्राकृतिक आपदाओं को सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का मंद गति से हुआ, परंतु निश्चित कारण माना गया है।

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