प्रदूषण 

'प्रदूषण' को स्पष्ट करते हुए कोलिन वाकर ने कहा है "प्रकृति के द्वारा प्रदत्त सामान्य वातावरण मे भौतिक, रासायनिक या जैविक कारको के कारण होने वाले परिवर्तन प्रदूषण है।" 

ओडम के अनुसार," वातावरण के अथवा जीवमंडल के भौतिक, रासायनिक व जैविक गुणों के ऊपर जो हानिकारक प्रभाव पड़ता है, प्रदूषण कहलाता है।" 

अन्य शब्दों मे हमारे पर्यावरण की प्राकृतिक संरचना एवं संतुलन मे उत्पन्न अवांछनीय परिवर्तन को प्रदूषण कह सकते है। 

प्रदूषण के प्रकार:

पर्यावरण प्रदूषण मानवीय क्रियाकलापों के अपशिष्ट उत्पादों से मुक्त द्रव्य एवं ऊर्जा का परिणाम है। प्रदूषण के अनेक प्रकार हैं। प्रदूषकों के परिवहित एवं विसरित होने के माध्यम के आधार पर प्रदूषण को निम्नलिखित प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है, (1) वायु प्रदूषण, (2) जल प्रदूषण, (3) ध्वनि प्रदूषण, (4)  भू-प्रदूषण।

1. वायू प्रदूषण: वायु प्रदूषण को धूल, धुआँ, गैसें, कुहासा, दुर्गंध और वाष्प जैसे कारको की वायु में अभिवृद्धि व उस अवधि के रूप में लिया जाता है जो मनुष्यों, जंतुओं और संपत्ति के लिए हानिकारक होते हैं। ऊर्जा के स्रोत के रूप में विभिन्न प्रकार के ईंधनों के प्रयोग में वृद्धि के साथ, पर्यावरण में विषाक्त धुएँ वाली गैसों के उत्सर्जन के परिणामस्वरूप वायु प्रदूषित होती है। जीवाश्म ईंधन का दहन, खनन और उद्योग वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं।

वायु प्रदूषण के प्रदूषक: कार्बन डाईऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सीसा तथा एस्बेस्टास इत्यादि 

वायु प्रदूषण के स्रोतः कोयले, पेट्रोल व डीजल का दहन (जलना), औद्योगिक प्रक्रम, ठोस कचरा निपटान, वाहित मल (जल-मल) निपटान आदि।

वायु प्रदूषण के परिणामः  इससे भूमंडलीय तापमान मे वृद्धि हो रही है। सांस तथा गले की बीमारी, अम्लीय वर्षा, ओजोन परत मे कमी, जीव-जंतुओं की असमय मृत्यु होना वायु प्रदूषण के हानिकारक दुष्परिणाम है।

2. जल प्रदूषण:बढ़ती हुई जनसंख्या और औद्योगिक विस्तारीकरण के कारण  जल की गुणवत्ता का बहुत अधिक निम्नीकरण हुआ है। नदियों, नहरों, झीलों तथा तालाबों आदि में उपलब्ध जल शुद्ध नहीं रह गया है। इसमें अल्प मात्रा में निलंबित कण, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ समाहित होते हैं। जब जल में इन पदार्थों की सांद्रता बढ़ जाती है तो जल प्रदूषित हो जाता है और इस तरह वह उपयोग के योग्य नहीं रह जाता। 

जल प्रदूषण के प्रदूषक: कल-कारखानों का कूड़ा-कचरा तथा हानिकारक रसायन नही व जलाशयों मे फेंकने, शहर की गंदगी व सीवर नदियों मे बहाने, रासायनिक खाद तथा कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करने, मृत जीव-जंतुओं व मनुष्यों के शव अथवा उनके अवशेषों को नदियों मे फेंकने आदि 

जल प्रदूषण के परिणामः प्रदूषित जल मनुष्यों मे पीलिया, पेचिश, टायफाइड, पेट के रोग, त्वचा के रोग पैदा करता है। इसके कारण नदियों व समुद्रों मे जीव-जंतुओं की ऑक्सीजन की कमी होने व जहरीला पानी होने के कारण मृत्यु हो जाती है। 

1985 में गंगा नदी को बचाने के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना आरम्भ की गयी जिसे गंगा कार्य परियोजना कहते हैं। परन्तु बढ़ती जनसंख्या तथा औद्योगीकरण ने पहले से ही इस महाशक्तिशाली नदी को काफी हानि पहुँचा दी है। भारत सरकार ने 2016 में एक नए प्रस्ताव का शुभारंभ किया जिसे स्वच्छ गंगा भारत मिशन के नाम से जाना जाता है और इस मिशन के अंतर्गत कार्य प्रगति पर हैं।

3. ध्वनि प्रदूषणविभिन्न स्रोतों से उत्पन्न ध्वनि का मानव की सहनीय सीमा से अधिक तथा असहज होना ही ध्वनि प्रदूषण है। विभिन्न प्रकार के प्रौद्योगिकीय अन्वेषणों के चलते, हाल ही के वर्षों से यह एक गंभीर समस्या बनकर उभरा है।

ध्वनि प्रदूषण के प्रदूषक: विविध उद्योग, मशीनीकृत निर्माण कार्य, तीव्रचालित मोटर-वाहन और वायुयान इत्यादि हैं। इनमें सायरन, लाउडस्पीकर, तथा सामुदायिक गतिविधियों से जुड़े विभिन्न उत्सव संबंधी कार्यों से होने वाली आवधिक किंतु प्रदूषण करने वाले शोर को भी जोड़ा जा सकता है।

ध्वनि प्रदूषण के परिणामः ध्वनि प्रदूषण से बहरापन, पागलपन, चिड़चिड़ापन इत्यादि लक्षण पैदा हो जाते है। ज्यादा शोर के कारण गर्भ मे बच्चों मे विकलांगता आ जाती है। 

4. भूमि प्रदूषण: जो भूमि कम उपजाऊ होने या कृषि योग्य नही रहती उसे भूमि प्रदूषण कहते है। 

भूमि प्रदूषण के प्रदूषक: रासायनिक खादों और कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करने शहरी गंदगी तथा कूड़ा-करकट को खुला फेंकने, कल-कारखानों का अपशिष्ट पदार्थ व रसायनों को भूमि पर फेंकने से भूमि प्रदूषण होता है।

भूमि प्रदूषण के परिणामः भूमि प्रदूषण के प्रभाव से मृदा उपजाऊ नही रह जाती है, कृषि का उत्पादन घट जाता है तथा फसल मे खनिज एवं पोषक तत्वों की मात्रा घट जाती है। 

पर्यावरण प्रदूषण के मुख्य कारण 

1. जनसंख्या वृद्धि:
जनसंख्या मे वृद्धि पर्यावरण प्रदूषण का एक मुख्य कारण है, क्योंकि इससे प्रदूषक और प्रदूषण दोनो मे वृद्धि होती है। परिणामस्वरूप जहां एक ओर प्राकृतिक स्त्रोतों के त्वरित विदोहन से इनका तेजी से हास होता है, वही दूसरी ओर झील तथा नदियों मे औद्योगिक अपजल, जीवों द्वारा विघटित प्रदूषक तत्व जैसे-- घरों का कचरा एवं कूड़ा-रकट तथा लकड़ी एवं कोयले को ईंधन के रूप मे जलाने से उत्पन्न धुएं से वातावरण मे प्रदूषण फैलता है।

2. स्त्रोतों का अनियंत्रित दोहन:
जनसंख्या वृद्धि के तीव्र दबाव की वजह से स्त्रोतों जैसे-- भूमि, जल, वन, वायू, खनिज आदि का अनियंत्रित एवं विकृत उपयोग किए जाने से भी पर्यावरण प्रदूषण की समस्या भयावह रूप धारण कर रही है।

3. आर्थिक विकास:
जनसंख्या वृद्धि का सामना  करने हेतु अपनाया जाने वाला व्यापक आर्थिक विकास भी पर्यावरण प्रदूषण के लिए काफी हद तक उत्तरदायी है। खाद्यान्न के क्षेत्र मे जनाधिक्य के दबाव से उबरने के लिए कृत्रिम साधन अपनाने पड़ेते है तथा उत्पादन स्तर बढ़ाने हेतु उर्वरकों एवं कीटनाशकों का उपयोग करना पड़ता है जिसमे काफी मात्रा मे प्रदूषण उत्पन्न होकर अनेक प्रकार के संकट पैदा करता है।

4. परिवहन विस्तार:
औद्योगिकरण के कारण जल, थल एवं नभ तीनों ही मार्गों पर परिवहनों की संख्या मे उल्लेखनीय वृद्धि होती है इससे परिवहनों ने धुएं के द्वारा हमारे पर्यावरण को बहुत तेजी से प्रदूषित किया है। प्रदूषण का यह क्रम और भी तेजी से परिवहन साधनों की संख्या के साथ बढ़ रहा है वह यह हमारे पर्यावरण संकट का एक प्रमुख कारण है।

5. आधुनिक तकनीकों का प्रसार: 
आधुनिक प्रौद्योगिकी ने अपनी प्रक्रियाओं से अनेक प्रकार की विषाक्त गैसों, धुओं एवं विषाक्त रसायन युक्त अपजलों के माध्यम से जल, थल एवं वायु सभी तत्वों को प्रदूषित कर दिया है, जिससे पर्यावरण प्रदूषण उत्पन्न हो गया है। 

6. जनता का अशिक्षित एवं गरीब होना: 
भारत में पर्यावरण प्रदूषण का सबसे प्रमुख कारण है देश की अधिकांश जनता का अशिक्षित एवं गरीब होना। भारत की लगभग 38% जनता गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है। जो की अपने जीवन यापन के लिए जंगलों का भरपूर उपयोग करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में ईंधन के रूप में प्रयोग के लिए लकड़ी का ही उपयोग किया जाता है। जिससे जंगल कम होते जा रहे हैं। भारत के कुल 750 हेक्टेयर क्षेत्र में वन है। जो कोई क्षेत्रफल का लगभग 23% हैं। जबकि पर्यावरण संतुलन की दृष्टि से कम से कम 33% वनों का होना अनिवार्य है।  बावजूद इसके शासन भी आंखें मूंदकर पेड़ों की अंधा-धुन कटाई के वनोपज एकत्रित करने के लिए ठेकेदारों को ठेके दे रही है। जिससे हमारे वन दिन प्रतिदिन कम हो रहे ।हैं परिणामस्वरूप पर्यावरण प्रदूषण का जन्म हो रहा है।

7. उर्वरकों तथा कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग:
उर्वरकों तथा कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से जल तथा भूमि प्रदूषण भी बड़ी तेजी के साथ हो रहा है। भूमि की उर्वरा शक्ति निरंतर कम होती जा रही है।  पौधों तथा मनुष्य के जीवन में नित्य नई बीमारियां पैदा होती जा रही हैं। जिससे अशांति तथा अस्थिरता को प्रोत्साहन मिल रहा है। साथ ही कृषि पर उत्पादन लागत भी बढ़ रही है, जिसके कारण कृषि व्यवसाय में घाटे की आशंका सुप्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डॉ एम. एस. स्वामीनाथन ने भी अभिव्यक्त की है।

8. वनों का विनाश:
पृथ्वी का एक तिहाई से अधिक हिस्सा जंगलों से ढका हुआ है। प्रकाश संश्लेषण द्वारा जंगल संसार की अनेक प्रमुख आवश्यकताओं, जैसे-- ईंधन, इमारती लकड़ी, संश्लेषित धागों के लिए कच्चा माल आदि की सप्लाई करते हैं। जल के बहाव को नियंत्रित कर के बाढ़ रोकने में इनका विशेष योगदान रहता है। जंगलों से पानी एवं हवा द्वारा मृदा का अपरदन भी रुकता है। वायु प्रदूषण कम करने में जंगलों की बहुत बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। आदिकाल से मनुष्य जंगलों में रहा है और वनों पर ही अपने जीवन के लिए निर्भर रहता था। सभ्यता के विकास के बाद भी इंसान जंगलों के निर्जन एकांत में चिंतन मनन के लिए शांति खोजता रहा है।

लेकिन आज स्थिति तेजी से बदल रही है। खेती के लिए जंगलों को नष्ट करके भूमि साफ की जाती है और इसका परिणामस्वरूप बाढ़ और भूमि अपरदन के रूप में प्रत्यक्ष देखने को मिलता है। नगरों जलाशयों और आवागमन के रास्तों को बनाने के लिए जंगलों को तेजी से काटा जा रहा है। जंगलों को नष्ट करके उनके स्थान पर नए उद्योग लगाए जा रहे हैं। उद्योगों से प्रदूषण बढ़ता है।

9. विशाल सिंचाई:
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में अनेक विशाल सिंचाई परियोजनाओं का निर्माण किया गया। इसमें भाखड़ा नांगल परियोजना, दामोदर घाटी परियोजना, तुंगभद्रा परियोजना, नर्मदा सागर परियोजना, एवं बोधघाट परियोजना प्रमुख है। इन परियोजनाओं के निर्माण के समय वनों की बेरहमी के साथ कटाई की गई। विशाल बांधों के निर्माण के कारण लाखों लोगों को डूब क्षेत्र से हटना पड़ा जिसके कारण उन क्षेत्रों में आवास की समस्या पैदा हुई। बड़े बांधों के निर्माण से उसके आसपास की जमीन के दलदल में बदल जाने की चेतावनी भूगर्भ शास्त्रियों ने बार-बार सरकार को दी विज्ञानिकों की चेतावनी के कारण ही केरल सरकार की साइलेंट बेली सिंचाई परियोजना को केंद्र सरकार ने मंजूरी प्रदान करने से इंकार कर दिया। मध्यप्रदेश की बोधघाट परियोजना जंगलों की अत्यधिक कटाई क्षेत्र में आने के कारण ही स्वीकृत नहीं पा सकी। यद्यपि अब भारत सरकार ने इस परियोजना को अपनी स्वीकृति तो दे दी है। पर इस शर्त के साथ की जितने पेड़ उस बांध क्षेत्र के अंतर्गत डूब में आ रहे हैं, उसके दुगने पेड़ मध्यप्रदेश सरकार लगवायेगी।

10. विषाक्त गैंसें:
मोटरगाड़ियों, बिजलीघरों, कारखानों आदि से कार्बन मोनोआक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड, सल्फर डाय आक्साइड, ओजोन आदि गैंसे निकलती है। जो वायु को प्रदूषित करने मे अहम् भूमिका निभाती है।

11. तीव्र एवं कर्कश ध्वनि:
कारखानों की मशीनें, लाउडस्पीकर, विमान, रेलगाड़ी आदि से उत्पन्न तीव्र ध्वनियाँ, शोर प्रदूषण के लिए उत्तरदायी है। तीव्र ध्वनि श्रवण-शक्ति के ह्रास के साथ नींद को भी हराम कर देती है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 75 डेसीमल के ऊपर शोर होने से बहरापन, चिड़चिड़ापन, गर्भपात, ह्रदय रोग मे वृद्धि एवं सोचने की क्षमता में कमी ला देना है। 

12. पर्यावरण में बढ़ती हुई रेडियोर्मिता: 
रेडियोर्मिता प्रदूषण संसार में तेजी से फैल रहा है। परमाणु बम विस्फोट परीक्षणों के वायुमंडल में जो रेडियोर्मी विष फैलता है, उससे वर्तमान मानव ही नही भावी पीढ़ियां भी प्रभावित हुए बगैर नही रह सकती। नाभिकीय विस्फोट के द्वारा इलेक्ट्राॅन, प्रोटान, न्यूट्रान, अल्फा, बीटा, गामा किरणें प्रवाहित होती है। जिनके कारण कभी-कभी जीन्स तक मे परिवर्तन आ जाता है। चेरनोविल की परमाणु दुर्घटना ने यह सिद्ध कर दिया है कि यदि पर्यावरण को रेडियोधर्मी प्रदूषण से मुक्त नही रखा गया तो सम्पूर्ण मानव सभ्यता समाप्त हो जायेगी।

 


कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.