मनुष्यों में होने वाला आनुवंशिक रोग (Genetic Diseases)
वे रोग
जो
पीढ़ी
दर
पीढ़ी
होते
हुए अगली
पीढ़ी
तक
पहुँच
जाते
हैं,
आनुवांशिक
रोग
कहलाते
हैं।
मानव
शरीर
में
कई
तरह
के
आनुवांशिक
विकार
पाए
जाते
है,
इनमें
से
कई
बहुत
घातक
होते
हैं।
ये
विकार
मुख्यतः
उत्परिवर्तन
(Mutation) द्वारा
बने
दोषपूर्ण
जीन
(Gene) से
होते
हैं।
अधिकतर
आनुवांशिक
बीमारियाँ
लाइलाज
होती
हैं,
परन्तु
कुछ
का
इलाज
संभव
है।
आनुवांशिक
रोग
आज
भी
शोधकर्ताओं
के
लिए
चुनौती
बनी
हुए हैं।
हीमोफीलिया
(Hemophilia): इस रोग
से
ग्रसित
व्यक्ति
का
हाथ
कटने
पर
रक्त
का
थक्का
नहीं
बनता
और
अधिक
समय
तक खून
बहता
ही
रहता
है।
शीघ्र
उपचार
न
मिलने
पर
अंत
में
रोगी
की
मृत्यु
हो
जाती
है। इस
रोग
में
स्त्रियां
वाहक
की
भूमिका
निभाती
हैं।
रक्त
में
कुछ
प्रोटीन
की
कमी
के
कारण
रक्त
का
थक्का
नहीं
बनता।
टर्नर
सिंड्रोम(Turner's
syndrome): अर्धसूत्री विभाजन
में
अनियमितता
के
कारण
यह
रोग
होता
है। यह रोग स्त्रियों
में
होता
है। इस
रोग
से
ग्रसित
स्त्रियों
में
गुणसूत्रों
की
संख्या
45 होती
है।
इसमें
शरीर
अल्पविकसित,
वक्ष
चपटा
तथा
कद
छोटा
होता
है।
जननांग
प्रायः
अविकसित
होता
है।
क्लिनेफ़ेल्टर
सिंड्रोम(Klinefelte's
Syndrome): यह
रोग
पुरुषों
में
होता
है। यह
रोग
भी अर्धसूत्री
विभाजन
में
अनियमितता
के
कारण
ही
होता
है।
इसमें
जाइगोट
में
गुणसूत्रों
की
संख्या सामान्य
से
अधिक
(47) हो
जाती
है।
ऐसे
जाइगोट
से
उत्पन्न
पुरुषों
में
स्त्रियों
वाले
लक्षण
उत्पन्न
होने
लगते
हैं।
इसमें
पुरुषों
का
बृषण
अल्पविकसित
और
स्तन
स्त्रियों
के
सामान
विकसित
हो
जाते
हैं।
ऐसे
पुरुष
नपुंसक
होते
हैं।
पटाऊ
सिंड्रोम(Paltau's
Syndrome): इसमें रोगी
का
ऊपर
का
होंठ
बीच
में
से
कट
जाता
है
और
तालु
में
दरार
हो
जाती
है।
इस
रोग
से
प्रभावित
व्यक्ति
मंद
बुद्धि
और
नेत्र
रोगों
से
ग्रसित
होता
है।
डाउन्स
सिंड्रोम
या
मांगोलिज्म(Down's
syndrome): यह
रोग
भी अर्धसूत्री
विभाजन
में
अनियमितता
के
कारण
ही
होता
है।
अर्धसूत्री
विभाजन
में
आटोसोम
का
बंटवारा
सही
प्रकार
से
नहीं
हो
पाने
के
कारण
बने
जाइगोट
में
गुणसूत्रों
की
स्थिति
असामान्य
हो
जाती
है।
इस
तरह
जाइगोट
से
निर्मित
भ्रूण
की
कुछ
समय
बाद ही
मृत्यु
हो
जाती
है।
यदि
जीवित
रह
भी
जाए
तो
मंद
बुद्धि,
टेढ़ी
आँखें,
मोती
जीभ
और
नियमित
शारीरिक
ढाँचे
वाला
होगा।
वर्णान्धता
(Colour Blindness): इस बीमारी
को डाल्टोनिज्म भी
कहा
जाता
है।
इस
रोग
से
ग्रसित
व्यक्ति
लाल
और
हरे
रंग
में
फर्क
नहीं
कर
पाता।
इस
रोग
से
मुख्यतः
पुरुष
प्रभावित
होते
हैं।
क्योंकि
स्त्रियां
सिर्फ
वाहक
का
कार्य
करती
हैं।
स्त्रियों
में
यह
रोग
तभी
होता
है
जब
उनके
दोनों
XX गुणसूत्र
प्रभावित
हों।
स्त्री
के
यदि
एक
X गुणसूत्र
पर
वर्णान्धता
के
जीन
हों
तो
वे
इससे
प्रभावित
नहीं
होंगी,
सिर्फ
वाहक
का
कार्य
करेंगी।
परन्तु
पुरुषों
का
सिर्फ
X गुणसूत्र
इससे
प्रभावित
हो
तो
वे
वर्णान्ध
होंगे।
लकवा
या
पक्षाघात(Paralysis)
: इस
रोग
का
कारण
अधिक
रक्त
दाब
के
कारण
मस्तिष्क
की
कोई
धमनी
का
फट
जाना
अथवा
मस्तिष्क
को
अपर्याप्त
रक्त
की
आपूर्ति
होना
है।
इस
रोग
में
कुछ
ही
मिनटों
में
शरीर
के
आधे
भाग
को
लकवा
मार
जाता
है।
जहाँ
पक्षाघात
होता
है
वहाँ
की
तंत्रिकाएँ
निष्क्रिय
हो
जाती
है।
मानसिक रोग: सनक, मिर्गी, अल्पबुद्धिता इत्यादि का भी कारण आनुवंशिकता हो सकती हैं। विविध रोग, जैसे बहरापन, गूँगापन, कटा होंठ (हेयरलिप), विदीर्ण तालु (क्लेफ़्ट पैलेट) आदि भी आनुवंशिकता से प्रभावित होते हैं। इसके सिवाय आनुवंशिकता घेघा, उच्च रक्तपाच कर्कट (कैंसर) इत्यादि रोगों की ओर झुकाव उत्पन्न कर देती है।
एलर्जी एवं डिप्लोपिया भी आनुवंशिक रोग है।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्यः
चिकनगुनियाः यह दुर्बल बनाने वाली गैरघातक वायरल बीमारी है जिसका प्रकोप भारत में 36 वर्ष बाद 2006 में हुआ। यह चिकनगुनिया वायरस से होता है। यह मादा एडिस मच्छर, मुख्यतया एडिस इजिप्टी मच्छर के काटने से होता है। मनुष्य ही चिकनगुनिया वायरस का मुख्य स्रोत होता है।
ELISA (Enzyme Linked Immune Solvent Assy):यह वायरस की जाँच करने की एक प्रणाली है। इससे पता चलता है कि व्यक्ति एडस पीड़ित है या नही। इसे एलिसा टेस्ट कहते है।
पोलिया वैक्सीन का विकास 1952 ई. में जोनस साल्क तथा 1962 ई. में अल्बर्ट साबिन द्वारा किया गया। पोलियो वायरस 3 प्रकार के होते है-टाईप-1, टाईप-2, टाईप-3।
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