पृष्ठ तनाव(Surface tension)
किसी द्रव का पृष्ठ तनाव वह बल है, जो द्रव के पृष्ठ पर खींची गयी काल्पनिक रेखा की इकाई लम्बाई पर रेखा के लम्बवत कार्य करता है। यदि रेखा की लम्बाई (l)पर बल F कार्य करता है, तो
पृष्ठ तनाव T=F/l
इसका SI मात्रक न्यूटन/मीटर होता है।
किसी द्रव के लिए पृष्ठ-तनाव का मान द्रव के ताप पर निर्भर करता है तथा उस माध्यम पर भी निर्भर करता है, जो द्रव के पृष्ठ की दूसरी ओर होता है। ताप बढ़ाने पर पृष्ठ-तनाव घटता है तथा क्रांतिक ताप(Surface tension) पर पृष्ठ-तनाव शून्य हो जाता है।
पृष्ठ-तनाव पर निम्न बातों का प्रभाव पड़ता है-
- संदूषण का प्रभाव (Effect of Contamination)–यदि जल की सतह पर धूल, कोई चिकनाई (ग्रीज या तेल) हो, तो इससे जल का पृष्ठ-तनाव घट जाता है।
- विलेयक का प्रभाव (Effect of Solute)- यदि विलेयक बहुत घुलनशील है, तो द्रव का पृष्ठ-तनाव बढ़ जाता है। यदि विलेयक कम घुलनशील है, तो.पृष्ठ-तनाव घट जाता है। जैसे— साबुन या फेनॉल (phenol) डालने पर जल का पृष्ठ-तनाव घट जाता है।
- ताप का प्रभाव (Effect of Temperature)-ताप बढ़ने पर संसंजक बल का मान घट जाता है।जिससे पृष्ठ-तनाव घट जाता है।
संसंजक बल (Cohesive Force)– प्रत्येक पदार्थ अणुओं से मिलकर बना होता है, जिनके बीच आकर्षण बल कार्य करता है। अतः एक ही पदार्थ के अणुओं के बीच.लगने वाले आकर्षण बल को संसंजक बल कहते हैं।
ठोसों में संसंजक बल का मान बहुत अधिक होता है, जिसके कारण ठोसों का आकार निश्चित होता है। द्रवों में संसंजक बल का मान बहुत कम होता है। इसी कारण द्रवों का कोई निश्चित आकार नहीं होता है।
गैसों में संसंजक बल का मान नगण्य होता है, जिससे उनमें विसरण (diffusion) का गुण पाया जाता है। जिन द्रवों के अणुओं के बीच संसंजक बल अधिक होते हैं, वे बरतन की दीवारों को गीला नहीं करते। जैसे पारा। पृष्ठ-तनाव का कारण संसंजक बलों का होना है।
आसंजक बल(Adhesive Force)-भिन्न-भिन्न पदार्थों के अणुओं के बीच लगने वाले आकर्षण बल को आसंजक बल कहते हैं। आसंजक बल के कारण ही ब्लैकबोर्ड पर चॉक से लिखने पर अक्षर उभर आते हैं, पीतल के बरतनों पर निकेल की पॉलिश की जाती है तथा पानी काँच को भिंगोता है।
जब किसी द्रव और ठोस के लिए आसंजक बल का मान द्रव के अणुओं के संसंजक बल के मान से अधिक होता है, तो वह ठोस को गीला कर देता है। जैसे पानी काँच पर चिपकता है, क्योंकि पानी और काँच के अणुओं के बीच लगने वाला आसंजक बल पानी के अणुओं के बीच लगने वाला संसंजक बल से अधिक होता है।
जब किसी द्रव और ठोस के लिए आसंजक बल का मान द्रव के अणुओं के संसंजक बल के मान से कम होता है, तो द्रव उस ठोस को गीला नहीं कर पाता है। जैसे पारा काँच पर नहीं चिपकता है, क्योंकि पारा और काँच के अणुओं के बीच लगने वाला आसंजक बल पारे के अणुओं के बीच लगने वाले संसंजक बल से कम होता है।
केशिकत्व (Capillarity)
केशनली (Capillary Tube) में द्रव के ऊपर चढ़ने या नीचे उतरने की घटना को केशिकत्व कहते हैं। केशनली एक बहुत ही कम एवं एकसमान त्रिज्या वाली एक खोखली नली होती है। केशनली में कोई भी द्रव किस सीमा तक चढ़ेगा, यह केशनली की त्रिज्या पर निर्भर करता है। सामान्यतः जो द्रव कांच को भिगोता है, वह केशनली में ऊपर चढ़ जाता है और जो द्रव काँच को नहीं भिगोता वह नीचे उतर जाता है। जैसे- जब केशनली को पानी में डुबाया जाता है, तो पानी ऊपर चढ़ जाता है और पानी की सतह केशनली में धंसा हुआ रहता है। इसके विपरीत जब केशनली को पारे में डुबाया जाता है, तो पारा केशनली में बर्तन में रखे पारे की सतह से नीचे ही रहता है और केशनली में पारा का सतह उभरा हुआ रहता है।
नली जितनी पतली होगी द्रव उतनी ही अधिक ऊँचाई तक चढ़ेगा। शुद्ध जल केशनली में ऊपर चढ़ जाता है और पारा केशनली में नीचे गिर जाता है।
केशिकत्व का उदाहरण:
(1) ब्लॉटिंग पेपर स्याही को शीघ्र सोख लेता है, क्योंकि इसमें बने छोटे-छोटे छिद्र केशनली की तरह कार्य करती हैं ।
(ii) लालटेन या लैम्प की बत्ती में केशिकत्व के कारण ही तेल ऊपर चढ़ता है।
(iii) पेड़-पौधों की शाखाओं, तनों एवं पत्तियों तक जल और आवश्यक लवण केशिकत्व की क्रिया के द्वारा ही पहुँचते हैं।
(iv) कृत्रिम उपग्रह के अन्दर (भारहीनता की अवस्था) यदि किसी केशनली को जल में खड़ा किया जाए, तो नली में चढ़ने वाले जल स्तम्भ का प्रभावी भार शून्य होने के कारण जल नली के दूसरे सिरे तक पहुँच जाएगा चाहे केशनली कितनी भी लम्बी क्यों न हो।
केशनली (Capillary Tube) में द्रव के ऊपर चढ़ने या नीचे उतरने की घटना को केशिकत्व कहते हैं। केशनली एक बहुत ही कम एवं एकसमान त्रिज्या वाली एक खोखली नली होती है। केशनली में कोई भी द्रव किस सीमा तक चढ़ेगा, यह केशनली की त्रिज्या पर निर्भर करता है। सामान्यतः जो द्रव कांच को भिगोता है, वह केशनली में ऊपर चढ़ जाता है और जो द्रव काँच को नहीं भिगोता वह नीचे उतर जाता है। जैसे- जब केशनली को पानी में डुबाया जाता है, तो पानी ऊपर चढ़ जाता है और पानी की सतह केशनली में धंसा हुआ रहता है। इसके विपरीत जब केशनली को पारे में डुबाया जाता है, तो पारा केशनली में बर्तन में रखे पारे की सतह से नीचे ही रहता है और केशनली में पारा का सतह उभरा हुआ रहता है।
नली जितनी पतली होगी द्रव उतनी ही अधिक ऊँचाई तक चढ़ेगा। शुद्ध जल केशनली में ऊपर चढ़ जाता है और पारा केशनली में नीचे गिर जाता है।
केशिकत्व का उदाहरण:
(1) ब्लॉटिंग पेपर स्याही को शीघ्र सोख लेता है, क्योंकि इसमें बने छोटे-छोटे छिद्र केशनली की तरह कार्य करती हैं ।
(ii) लालटेन या लैम्प की बत्ती में केशिकत्व के कारण ही तेल ऊपर चढ़ता है।
(iii) पेड़-पौधों की शाखाओं, तनों एवं पत्तियों तक जल और आवश्यक लवण केशिकत्व की क्रिया के द्वारा ही पहुँचते हैं।
(iv) कृत्रिम उपग्रह के अन्दर (भारहीनता की अवस्था) यदि किसी केशनली को जल में खड़ा किया जाए, तो नली में चढ़ने वाले जल स्तम्भ का प्रभावी भार शून्य होने के कारण जल नली के दूसरे सिरे तक पहुँच जाएगा चाहे केशनली कितनी भी लम्बी क्यों न हो।
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