प्रकाश(Light)


दिन के समय सूर्य का प्रकाश वस्तुओं को देखने में हमारी सहायता करता है। कोई वस्तु उस पर पड़ने वाले प्रकाश को परावर्तित करती है। यह परावर्तित प्रकाश जब हमारी आँखों द्वारा ग्रहण किया जाता है, तो हमें वस्तुओं को देखने योग्य बनाता है। हम किसी पारदर्शी माध्यम के आर-पार देख सकते हैं क्योंकि प्रकाश इसमें से पार (Transmitted) हो जाता है। प्रकाश से संबंधित अनेक सामान्य तथा अद्भुत परिघटनाएँ हैं, जैसे-दर्पणों द्वारा प्रतिबिंब का बनना, तारों का टिमटिमाना, इंद्रधनुष के सुंदर रंग, किसी माध्यम द्वारा प्रकाश को मोड़ना आदि।

प्रकाश विद्युत चुम्बकीय तरंगों के रूप में संचारित होती है। 

विद्युत चुम्बकीय तरंग अनुप्रस्थ तरंग है। प्रकाश के वेग की गणना सबसे पहले रोमर ने की थी। (3X108 M/S)

वायु तथा निर्वात में प्रकाश की चाल सबसे अधिक होती है। 

प्रकाश की चाल माध्यम के अपवर्तनांक पर निर्भर करता है। जिस माध्यम का अपवर्तनांक जितना अधिक होता है, उसमें प्रकाश की चाल उतनी ही कम होती है। 

प्रकाश को सूर्य से पृथ्वी तक आने में औसतन 499 सेकेण्ड अर्थात 8 मिनट 19 सेकेण्ड का समय लगता है। 

चन्द्रमा में परावर्तित प्रकाश को पृथ्वी तक आने में 1.28 सेकेण्ड का समय लगता है। 

प्रकाश का फोटोन सिद्धांत: इसके अनुसार प्रकाश ऊर्जा के छोटे छोटे बण्डलों या पैकेटो के रूप में चलता है , जिन्हें फोटोन करते है। आज प्रकाश को कुछ घटनाओं में तरंग और कुछ में कण माना होता है इसी को प्रकाश की दोहरी प्रकति कहते है।

प्रकाश के भिन्न वस्तुओं में किये गये व्यवहार के कारण वस्तुओं को निम्न भागों में बांटा जा सकता हैः-

1. प्रतिदीप्त वस्तुएँ (Luminous objects)


जिन वस्तुओं का अपना प्रकाश होता है उन्हें दीप्त वस्तुएँ कहते हैं; जैसे-सूर्य, तारे, जलती मोमबत्ती, जलता बल्व आदि।


2. अप्रदीप्त वस्तुएँ (Non-luminous objects)


जिन वस्तुओं का अपना प्रकाश नहीं होता है, उन्हें अप्रदीप्त वस्तुएँ कहते हैं; जैसे-कुर्सी, टेबुल, मनुष्य आदि।


3. पारदर्शी वस्तुएँ (Transparent Objects)


जिन पदार्थों से प्रकाश गमन कर सकता है, उन्हें पारदर्शी कहते हैं; जैसे-काँच, हवा तथा पानी आदि।


4. अर्द्ध-पारदर्शी पदार्थ (Translucent objects)


कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिन पर प्रकाश की किरणें पड़ने से उनका कुछ भाग तो अवशोषित हो जाता है तथा कुछ भाग बाहर निकल जाता है। ऐसी वस्तुओं को अर्द्ध-पारदर्शक वस्तुएँ कहते हैं; जैस-तेल लगा हुआ कागज।

5. अपारदर्शक वस्तुएँ (Opaque objects)


जिन पदार्थों से होकर प्रकाश गमन नहीं कर सकता, उन्हें अपारदर्शी पदार्थ कहते हैं। जैसे-पत्थर, लकड़ी, लोहा आदि


प्रकाश का विवर्तन(Diffraction of Light):यदि प्रकाश के पथ में रखी अपारदर्शी वस्तु अत्यंत छोटी हो तो प्रकाश सरल रेखा में चलने की बजाय इसके किनारों पर मुड़ने की प्रवृत्ति दर्शाता है, इस प्रभाव को प्रकाश का विवर्तन कहते हैं। 


प्रकाश का प्रकीर्णन(Scattering of Light):जब प्रकाश किसी ऐसे माध्यम से गुजरता है जिसमें धूल तथा अन्य प्रदार्थो के अत्यन्त सूक्ष्म कण होते है, तो इनके द्वारा प्रकाश सभी दिशाओं में प्रसारित हो जाता है इस घटना को प्रकाश का प्रकीर्णन कहा जाता है। बैंगनी रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे अधिक तथा लाल रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे कम होता है। प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण ही आकाश का रंग नीला दिखाई देता है।  


प्रकाश का परावर्तन (Reflection of light): जब प्रकाश किसी चमकदार तल जैसे दर्पण पर पड़ता है, तो वह उसी माध्यम में लौट जाता है। इस घटना को प्रकाश का परावर्तन कहते हैं।


परावर्तन के नियम (Law of reflection)

प्रथम नियम : आपतित किरण, परावर्तित किरण तथा आपतन बिंदु पर अभिलम्ब ये तीनो एक ही तल में होते है।

द्वितीय नियम : आपतन कोण और परावर्तन कोण दोनों आपस में बराबर होते हैं।


समतल दर्पण से परावर्तन(Reflection of Light): समतल दर्पण किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे उतनी दूरी पर बनता है, जितनी दूरी पर वस्तु दर्पण के सामने रखी होती है। यह प्रतिबिम्ब काल्पनिक वस्तु के बराबर एवं पार्श्व उल्टा होता है। समतल दर्पण में वस्तु का पूर्ण, प्रतिबिम्ब देखने के लिए दर्पण की लम्बाई वस्तु की लम्बाई को कम से कम आधी होनी चाहिए। 


गोलीय दर्पण से परावर्तन (Reflection from Spherical Mirror)-


किसी गोलाकार तल से बनाए गए दर्पण को गोलीय दर्पण कहते हैं।  गोलीय खंड के एक तल पर पारे की कलई एवं रेड ऑक्साइड का लेप किया जाता है तथा दूसरा तल परावर्तक की तरह कार्य करता है।

 गोलीय दर्पण मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-

(i) अवतल दर्पण 

(ii) उत्तल दर्पण।


(i) अवतल दर्पण (Concave mirror)-

गोलीय दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ठ अंदर की ओर अर्थात गोले के केंद्र की ओर वक्रित है, वह अवतल दर्पण कहलाता है।

अवतल दर्पण के उपयोग-

(I) बड़ी फोकस दूरी वाला अवतल दर्पण दाढ़ी बनाने में काम आता है।
(ii) आँख, कान एवं नाक के डॉक्टर के द्वारा उपयोग में लाया जाने वाला दर्पण
(iii) गाड़ी के हेडलाइट (Head-light) एवं सर्चलाइट (Search-light) 

(iv) सोलर कुकर (Solar Cooker) में।
(v) दंत विशेषज्ञ डॉक्टर के द्वारा उपयोग में लाया जाने वाला दर्पण

P=Pole, F=Focus, C=curve


(ii) उत्तल दर्पण (Convex mirror)-

 वह गोलीय दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ठ बाहर की ओर वक्रित है, उत्तल दर्पण कहलाता है। 



उत्तल दर्पण के उपयोग-

•  उत्तल दर्पण द्वारा काफी बड़े क्षेत्र की वस्तुओं का प्रतिबिम्ब एक छोटे से क्षेत्र में बन जाता है।

• इस प्रकार उत्तल दर्पण का दृष्टि-क्षेत्र (Field view) अधिक होता है।इसलिए इसे ट्रक-चालकों या मोटरकारों में चाल के बगल में पृष्ठ-दृश्य दर्पण (Rear-viewMirror) लगाया जाता है।

•  सड़क में लगे परावर्तक लैम्पों में उत्तल दर्पण का प्रयोग किया जाता है, विस्तार-क्षेत्र अधिक होने के कारण ये प्रकाश को अधिक क्षेत्र में फैलाते हैं।


प्रकाश का अपवर्तन(Refraction of Light)
प्रकाश  की  किरणें जब सघन  माध्यम से विरल माध्यम में जाती है तो वह  अविलंब से दूर हट जाती है  तथा जब वह विरल  माध्यम  से  सघन माध्यम में जाती है तो अभिलंब की ओर मुड़ जाती  है,  प्रकाश के इस प्रकार मुड़ने  की  प्रक्रिया  को प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं।
अतः प्रकाश की किरणों के एक पारदर्शी माध्यम से दूसरे पारदर्शी माध्यम में जाने पर दिशा परिवर्तन की क्रिया को प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं।

अपवर्तन के नियम
प्रकाश के अपवर्तन के दो निम्नलिखित नियम है- 

१)आपतित किरण आपतन बिंदु पर अभिलंब और अपवर्तित किरण तीनों एक ही समतल में होते हैं।
२) किन्ही दो माध्यम और प्रकाश के किसी विशेष वर्ण के लिए आपतन कौन की ज्या और अपवर्तन कोण की ज्या का अनुपात एक नियतांक होता है।

µ=sin i/sin r 

नियतांक को पहले माध्यम के सापेक्ष दूसरे माध्यम का अपवर्तनांक कहते है। इस नियम को स्नेल का नियम भी कहते है। 
किसी माध्यम का अपवर्तनांक भिन्न-भिन्न रंग के प्रकाश के लिए भिन्न-2 होता है। तरंगदैर्ध्य बढ़ने के साथ अपवर्तनांक का मान कम हो जाता है। अतः लाल रंग का अपवर्तनांक सबसे कम तथा बैगनी रंग का अपवर्तनांक सबसे अधिक होता है। 
ताप बढ़ने पर भी सामान्यतः अपवर्तनांक घटता है। लेकिन यह परिवर्तन बहुत ही कम होता है।
किसी माध्यम का निरपेक्ष अपवर्तनांक निर्वात में प्रकाश की चाल तथा उस माध्यम में प्रकाश की चाल के अनुपात के बराबर होता है अर्थात-
निरपेक्ष अपवर्तनांक= निर्वात में प्रकाश की चाल/माध्यम में प्रकाश की चाल
 

प्रकाश के अपवर्तन के कारण घटने वाली घटनाएं:

1. रात के समय तारों का टिमटिमाना :- वायुमंडल में वायु का घनत्व अलग-अलग परतो में पाई जाती है। जब तारों से प्रकाश चलता है तो उसका विभिन्न परतों से लगातार अपवर्तन होते रहता है। क्योंकि वायु की परतें स्थिर नहीं होती है इसलिए हमें यह महसूस होता है कि तारे टिमटिमा रहे हैं।

2. पानी से भरे किसी बर्तन में सिक्का ऊपर दिखाई देना :- पानी से भरे किसी बर्तन की तली में पड़ा हुआ सिक्का ऊपर उठा हुआ दिखाई पड़ता है। इसका कारण यह है कि जब हम बर्तन में पानी डालते हैं तो अपवर्तन के कारण सिक्का कुछ ऊपर उठा हुआ प्रतीत होता है।

3. अपवर्तन के कारण ही पानी के अंदर पड़ी हुई मछली उसकी वास्तविक गहराई से कुछ ऊपर उठी हुई दिखाई पड़ती है।

4. सूर्योदय के कुछ समय पहले और सूर्यास्त के कुछ समय बाद तक सूर्य क्षितिज के नीचे होने पर भी हमें दिखाई देता है। यह घटना भी अपवर्तन के कारण ही होती है।

प्रकाश का पूर्ण आंतरिक परावर्तन (Total Internal Reflection of Light)

जब कोई प्रकाश की किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती है। तथा आपतन कोण का मान क्रांतिक कोण से अधिक हो जाता है तब विरल माध्यम में प्रकाश की किरण का अपवर्तन नहीं होता है। बल्कि संपूर्ण प्रकाश परावर्तित होकर सघन माध्यम में ही वापस लौट आती है। इस घटना को पूर्ण आंतरिक परावर्तन कहते हैं।

पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के लिए अनिवार्य शर्ते (Essential Conditions for total Internal reflection) 

(i) प्रकाश की किरणों को सघन से विरल माध्यम में जाना चाहिए।
(ii) आपतन कोण का मान क्रांतिक कोण से बड़ा होना चाहिए।

पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के कुछ उदाहरण

1. हीरे की चमक-

 हीरे से वायु में आने वाली किरण के लिए क्रान्तिक कोण बहुत ही कम (24°) होता है। अतः जब बाहर का प्रकाश किसी कटे हुए हीरे में प्रवेश करता है, तो वह उसके भीतर विभिन्न तलों बार-बार पूर्ण परावर्तित होता रहता है। जब किसी तल पर आपतन कोण 24 से कम हो जाता है, तब ही प्रकाश हीरे से बाहर आ पाता है। इन प्रकार हीरे में सभी दिशाओं से प्रवेश करने वाला प्रकाश केवल कुछ ही दिशाओं में होरे से बाहर निकलता है।

2. रेगिस्तान में मरीचिका (Mirrage)-

 कभी कभी रेगिस्तान में यात्रियों को दूर से पेड़ के साथ साथ उसका उल्य प्रतिबिम्ब भी दिखायी देता है। इससे यात्रियों को ऐसा भ्रम हो जाता है कि वहाँ जल का तालाब है, जिसमें पेड़ का उल्टा प्रतिबिम्ब दिखाई दे रहा है। परन्तु वास्तव में वहाँ तालाब नहीं होता है।

 गर्मी के मौसम में रेगिस्तान की रेत गरम होती है, तो उसे छूकर पृथ्वी के पास की वायु अधिक गरम हो जाती है, जिससे वायु का घनत्व कम हो जाता है। ऊपर की वायु-परत ठंडी और सघन होती है। अतः जैसे-जैसे हम ऊपर से नीचे आते हैं, वायु की परतु विरल होती जाती है।जब पेड़ से प्रकाश की किरणें पृथ्वी की ओर आती हैं, तो उन्हें अधिकाधिक विरल परतों से होकर जाना पड़ता है, इसलिए प्रत्येक परत पर अपवर्तित किरण अभिलंब से दूर हटती जाती है।

 प्रत्येक अगली परत पर आपतन कोण बढ़ता जाता है तथा किसी विशेष परत पर कातिक कोण से बड़ा हो जाता है। इस परत पर किरण पूर्ण परावर्तित होकर ऊपर की ओर उठने लगती है। चूँकि ऊपर वाले परतें अधिक सघन हैं, अतः ऊपर उठती हुई किरण अभिलंब की ओर झुकती जाती है। जब यह किरण यात्री की आँख में प्रवेश करती है, तो उसे पृथ्वी के नीचे से आती हुई प्रतीत होती है तथा यात्री को पेड़ का उल्टा प्रतिबिम्ब दिखायी देता है। यात्री को उल्टा प्रतिबिम्ब दिखलायी पड़ने के कारण उसे जल का भ्रम होने लगता है।

3. काँच का चटका हुआ भाग चमकीला दिखाई देता है-

 काँच के चटके हुए भाग में हवा भर जाती है, जोकि काँच की अपेक्षा विरल होती है।जब प्रकाश काँच से हवा में प्रवेश करता है, तो उसका सघन माध्यम से विरल माध्यम में अपवर्तन होता है। काँच से हवा में प्रवेश करते समय आपतन कोण का मान क्रांतिक कोण से अधिक हो जाता है, तो पूर्ण आंतरिक परावर्तन होने लगता है। इसी कारण चटका हुआ काँच चमकीला प्रतीत होता है।

4. पानी में पड़ी हुई परखनली चमकीली दिखाई पड़ती है-

 जब पानी से अंशतः भरी हुई परखनली को पानी से भरे बीकर में डुबाते हैं, तो परखनली के जिस भाग में पानी नहीं होता अर्थात् परखनली का खाली भाग चाँदी की तरह चमकने लगता है। इसका कारण भी प्रकाश का पूर्ण आंतरिक परावर्तन है। सिनेमाघर में पोलराइड के चश्मे पहन कर तीन विमाओं वाले चित्रों को देखा जाता है। इसी प्रकार फोटोग्राफी करने में, किसी विलयन में शर्करा की सान्द्रता ज्ञात करने में, धातुओं के प्रकाशीय गुणों के अध्ययन करने में भी पोलराइडों का प्रयोग किया जाता है।


प्रकाशिक तन्तुः प्रकाश सरल रेखा में गमन करता है, लेकिन पूर्ण आन्तरिक परावर्तन का उपयोग करके प्रकाश को एक चक्रीय मार्ग में चलाया जा सकता है। प्रकाशिक तन्तु पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के सिद्धान्त पर आधारिक एक ऐसी युक्ति है जिसके द्वारा प्रकाश सिग्नल को इसकी तीव्रता में बिना क्षय के एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानान्तरित किया जा सकता है, चाहे मार्ग कितना भी ढेडा मेढा हो। 

प्रकाशिक तन्तु का उपयोगः
(1) शरीर के अन्दर लेसर किरणों को भेजने में
(2) मनुष्य के शरीर के आन्तरिक मार्गो का परीक्षण करने में।
(3) प्रकाश सिग्नलों के दूर संचार में
(4) विद्युत सिग्नल को प्रकाश सिग्नल में बदलकर प्रेषित करने में तथा अभिग्रहण करने में।

लेन्स द्वारा प्रकाश का अपवर्तन(Refraction of Light Through lens):
दो गोलीय पृष्ठों से घिरे हुए किसी अपवर्तनांक माध्यम को लेन्स कहा जाता है। लेन्स दो प्रकार के होते है। 1. उत्तल लेन्स 2. अवतल लेन्स

लेन्स की क्षमता(Power of lens): लेन्स की फोकस दूरी के व्युत्क्रम को लेन्स की क्षमता कहते है। यदि किसी लेन्स की फोकस दूरी f मी0 में हो, तो उसकी क्षमता P=1/f डॉयोप्टर होती है। डॉयोप्टर S.I. मात्रक है। जिसे D द्वारा सूचित किया जाता हैं अवतल लेन्स की क्षमता ऋणात्मक में तथा उत्तल लेन्स की क्षमता धनात्मक में होती है। 

प्रकाश का वर्ण विक्षेपणः जब सूर्य का प्रकाश प्रिज्म से होकर गुजरता है, तो वह अपर्वतन के पश्चात प्रिज्म के आधार की ओर झुकने के साथ-साथ विभिन्न रंगो के प्रकाश में बंट जाता है। इस प्रकार से प्राप्त रंगो के समूह को वर्णक्रम कहते है तथा श्वेत प्रकाश को अपने अवयवी रंगो में विभक्त होने की क्रिया को वर्ण विक्षेपण कहते है। 
न्यूटनने पाया कि भिन्न-भिन्न रंग भिन्न-भिन्न कोणों से विक्षेपित होते है। वर्ण विक्षेपण किसी पारदर्शी पदार्थ में भिन्न-भिन्न रंगों के प्रकाश के भिन्न-भिन्न वेग होने के कारण होता है। अतः किसी पदार्थ का अपवर्तनांक भिन्न-भिन्न रंगों के प्रकाश के लिए भिन्न-भिन्न होता है। 
पारदर्शी पदार्थ में जैसे-जैसे प्रकाश के रंगों का अपवर्तनांक बढ़ता जाता है, वेसे-वैसे उस पदार्थ में उसकी चाल कम होती जाती है, जैसे-काँच में बैंगनी रंग के प्रकाश का वेग सबसे कम तथा अपवर्तनांक सबसे अधिक होता है तथा लाल रंग का वेग सबसे अधिक एवं अपवर्तनांक सबसे कम होता है। 

इन्द्रधनुषः परावर्तन, पूर्ण आन्तरिक परावर्तन तथा अपवर्तन द्वारा वर्ण विक्षेपण का सबसे अच्छा उदाहरण इन्द्रधनुष है। 
इन्द्रधनुष दो प्रकार के होते है। 
1. प्राथमिक इन्द्रधनुषः जब वर्षा की बूँदों पर आपतित होने वाली सूर्य की किरणों का दो बार अपवर्तन व एक बार परावर्तन होता है, तो प्राथमिक इन्द्रधनुष का निर्माण होता है। प्राथमिक इन्द्रधनुष में लाल रंग बाहर की ओर तथा बैंगनी रंग अन्दर की ओर होता है।
2. द्वितीयक इन्द्रधनुषः जब वर्षा की बूँदों पर आपतित होने वाली सूर्य की किरणों का दो बार अपवर्तन व एक बार परावर्तन होता है, तो द्वितीयक इन्द्रधनुष का निर्माण होता है। द्वितीयक इन्द्रधनुष में बैंगनी रंग बाहर की ओर तथा लाल रंग अन्दर की ओर होता है।
प्राथमिक, द्वितीयक तथा पूरक रंग
लाल, हरा एवं नीला रंग को प्राथमिक रंग कहते है।
पीला, मैंजेंटा एवं पीकॉक नीला को द्वितीयक रंग कहते हैं। यह दो प्राथमिक रंगों को मिलाने से प्राप्त होता है। जैसे-
लाल+ नीला= मैजेन्टा
हरा +नीला =पीकॉक नीला, लाल +हरा =पीला
जब दो रंग परस्पर मिलने से श्वेत प्रकाश उत्पन्न करते हैं, तो उन्हें पूरक रंग कहते है।
लाल +पीकॉक नीला =सफेद
हरा +मैजेटा= सफेद
नीला+ पीला =सफेद
लाल+ हरा+ नीला =सफेद
दैनिक जीवन में प्रयोग किये जाने वाले रंगों को मिलाने से इस प्रकार के रंग प्राप्त नही होते, क्योंकि प्रयोग में लाए जाने वाले रंगों में अशुद्धियाँ होती है।
रंगीन टेलीविजन में प्राथमिक रंग लाल, हरा एवं नीला का उपयोग किया जाता है।



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