कार्य(Work) - कार्य की माप लगाए गए बल तथा बल की दिशा में वस्तु के विस्थापन के गुणनफल के बराबर होता है। कार्य एक अदिश राशि है, इसका S.I. मात्रक जूल है ।

मान लीजिए किसी वस्तु पर एक नियत बल F कार्य करता है। मान लीजिए कि वस्तु बल की दिशा में S दूरी विस्थापित हुई। मान लीजिए W किया गया कार्य है। कार्य की परिभाषा के अनुसार किया गया कार्य बल तथा विस्थापन के गुणनफल के बराबर है।

कार्य = बल x विस्थापन
Work
Work 


नोट : यदि बल F तथा विस्थापन S के मध्य कोण θ (थीटा बनता है, तो
W = FXS .cos θ



ऊर्जा (Energy) - किसी वस्तु की कार्य करने की क्षमता को उसकी ऊर्जा ' कहते हैं । ऊर्जा एक अदिश राशि है , इसका S.I. मात्रक जूल है ।
Energy
Energy
कार्य द्वारा प्राप्त ऊर्जा यांत्रिक ऊर्जा कहलाती है , जो दो प्रकार की होती है (i) गतिज ऊर्जा (ii) स्थितिज ऊर्जा






(i) गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy) - किसी वस्तु में उसकी गति के कारण कार्य करने की जो क्षमता आ जाती है , उसे उस वस्तु की गतिज ऊर्जा कहते हैं । यदि m द्रव्यमान की वस्तु वेग से चल रही हो , तो गतिज ऊर्जा ( KE ) होगी
                                   Kinetic%2BEnergy

स्थितिज ऊर्जा (Potential energy) - जब किसी वस्तु में विशेष अवस्था (State) या स्थिति के कारण कार्य करने की क्षमता आ जाती है , तो उसे स्थितिज ऊर्जा कहते  हैं , जैसे — बाँध बनाकर इकट्ठा किए गए पानी की ऊर्जा , घड़ी की चाभी में संचित ऊर्जा , तनी हुई स्प्रिंग या कमानी की ऊर्जा। गुरुत्व बल के विरुद्ध संचित स्थितिज ऊर्जा का व्यजंक है
P.E = mgh (जहाँ m = द्रव्यमान, g = गुरुत्वजनित त्वरण, h = ऊँचाई)  Potential%2Benergy
ऊर्जा सरक्षण का नियम (Law of Conservation of Energy)- ऊर्जा न तो उत्पन्न की जा सकती है और न नष्ट की जा सकती है । ऊर्जा केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित की जा सकती है । जब भी ऊर्जा किसी रूप में लुप्त होती है तब ठीक उतनी ही ऊर्जा अन्य रूपों में प्रकट होती है । अतः विश्व की सम्पूर्ण ऊर्जा का परिमाण स्थिर रहता है । यह ऊर्जा संरक्षण का नियम कहलाता है ।

ऊर्जा रूपांतरण करने वाले उपकरण (Energy Conversion Tools)

उपकरण (Tools)

ऊर्जा का रूपांतरण (Conversion of energy)

विद्युत सेल

रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में

मोमबत्ती

रासायनिक ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा में

माइक्रोफोन

ध्वनि ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में

सोलर सेल

सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में

लाऊडस्पीकर

विद्युत ऊर्जा को ध्वनि ऊर्जा में

ट्यूब लाइट

विद्युत ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा में

विद्युत मोटर

विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में

विद्युत बल्ब

विद्युत ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा में

सितार

यांत्रिक ऊर्जा को ध्वनि ऊर्जा में

डायनेमो

यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में


👉🏿 संवेग एवं गतिज ऊर्जा में संबंध -

KE = p2 /2m     जहाँ = संवेग = mv अर्थात् संवेग के दुगना करने पर गतिज ऊर्जा चार गुनी हो जाएगी ।

👉🏿शक्ति ( Power ) - कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं । यदि किसी कर्ता द्वारा W कार्य , t समय में किया जाता है , तो कर्ता की शक्ति w/t होगी  । शक्ति का S.I. मात्रक वाट ( W ) है , जिसे वैज्ञानिक जेम्सवाट के सम्मान में रखा गया है ।

शक्ति = कार्य / समय = जूल / सेकेण्ड = वाट
 1 kw = 1000 w
1mw = 106W

> शक्ति की एक और मात्रक अश्वशक्ति है ।
1 अश्वशक्ति ( H.P. ) = 746w

 वाट - सेकेण्ड ( ws )
1 वाट - सेकेण्ड = 1 वाट × 1 सेकेण्ड = 1 जूल
 1 वाट घंटा ( wh ) = 3600 जूल
1 किलोवाट घंटा = 1000 वाट घंटा = 3.6x106  जूल

w . kw , mw तथा H.p. शक्ति के मात्रक है ।
ws , wh , ksh कार्य अथवा ऊर्जा के मात्रक है ।



Gravitation

                 Gravitation


4 . गुरुत्वाकर्षण ( Gravitation ) -





👉🏿न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम ( Newton's Law of Gravitaion ) - किन्हीं दो पिण्डों के बीच कार्य करने वाला आकर्षण - बल पिण्डों के द्रव्यमानों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच के दूरी की वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है ।
   
Gravitation

 



         माना दो पिण्ड जिनके द्रव्यमान M1 एवं M2 हैं , एक दूसरे से R दूरी पर स्थित है , तो न्यूटन के नियम के अनुसार उनके बीच लगने वाला आकर्षण - बल , F = G M1M2/R2  होता है । जहाँ G एक नियतांक है , जिसे सर्वात्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक  कहते हैं और जिसका मान 6.67x10-11   N m2 /kg2  होता है ।

👉🏿 गुरुत्व ( Gravity ) - न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के अनुसार दो पिंडों के बीच एक आकर्षण बल कार्य करता है । यदि इनमें से एक पिंड पृथ्वी हो तो इस आकर्षण - बल को गुरुत्व कहते हैं । अर्थात् , गुरुत्व वह आर्कषण बल है , जिससे पृथ्वी किसी वस्तु को अपने केन्द्र की ओर खींचती है । इस बल के कारण जो त्वरण उत्पन्न होता है , उसे गुरुत्व जनित त्वरण ( g ) कहते हैं , जिसका मान 9.8 m/sहोता है ।

Gravity
Gravity 

👉🏿गुरुत्व जनित त्वरण ( g ) . वस्तु के रूप , आकार , द्रव्यमान आदि पर निर्भर नहीं करता है ।

👉🏿 g के मान में परिवर्तन -
( i ) पृथ्वी की सतह से ऊपर या नीचे जाने पर g का मान घटता है ।
( ii ) ' g ' का मान महत्तम पृथ्वी के ध्रुव ( pole ) पर होता है ।
( iii ) ' g ' का मान न्यूतम विषुवत् रेखा ( equator ) पर होता है ।
( iv ) पृथ्वी के घूर्णन गति बढ़ने पर g का मान कम हो जाता है ।
( v ) पृथ्वीके घूर्णन गति घटने पर ' g 'का मान बढ़ जाता है ।
नोट : यदि पृथ्वी अपनी वर्तमान कोणीय चाल से 17 गुनी अधिक चाल से घूमने लगे तो भूमध्य रेखा पर रखी वस्तु का भार शून्य हो जाएगा ।

👉🏿लिफ्ट में पिण्ड का भार ( Weight of a body in lift )-
Weight%2Bof%2Ba%2Bbody%2Bin%2Blift

 ( i ) जब लिफ्ट उपर की ओर जाती है तो लिफ्ट में स्थित पिण्ड का भार बढ़ा हुआ प्रतीत होता है ।

( ii ) जब लिफ्ट नीचे की ओर जाती है तो लिफ्ट में स्थित पिण्ड का भार घटा हुआ प्रतीत होता है ।

( iii ) जब लिफ्ट एक समान वेग से ऊपर या नीचे गति करती है तो लिफ्ट में स्थित पिण्ड के भार में कोई परिवर्तन नहीं प्रतीत होता है ।

( iv ) यदि नीचे उतरते समय लिफ्ट की डोरी टूट जाए तो वह मुक्त पिण्ड की भांति नीचे गिरती है । ऐसी स्थिति में लिफ्ट में स्थित पिण्ड का भार शून्य होता है । यही भारहीनता की स्थिति है ।

( V ) यदि लिफ्ट के नीचे उतरते समय लिफ्ट का त्वरण गुरूत्वीय त्वरण से अधिक हो तो लिफ्ट में स्थित पिण्ड उसकी फर्श से उठकर उसकी छत से जा लगेगा ।

👉🏿ग्रहों की गति से संबंधित केप्लर का नियम -
( i ) प्रत्येक ग्रह सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्ताकार ( elliptical ) कक्षा में परिक्रमा करता है तथा सूर्य ग्रह की कक्षा के एक फोकस बिन्दु पर स्थित होता है ।

( ii ) प्रत्येक ग्रह का क्षेत्रीय वेग ( areal velocity ) नियत रहता है । इसका प्रभाव यह होता है कि जब ग्रह सूर्य के निकट होता है , तो उसका वेग बढ़ जाता है और जब वह दूर होता है , तो उसका वेग कम हो जाता है ।

( iii ) सूर्य के चारों ओर ग्रह एक चक्कर जितने समय में लगाता है , उसे उसका परिक्रमण काल ( T ) कहते हैं , परिक्रमण काल का वर्ग ( T2) ग्रह की सूर्य से औसत दूरी ( r ) के घन ( r3 ) के अनुक्रमानुपाती होता है , अर्थात् सूर्य से अधिक दूर के ग्रहों का परिक्रमण - काल भी अधिक होता है । उदाहरण - सूर्य के निकटतम ग्रह बुध का परिक्रमण - काल 88 दिन है

 👉🏿उपग्रह ( Satellite ) - किसी ग्रह के चारों ओर परिक्रमा करने वाले पिंड को उस ग्रह  का उपग्रह कहते हैं । जैसे - चन्द्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह है ।
Satellite

👉🏿 उपग्रह का कक्षीय चाल ( Orbital Speed of a Satellite ) -
 ( i ) उपग्रह की कक्षीय चाल उसकी पृथ्वी तल से ऊँचाई पर निर्भर करती है । उपग्रह  पृथ्वी तल से जितना अधिक दूर होगा , उतनी ही उसकी चाल कम होगी ।

( ii ) उपग्रह की कक्षीय चाल उसके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करती है । एक ही त्रिज्या के कक्षा में भिन्न - भिन्न द्रव्यमानों के उपग्रहों की चाल समान होगी ।
नोट : पृथ्वी तल के अति निकट चक्कर लगाने वाले उपग्रह की कक्षीय चाल लगभग 8 किमी०/सेकेण्ड होता है ।

👉🏿उपग्रह का परिक्रमण काल ( Period of Revolution of a Satellite ) - उपग्रह अपनी कक्षा में पृथ्वी का एक चक्कर जितने समय में लगाता है , उसे उसका परिक्रमण काल कहते हैं । अतः परिक्रमण काल = कक्षा की परिधि / कक्षीय चाल
 ( i )उपग्रह का परिक्रमण काल भी केवल उसकी पृथ्वी तल से ऊँचाई पर निर्भर करता है और उपग्रह जितना अधिक दूर होता है उतना ही अधिक उसका परिक्रमण काल होता है ।
( ii ) उपग्रह का परिक्रमण काल उसके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है ।
 नोट : पृथ्वी के अति निकट चक्कर लगाने वाले उपग्रह का परिक्रमण काल 1 घंटा 24 मिनट होता है ।

👉🏿भू - स्थायी उपग्रह ( Geo - Stationary Satellite ) - ऐसा उपग्रह जो पृथ्वी के अक्ष के लम्बवत् तल में पश्चिम से पूरब की ओर पृथ्वी की परिक्रमा करता है तथा जिसका परिक्रमण काल पृथ्वी के परिक्रमण काल ( 24 घंटे ) के बराबर होता है , भू - स्थायी उपग्रह कहलाता है । यह उपग्रह पृथ्वी तल से लगभग 36,000 किमी० की ऊँचाई पर रहकर पृथ्वी का परिक्रमण करता है । भू - तुल्यकालिक ( Geogynchronous ) कक्षा में संचार उपग्रह स्थापित करने की संभावना सबसे पहले आर्थर सी क्लार्क ने व्यक्त की थी ।



👉🏿पलायन वेग ( Escape Velocity ) - पलायन वेग वह न्यूनतम वेग है जिससे किसी पिंड को पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर फेंके जाने पर वह गुरुत्वीय क्षेत्र को पार कर जाता है , पृथ्वी पर वापस नहीं आता पृथ्वी के लिए पलायन वेग का मान 11.2km/s है अर्थात् पृथ्वी - तल से किसी वस्तु को 11.2 km/s या इससे अधिक वेग से ऊपर किसी भी दिशा में फेंक दिया जाए तो वस्तु फिर पृथ्वी - तल पर वापस नहीं आएगी ।
Escape%2BVelocity

👉🏿पलायन वेग कक्षीय वेग का √2 गुना होता है । इसलिए यदि किसी उपग्रह का कक्षीय वेग को √2 गुना ( अर्थात् 41 % ) बढ़ा दिया जाय तो वह उपग्रह अपनी कक्षा को छोड़कर पलायन कर जाएगा ।



  ( दाब Pressure ) →

Pressure


👉🏿दाब ( Pressure ) - किसी सतह के एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाले बल को दाब कहते हैं
 अर्थात्

दाब ( P ) = E/A = पृष्ठ के लम्बत् बल / पृष्ठ का क्षेत्रफल

👉🏿दाब का S.I. मात्रक N/ m2   होता है , जिसे पास्कल ( Pa ) भी कहते हैं । दाब एक अदिश राशि है ।

👉🏿वायुमंडलीय दाब ( Atmospheric Pressure ) - सामान्यतया वायुमंडलीय दाब वह दाब होता है , जो पारे के 76 सेमी० लम्बे कॉलम के द्वारा 0°C पर 45° अक्षांश पर समुद्रतल पर लगाया जाता है । यह एक वर्ग सेमी० अनुप्रस्थ काट वाले पारे के 76cm लम्बे कॉलम के भार के बराबर होता है ।
1 बार = 105  N/m2 

👉🏿वायुमंडलीय दाब का SI मात्रक बार ( bar ) होता है ।

👉🏿पृथ्वी की सतह से ऊपर जाने पर वायुमंडलीय दाब कम होता जाता है , जिसके कारण
( i ) पहाड़ों पर खाना बनाने में कठिनाई होती है ,
( ii ) वायुयान में बैठे यात्री के फाउन्टेन पेन से स्याही रिस जाती है ।


👉🏿 वायुमंडलीय दाब को बैरोमीटर से मापा जाता है । इसकी सहायता से मौसम संबंधी पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है ।

👉🏿बैरोमीटर का पाठ्यांक जब एकाएक नीचे गिरता है , तो आँधी आने की संभावना होती है ।

👉🏿 बैरोमीटर का पाठ्यांक जब धीरे - धीरे नीचे गिरता है , तो वर्षा होने की संभावना होती है ।

👉🏿 बैरोमीटर का पाठ्यांक जब धीरे - धीरे ऊपर चढ़ता है , तो दिन साफ रहने की संभावना होती है ।

👉🏿 द्रव में दाब ( Pressure in Liquid ) - द्रव के अणुओं के द्वारा बर्तन की दीवार अथवा तली के प्रति एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाले बल को द्रव का दाब कहते हैं । द्रव के अन्दर किसी बिन्दु पर द्रव के कारण दाब द्रव की सतह से उस बिन्दु की गहराई ( h ) द्रव के घनत्व ( d ) तथा गुरुत्वीय त्वरण ( ) के गुणनफल के बराबर होता है , अर्थात्

दाब  hxdxg होता है ।

> द्रवों में दाब के नियम -
( i ) स्थिर द्रव में एक ही क्षैतिज तल में स्थित सभी बिन्दुओं पर दाब समान होता है ।
( ii ) स्थिर द्रव के भीतर किसी बिन्दु पर दाब प्रत्येक दिशा में बराबर होता है ।
 ( iii ) द्रव के भीतर किसी बिन्दु पर दाब स्वतंत्र तल से बिन्दु की गहराई के अनुक्रमानुपाती होता है ।
( iv ) किसी बिन्दु पर द्रव का दाब द्रव के घनत्व पर निर्भर करता है । घनत्व अधिक होने पर दाब भी अधिक होता हैं ।

👉🏿द्रव - दाब सम्बन्धी पास्कल का नियम -

>पास्कल के नियम का प्रथम कथन - यदि गुरुत्वीय प्रभाव को नगण्य माना जाय तो संतुलन की अवस्था में द्रव के भीतर प्रत्येक बिन्दु पर दबाव समान होता है ।

>पास्कल के नियम का द्वितीय कथन - किसी बर्तन में बंद द्रव के किसी भाग पर आरोपित बल , द्रव द्वारा सभी दिशाओं में समान परिमाण में संचरित कर दिया जाता है

👉🏿 पास्कल के नियम पर आधारित कुछ यंत्र हैं -
 हाइड्रोलिक लिफ्ट , हाइड्रोलिक प्रेस , हाइड्रोलिक ब्रेक आदि ।

 👉🏿द्रव का दाब उस पात्र के आकार या आकृति पर निर्भर नहीं करता जिसमें द्रव रखा जाता है ।

👉🏿 गलंनाक तथा क्वथनांक पर दाब का प्रभाव ( Effect of Pressure on Melting Point and Boiling Point ) -

गलनांक पर प्रभाव -
( i ) गरम करने पर जिन पदार्थो का आयतन बढ़ता है , दाब बढ़ाने पर उनका गलनांक भी बढ़ जाता है ; जैसे - मोम, घी , आदि ।
( ii ) गरम करने पर जिन पदार्थों का आयतन घट जाता है , दाब बढ़ाने पर उनका गलनांक भी कम हो जाता है , जैसे - बर्फ

क्वथनांक पर प्रभाव - सभी द्रवों का क्वथनांक दाब बढ़ाने पर बढ़ जाता है ।


 प्लवन ( Floatation )
Floatation


👉🏿 उत्प्लावक बल ( Buoyant Force ) - द्रव का वह गुण जिसके कारण वह वस्तुओं पर ऊपर की ओर एक बल लगाता है , उसे उत्क्षेप या उत्प्लावक बल कहते हैं । यह बल वस्तुओं द्वारा हटाए गए द्रव के गुरुत्व - केन्द्र पर कार्य करता है जिसे उत्प्लावन केन्द्र ( centre of buoyancy ) कहते है । इसका अध्ययन सर्वप्रथम आर्कमिडीज ने किया था ।

































































































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