कार्य(Work) - कार्य की माप लगाए गए बल तथा बल की दिशा में वस्तु के विस्थापन के गुणनफल के बराबर होता है। कार्य एक अदिश राशि है, इसका S.I. मात्रक जूल है ।
मान लीजिए किसी वस्तु पर एक नियत बल F कार्य करता है। मान लीजिए कि वस्तु बल की दिशा में S दूरी विस्थापित हुई। मान लीजिए W किया गया कार्य है। कार्य की परिभाषा के अनुसार किया गया कार्य बल तथा विस्थापन के गुणनफल के बराबर है।
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Work |
नोट : यदि बल F तथा विस्थापन S के मध्य कोण θ (थीटा ) बनता है, तो
W = FXS .cos θ
ऊर्जा (Energy) - किसी वस्तु की कार्य करने की क्षमता को उसकी ऊर्जा ' कहते हैं । ऊर्जा एक अदिश राशि है , इसका S.I. मात्रक जूल है ।
कार्य द्वारा प्राप्त ऊर्जा यांत्रिक ऊर्जा कहलाती है , जो दो प्रकार की होती है (i) गतिज ऊर्जा (ii) स्थितिज ऊर्जा
(i) गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy) - किसी वस्तु में उसकी गति के कारण कार्य करने की जो क्षमता आ जाती है , उसे उस वस्तु की गतिज ऊर्जा कहते हैं । यदि m द्रव्यमान की वस्तु v वेग से चल रही हो , तो गतिज ऊर्जा ( KE ) होगी
![Kinetic%2BEnergy Kinetic%2BEnergy](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEinEFvBcurWOqRE51jwqvR0cjciATGNBPFG23kItEcl_7ooKQ6OIW2nDhCVFVBXgNcXkDNwVgf3r47oqUCqcoAZd7tvfShNVBSKzIIZ3Ea-YlmzqqAGt-vt9tXPujyVgVwxoaB_VGQNDfs/w293-h174/Kinetic+Energy.jpg)
स्थितिज ऊर्जा (Potential energy) - जब किसी वस्तु में विशेष अवस्था (State) या स्थिति के कारण कार्य करने की क्षमता आ जाती है , तो उसे स्थितिज ऊर्जा कहते हैं , जैसे — बाँध बनाकर इकट्ठा किए गए पानी की ऊर्जा , घड़ी की चाभी में संचित ऊर्जा , तनी हुई स्प्रिंग या कमानी की ऊर्जा। गुरुत्व बल के विरुद्ध संचित स्थितिज ऊर्जा का व्यजंक है
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Energy |
(i) गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy) - किसी वस्तु में उसकी गति के कारण कार्य करने की जो क्षमता आ जाती है , उसे उस वस्तु की गतिज ऊर्जा कहते हैं । यदि m द्रव्यमान की वस्तु v वेग से चल रही हो , तो गतिज ऊर्जा ( KE ) होगी
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![Kinetic%2BEnergy Kinetic%2BEnergy](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEinEFvBcurWOqRE51jwqvR0cjciATGNBPFG23kItEcl_7ooKQ6OIW2nDhCVFVBXgNcXkDNwVgf3r47oqUCqcoAZd7tvfShNVBSKzIIZ3Ea-YlmzqqAGt-vt9tXPujyVgVwxoaB_VGQNDfs/w293-h174/Kinetic+Energy.jpg)
P.E = mgh (जहाँ m = द्रव्यमान, g = गुरुत्वजनित त्वरण, h = ऊँचाई) ![Potential%2Benergy Potential%2Benergy](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgz1ZCxF4FuRbQR1WfomA-8luwDsdQ62oQg4Qwc8cCvCLNx939_F5AJ2mVr_uLbpxW1WxU86DhlyWTIHDzJ2DaCHJUiJXTvYvmKZlRMeK_tZue1HDVV5tgCgn0j1y0Aa5-xwOF1Y-Az2xM/s200/Potential+energy.jpg)
![Potential%2Benergy Potential%2Benergy](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgz1ZCxF4FuRbQR1WfomA-8luwDsdQ62oQg4Qwc8cCvCLNx939_F5AJ2mVr_uLbpxW1WxU86DhlyWTIHDzJ2DaCHJUiJXTvYvmKZlRMeK_tZue1HDVV5tgCgn0j1y0Aa5-xwOF1Y-Az2xM/s200/Potential+energy.jpg)
ऊर्जा सरक्षण का नियम (Law of Conservation of Energy)- ऊर्जा न तो उत्पन्न की जा सकती है और न नष्ट की जा सकती है । ऊर्जा केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित की जा सकती है । जब भी ऊर्जा किसी रूप में लुप्त होती है तब ठीक उतनी ही ऊर्जा अन्य रूपों में प्रकट होती है । अतः विश्व की सम्पूर्ण ऊर्जा का परिमाण स्थिर रहता है । यह ऊर्जा संरक्षण का नियम कहलाता है ।
👉🏿 संवेग एवं गतिज ऊर्जा में संबंध -
KE = p2 /2m जहाँ P = संवेग = mv अर्थात् संवेग के दुगना करने पर गतिज ऊर्जा चार गुनी हो जाएगी ।
👉🏿शक्ति ( Power ) - कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं । यदि किसी कर्ता द्वारा W कार्य , t समय में किया जाता है , तो कर्ता की शक्ति w/t होगी । शक्ति का S.I. मात्रक वाट ( W ) है , जिसे वैज्ञानिक जेम्सवाट के सम्मान में रखा गया है ।
शक्ति = कार्य / समय = जूल / सेकेण्ड = वाट
1 kw = 1000 w
1mw = 106W
> शक्ति की एक और मात्रक अश्वशक्ति है ।
1 अश्वशक्ति ( H.P. ) = 746w
वाट - सेकेण्ड ( ws )
1 वाट - सेकेण्ड = 1 वाट × 1 सेकेण्ड = 1 जूल
1 वाट घंटा ( wh ) = 3600 जूल
1 किलोवाट घंटा = 1000 वाट घंटा = 3.6x106 जूल
w . kw , mw तथा H.p. शक्ति के मात्रक है ।
ws , wh , ksh कार्य अथवा ऊर्जा के मात्रक है ।
👉🏿न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम ( Newton's Law of Gravitaion ) - किन्हीं दो पिण्डों के बीच कार्य करने वाला आकर्षण - बल पिण्डों के द्रव्यमानों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच के दूरी की वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है ।
माना दो पिण्ड जिनके द्रव्यमान M1 एवं M2 हैं , एक दूसरे से R दूरी पर स्थित है , तो न्यूटन के नियम के अनुसार उनके बीच लगने वाला आकर्षण - बल , F = G M1M2/R2 होता है । जहाँ G एक नियतांक है , जिसे सर्वात्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक कहते हैं और जिसका मान 6.67x10-11 N m2 /kg2 होता है ।
👉🏿 गुरुत्व ( Gravity ) - न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के अनुसार दो पिंडों के बीच एक आकर्षण बल कार्य करता है । यदि इनमें से एक पिंड पृथ्वी हो तो इस आकर्षण - बल को गुरुत्व कहते हैं । अर्थात् , गुरुत्व वह आर्कषण बल है , जिससे पृथ्वी किसी वस्तु को अपने केन्द्र की ओर खींचती है । इस बल के कारण जो त्वरण उत्पन्न होता है , उसे गुरुत्व जनित त्वरण ( g ) कहते हैं , जिसका मान 9.8 m/s2 होता है ।
👉🏿गुरुत्व जनित त्वरण ( g ) . वस्तु के रूप , आकार , द्रव्यमान आदि पर निर्भर नहीं करता है ।
👉🏿 g के मान में परिवर्तन -
( i ) पृथ्वी की सतह से ऊपर या नीचे जाने पर g का मान घटता है ।
( ii ) ' g ' का मान महत्तम पृथ्वी के ध्रुव ( pole ) पर होता है ।
( iii ) ' g ' का मान न्यूतम विषुवत् रेखा ( equator ) पर होता है ।
( iv ) पृथ्वी के घूर्णन गति बढ़ने पर g का मान कम हो जाता है ।
( v ) पृथ्वीके घूर्णन गति घटने पर ' g 'का मान बढ़ जाता है ।
नोट : यदि पृथ्वी अपनी वर्तमान कोणीय चाल से 17 गुनी अधिक चाल से घूमने लगे तो भूमध्य रेखा पर रखी वस्तु का भार शून्य हो जाएगा ।
👉🏿लिफ्ट में पिण्ड का भार ( Weight of a body in lift )-
( i ) जब लिफ्ट उपर की ओर जाती है तो लिफ्ट में स्थित पिण्ड का भार बढ़ा हुआ प्रतीत होता है ।
( ii ) जब लिफ्ट नीचे की ओर जाती है तो लिफ्ट में स्थित पिण्ड का भार घटा हुआ प्रतीत होता है ।
( iii ) जब लिफ्ट एक समान वेग से ऊपर या नीचे गति करती है तो लिफ्ट में स्थित पिण्ड के भार में कोई परिवर्तन नहीं प्रतीत होता है ।
( iv ) यदि नीचे उतरते समय लिफ्ट की डोरी टूट जाए तो वह मुक्त पिण्ड की भांति नीचे गिरती है । ऐसी स्थिति में लिफ्ट में स्थित पिण्ड का भार शून्य होता है । यही भारहीनता की स्थिति है ।
( V ) यदि लिफ्ट के नीचे उतरते समय लिफ्ट का त्वरण गुरूत्वीय त्वरण से अधिक हो तो लिफ्ट में स्थित पिण्ड उसकी फर्श से उठकर उसकी छत से जा लगेगा ।
👉🏿ग्रहों की गति से संबंधित केप्लर का नियम -
( i ) प्रत्येक ग्रह सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्ताकार ( elliptical ) कक्षा में परिक्रमा करता है तथा सूर्य ग्रह की कक्षा के एक फोकस बिन्दु पर स्थित होता है ।
( ii ) प्रत्येक ग्रह का क्षेत्रीय वेग ( areal velocity ) नियत रहता है । इसका प्रभाव यह होता है कि जब ग्रह सूर्य के निकट होता है , तो उसका वेग बढ़ जाता है और जब वह दूर होता है , तो उसका वेग कम हो जाता है ।
( iii ) सूर्य के चारों ओर ग्रह एक चक्कर जितने समय में लगाता है , उसे उसका परिक्रमण काल ( T ) कहते हैं , परिक्रमण काल का वर्ग ( T2) ग्रह की सूर्य से औसत दूरी ( r ) के घन ( r3 ) के अनुक्रमानुपाती होता है , अर्थात् सूर्य से अधिक दूर के ग्रहों का परिक्रमण - काल भी अधिक होता है । उदाहरण - सूर्य के निकटतम ग्रह बुध का परिक्रमण - काल 88 दिन है
👉🏿उपग्रह ( Satellite ) - किसी ग्रह के चारों ओर परिक्रमा करने वाले पिंड को उस ग्रह का उपग्रह कहते हैं । जैसे - चन्द्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह है ।
👉🏿 उपग्रह का कक्षीय चाल ( Orbital Speed of a Satellite ) -
( i ) उपग्रह की कक्षीय चाल उसकी पृथ्वी तल से ऊँचाई पर निर्भर करती है । उपग्रह पृथ्वी तल से जितना अधिक दूर होगा , उतनी ही उसकी चाल कम होगी ।
( ii ) उपग्रह की कक्षीय चाल उसके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करती है । एक ही त्रिज्या के कक्षा में भिन्न - भिन्न द्रव्यमानों के उपग्रहों की चाल समान होगी ।
नोट : पृथ्वी तल के अति निकट चक्कर लगाने वाले उपग्रह की कक्षीय चाल लगभग 8 किमी०/सेकेण्ड होता है ।
👉🏿उपग्रह का परिक्रमण काल ( Period of Revolution of a Satellite ) - उपग्रह अपनी कक्षा में पृथ्वी का एक चक्कर जितने समय में लगाता है , उसे उसका परिक्रमण काल कहते हैं । अतः परिक्रमण काल = कक्षा की परिधि / कक्षीय चाल
( i )उपग्रह का परिक्रमण काल भी केवल उसकी पृथ्वी तल से ऊँचाई पर निर्भर करता है और उपग्रह जितना अधिक दूर होता है उतना ही अधिक उसका परिक्रमण काल होता है ।
( ii ) उपग्रह का परिक्रमण काल उसके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है ।
नोट : पृथ्वी के अति निकट चक्कर लगाने वाले उपग्रह का परिक्रमण काल 1 घंटा 24 मिनट होता है ।
👉🏿भू - स्थायी उपग्रह ( Geo - Stationary Satellite ) - ऐसा उपग्रह जो पृथ्वी के अक्ष के लम्बवत् तल में पश्चिम से पूरब की ओर पृथ्वी की परिक्रमा करता है तथा जिसका परिक्रमण काल पृथ्वी के परिक्रमण काल ( 24 घंटे ) के बराबर होता है , भू - स्थायी उपग्रह कहलाता है । यह उपग्रह पृथ्वी तल से लगभग 36,000 किमी० की ऊँचाई पर रहकर पृथ्वी का परिक्रमण करता है । भू - तुल्यकालिक ( Geogynchronous ) कक्षा में संचार उपग्रह स्थापित करने की संभावना सबसे पहले आर्थर सी क्लार्क ने व्यक्त की थी ।
👉🏿पलायन वेग ( Escape Velocity ) - पलायन वेग वह न्यूनतम वेग है जिससे किसी पिंड को पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर फेंके जाने पर वह गुरुत्वीय क्षेत्र को पार कर जाता है , पृथ्वी पर वापस नहीं आता पृथ्वी के लिए पलायन वेग का मान 11.2km/s है अर्थात् पृथ्वी - तल से किसी वस्तु को 11.2 km/s या इससे अधिक वेग से ऊपर किसी भी दिशा में फेंक दिया जाए तो वस्तु फिर पृथ्वी - तल पर वापस नहीं आएगी ।
👉🏿पलायन वेग कक्षीय वेग का √2 गुना होता है । इसलिए यदि किसी उपग्रह का कक्षीय वेग को √2 गुना ( अर्थात् 41 % ) बढ़ा दिया जाय तो वह उपग्रह अपनी कक्षा को छोड़कर पलायन कर जाएगा ।
👉🏿दाब ( Pressure ) - किसी सतह के एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाले बल को दाब कहते हैं
अर्थात्
दाब ( P ) = E/A = पृष्ठ के लम्बत् बल / पृष्ठ का क्षेत्रफल
👉🏿दाब का S.I. मात्रक N/ m2 होता है , जिसे पास्कल ( Pa ) भी कहते हैं । दाब एक अदिश राशि है ।
👉🏿वायुमंडलीय दाब ( Atmospheric Pressure ) - सामान्यतया वायुमंडलीय दाब वह दाब होता है , जो पारे के 76 सेमी० लम्बे कॉलम के द्वारा 0°C पर 45° अक्षांश पर समुद्रतल पर लगाया जाता है । यह एक वर्ग सेमी० अनुप्रस्थ काट वाले पारे के 76cm लम्बे कॉलम के भार के बराबर होता है ।
1 बार = 105 N/m2
👉🏿वायुमंडलीय दाब का SI मात्रक बार ( bar ) होता है ।
👉🏿पृथ्वी की सतह से ऊपर जाने पर वायुमंडलीय दाब कम होता जाता है , जिसके कारण
( i ) पहाड़ों पर खाना बनाने में कठिनाई होती है ,
( ii ) वायुयान में बैठे यात्री के फाउन्टेन पेन से स्याही रिस जाती है ।
👉🏿 वायुमंडलीय दाब को बैरोमीटर से मापा जाता है । इसकी सहायता से मौसम संबंधी पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है ।
👉🏿बैरोमीटर का पाठ्यांक जब एकाएक नीचे गिरता है , तो आँधी आने की संभावना होती है ।
👉🏿 बैरोमीटर का पाठ्यांक जब धीरे - धीरे नीचे गिरता है , तो वर्षा होने की संभावना होती है ।
👉🏿 बैरोमीटर का पाठ्यांक जब धीरे - धीरे ऊपर चढ़ता है , तो दिन साफ रहने की संभावना होती है ।
👉🏿 द्रव में दाब ( Pressure in Liquid ) - द्रव के अणुओं के द्वारा बर्तन की दीवार अथवा तली के प्रति एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाले बल को द्रव का दाब कहते हैं । द्रव के अन्दर किसी बिन्दु पर द्रव के कारण दाब द्रव की सतह से उस बिन्दु की गहराई ( h ) द्रव के घनत्व ( d ) तथा गुरुत्वीय त्वरण ( g ) के गुणनफल के बराबर होता है , अर्थात्
दाब p = hxdxg होता है ।
> द्रवों में दाब के नियम -
( i ) स्थिर द्रव में एक ही क्षैतिज तल में स्थित सभी बिन्दुओं पर दाब समान होता है ।
( ii ) स्थिर द्रव के भीतर किसी बिन्दु पर दाब प्रत्येक दिशा में बराबर होता है ।
( iii ) द्रव के भीतर किसी बिन्दु पर दाब स्वतंत्र तल से बिन्दु की गहराई के अनुक्रमानुपाती होता है ।
( iv ) किसी बिन्दु पर द्रव का दाब द्रव के घनत्व पर निर्भर करता है । घनत्व अधिक होने पर दाब भी अधिक होता हैं ।
👉🏿द्रव - दाब सम्बन्धी पास्कल का नियम -
>पास्कल के नियम का प्रथम कथन - यदि गुरुत्वीय प्रभाव को नगण्य माना जाय तो संतुलन की अवस्था में द्रव के भीतर प्रत्येक बिन्दु पर दबाव समान होता है ।
>पास्कल के नियम का द्वितीय कथन - किसी बर्तन में बंद द्रव के किसी भाग पर आरोपित बल , द्रव द्वारा सभी दिशाओं में समान परिमाण में संचरित कर दिया जाता है
👉🏿 पास्कल के नियम पर आधारित कुछ यंत्र हैं -
हाइड्रोलिक लिफ्ट , हाइड्रोलिक प्रेस , हाइड्रोलिक ब्रेक आदि ।
👉🏿द्रव का दाब उस पात्र के आकार या आकृति पर निर्भर नहीं करता जिसमें द्रव रखा जाता है ।
👉🏿 गलंनाक तथा क्वथनांक पर दाब का प्रभाव ( Effect of Pressure on Melting Point and Boiling Point ) -
गलनांक पर प्रभाव -
( i ) गरम करने पर जिन पदार्थो का आयतन बढ़ता है , दाब बढ़ाने पर उनका गलनांक भी बढ़ जाता है ; जैसे - मोम, घी , आदि ।
( ii ) गरम करने पर जिन पदार्थों का आयतन घट जाता है , दाब बढ़ाने पर उनका गलनांक भी कम हो जाता है , जैसे - बर्फ
क्वथनांक पर प्रभाव - सभी द्रवों का क्वथनांक दाब बढ़ाने पर बढ़ जाता है ।
👉🏿 उत्प्लावक बल ( Buoyant Force ) - द्रव का वह गुण जिसके कारण वह वस्तुओं पर ऊपर की ओर एक बल लगाता है , उसे उत्क्षेप या उत्प्लावक बल कहते हैं । यह बल वस्तुओं द्वारा हटाए गए द्रव के गुरुत्व - केन्द्र पर कार्य करता है जिसे उत्प्लावन केन्द्र ( centre of buoyancy ) कहते है । इसका अध्ययन सर्वप्रथम आर्कमिडीज ने किया था ।
ऊर्जा रूपांतरण करने वाले उपकरण (Energy Conversion Tools) |
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उपकरण (Tools) |
ऊर्जा का रूपांतरण (Conversion of energy) |
विद्युत सेल |
रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में |
मोमबत्ती |
रासायनिक ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा में |
माइक्रोफोन |
ध्वनि ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में |
सोलर सेल |
सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में |
लाऊडस्पीकर |
विद्युत ऊर्जा को ध्वनि ऊर्जा में |
ट्यूब लाइट |
विद्युत ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा में |
विद्युत मोटर |
विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में |
विद्युत बल्ब |
विद्युत ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा में |
सितार |
यांत्रिक ऊर्जा को ध्वनि ऊर्जा में |
डायनेमो |
यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में |
👉🏿 संवेग एवं गतिज ऊर्जा में संबंध -
KE = p2 /2m जहाँ P = संवेग = mv अर्थात् संवेग के दुगना करने पर गतिज ऊर्जा चार गुनी हो जाएगी ।
👉🏿शक्ति ( Power ) - कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं । यदि किसी कर्ता द्वारा W कार्य , t समय में किया जाता है , तो कर्ता की शक्ति w/t होगी । शक्ति का S.I. मात्रक वाट ( W ) है , जिसे वैज्ञानिक जेम्सवाट के सम्मान में रखा गया है ।
शक्ति = कार्य / समय = जूल / सेकेण्ड = वाट
1 kw = 1000 w
1mw = 106W
> शक्ति की एक और मात्रक अश्वशक्ति है ।
1 अश्वशक्ति ( H.P. ) = 746w
वाट - सेकेण्ड ( ws )
1 वाट - सेकेण्ड = 1 वाट × 1 सेकेण्ड = 1 जूल
1 वाट घंटा ( wh ) = 3600 जूल
1 किलोवाट घंटा = 1000 वाट घंटा = 3.6x106 जूल
w . kw , mw तथा H.p. शक्ति के मात्रक है ।
ws , wh , ksh कार्य अथवा ऊर्जा के मात्रक है ।
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Gravitation |
4 . गुरुत्वाकर्षण ( Gravitation ) -
👉🏿न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम ( Newton's Law of Gravitaion ) - किन्हीं दो पिण्डों के बीच कार्य करने वाला आकर्षण - बल पिण्डों के द्रव्यमानों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच के दूरी की वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है ।
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माना दो पिण्ड जिनके द्रव्यमान M1 एवं M2 हैं , एक दूसरे से R दूरी पर स्थित है , तो न्यूटन के नियम के अनुसार उनके बीच लगने वाला आकर्षण - बल , F = G M1M2/R2 होता है । जहाँ G एक नियतांक है , जिसे सर्वात्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक कहते हैं और जिसका मान 6.67x10-11 N m2 /kg2 होता है ।
👉🏿 गुरुत्व ( Gravity ) - न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के अनुसार दो पिंडों के बीच एक आकर्षण बल कार्य करता है । यदि इनमें से एक पिंड पृथ्वी हो तो इस आकर्षण - बल को गुरुत्व कहते हैं । अर्थात् , गुरुत्व वह आर्कषण बल है , जिससे पृथ्वी किसी वस्तु को अपने केन्द्र की ओर खींचती है । इस बल के कारण जो त्वरण उत्पन्न होता है , उसे गुरुत्व जनित त्वरण ( g ) कहते हैं , जिसका मान 9.8 m/s2 होता है ।
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Gravity |
👉🏿गुरुत्व जनित त्वरण ( g ) . वस्तु के रूप , आकार , द्रव्यमान आदि पर निर्भर नहीं करता है ।
👉🏿 g के मान में परिवर्तन -
( i ) पृथ्वी की सतह से ऊपर या नीचे जाने पर g का मान घटता है ।
( ii ) ' g ' का मान महत्तम पृथ्वी के ध्रुव ( pole ) पर होता है ।
( iii ) ' g ' का मान न्यूतम विषुवत् रेखा ( equator ) पर होता है ।
( iv ) पृथ्वी के घूर्णन गति बढ़ने पर g का मान कम हो जाता है ।
( v ) पृथ्वीके घूर्णन गति घटने पर ' g 'का मान बढ़ जाता है ।
नोट : यदि पृथ्वी अपनी वर्तमान कोणीय चाल से 17 गुनी अधिक चाल से घूमने लगे तो भूमध्य रेखा पर रखी वस्तु का भार शून्य हो जाएगा ।
👉🏿लिफ्ट में पिण्ड का भार ( Weight of a body in lift )-
( i ) जब लिफ्ट उपर की ओर जाती है तो लिफ्ट में स्थित पिण्ड का भार बढ़ा हुआ प्रतीत होता है ।
( ii ) जब लिफ्ट नीचे की ओर जाती है तो लिफ्ट में स्थित पिण्ड का भार घटा हुआ प्रतीत होता है ।
( iii ) जब लिफ्ट एक समान वेग से ऊपर या नीचे गति करती है तो लिफ्ट में स्थित पिण्ड के भार में कोई परिवर्तन नहीं प्रतीत होता है ।
( iv ) यदि नीचे उतरते समय लिफ्ट की डोरी टूट जाए तो वह मुक्त पिण्ड की भांति नीचे गिरती है । ऐसी स्थिति में लिफ्ट में स्थित पिण्ड का भार शून्य होता है । यही भारहीनता की स्थिति है ।
( V ) यदि लिफ्ट के नीचे उतरते समय लिफ्ट का त्वरण गुरूत्वीय त्वरण से अधिक हो तो लिफ्ट में स्थित पिण्ड उसकी फर्श से उठकर उसकी छत से जा लगेगा ।
👉🏿ग्रहों की गति से संबंधित केप्लर का नियम -
( i ) प्रत्येक ग्रह सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्ताकार ( elliptical ) कक्षा में परिक्रमा करता है तथा सूर्य ग्रह की कक्षा के एक फोकस बिन्दु पर स्थित होता है ।
( ii ) प्रत्येक ग्रह का क्षेत्रीय वेग ( areal velocity ) नियत रहता है । इसका प्रभाव यह होता है कि जब ग्रह सूर्य के निकट होता है , तो उसका वेग बढ़ जाता है और जब वह दूर होता है , तो उसका वेग कम हो जाता है ।
( iii ) सूर्य के चारों ओर ग्रह एक चक्कर जितने समय में लगाता है , उसे उसका परिक्रमण काल ( T ) कहते हैं , परिक्रमण काल का वर्ग ( T2) ग्रह की सूर्य से औसत दूरी ( r ) के घन ( r3 ) के अनुक्रमानुपाती होता है , अर्थात् सूर्य से अधिक दूर के ग्रहों का परिक्रमण - काल भी अधिक होता है । उदाहरण - सूर्य के निकटतम ग्रह बुध का परिक्रमण - काल 88 दिन है
👉🏿उपग्रह ( Satellite ) - किसी ग्रह के चारों ओर परिक्रमा करने वाले पिंड को उस ग्रह का उपग्रह कहते हैं । जैसे - चन्द्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह है ।
👉🏿 उपग्रह का कक्षीय चाल ( Orbital Speed of a Satellite ) -
( i ) उपग्रह की कक्षीय चाल उसकी पृथ्वी तल से ऊँचाई पर निर्भर करती है । उपग्रह पृथ्वी तल से जितना अधिक दूर होगा , उतनी ही उसकी चाल कम होगी ।
( ii ) उपग्रह की कक्षीय चाल उसके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करती है । एक ही त्रिज्या के कक्षा में भिन्न - भिन्न द्रव्यमानों के उपग्रहों की चाल समान होगी ।
नोट : पृथ्वी तल के अति निकट चक्कर लगाने वाले उपग्रह की कक्षीय चाल लगभग 8 किमी०/सेकेण्ड होता है ।
👉🏿उपग्रह का परिक्रमण काल ( Period of Revolution of a Satellite ) - उपग्रह अपनी कक्षा में पृथ्वी का एक चक्कर जितने समय में लगाता है , उसे उसका परिक्रमण काल कहते हैं । अतः परिक्रमण काल = कक्षा की परिधि / कक्षीय चाल
( i )उपग्रह का परिक्रमण काल भी केवल उसकी पृथ्वी तल से ऊँचाई पर निर्भर करता है और उपग्रह जितना अधिक दूर होता है उतना ही अधिक उसका परिक्रमण काल होता है ।
( ii ) उपग्रह का परिक्रमण काल उसके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है ।
नोट : पृथ्वी के अति निकट चक्कर लगाने वाले उपग्रह का परिक्रमण काल 1 घंटा 24 मिनट होता है ।
👉🏿भू - स्थायी उपग्रह ( Geo - Stationary Satellite ) - ऐसा उपग्रह जो पृथ्वी के अक्ष के लम्बवत् तल में पश्चिम से पूरब की ओर पृथ्वी की परिक्रमा करता है तथा जिसका परिक्रमण काल पृथ्वी के परिक्रमण काल ( 24 घंटे ) के बराबर होता है , भू - स्थायी उपग्रह कहलाता है । यह उपग्रह पृथ्वी तल से लगभग 36,000 किमी० की ऊँचाई पर रहकर पृथ्वी का परिक्रमण करता है । भू - तुल्यकालिक ( Geogynchronous ) कक्षा में संचार उपग्रह स्थापित करने की संभावना सबसे पहले आर्थर सी क्लार्क ने व्यक्त की थी ।
👉🏿पलायन वेग ( Escape Velocity ) - पलायन वेग वह न्यूनतम वेग है जिससे किसी पिंड को पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर फेंके जाने पर वह गुरुत्वीय क्षेत्र को पार कर जाता है , पृथ्वी पर वापस नहीं आता पृथ्वी के लिए पलायन वेग का मान 11.2km/s है अर्थात् पृथ्वी - तल से किसी वस्तु को 11.2 km/s या इससे अधिक वेग से ऊपर किसी भी दिशा में फेंक दिया जाए तो वस्तु फिर पृथ्वी - तल पर वापस नहीं आएगी ।
👉🏿पलायन वेग कक्षीय वेग का √2 गुना होता है । इसलिए यदि किसी उपग्रह का कक्षीय वेग को √2 गुना ( अर्थात् 41 % ) बढ़ा दिया जाय तो वह उपग्रह अपनी कक्षा को छोड़कर पलायन कर जाएगा ।
( दाब Pressure ) →
👉🏿दाब ( Pressure ) - किसी सतह के एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाले बल को दाब कहते हैं
अर्थात्
दाब ( P ) = E/A = पृष्ठ के लम्बत् बल / पृष्ठ का क्षेत्रफल
👉🏿दाब का S.I. मात्रक N/ m2 होता है , जिसे पास्कल ( Pa ) भी कहते हैं । दाब एक अदिश राशि है ।
👉🏿वायुमंडलीय दाब ( Atmospheric Pressure ) - सामान्यतया वायुमंडलीय दाब वह दाब होता है , जो पारे के 76 सेमी० लम्बे कॉलम के द्वारा 0°C पर 45° अक्षांश पर समुद्रतल पर लगाया जाता है । यह एक वर्ग सेमी० अनुप्रस्थ काट वाले पारे के 76cm लम्बे कॉलम के भार के बराबर होता है ।
1 बार = 105 N/m2
👉🏿वायुमंडलीय दाब का SI मात्रक बार ( bar ) होता है ।
👉🏿पृथ्वी की सतह से ऊपर जाने पर वायुमंडलीय दाब कम होता जाता है , जिसके कारण
( i ) पहाड़ों पर खाना बनाने में कठिनाई होती है ,
( ii ) वायुयान में बैठे यात्री के फाउन्टेन पेन से स्याही रिस जाती है ।
👉🏿 वायुमंडलीय दाब को बैरोमीटर से मापा जाता है । इसकी सहायता से मौसम संबंधी पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है ।
👉🏿बैरोमीटर का पाठ्यांक जब एकाएक नीचे गिरता है , तो आँधी आने की संभावना होती है ।
👉🏿 बैरोमीटर का पाठ्यांक जब धीरे - धीरे नीचे गिरता है , तो वर्षा होने की संभावना होती है ।
👉🏿 बैरोमीटर का पाठ्यांक जब धीरे - धीरे ऊपर चढ़ता है , तो दिन साफ रहने की संभावना होती है ।
👉🏿 द्रव में दाब ( Pressure in Liquid ) - द्रव के अणुओं के द्वारा बर्तन की दीवार अथवा तली के प्रति एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाले बल को द्रव का दाब कहते हैं । द्रव के अन्दर किसी बिन्दु पर द्रव के कारण दाब द्रव की सतह से उस बिन्दु की गहराई ( h ) द्रव के घनत्व ( d ) तथा गुरुत्वीय त्वरण ( g ) के गुणनफल के बराबर होता है , अर्थात्
दाब p = hxdxg होता है ।
> द्रवों में दाब के नियम -
( i ) स्थिर द्रव में एक ही क्षैतिज तल में स्थित सभी बिन्दुओं पर दाब समान होता है ।
( ii ) स्थिर द्रव के भीतर किसी बिन्दु पर दाब प्रत्येक दिशा में बराबर होता है ।
( iii ) द्रव के भीतर किसी बिन्दु पर दाब स्वतंत्र तल से बिन्दु की गहराई के अनुक्रमानुपाती होता है ।
( iv ) किसी बिन्दु पर द्रव का दाब द्रव के घनत्व पर निर्भर करता है । घनत्व अधिक होने पर दाब भी अधिक होता हैं ।
👉🏿द्रव - दाब सम्बन्धी पास्कल का नियम -
>पास्कल के नियम का प्रथम कथन - यदि गुरुत्वीय प्रभाव को नगण्य माना जाय तो संतुलन की अवस्था में द्रव के भीतर प्रत्येक बिन्दु पर दबाव समान होता है ।
>पास्कल के नियम का द्वितीय कथन - किसी बर्तन में बंद द्रव के किसी भाग पर आरोपित बल , द्रव द्वारा सभी दिशाओं में समान परिमाण में संचरित कर दिया जाता है
👉🏿 पास्कल के नियम पर आधारित कुछ यंत्र हैं -
हाइड्रोलिक लिफ्ट , हाइड्रोलिक प्रेस , हाइड्रोलिक ब्रेक आदि ।
👉🏿द्रव का दाब उस पात्र के आकार या आकृति पर निर्भर नहीं करता जिसमें द्रव रखा जाता है ।
👉🏿 गलंनाक तथा क्वथनांक पर दाब का प्रभाव ( Effect of Pressure on Melting Point and Boiling Point ) -
गलनांक पर प्रभाव -
( i ) गरम करने पर जिन पदार्थो का आयतन बढ़ता है , दाब बढ़ाने पर उनका गलनांक भी बढ़ जाता है ; जैसे - मोम, घी , आदि ।
( ii ) गरम करने पर जिन पदार्थों का आयतन घट जाता है , दाब बढ़ाने पर उनका गलनांक भी कम हो जाता है , जैसे - बर्फ
क्वथनांक पर प्रभाव - सभी द्रवों का क्वथनांक दाब बढ़ाने पर बढ़ जाता है ।
प्लवन ( Floatation )
👉🏿 उत्प्लावक बल ( Buoyant Force ) - द्रव का वह गुण जिसके कारण वह वस्तुओं पर ऊपर की ओर एक बल लगाता है , उसे उत्क्षेप या उत्प्लावक बल कहते हैं । यह बल वस्तुओं द्वारा हटाए गए द्रव के गुरुत्व - केन्द्र पर कार्य करता है जिसे उत्प्लावन केन्द्र ( centre of buoyancy ) कहते है । इसका अध्ययन सर्वप्रथम आर्कमिडीज ने किया था ।
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