भारतीय राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर National Register of Citizens (NRC)

 

राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के बारे में ये बातें जानते हैं आप एनआरसी वास्तव में वह प्रक्रिया है जिससे देश में गैर-कानूनी तौर पर रह विदेशी लोगों को खोजने की कोशिश की जाती है.



राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर या NRC (एनआरसी) से यह पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं. जिस व्यक्ति के नाम एनआरसी में शामिल नहीं होते हैं, उन्हें अवैध नागरिक माना जाता है.

एनआरसी वास्तव में वह प्रक्रिया है जिससे देश में गैर-कानूनी तौर पर रह विदेशी लोगों को खोजने की कोशिश की जाती है. पूर्वोत्तर का गेटवे कहे जाने वाले असम में आजादी के बाद 1951 में पहली बार नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन बना था.

      राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) को असम में अपडेट किया गया जिसमें लगभग 20 लाख लोगो को भारतीय नागरिकता से वंचित कर दिया गया है. इसके बाद असम के लोगों को अपनी नागरिकता सिद्ध करने के लिए काफी पापड़ बेलने पड़ रहे हैं.

भारत के राष्ट्रीय नागरिक पंजी भारत सरकार द्वारा निर्मित एक पंजी है जिसमें उन भारतीय नागरिकों के नाम हैं जो असम के वास्तविक (वैध ) नागरिक हैं। यह पंजी विशेष रूप से असम के लिए ही निर्मित की गयी थी। किन्तु 20 नवम्बर 2019 को भारत के गृहमन्त्री अमित शाह ने संसद में वक्तव्य दिया था कि इस पंजी का पूरे भारत में विस्तार किया जाएगा। कहा था कि इसे भारत की जनगणना 1951 के बाद 1951 में तैयार किया गया था। इसे जनगणना के दौरान वर्णित सभी व्यक्तियों के विवरणों के आधार पर तैयार किया गया था। जो लोग असम में बांग्लादेश बनने के पहले (25 मार्च 1971 के पहले) आए है, केवल उन्हें ही भारत का नागरिक माना जाएगा।

क्या है NRC का इतिहास?

        साल 1905 में अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन किया था. इसके बाद पूर्वी बंगाल और असम के रूप में एक नया प्रांत बनाया गया था. उस वक्त असम को पूर्वी बंगाल से जोड़ा गया था. जब देश का बंटवारा हुआ तो यह डर भी पैदा हो गया था कि कहीं असम पूर्वी पाकिस्तान के साथ जोड़कर भारत से अलग कर दिया जाए.


       इसके बाद गोपीनाथ बोर्डोली की  अगुवाई में असम विद्रोह शुरू हुआ. इस अभियान के बाद असम अपनी रक्षा करने में सफल रहा, लेकिन सिलहट पूर्वी पाकिस्तान में चला गया. साल 1950 में असम देश का राज्य बना. नागरिकता रजिस्टर साल 1951 की जनगणना के बाद तैयार हुआ था और इसमें तब के असम के निवासियों को शामिल किया गया था.


       अंग्रेजों के शासनकाल में चाय बागान में काम करने और खाली पड़ी जमीन पर खेती करने के लिए बिहार-बंगाल के लोग असम आते थे, इसलिए वहां के स्थानीय लोग बाहरी लोगों से द्वेष रखते थे.

             1950 के दशक में ही बाहरी लोगों का असम आना राजनीतिक मुद्दा बनने लगा था, लेकिन आजादी के बाद में भी तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान और बाद में बांग्लादेश के लोगों का अवैध तरीके से असम आने का सिलसिला जारी रहा. बीच-बीच में इस मसले पर थोड़ी बहुत आवाज उठती रही लेकिन इस मुद्दे ने खास तूल नहीं पकड़ा.

             NRC के हिसाब से 25 मार्च 1971 से पहले असम में रह रहे लोगों को भारतीय नागरिक माना गया है. पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश में जब भाषा विवाद को लेकर आंतरिक संघर्ष शुरू हो गया तब पूर्वी पाकिस्तान में परिस्थितियां इतनी हिंसक हो गई कि वहां रहने वाले हिंदू-मुस्लिम की बड़ी आबादी ने भारत का रुख किया.

       ऐसा कहा जाता है कि 1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना ने दमनकारी कार्रवाई शुरू की तो करीब 10 लाख लोगों ने बांग्लादेश सीमा पारकर असम में शरण ले ली. हालांकि उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था कि शरणार्थी चाहे किसी भी धर्म के हों, उन्हें वापस जाना होगा. एनआरसी में क्या है आगे की राह? अगर राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में आपका नाम नहीं है या आप अनिवार्य दस्तावेज जमा नहीं करा पाए हों तो आपको अपने दावे और आपत्तियों की प्रक्रिया के जरिए नागरिकता पाने का पूरा मौका दिया जाएगा. सरकार ने देश के लोगों को भरोसा दिया है कि दावे और आपत्तियों के निस्तारण के बाद ही अंतिम एनआरसी जारी किया जाएगा और यहां तक कि इसके बाद भी हर व्यक्ति को विदेशी न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाने का मौका मिलेगा. अंतिम एनआरसी 31 दिसंबर से पहले जारी की जा सकती है. 

प्रमुख बिंदु


ü  गृह मंत्रालय ने हलफनामे में कहा कि देश में रह रहे अवैध प्रवासियों की पहचान करना और उसके पश्चात् उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करना केंद्र सरकार को सौंपी गई ज़िम्मेदारी है।


ü  ध्यातव्य है कि देश के कई राज्यों ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) का विरोध करते हुए इनके विरुद्ध प्रस्ताव पारित किये हैं।


v  उल्लेखनीय है कि नागरिकता नियम, 2003 (Citizenship Rules, 2003) के अनुसार, NPR, NRC की दिशा में पहला कदम है।


ü  हालाँकि सरकार द्वारा अभी तक संशोधित NPR फॉर्म सार्वजनिक नहीं किया गया है, किंतु इसमेंमाता-पिता के जन्म की तारीख और निवास स्थानजैसे विवादास्पद प्रश्न शामिल होने की संभावना है।


ü  गृह मंत्रालय ने अपने हलफनामे में तत्कालीन पुनर्वास मंत्रालय द्वारा वर्ष 1964-65 में पूर्वी पाकिस्तान (मौजूदा बांग्लादेश) से बंगाल, असम और त्रिपुरा में आने वाले अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों की एक रिपोर्ट भी प्रस्तुत की है, रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी पाकिस्तान (मौजूदा बांग्लादेश) से लोगों के पलायन का सिलसिला जनवरी 1964 में शुरू हुआ और मार्च, अप्रैल तथा मई के महीनों में यह अपने चरम पर पहुँच गया।


ü  रिपोर्ट के अनुसार, पूर्वी पाकिस्तान से 31 जनवरी, 1965 तक पलायन करने वालों की संख्या 8,94,137 थी। इन व्यक्तियों में से तकरीबन 2,61,899 लोग प्रवास प्रमाण पत्र के साथ भारत आए, जबकि 1,76,602 लोग पाकिस्तानी पासपोर्ट के साथ भारत आए। वहीं लगभग 4,55,636 व्यक्ति बिना किसी यात्रा दस्तावेज़ के साथ भारत आए।

v  हालाँकि कई लोगों का कहना है कि बांग्लादेश से आने वाले सभी लोग पहले से ही भारत के नागरिक थे और वे चुनावों में मतदान करते थे।


ü  गृह मंत्रालय ने वर्ष 1952 और वर्ष 2012 के मध्य गृह मंत्रालय द्वारा जारी किये गए 18 आदेशों का हवाला दिया, जिसमें पाकिस्तान और अफगानिस्तान सेहिंदुओं और सिखोंके लिये अधिमान्य उपचार की वकालत की गई थी, जिन्होंने वैध वीजा के साथ या बिना भारत में प्रवेश किया था।

 

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens-NRC)

ü  NRC वह रजिस्टर है जिसमें सभी भारतीय नागरिकों का विवरण शामिल है। इसे वर्ष 1951 की जनगणना के पश्चात् तैयार किया गया था। रजिस्टर में उस जनगणना के दौरान गणना किये गए सभी व्यक्तियों के विवरण शामिल थे।


ü  भारत में अब तक NRC केवल असम में लागू की गई है, जिसमें केवल उन भारतीयों के नाम को शामिल किया गया है जो कि 25 मार्च, 1971 के पहले से असम में रह रहे हैं। 


ü  NRC उन्हीं राज्यों में लागू होती है जहाँ से अन्य देश के नागरिक भारत में प्रवेश करते हैं। NRC की रिपोर्ट ही बताती है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं।


ü  वर्ष 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बँटवारा हुआ तो कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) चले गए, किंतु उनकी ज़मीन असम में थी और लोगों का दोनों ओर से आना-जाना बँटवारे के बाद भी जारी रहा। जिसके चलते वर्ष 1951 में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) तैयार किया गया था।


v  दरअसल वर्ष 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद भी असम में भारी संख्या में शरणार्थियों का आना जारी रहा जिसके चलते राज्य की आबादी का स्वरूप बदलने लगा। 80 के दशक में अखिल असम छात्र संघ (All Assam Students Union-AASU) ने अवैध तरीके से असम में रहने वाले लोगों की पहचान करने तथा उन्हें वापस भेजने के लिये एक आंदोलन शुरू किया। AASU के 6 वर्ष के संघर्ष के बाद वर्ष 1985 में असम समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे और NRC तैयार करने का निर्णय लिया गया।

 

NRC: असम ही क्यों कोई और राज्य क्यों नहीं?

      हाल ही में असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के अंतिम मसौदे को जारी किया गया। जिसके अनुसार 40 लाख लोग ऐसे हैं जिन्हें भारत की नागरिकता नहीं मिली है। उल्लेखनीय है कि एनआरसी में शामिल होने के लिये 3.29 करोड़ लोगों ने आवेदन किया था जिनमें से 2.89 करोड़ लोगों के नाम ही एनआरसी द्वारा जारी अंतिम सूची में शामिल हैं। इस बात को लेकर सड़क से लेकर संसद तक चर्चाएँ जारी हैं।

 

 एनआरसी की आवश्यकता क्यों पड़ी? 

ü  1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बँटवारा हुआ तो कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनकी ज़मीन असम में थी और लोगों का दोनों ओर से आना-जाना बँटवारे के बाद भी जारी रहा। जिसके चलते वर्ष 1951 में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर तैयार किया गया था।


ü  वर्ष 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद भी असम में भारी संख्या में शरणार्थियों का आना जारी रहा जिसके चलते राज्य की आबादी का स्वरूप बदलने लगा। 


ü  80 के दशक में अखिल असम छात्र संघ (All Assam Students Union-AASU) ने अवैध तरीके से असम में रहने वाले लोगों की पहचान करने तथा उन्हें वापस भेजने के लिये एक आंदोलन शुरू किया। AASU के छह साल के संघर्ष के बाद वर्ष 1985 में असम समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।

 क्या है नागरिकता (संशोधन) विधेयक


ü  नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन करने वाले इस नागरिकता संशोधन विधेयक-2016 में पड़ोसी देशों (बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान) से आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई अल्पसंख्यकों (मुस्लिम शामिल नहीं) को नागरिकता प्रदान करने की बात कही गई है, चाहे उनके पास ज़रूरी दस्तावेज़ हों या नहीं।


ü  प्रस्तावित विधेयक के माध्यम से नागरिकता अधिनियम की अनुसूची 3 में संशोधन का प्रस्ताव भी किया गया है ताकि वे 11 वर्षों के बजाय 6 वर्ष पूरे होने पर नागरिकता के पात्र हो सकें। इससे वेअवैध प्रवासीकी परिभाषा से बाहर हो जाएंगे।


ü  यह संशोधन पड़ोसी देशों से आने वाले मुस्लिम लोगों को हीअवैध प्रवासीमानता है, जबकि लगभग अन्य सभी लोगों को इस परिभाषा के दायरे से बाहर कर देता है।


असम के विवाद की जड़ क्या है


ü  80 के दशक में अखिल असम छात्र संघ (All Assam Students Union-AASU) ने अवैध तरीके से असम में रहने वाले लोगों की पहचान करने तथा उन्हें वापस भेजने के लिये एक आंदोलन शुरू किया। AASU के 6 साल के संघर्ष के बाद वर्ष 1985 में असम समझौते (Assam Accord) पर हस्ताक्षर किये गए थे।


ü  तदनुसार, असम समझौते के तहत 1986 में नागरिकता अधिनियम में संशोधन कर उसमें एक नई धारा (6A) जोड़ी गई।


ü  इस समझौते के तहत 1951 से 1961 के बीच असम आए सभी लोगों को पूर्ण नागरिकता और वोट का अधिकार देने का फैसला हुआ।


ü  1961 से 1971 के बीच आने वाले लोगों को नागरिकता तथा अन्य अधिकार दिये गए, लेकिन उन्हें मतदान का अधिकार नहीं दिया गया।


ü  इस समझौते का पैरा 5.8 कहता है: 25 मार्च, 1971 या उसके बाद असम में आने वाले विदेशियों को कानून के अनुसार निष्कासित किया जाएगा।


ü  असम विवाद पुनः चर्चा का विषय बन गया है, क्योंकि असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को अपडेट किया जा रहा है ताकि 1971 के बाद बांग्लादेश से आए सभी लोगों को वापस भेजा जा सके।

 

असम समझौता

 15 अगस्त, 1985 को AASU और दूसरे संगठनों तथा भारत सरकार के बीच एक समझौता हुआ जिसे असम समझौते के नाम से जाना जाता है।

ü  इस समझौते के अनुसार, 25 मार्च, 1971 के बाद असम में प्रवेश करने वाले हिंदू- मुसलमानों की पहचान की जानी थी तथा उन्हें राज्य से बाहर किया जाना था।


ü  इस समझौते के तहत 1961 से 1971 के बीच असम आने वाले लोगों को नागरिकता तथा अन्य अधिकार दिये गए, लेकिन उन्हें मतदान का अधिकार नहीं दिया गया। इसके अंतर्गत असम के आर्थिक विकास के लिये विशेष पैकेज भी दिया गया।


ü  साथ ही यह फैसला भी किया गया कि असमिया भाषी लोगों के सांस्कृतिक, सामाजिक और भाषायी पहचान की सुरक्षा के लिये विशेष कानून और प्रशासनिक उपाय किये जाएंगे। असम समझौते के आधार पर मतदाता सूची में संशोधन किया गया।

 

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को अपडेट करने का फैसला 

ü  वर्ष 2005 में सरकार ने 1951 के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को अपडेट करने का फैसला किया और तय किया कि असम समझौते के तहत 25 मार्च, 1971 से पहले असम में अवैध तरीके से प्रवेश करने वाले लोगों का नाम भी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीज़नशिप में जोड़ा जाएगा। 


ü  लेकिन यह विवाद सुलझने की बजाय और अधिक बढ़ता गया तथा मामला कोर्ट पहुँच  गया। इसके बाद साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर असम में नागरिकों के सत्यापन का कार्य शुरू किया गया। इसके लिये पूरे राज्य में कई NRC केंद्र खोले गए। 


ü  नागरिकों के सत्यापन के लिये यह अनिवार्य किया गया कि केवल उन्हें ही भारतीय नागरिक माना जाएगा जिनके पूर्वजों के नाम 1951 के एनआरसी में या 24 मार्च 1971 तक के किसी वोटर लिस्ट में मौजूद हों। 

 

नागरिकता की समाप्ति से उत्पन्न होने वाली समस्याएँ 

ü    एनआरसी की सूची जारी होने के बाद लोग स्टेटलेस हो गए हैं, अर्थात् वे किसी भी देश के नागरिक नहीं रहे। ऐसी स्थिति में राज्य में हिंसा का खतरा बना हुआ है। 


ü    जो लोग दशकों से असम में रह रहे थे, भारतीय नागरिकता समाप्त होने के बाद वे तो पहले की तरह वोट दे सकेंगे, इन्हें किसी कल्याणकारी योजना का लाभ मिलेगा और अपनी ही संपत्ति पर भी इनका कोई अधिकार नहीं रहेगा।


ü     जिन लोगों के पास स्वयं की संपत्ति है वे दूसरे लोगों का निशाना बनेंगे।

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