जैन धर्म
तीर्थंकर का अर्थ संसार सागर से पार कराने के लिए औरों को मार्ग बताने वाला होता है। जैन धर्म के संस्थापक तथा पहले तीर्थंकर ऋषभदेव थे। इन्हें आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता है। ऋग्वेद में ऋषभदेव/आदिनाथ की चर्चा हुई है।
जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे। ये काशी के इक्ष्वाकु वंशीय राजा अश्वसेन के पुत्र थे। पार्श्वनाथ ने चार शिक्षाएं दी थी – (1) सत्य बोलो, (2) चोरी न करो, (3) हिंसा न करो (4) सम्पति न रखो।
भगवान महावीर स्वामी
जैनियों के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी हुए। जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक महावीर स्वामी को ही माना जाता है।
महावीर स्वामी की पत्नी का नाम यशोदा तथा
पुत्री का नाम अनोज्जा प्रियदर्शनी था। इनके दामाद का नाम जामिल था।
महावीर स्वामी ने 30 वर्ष तक गृहस्थ जीवन जीया था। उस समय तक उनके पिता का देहांत हो चुका होता है। 30 वर्ष के बाद वे अपने बड़े भाई नंदिवर्धन से आज्ञा लेकर घर-गृहस्थी को त्याग दिया।
12 वर्ष तक लगातार कठोर तपस्या एवं साधना के बाद 42 वर्ष की अवस्था में महावीर
को जृम्भिका ग्राम के नजदीक ऋजुपालिका नदी के
किनारे एक साल के वृक्ष के नीचे कैवल्य (ज्ञान) प्राप्त
हुआ। ज्ञान प्राप्ति के बाद महावीर जिन (विजेता), अर्हत (पूज्य)
और निर्गन्ध (बंधनहीन) कहलाए।
ज्ञान-प्राप्ति के बाद भगवान महावीर ने सर्वप्रथम उपदेश
राजगृह में
दिया
।महावीर स्वामी ने अपना धर्म केंद्र यानी उनकी अपनी जो विचारधारा थी, उसका प्रचार-प्रसार का केंद्र वैशाली को बनाया।
महावीर के प्रथम अनुयायी उनके दामाद जामिल बने। तथा प्रथम महिला अनुयायी चम्पा बनी थी।
महावीर के अनुयायियों को मूलतः निग्रंथ कहा जाता था।
महावीर स्वामी ने अपने उपदेश प्राकृत (अर्धमागधी) भाषा में दिए
थे।
महावीर स्वामी ने त्रिरत्न दिए – (1) सम्यक ज्ञान, (2) सम्यक दर्शन और (3) सम्यक आचरण। उन्होंने बोला कि सम्यक ज्ञान प्राप्त करो यानी सही ज्ञान प्राप्त करो, उसके बाद उन्होंने बोला कि सम्यक दर्शन प्राप्त करो यानी जो भी चीजों को देखो अच्छी चीजों को देखो फिर उन्होंने बोला कि सम्यक आचरण करो अर्थात अपना आचरण इस तरह सुधारो की दूसरों को कष्ट न पहुंचे, दूसरों का दिल न दुखे।
जैन धर्म के पाँच महाव्रत
1. अहिंसा : न हिंसा करना और न ही उसे प्रोत्साहित करना
2. सत्य वचन : क्रोध, भय, लोभ पर विजय की प्राप्ति से ‘सत्य’ नामक वृत पूरा होता है।
3. अस्तेय : चोरी ना करना (बिना आज्ञा के कोई वस्तु नहीं लेना)
4. अपरिग्रह : किसी भी वस्तु में आसक्ति (लगाव) न रखना।
5. ब्रह्मचर्य : सभी प्रकार की वासनाओं का त्याग करना।
● जैन धर्म में ईश्वर की
मान्यता नहीं है यानी इनके अनुसार ईश्वर नहीं है। वे आत्मा में विश्वास करते हैं।
● महावीर स्वामी कर्मवाद
और पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं। कर्मवाद यानी आप जैसा कर्म (काम) करेंगे, वैसा
ही फल मिलेगा।
● जैनधर्म ने सप्तभंगी
ज्ञान के अन्य नाम स्यादवाद और अनेकांतवाद है।
●72 वर्ष की आयु
में भगवान महावीर की मृत्यु (निर्वाण) 468 ई०पू० में बिहार राज्य
के पावापुरी में हो गई।
● जैन धर्म का
आध्यात्मिक विचार सांख्य दर्शन (प्रतिपादक- कपिल मुनि) से लिया गया है।
● महावीर स्वामी ने पावा
में अपने ग्यारह प्रमुख अनुयायियों के साथ एक संघ की स्थापना की ये ग्यारह
शिष्य गणधर कहे जाते थे। इन ग्यारह गणधरों में केवल एक
गणधर सुधर्मन ही महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद भी जीवित रहे
थे।
● जैन धर्म मानने वाले
प्रमुख राजा थे- उदायिन, चन्द्रगुप्त मौर्य, कलिंग नरेश खारवेल, चंदेल शासक,
राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष इत्यादि।
● चौथी शताब्दी ई०पू० में मगध में 12 वर्षों तक भीषण अकाल पड़ जाता है जिससे भद्रबाहु अपने अनुयायियों को लेकर कर्नाटक चले गए थे। और स्थूलभद्र जो थे वो मगध में ही रह गए थे। कुछ समय बाद अकाल खत्म हो जाने पर भद्रबाहु वापस मगध चले आये जब वे यहां आए तो उन्होंने देखा कि जो मगध में रहने वाले जैनी लोग हैं उन्होंने अपनी पूरी विचारधारा ही बदल दिया है, कपड़े पहनने लगे हैं, अलग तरह से रहन-सहन शुरू कर दिए हैं तो इन दोनों में भद्रबाहु और स्थूलभद्र में मतभेद हो गया। जब इन दोनों में मतभेद हो गया तो एक संगीति बुलायी और उस संगीति में जैन सम्प्रदाय दो अलग-अलग उपसम्प्रदायों में बंट गया।
श्वेताम्बर एवं दिगम्बर
लगभग 300 ई० पू० में मगध में 12 वर्षों का भीषण अकाल पड़ा, जिसके कारण भद्रबाहु अपने शिष्यों सहित कर्नाटक चले गए। किन्तु कुछ अनुयायी स्थूलभद्र के साथ मगध में ही रुक गए।
भद्रबाहु के वापस लौटने पर मगध के साधुओं से उनका गहरा मतभेद हो गया जिसके कारण जैन मत श्वेताम्बर एवं दिगम्बर नामक दो सम्प्रदायों में बँट गया।
श्वेताम्बर :
स्थूलभद्र के शिष्य श्वेताम्बर (श्वेत वस्त्र धारण करने वाले) कहलाये।
दिगम्बर :
भद्रबाहु के शिष्य दिगम्बर (नग्न रहने वाले) कहलाए।
● जैन धर्म में दो महत्वपूर्ण संगीतियां हुई थी। प्रथम जैन संगीति का आयोजन 322 ई०पू० में पाटलिपुत्र (बिहार) में चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में स्थूलभद्र की अध्यक्षता में हुई थी। इसी संगीति में जैन धर्म दो भागों में बंट गया था। द्वितीय जैन संगीति का आयोजन 512 ई० में वल्लभी (गुजरात) में कुमारगुप्त-II के शासनकाल में देवाधि ऋषि की अध्यक्षता में हुई थी। इस संगीति में आगम ग्रंथ और क्षमाश्रवन ग्रंथों को लिखा गया था।
● भद्रबाहु ने जैन धर्म के सभी तीर्थंकरों की जीवनियों का संकलन कल्पसूत्र नामक पुस्तक में किया था। यह संस्कृत में लिखा गया है।
● थेरापंथी, तेरापंथी, बिसपंथी ये सभी जैन धर्म के उपसम्प्रदाय हैं।
दो जैन तीर्थंकरों ऋषवदेव एवं अरिष्टनेमि के नामों का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। अरिष्टनेमि को भगवान कृष्ण का निकट संबंधी माना जाता है।
4 जैन तीर्थंकर एवं उनके प्रतीक चिह्न
जैन तीर्थंकर के नाम एवं क्रम | प्रतीक चिह्न | जैन तीर्थंकर के नाम एवं क्रम | प्रतीक चिह्न |
1. ऋषभदेव (आदिनाथ) | साँड | 13. विमलनाथ | शूकर |
2. अजितनाथ | हाथी | 14. अनन्तनाथ | सेही |
3. सम्भवनाथ | घोड़ा | 15. धर्मनाथ | बज्र दंड |
4. अभिनन्दननाथ | बंदर | 16. शान्तिनाथ | हिरण |
5. सुमतिनाथ | चकवा | 17. कुन्थुनाथ | बकरा |
6. पद्मप्रभ | कमल | 18. अरहनाथ | मछली |
7. सुपार्श्वनाथ | स्वास्तिक | 19. मल्लिनाथ | कलश |
8. चन्द्रप्रभ | चंद्रमा | 20. मुनिसुब्रनाथ | कछुआ |
9. पुष्पदन्त | मगर | 21. नमिनाथ | नील कमल |
10. शीतलनाथ | कल्प-वृक्ष | 22. नेमिनाथ | शंख |
11. श्रेयांसनाथ | गैंडा | 23. पार्श्वनाथ | सर्प |
12. वासुपूज्य | भैंसा | 24. वर्धमान महावीर | सिंह |
प्रथम संगीति-
समय – प्रथम जैन संगीति का आयोजन 300 ई.पू.में हुआ।शासनकाल – यह सभा चंद्रगुप्त मौर्य के काल में हुई थी।
स्थान – पाटलिपुत्र
अध्यक्ष – स्थूलभद्र
कार्य– इसमें जैन धर्म के प्रधान भाग 12 अंगों का संपादन हुआ। प्रथम जैन सभा में जैन धर्म दिगंबर एवं श्वेतांबर दो भागों में बँट गया।
द्वितीय संगीति –
समय– द्वितीय जैन संगीति का आयोजन 512 ई.में हुआ।स्थान-वल्लभी(गुजरात)
अध्यक्ष– देवर्षि क्षमाश्रमण
कार्य-धर्म ग्रंथों को अंतिम रूप से संकलित कर लिपिबद्ध किया गया।
जैनधर्म से संबंधित प्रमुख तथ्यः-
- जैनधर्म में ईश्वर की मान्यता नहीं है।
- जैनधर्म में आत्मा की मान्यता है।
- महावीर पुनर्जन्म एवं कर्मवाद में विश्वास करते थे।
- जैनधर्म के सप्तभंगी ज्ञान के अन्य नाम स्यादवाद और अनेकांतवाद हैं।
- जैनधर्म ने अपने आध्यात्मिक विचारों को सांख्य दर्शन से ग्रहण किया।
- जैनधर्म (Jain
dharma) मानने वाले कुछ राजा थे – उदयिन, चंद्रगुप्त मौर्य, वंदराजा, कलिंग नरेश खारवेल, राष्ट्रकुट राजा अमोघवर्ष, चंदेल शासक।
- खजुराहो में जैन मंदिरों का निर्माण चंदेल शासकों द्वारा किया गया।
- मैसूर के गंग वंश के मंत्री, चामुण्ड के प्रोत्साहन से कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में 10वीं शताब्दी के मध्य भाग में विशाल बाहुबली की मूर्ति (गोमतेश्वर की मूर्ति) का निर्माण किया गया।
- मौर्योत्तर युग में मथुरा जैन धर्म का प्रसिद्ध केंद्र था।
- मथुरा कला का संबंध जैनधर्म से है।
- जैन तीर्थंकरों की जीवनी भद्रबाहु द्वारा रचित कल्पसूत्र में है।
- उड़ीसा का बाघ गुफा, खण्डगिरि, हाथीगुम्फा मंदिर और आबू / राजस्थान का दिलवाड़ा मंदिर तथा रणकपुर (जोधपुर के निकट) का चौमुख मंदिर जैन शिल्पकला के उदाहरण हैं।
- जैन परम्परा के अनुसार जैन धर्म में कुल कितने तीर्थंकर हुए – 24
- महावीर का जन्म किस क्षत्रिय गोत्र में हुआ था – ज्ञातृक
- महावीर की माता कौन थी – त्रिशला
- महावीर की मृत्यु कहाँ हुई थी – पावापुरी
- जैनियों के पहले तीर्थंकर कौन थे – ऋषभदेव
- महावीर का मूल नाम क्या था – वर्धमान
- दिलवाड़ा के जैन मंदिरों का निर्माण किसने करवाया था – चौलुक्यों / सोलंकियों ने
- जैन परंपरा के अनुसार महावीर कौन-से तीर्थंकर थे – चौबीसवें
- जैन धर्म का आधारभूत बिन्दु है – अहिंसा
- ‘जियो और जीने दो’ किसने कहा – महावीर स्वामी
- तीर्थंकरों में क्रम में अंतिम कौन थे – महावीर
- जैन धर्म में ‘पूर्ण ज्ञान’ के लिए क्या शब्द है – कैवल्य
- महावीर स्वामी का जन्म कहाँ हुआ था – कुण्डग्राम
- आजीवक सम्प्रदाय के संस्थापक कौन थे – मक्खलि गोसाल
- भगवान् महावीर का प्रथम शिष्य कौन था – जामिल(दामाद)
- त्रिरत्न सिद्धांत – सम्यक धारणा, सम्यक चरित्र, सम्यक ज्ञान – किस धर्म की महिमा है – जैन धर्म
- स्यादवाद सिद्धांत किस धर्म का है – जैन धर्म
- जैन समुदाय में प्रथम विभाजन के श्वेताम्बर संप्रदाय के संस्थापक कौन थे – स्थूलभद्र
- प्रथम जैन महासभा का आयोजन कहाँ हुआ था – वल्लभी
- जैन साहित्य का संकलन किस भाषा व लिपि में है – प्राकृत व अर्धमागधी
- जैन धर्म श्वेताम्बर एवं दिगम्बर संप्रदायों में कब विभाजित हुआ – चंद्रगुप्त मौर्य के समय में
- कौन-सा धर्म पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं – हिन्दू, बौद्ध तथा जैन धर्म
- ऋग्वेद में किन दो जैन तीर्थंकरों का उल्लेख मिलता है – ऋषभदेव और अरिष्टनेमि
- महावीर के नाम ‘केवलीन’ का क्या अर्थ होता है – पूर्ण ज्ञानी
- महावीर के नाम ‘जिन’ का क्या मतलब होता है – इन्द्रियों को जीतने वाला
- महावीर ने जैन संघ की स्थापना कहाँ की – पावा
- महावीर की मृत्यु के बाद जैन संघ का अगला अध्यक्ष कौन हुआ – सुधर्मा
- ‘अणुव्रत’ शब्द किस धर्म से जुड़ा है – जैन धर्म
- जैन ग्रंथ ‘कल्प सूत्र’ के रचियता कौन थे – भद्रबाहु
- ‘परिशिष्ट पर्व’, जो कि जैन धर्म से संबंधित रचना है, के रचियता है – हेमचंद्र
- किस जैन रचना में सोलह महाजनपदों का उल्लेख मिलता है – भगवती सूत्र
- जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ द्वारा प्रतिपादित चार महाव्रतों में महावीर स्वामी ने पाँचवे महाव्रत के रूप में क्या जोड़ा – ब्रह्मचर्य
- श्रवणबेलगोला / कर्नाटक का गोमतेश्वर या बाहुबली की प्रतिमा किस धर्म के शिल्पकला का उदाहरण है – जैन
- जैन धर्म को अंतिम राजकीय संरक्षण किस वंश के शासकों ने दिया – गुजरात के चौलुक्य
- अनेकांतवाद किसका क्रोड़ (केंद्रीय) सिद्धांत एवं दर्शन है – जैन मत
- महान धार्मिक घटना ‘महामस्तकाभिषेक’ किससे संबंधित है और किसे लिए की जाती है – बाहुबली
- महावीर स्वामी के प्रतीक चिह्न क्या है – सिंह
- महावीर स्वामी के बड़े भाई का क्या नाम था – नंदिवर्धन
- महावीर के पिता का नाम क्या था – सिद्धार्थ
- जैनधर्म ने आध्यात्मिक विचारों को किस दर्शन से ग्रहण किया – सांख्य दर्शन
- मथुरा कला का संबंध किस धर्म से है – जैन
- मौर्योत्तर युग में जैन धर्म का प्रसिद्ध केंद्र क्या था – मथुरा
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