वैदिक सभ्यता

 

वैदिककाल का दो भागों में विभाजन किया गया है :

1.   ऋग्वैदिक काल [Early Vedic Period](1500-1000 ई० पू०)

2.   उत्तर वैदिककाल [Later Vedic Period](1000-600 ई० पू०)


 वैदिक सभ्यता के निर्माता

§  वैदिक सभ्यता के संस्थापक आर्य थे। आर्यों का आरंभिक जीवन मुख्यतः पशुचारण था। वैदिक सभ्यता मूलतः ग्रामीण थी।

§  वैदिक सभ्यता की जानकारी के स्रोत वेद हैं। इसलिए इसे वैदिक सभ्यता के नाम से जाना जाता है।

§  आर्यों ने ऋग्वेद की रचना की, जिसे मानव जाती का प्रथम ग्रन्थ माना जाता है। ऋग्वेद द्वारा जिस काल का विवरण प्राप्त होता है उसे ऋग्वैदिक काल कहा जाता है।

§  ऋग्वेद भारत-यूरोपीय भाषाओँ का सबसे पुराना निदर्श है। इसमें अग्नि, इंद्र, मित्र, वरुण, आदि देवताओं की स्तुतियाँ संगृहित हैं।

§  वैदिक सभ्यता के संस्थापक आर्यों का भारत आगमन लगभग 1500 ई.पू. के आस-पास हुआ। हालाँकि उनके आगमन का कोई ठोस और स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है।

§  आर्यों के मूल निवास के सन्दर्भ में विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग विचार व्यक्त किये हैं।

§  ‘अस्तों मा सद्गमय’ वाक्य ऋग्वेद से लिया गया है।

विद्वान

आर्यों का मूल निवास स्थान

प्रो. मैक्समूलर

मध्य एशिया

पं. गंगानाथ झा

ब्रह्मर्षि देश

गार्डन चाइल्ड

दक्षिणी रूस

बाल गंगाधर तिलक

उत्तरी ध्रुव

गाइल्स

हंगर एवं डेन्यूब नदी की घाटी

दयानंद सरस्वती

तिब्बत

डॉ. अविनाश चन्द्र

सप्त सैन्धव प्रदेश

प्रो. पेंक

जर्मनी के मैदानी भाग

§   अधिकांश विद्वान् प्रो. मैक्समूलर के विचारों से सहमत हैं कि आर्य मूल रूप से मध्य एशिया के निवासी थे।

 भौगोलिक विस्तार

     §  ऋग्वेद में नदियों का उल्लेख मिलता है। नदियों से आर्यों के भौगोलिक विस्तार का पता चलता है।

§  भारत में आर्य सर्वप्रथम सप्तसैंधव प्रदेश में आकर बसे इस प्रदेश में प्रवाहित होने वाली सैट नदियों का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।

§  ऋग्वैदिक काल की सबसे महत्वपूर्ण नदी सिन्धु का वर्णन कई बार आया है। ऋग्वेद में गंगा का एक बार और यमुना का तीन बार उल्लेख मिलता है।

§  ऋग्वेद की सबसे पवित्र नदी सरस्वती थी। इसे नदीतमा (नदियों की प्रमुख) कहा गया है।

§  सप्तसैंधव प्रदेश के बाद आर्यों ने कुरुक्षेत्र के निकट के प्रदेशों पर भी कब्ज़ा कर लिया, उस क्षेत्र को ‘ब्रह्मवर्त’ कहा जाने लगा। यह क्षेत्र सरस्वती व दृशद्वती नदियों के बीच पड़ता है।

ऋग्वैदिक नदियाँ

प्राचीन नाम

आधुनिक नाम

शुतुद्रि

सतलज

अस्किनी

चिनाब

विपाशा

व्यास

कुभा

काबुल

सदानीरा

गंडक

सुवस्तु

स्वात

पुरुष्णी

रावी

वितस्ता

झेलम

गोमती

गोमल

दृशद्वती

घग्घर

कृमु

कुर्रम

§   गंगा एवं यमुना के दोआब क्षेत्र एवं उसके सीमावर्ती क्षेत्रो पर भी आर्यों ने कब्ज़ा कर लिया, जिसे ‘ब्रह्मर्षि देश’ कहा गया।

§  आर्यों ने हिमालय और विन्ध्याचल पर्वतों के बीच के क्षेत्र पर कब्ज़ा करके उस क्षेत्र का नाम ‘मध्य देश’ रखा।

§  कालांतर में आर्यों ने सम्पूर्ण उत्तर भारत में अपने विस्तार कर लिया, जिसे ‘आर्यावर्त’ कहा जाता था।

§  ऋग्वेद में उल्लिखित सभी नदियों में सरस्वती सबसे महत्वपूर्ण तथा पवित्र मानी जाती थी।

§  ऋग्वेद में गंगा का एक बार और यमुना का उल्लेख तीन बार हुआ है।

ऋग्वेद में 25 नदियों का उल्लेख है, जिसमें सबसे ज्यादा बार वर्णन सिंधु नदी का है।

गोत्र नामक संस्था का जन्म उत्तरवैदिक काल में हुआ।

प्रसिद्ध वाक्य सत्यमेव जयते मुण्डकोपनिषद से लिया गया है।

 गायत्री मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद के तीसरे मण्डल में है जो सूर्य देवता सावित्री को समर्पित है। इस मंत्र के रचयिता महर्षि विश्वामित्र हैं।

 

राजनीतिक व्यवस्था


§  भौगोलिक विस्तार के दौरान आर्यों को भारत के मूल निवासियों, जिन्हें अनार्य कहा गया है से संघर्ष करना पड़ा।

§  दशराज्ञ युद्ध में प्रत्येक पक्ष में आर्य एवं अनार्य थे। इसका उल्लेख ऋग्वेद के 10वें मंडल में मिलता है।

§  यह युद्ध रावी (पुरुष्णी) नदी के किनारे लड़ा गया, जिसमे भारत के प्रमुख काबिले के राजा सुदास ने अपने प्रतिद्वंदियों को पराजित कर भारत कुल की श्रेष्ठता स्थापित की।

§  ऋग्वेद में आर्यों के पांच कबीलों का उल्लेख मिलता है- पुरु, युद्ध, तुर्वसु, अजु, प्रह्यु। इन्हें ‘पंचजन’ कहा जाता था।

§  ऋग्वैदिक कालीन राजनीतिक व्यवस्था, कबीलाई प्रकार की थी। ऋग्वैदिक लोग जनों या कबीलों में विभाजित थे। प्रत्येक कबीले का एक राजा होता था, जिसे ‘गोप’ कहा जाता था।

§  ऋग्वेद में राजा को कबीले का संरक्षक (गोप्ता जनस्य) तथा पुरन भेत्ता (नगरों पर विजय प्राप्त करने वाला) कहा गया है।

§  राजा के कुछ सहयोगी दैनिक प्रशासन में उसकी सहायता कटे थे। ऋग्वेद में सेनापति, पुरोहित, ग्रामजी, पुरुष, स्पर्श, दूत आदि शासकीय पदाधिकारियों का उल्लेख मिलता है।

§  शासकीय पदाधिकारी राजा के प्रति उत्तरदायी थे। इनकी नियुक्ति तथा निलंबन का अधिकार राजा के हाथों में था।

§  ऋग्वेद में सभा, समिति, विदथ जैसी अनेक परिषदों का उल्लेख मिलता है।

§  ऋग्वैदिक काल में महिलाएं भी राजनीती में भाग लेती थीं। सभा एवं विदथ परिषदों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी थी।

§  सभा श्रेष्ठ एवं अभिजात्य लोगों की संस्था थी। समिति केन्द्रीय राजनितिक संस्था थी। समिति राजा की नियुक्ति, पदच्युत करने व उस पर नियंत्रण रखती थी। संभवतः यह समस्त प्रजा की संस्था थी।

§  ऋग्वेद में तत्कालीन न्याय वयवस्था के विषय में बहुत कम जानकारी मिलती है। ऐसा प्रतीत होता है की राजा तथा पुरोहित न्याय व्यवस्था के प्रमुख पदाधिकारी थे।

§  वैदिक कालीन न्यायधीशों को ‘प्रश्नविनाक’ कहा जाता था।

§  न्याय वयवस्था वर्ग पर आधारित थी। हत्या के लिए 100 ग्रंथों का दान अनिवार्य था।

§  राजा भूमि का स्वामी नहीं होता था, जबकि भूमि का स्वामित्व जनता में निहित था।

§  ग्राम, विश, और जन शासन की इकाई थे। ग्राम संभवतः कई परिवारों का समूह होता था।

§  विश कई गावों का समूह था। अनेक विशों का समूह ‘जन’ होता था।

§  विदथ आर्यों की प्राचीन संस्था थी।

वैदिक कालीन शासन के पदाधिकारी

पुरोहित

राजा का मुख्य परामर्शदाता

कुलपति

परिवार का प्रधान

व्राजपति

चारागाह का अधिकारी

स्पर्श

गुप्तचर

पुरुष

दुर्ग का अधिकारी

सेनानी

सेनापति

विश्वपति

विश का प्रधान

ग्रामणी

ग्राम का प्रधान

दूत

सुचना प्रेषित करना

उग्र

पुलिस

पुरप

दुर्गपति

स्पश

जनता के गतिविधियों को देखने वाला गुप्तचर

राजन

जन का शासक

रत्नी

सूत, रथकार तथा कम्मादी नामक अधिकारी

·युद्ध में कबीले का नेतृत्व राजा करता था।

·युद्ध के लिए गविष्टि शब्द का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है – गायों की खोज।

·दसराज्ञ युद्ध का उल्लेख ऋग्वेद के 7वें मंडल में है।

·दसराज्ञ युद्ध परुषणी (रावी) नदी के तट पर सुदास एवं दस जनों के बीच लड़ा गया, जिसमें सुदास विजयी हुआ।


सामाजिक व्यवस्था


§  ऋग्वैदिक समाज पितृसत्तात्मक था। पिता सम्पूर्ण परिवार, भूमि संपत्ति का अधिकारी होता था।

§  पितृ-सत्तात्मक समाज के होते हुए इस काल में महिलाओं का यथोचित सम्मान प्राप्त था। महिलाएं भी शिक्षित होती थीं।

§  प्रारंभ में ऋग्वैदिक समाज दो वर्गों आर्यों एवं अनार्यों में विभाजित था। किन्तु कालांतर में जैसा की हम ऋग्वेद के दशक मंडल के पुरुष सूक्त में पाए जाते हैं की समाज चार वर्गों- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र; मे विभाजित हो गया। यह विभाजन व्यवसाय पर आधारित था।

§  संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलन में थी।

§  विवाह व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन का प्रमुख अंग था। अंतरजातीय विवाह होता था, लेकिन बाल विवाह का निषेध था। विधवा विवाह की प्रथा प्रचलन में थी।

§  पुत्र प्राप्ति के लिए नियोग की प्रथा स्वीकार की गयी थी। जीवन भर अविवाहित रहने वाली लड़कियों को ‘अमाजू कहा जाता था।

§  सती प्रथा और पर्दा प्रथा का प्रचलन नहीं था।

§  ऋग्वैदिक काल में दास प्रथा का प्रचलन था, परन्तु यह प्राचीन यूनान और रोम की भांति नहीं थी।

§  आर्य मांसाहारी और शाकाहारी दोनों प्रकार का भोजन करते थे।

§  आर्यों के वस्त्र सूत, ऊन तथा मृग-चर्म के बने होते थे।

§  ऋग्वैदिक काल के लोगों में नशीले पेय पदार्थों में सोम और सुरा प्रचलित थे।

§   मृतकों को प्रायः अग्नि में जलाया जाता था, लेकिन कभी-कभी दफनाया भी जाता था।

  • इस 10वें मंडल में कहा गया है कि ब्राह्मण परम पुरुष के मुख से, क्षत्रिय उनकी भुजाओं से, वैश्य उनकी जाँघों से एवं शुद्र उनके पैरों से उत्पन्न हुए हैं।
  • आर्यों का समाज पितृप्रधान था।
  • समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार या कुल थी, जिसका मुखिया पिता होता था, जिसे कुलप कहा जाता था।
  • स्त्रियाँ इस काल में अपने पति के साथ यज्ञ-कार्य में भाग लेती थीं।
  • बाल-विवाह एवं पर्दा-प्रथा का प्रचलन नहीं था।
  • विधवा अपने मृतक पति के छोटे भाई (देवर) से विवाह कर सकती थी।
  • स्त्रियाँ शिक्षा ग्रहण करती थीं।
  • जीवन भर अविवाहित रहनेवाली महिलायों को अमाजू कहा जाता था।
  • आर्य मुख्यतः तीन प्रकार के वस्त्रों का उपयोग करते थे – वास, अधिवास और उष्णीष।
  • आर्यों का मुख्य पेय-पदार्थ सोमरस था। यह वनस्पति से बनाया जाता था।
  • आर्यों के मनोरंजन के मुख्य साधन थे – संगीत, रथदौड़, घुड़दौड़ एवं द्यूतक्रीड़ा।

  

ऋग्वैदिक धर्म


§  ऋग्वैदिक धर्म की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसका व्यवसायिक एवं उपयोगितावादी स्वरुप था।

§  ऋग्वैदिक लोग एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे।

§  आर्यों का धर्म बहुदेववादी था। वे प्राकृतिक भक्तियों-वायु, जल, वर्षा, बादल, अग्नि और सूर्य आदि की उपासना किया करते थे।

§  ऋग्वैदिक लोग अपनी भौतिक आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए यज्ञ और अनुष्ठान के माध्यम से प्रकृति का आह्वान करते थे।

§  ऋग्वेद में देवताओं की संख्या 33 करोड़ बताई गयी है। आर्यों के प्रमुख देवताओं में इंद्र, अग्नि, रूद्र, मरुत, सोम और सूर्य शामिल थे।

§  ऋग्वैदिक काल का सबसे महत्वपूर्ण देवता इंद्र है। इसे युद्ध और वर्षा दोनों का देवता माना गया है। ऋग्वेद में इंद्र का 250 सूक्तों में वर्णन मिलता है।

§  इंद्र के बाद दूसरा स्थान अग्नि का था। अग्नि का कार्य मनुष्य एवं देवता के बीच मध्यस्थ स्थापित करने का था। 200 सूक्तों में अग्नि का उल्लेख मिलता है।

§  ऋग्वैदिक काल में मूर्तिपूजा का उल्लेख नहीं मिलता है।

§  देवताओं में तीसरा स्थान वरुण का था। इसे जाल का देवता माना जाता है। शिव को त्रयम्बक कहा गया है।

 ऋग्वैदिक देवता

देवता

संबंध

इन्द्र

युद्ध का नेता एवं वर्षा का देवता।

अग्नि

देवता एवं मनुष्य के बीच मध्यस्थ।

वरुण

पृथ्वी एवं सूर्य के निर्माता, समुद्र का देवता, विश्व के नियामक एवं शासक, सत्य का प्रतीक, ऋतु-परिवर्तन एवं दिन-रात का कर्ता।

द्यौ

आकाश का देवता (सबसे प्राचीन)

सोम

वनस्पति देवता।

उषा

प्रगति एवं उत्थान-देवता।

मरुत

आँधी-तूफान का देवता।

पूषन

पशुओं का देवता।

विष्णु

विश्व के संरक्षक एवं पालनकर्ता।


§ 
प्रसिद्द गायत्री मन्त्र, जो सूर्य से सम्बंधित देवी सावित्री को संबोधित है, सर्वप्रथम ऋग्वेद में मिलता है।

 

ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्था


1. कृषि एवं पशुपालन


§  ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्था का आधार कृषि और पशुपालन था।

§  गेंहू की खेती की जाती थी।

§  इस काल के लोगों की मुख्य संपत्ति गोधन या गाय थी।

§  ऋग्वेद में हल के लिए लांगल अथवा ‘सीर’ शब्द का प्रयोग मिलता है।

§  सिंचाई का कार्य नहरों से लिए जाता था। ऋग्वेद में नाहर शब्द के लिए ‘कुल्या’ शब्द का प्रयोग मिलता है।

§  उपजाऊ भूमि को ‘उर्वरा’ कहा जाता था।

§  ऋग्वेद के चौथे मंडल में सम्पूर्ण मन्त्र कृषि कार्यों से सम्बद्ध है।

§  ऋग्वेद के ‘गव्य’ एवं ‘गव्यपति’ शब्द चारागाह के लिए प्रयुक्त हैं।

§  भूमि निजी संपत्ति नहीं होती थी उस पर सामूहिक अधिकार था।

§  घोडा आर्यों का अति उपयोगी पशु था।

§  आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। वे गाय, बैल, भैंस घोड़े और बकरी आदि पालते थे।

 2.  वाणिज्य- व्यापार


§  वाणिज्य-व्यापार पर पणियों का एकाधिकार था। व्यापार स्थल और जल मार्ग दोनों से होता था।

§  सूदखोर को ‘वेकनाट’ कहा जाता था। क्रय विक्रय के लिए विनिमय प्रणाली का अविर्भाव हो चुका था। गाय और निष्क विनिमय के साधन थे।

§  ऋग्वेद में नगरों का उल्लेख नहीं मिलता है। इस काल में सोना तांबा और कांसा धातुओं का प्रयोग होता था।

§  ऋण लेने व बलि देने की प्रथा प्रचलित थी, जिसे ‘कुसीद’ कहा जाता था।

 3.  व्यवसाय एवं उद्योग धंधे

§  ऋग्वेद में बढ़ई, सथकार, बुनकर, चर्मकार, कुम्हार, आदि कारीगरों के उल्लेख से इस काल के व्यवसाय का पता चलता है।

§  तांबे या कांसे के अर्थ में ‘आपस’ का प्रयोग यह संके करता है, की धातु एक कर्म उद्योग था।

§  ऋग्वेद में वैद्य के लिए ‘भीषक’ शब्द का प्रयोग मिलता है। ‘करघा’ को ‘तसर’ कहा जाता था। बढ़ई के लिए ‘तसण’ शब्द का उल्लेख मिलता है।

§  मिटटी के बर्तन बनाने का कार्य एक व्यवसाय था।

 स्मरणीय तथ्य

§  जब आर्य भारत में आये, तब वे तीन श्रेणियों में विभाजित थे- योद्धा, पुरोहित और सामान्य। जन आर्यों का प्रारंभिक विभाजन था। शुद्रो के चौथे वर्ग का उद्भव ऋग्वैदिक काल के अंतिम दौर में हुआ।

§  इस काल में राजा की कोई नियमित सेना नहीं थी। युद्ध के समय संद्थित की गयी सेना को ‘नागरिक सेना’ कहते थे।

§  ऋग्वेद में किसी परिवार का एक सदस्य कहता है- मैं कवि हूँ, मेरे पिता वैद्य हैं और माता चक्की चलने वाली है, भिन्न भिन्न व्यवसायों से जीवकोपार्जन करते हुए हम एक साथ रहते हैं।

§  ‘हिरव्य’ एवं ‘निष्क’ शब्द का प्रयोग स्वर्ण के लिए किया जाता था। इनका उपयोग द्रव्य के रूप में भी किया जाता था। ऋग्वेद में ‘अनस’ शब्द का प्रयोग बैलगाड़ी के लिए किया गया है। ऋग्वैदिक काल में दो अमूर्त देवता थे, जिन्हें श्रद्धा एवं मनु कहा जाता था।

§  वैदिक लोगों ने सर्वप्रथ तांबे की धातु का इस्तेमाल किया।

§  ऋग्वेद में सोम देवता के बारे में सर्वाधिक उल्लेख मिलता है।

§  अग्नि को अथिति कहा गया है क्योंकि मातरिश्वन उन्हें स्वर्ग से धरती पर लाया था।

§  यज्ञों का संपादन कार्य ‘ऋद्विज’ करते थे। इनके चार प्रकार थे- होता, अध्वर्यु, उद्गाता और ब्रह्म।

§  संतान की इचुक महिलाएं नियोग प्रथा का वरण करती थीं, जिसके अंतर्गत उन्हें अपने देवर के साथ साहचर्य स्थापित करना पड़ता था।

§  ‘पणि’ व्यापार के साथ-साथ मवेशियों की भी चोरी करते थे। उन्हें आर्यों का शत्रु माना जाता था

 वैदिक साहित्य

§  ऋग्वेद स्तुति मन्त्रों का संकलन है। इस मंडल में विभक्त 1017 सूक्त हैं। इन सूत्रों में 11 बालखिल्य सूत्रों को जोड़ देने पर कुल सूक्तों की संख्या 1028 हो जाती है। 

ऋग्वेद के रचयिता

मण्डल

ऋषि

द्वितीय

गृत्समद

तृतीय

विश्वामित्र

चतुर्थ

धमदेव

पंचम

अत्री

षष्ट

भारद्वाज

सप्तम

वशिष्ठ

अष्टम

कण्व तथा अंगीरम

§   दशराज्ञ युद्ध का वर्णन ऋग्वेद में मिलता है। यह ऋग्वेद की सर्वधिक प्रसिद्द ऐतिहासिक घटना मानी जाती है।

§  ऋग्वेद में 2 से 7 मण्डलों की रचना हुई, जो गुल्समद, विश्वामित्र, वामदेव, अभि, भारद्वाज और वशिष्ठ ऋषियों के नाम से है।

§  ऋग्वेद का नाम मंडल पूरी तरह से सोम को समर्पित है।

§  प्रथम एवं दसवें मण्डल की रचना संभवतः सबसे बाद में की गयी। इन्हें सतर्चिन कहा जाता है।

§  गायत्री मंत्र ऋग्वेद के दसवें मंडल के पुरुष सूक्त में हुआ है।

§  10वें मंडल में मृत्यु सूक्त है, जिसमे विधवा के लिए विलाप का वर्णन है।

§  ऋग्वेद के दसवें मण्डल के 95वें सूक्त में पुरुरवा,ऐल और उर्वशी बुह संवाद है।

§  ऋग्वेद के नदी सूक्त में व्यास (विपाशा) नदी को ‘परिगणित’ नदी कहा गया है।

 प्रमुख दर्शन एवं उसके प्रवर्तक

दर्शन

प्रवर्तक

चार्वाक

चार्वाक

योग

पतञ्जलि

सांख्य

कपिल

न्याय

गौतम

वैशेषिक

कणाद या उलूक

पूर्वमीमांसा

जैमिनी

उत्तरमीमांसा

बादरायण


उत्तर वैदिक काल(1000-600 ई.पू.)-

ऋग्वैदिक काल के बाद के काल को उत्तर वैदिक काल कहा गया।

भारतीय इतिहास के उस काल में जिसमें – सामवेदयजुर्वेद, तथा अथर्ववेद एवं ब्राह्मण ग्रंथों , आरण्यों की रचना हुई, को उत्तर वैदिक काल कहा जाता है। 

पुरातात्विक स्रोत-

·         अतरंजीखेङा – सर्वप्रथम लौह उपकरण अतरंजीखेङा से ही प्राप्त हुए हैं तथा यहां से सर्वाधिक लौह उपकरण भी प्राप्त हुए हैं। यहां से प्राप्त लौह उपकरण हमें उत्तरवैदिक काल की जानकारी प्रदान करते हैं।

साहित्यिक स्रोत-

·         सामवेद इसमें ऋग्वैदिक मंत्रों को गाने योग्य बनाया गया है।

·         यजुर्वेद इस वेद में यज्ञों की विधियों का वर्णन मिलता है, यह कर्मकांडीय ग्रंथ है।

·         अथर्ववेद यह आर्य संस्कृति के साथ-साथ अनार्य संस्कृति से भी संबंधित है। अतः इस वेद  को पूर्व के तीन वेदों के समान महत्व प्राप्त नहीं है और इसे वेदत्रयी में शामिल नहीं किया गया है।

·         ब्राह्मण ग्रंथ- इनमें यज्ञों के आनुष्ठानिक महत्व का उल्लेख है। यह कर्मकाण्डीय ग्रंथ हैं। चारों वेदों के अलग-अलग ब्राह्मण ग्रंथ हैं।

·         आरण्यक इनकी रचना एकांत (अरण्य-जंगल)में हुई और इनका अध्ययन भी एकांत में किया गया ।

·         उपनिषद– उपनिषदों में ईश्वर तथा आत्मा के संबंधों की बात की गई है जैसे-परमज्ञान, पराविधा, सर्वोच्च ज्ञान  अर्थात इस लोक से बाहर की बात की गई है।उपनिषद भारतीय दर्शन का मूल स्रोत है। उपनिषदों की रचना इस काल से ही शुरु हुई तथा मध्यकाल तक चली। 

वेदत्रयी ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद। इन तीनों वेदों को मिलाकर वेदत्रयी कहा गया है।

उत्तरवैदिक काल की विशेषताएँ-

·         राजनीतिक विस्तार

·         अर्थव्यवस्था

·         धार्मिक व्यवस्था

·         उद्योग

·         सामाजिक स्थिति

·         16 संस्कार

राजनीतिक विस्तार– 

इस काल में पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार तक आर्यों का विस्तार (सदानीरा नदी से गंडक नदी तक विस्तार) तथा दक्षिण में विदर्भ ( MP) तक आर्यों का विस्तार।

अर्थव्यवस्था

पशुपालन के साथ-साथ कृषि भी मुख्य पेशा बन गया । इस बात के कई साक्ष्य प्राप्त हुए हैं जैसे-शतपथ ब्राह्मण में कृषि से संबंधित समस्त क्रियाओं का वर्णन है – अथर्ववेद में बताया गया है कि सर्वप्रथम पृथ्वीवेन ने हल चलाया।

इस काल में अनाजों की संख्या में भी वृद्धि हुई । यव(जौ) के अलावा गोधूम(गेहूँ), ब्रीही/तुंदल (चावल), उङद, मसूर, तिल, गन्ना के भी साक्ष्य मिलते हैं। इंद्र को सुनासिर(हलवाहा) कहा गया है।कठ/काठक संहिता में 24 बैलों के द्वारा हल चलाया जाता था। कृषि आधारित स्थाई जीवन की शुरुआत हुई। लेकिन कृषि अधिशेष अभी भी उत्पादित नहीं हो पा रहा था। (निर्वाह कृषि) क्योंकि अभी भी कृषि लकङी, पत्थर , ताँबे  , काँसे के उपकरणों द्वारा ही होती थी। इस समय केवल कृषि का महत्व ही बढा था। कृषि कार्यों में दासों को नहींं लगाया गया था। (घरेलू व्यक्ति ही कृषि कार्यों से जुङे हुए थे।)तैतरीय उपनिषद में अन्न को ब्रह्म तथा यजुर्वेद में हल को सीर कहा गया है।

पशुपालन में हाथी पालन प्रारंभ हुआ और यह एक व्यवसाय बन गया। गर्दभ(गधा), सूकर(सूअर)पालन की भी शतपथ ब्राह्मण से जानकारी प्राप्त होती है। गर्दभ अश्विन देवताओं का वाहन था।

उत्तरवैदिक काल के लोग प्रकार के बर्तनों से (मृदभांडों ) परिचित थे- 1.काले व लाल भांड 2.काले रंग के भांड 3. चित्रित धूसर मृदभांड 4.लाल भांड। इस काल के लोगों में लाल मृदभांड सबसे अधिक प्रचलित थे जबकि चित्रित धूसर मृदभांड इस युग की विशेषता थी।वैदिक काल के लोगों ने जिस धातु का प्रयोग किया उनमें ताँबा पहला रहा होगा ।

धार्मिक व्यवस्था-

इस काल में उपासना की पद्धति में यज्ञ एवं कर्मकांड प्रमुख हो गये । हालांकि इस काल में भी आर्य भौतिक सुखों की कामना हेतु देवताओं से यज्ञ एवं प्रार्थनाएं करते थे। यज्ञों में कर्मकांड बढा तथा मंत्रों के शुद्ध उच्चारण पर बल दिया गया। यज्ञों में बङी मात्रा में पशुबली दी जाने लगी। जिससे वैश्य वर्ण असंतुष्ट हुआ।

उद्योग

कृषि के अलावा विभन्न प्रकार के शिल्पों का उदय भी हुआ। इन विभिन्न व्यवसायों के विवरण पुरुषमेध सूक्त में मिलते हैं। जिनमें धातु शोधक , रथकार , बढई , चर्मकार , स्वर्णकार , कुम्हार , व्यापारी आदि प्रमुख थे।

वस्त्र निर्माण , धातु के बर्तन , तथा शस्त्र निर्माण , बुनाई , नाई(वाप्ता) , रज्जुकार(रस्सी बनाने वाला)कर्मकार (लोहे के काम करने वाला), सूत (सारथी)। आदि प्रकार के छोटे-छोटे उद्योग प्रचलन में थे।

ब्राह्मण ग्रंथों में श्रेष्ठी का भी उल्लेख है। श्रेष्ठिन श्रेणी का प्रधान व्यापारी होता था।व्यापार प्रपण द्वारा सम्पन्न होता था जिसमें लेन – देन का माध्यम गाय तथा निष्क का बनाया जाता था।शतमान चाँदी की मुद्रा थी। शतपथ ब्राह्मण में दक्षिणा के रूप में इसका वर्णन है।

अथर्ववेद में चाँदी का उल्लेख किया गया है। शतपथ ब्राह्मण में महाजनी प्रथा का उल्लेख प्रथम बार हुआ तथा सूदखोर को कुसीदिन कहा गया है। तैत्तिरीय संहिता में ऋण के लिए कुसीद शब्द मिलता है।

उत्तरवैदिक काल में मुद्रा का प्रचलन हो गया था फिर भी लेन देन तथा व्यापार वस्तु विनिमय द्वारा होता था।बाट की मूल भूत इकाई कृष्णल था। रत्तिका तथा गुंजा तौल की  इकाई थी।

निष्क , शतमान , पाद , कृष्णल आदि माप की अलग-अलग इकाइयाँ थी। समुद्र व्यापार का भी साक्ष्य मिलता है। उत्तरवैदिक साहित्य में पुर की जानकारी मिलती है। पुर का अर्थ नगर नहीं है। पुर का अर्थ किला या फिर गाँव से है। तैत्तिरीय ब्राह्मण से नगर शब्द की जानकारी मिलती है। नगर – आद्य नगर । अर्थात उत्तरवैदिक काल ग्रामीण समाज था, नगरीय नहीं।

सामाजिक स्थिति

उत्तरवैदिक कालीन समाज चार वर्णों में वभक्त था-ब्राह्मण , राजन्य (क्षत्रिय), वैश्य , शूद्र। इस काल में यज्ञ का अनुष्ठान अधिक बढ गया था जिससे ब्राह्मणों की शक्ति में अत्यधिक वृद्धि हो गई थी। वर्ण व्यवस्था का आधार कर्म पर आधारित न होकर जाति पर आधारित हो गया तथा वर्णों में कठोरता आने लग गई थी। त्रिऋण -देवऋण, पितृऋण, ऋषिऋण।

पंचमहायज्ञ- देवयज्ञ, पितृयज्ञ, ऋषि यज्ञ, भूत यज्ञ, नृ यज्ञ।

16 संस्कार-

गर्भाधान , पुंसवन, जातकर्म, निष्क्रमण, अन्नप्राशन,चूङाकर्म, कर्णवेध, विद्यारंभ, उपनयन, केशांत/गोदान, समावर्तन, विवाह, अंतेष्टि।

 उत्तरवैदिक काल के महत्वपूर्ण Question Answer

·उत्तरवैदिक काल में इन्द्र के स्थान पर प्रजापति सर्वाधिक प्रिय देवता हो गए थे।

·उत्तरवैदिक काल में राजा के राज्याभिषेक के समय राजसूय यज्ञ का अनुष्ठान किया जाता था।

·उत्तरवैदिक काल में वर्ण व्यवसाय की बजाय जन्म के आधार पर निर्धारित होने लगे थे।

·उत्तरवैदिक काल में हल को सिरा और हल रेखा को सीता कहा जाता था।

·उत्तरवैदिक काल में निष्क और शतमान मुद्रा की इकाइयाँ थीं।

·सांख्य दर्शन भारत के सभी दर्शनों में सबसे प्राचीन है। इसके अनुसार मूल तत्व 25 है, जिनमे प्रकृति पहल तत्व है।

·सत्यमेव जयते‘ मुण्डकोपनिषद् से लिया गया है। इसी उपनिषद् में यज्ञ की तुलना टूटी नाव से की गयी है।

·गायत्री मंत्र सवितृ नामक देवता को संबोधित है, जिसका संबंध ऋग्वेद से है।

·उत्तरवैदिक काल में कौशाम्बी नगर में प्रथम बार पक्की ईंटों का प्रयोग किया गया है।

·गोत्र नामक संस्था का जन्म उत्तरवैदिक काल में हुआ।

·महाकाव्य दो हैं – महाभारत एवं रामायण।

·महाभारत का पुराना नाम जयसंहिता है। यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है। 

 वैदिक सभ्यता (Vedic Sabhyata) के महत्वपूर्ण Question Answer

1.   पूर्व-वैदिक या ऋग्वैदिक संस्कृति का काल किसे माना जाता है – 1500 ई० पू०-1000 ई० पू०

2.   उत्तर-वैदिक संस्कृति का काल किसे माना जाता है – 1000ई० पू०-600 ई० पू०

3.   ‘आर्य’ शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है – श्रेष्ठ या कुलीन

4.   उत्तर-वैदिक काल के वेदविरोधी और ब्राह्मणविरोधी धार्मिक अध्यापकों को किस नाम से जाना जाता था – श्रमण

5.   वैदिक गणित का महत्त्वपूर्ण अंग है – शुल्व सूत्र

6.   किस वेद में प्राचीन वैदिक युग की संस्कृति के बारे में सूचना दी गई है – ऋग्वेद

7.   भारत के राजचिह्न में प्रयुक्त होनेवाले शब्द ‘सत्यमेव जयते’ किस उपनिषद् से लिया गया है – मुण्डक उपनिषद्

8.   ऋग्वैदिक आर्यों का मुख्य व्यवसाय क्या था – पशुपालन

9.   ऋग्वेद में संपत्ति का प्रमुख रूप क्या है – गोधन

10. ऋग्वेद के किस मंडल में शुद्र का उल्लेख पहली बार मिलता है – 10वें

11. वैदिक धर्म में किसकी उपासना करने का मुख्य लक्षण था – प्रकृति

12. ‘शुल्व सूत्र’ किस विषय से संबंधित पुस्तक है – ज्यामिति

13. ‘असतो मा सदगमय’ कहाँ से लिया गया है – ऋग्वेद

14. आर्य बाहर से आकर भारत में सर्प्रथम कहाँ बसे थे – पंजाब

15. वैशेषिक दर्शन के प्रतिपादक कौन थे – उलूक या कणाद

16. वेदांत या उत्तर-मीमांसा दर्शन के प्रतिपादक कौन थे – बादरायण

17. मीमांसा या पूर्व-मीमांसा दर्शन के प्रतिपादक कौन थे – जैमिनी

18. किस काल में अछूत के अवधारणा स्पष्ट रूप से उदित हुई – धर्मशास्त्र के काल में

19. प्रसिद्ध दस राजाओं का युद्ध – दासराज्ञ युद्ध – किस नदी के तट पर लड़ा गया – परुषणी (रावी)

20. गायत्री मंत्र (देवी सवितृ को संबोधित) किस पुस्तक में मिलता है – ऋग्वेद

21. न्यायदर्शन को प्रचारित किसने किया था – गौतम ने

22. प्राचीन भारत में ‘निष्क’ से जाने जाते थे – स्वर्ण आभूषण को

23. योग दर्शन के प्रतिपादक कौन थे – पतंजलि

24. उपनिषद् पुस्तकें किस पर आधारित है – दर्शन पर

25. आरंभिक वैदिक साहित्य में सर्वाधिक वर्णित नदी कौन-सी है – सिन्धु

26. अध्यात्म ज्ञान के विषय में नचिकेता और यम का संवाद किस उपनिषद् में प्राप्त होता है – कंठोपनिषद्

27. कपिल मुनि द्वारा प्रतिपादित दार्शनिक प्रणाली है – सांख्य दर्शन

28. कर्म का सिद्धांत किस दर्शन से संबंधित है – मीमांसा से

29. वैदिक युगीन ‘सभा’ – मंत्रिपरिषद थी

30. वैदिक युग में प्रचलित लोकप्रिय शासन प्रणाली थी – गणतंत्र

31. भारतीय दर्शन के आरंभिक विचारधारा है – सांख्य

32. ऋग्वैदिक युग की प्राचीनतम संस्था कौन-सी थी – विदथ

33. ‘गोत्र’ व्यवस्था प्रचलन में कब आई – उत्तर-वैदिक काल में

34. वैदिक युग में ‘यव’ किसे कहा जाता था – जौ

35. ‘व्रीहि’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है – चावल

36. ‘आदि काव्य’ की संज्ञा किसे दी जाती है – रामायण

37. ऋग्वेद में सबसे पवित्र नदी किसे माना गया है – सरस्वती

38. वैदिक समाज की आधारभूत इकाई थी – कुल / कुटुम्ब

39. उत्तर-वैदिक काल में किस देवता को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था – प्रजापति

40. संस्कारों की कुल संख्या कितनी है – 16

41. पूर्व-वैदिक आर्यों का धर्म प्रमुखतः था – प्रकृति-पूजा और यज्ञ

42. वैदिक नदी कुभा (काबुल) का स्थान कहाँ निर्धारित होना चाहिए – अफगानिस्तान में

43. आर्यों की भाषा क्या थी – संस्कृत

44. आर्यों का समाज कैसा था – पितृप्रधान

45. आर्यों का मुख्य पेय-पदार्थ क्या था – सोमरस

46. आर्यों का प्रिय पशु था – घोड़ा

47. आर्यों का सर्वाधिक प्रिय देवता था – इन्द्र

48. आर्यों द्वारा खोजी गयी धातु क्या थी – लोहा

49. उत्तरवैदिक काल में राजा के राज्याभिषेक के समय कौन-सा यज्ञ का अनुष्ठान किया जाता था – राजसूय यज्ञ

50. उत्तरवैदिक काल में वर्ण व्यवस्था किस पर निर्धारित थी – जन्म के आधार पर

51. ऋग्वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था किस पर आधारित थी – व्यवसाय पर

52. उत्तरवैदिक काल में मुद्रा की इकाइयाँ क्या थी – निष्क और शतमान

53. भारत के सभी दर्शनों में सबसे प्राचीन दर्शन कौन-सा है – सांख्य दर्शन

54. सांख्य दर्शन में पहला तत्व कौन-सा है – प्रकृति

55. महाभारत का पुराना नाम क्या है – जयसंहिता

56. विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य क्या है – महाभारत

57. विपाशा नदी का आधुनिक नाम क्या है – व्यास

58. कुभा नदी का आधुनिक नाम क्या है – काबुल

59. उपनिषदों की कुल संख्या कितनी है – 108

60. वेदांग की संख्या कितनी है – 6

61. महापुराणों की संख्या कितनी है – 18

62. ऋग्वैदिक काल में आँधी-तूफान का देवता का नाम क्या है – मरुत

63. ऋग्वैदिक काल में ऋतु-परिवर्तन एवं दिन-रात के देवता किसे माना जाता था – वरुण

 

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