सिन्धु घाटी सभ्यता

 

सिन्धु घाटी सभ्यता का परिचय :


सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता थी। जो मुख्य रूप से दक्षिण एशिया के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में, जो आज तक उत्तर पूर्व अफगानिस्तान, पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम और उत्तर भारत में फैली है। सिंधु नदी के आसपास बसे होने के कारण ही इसे सिंधु घाटी सभ्यता कहा जाता है। भारत का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से प्रारंभ होता है जिसे हम हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जानते हैं।  यह सभ्यता लगभग 2500 ईस्वी पूर्व दक्षिण एशिया के पश्चिमी भाग मैं फैली हुई थी,जो कि वर्तमान में पाकिस्तान तथा पश्चिमी भारत के नाम से जाना जाता है।  सिंधु घाटी सभ्यता मिस्र,मेसोपोटामिया,भारत और चीन की चार सबसे बड़ी प्राचीन नगरीय सभ्यताओं से भी अधिक उन्नत थी।  1920 में, भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा किये गए सिंधु घाटी के उत्खनन से प्राप्त अवशेषों से हड़प्पा तथा मोहनजोदडो जैसे दो प्राचीन नगरों की खोज हुई।  भारतीय पुरातत्त्व विभाग के तत्कालीन डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने सन 1924 में सिंधु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की।

सिंधु सभ्यता का काल निर्धारण : रेडियोकार्बन C14 जैसी नवीन विश्लेषण-पद्धति के अनुसार सिंधु सभ्यता की तिथि 2400 ई. पू. से 1700 ई. पू. मानी गयी है।

सिन्धु सभ्यता के खोजकर्ता : रायबहादुर दयाराम साहनी

सिन्धु घाटी सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल

मोहनजोदड़ो

  • मोहनजोदड़ो की खुदाई राखालदास बनर्जी द्वारा वर्ष 1922 में करवाया गया था।
  • भारत का सबसे प्राचीन नगर मोहनजोदड़ो था, सिंधी भाषा में इसका अर्थ मृतकों का टीला होता है।
  • यह पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के लकरकाना जिले में स्थित है।
  • मोहनजोदड़ो सिंधु नदी के किनारे बसा हुआ है।
  • मोहनजोदड़ो से प्राप्त अन्नागार संभवतः सिन्धु सभ्यता या सैंधव सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत है।
  • मोहनजोदड़ो से प्राप्त वृहत् स्नानागार एक प्रमुख स्मारक है, जिसके मध्य स्थित स्नानकुंड 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मीटर चौड़ा एवं 2.43 मीटर गहरा है।
  • मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक शील पर तीन मुख वाले देवता (पशुपति नाथ) की मूर्त्ति मिली है। उनके चारों ओर हाथी, गैंडा, चीता एवं भैंसा विराजमान है।
  • मोहनजोदड़ो से नर्तकी की एक कांस्य मूर्ति मिली है।
  • मोहनजोदड़ो में शवों को जलाने की प्रथा थी।
हड़प्पा
  • हड़प्पा की खुदाई दयाराम साहनी व सहायक माधोस्वरूप वत्स द्वारा वर्ष 1921 में करवाई गयी थी।
  • यह पाकिस्तान के मोंटगोमरी जिले में स्थित है।
  • हड़प्पा रावी नदी के किनारे बस हुआ है।
  • स्वंतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात हड़प्पा संस्कृति के सर्वाधिक स्थल गुजरात में खोजे गए हैं।
  • हड़प्पा की मोहरों पर सबसे अधिक एक श्रृंगी पशु का अंकन मिलता है।
  • स्वस्तिक चिह्न संभवतः हड़प्पा सभ्यता की देन है। इस चिह्न से सूर्योपासना का अनुमान लगाया जाता है।
  • हड़प्पा में शवों को दफनाने की प्रथा विद्यमान थी।
  • संभवतः हड़प्पा संस्कृति का शासन वणिक वर्ग के हाथों में था।

कालीबंगन

  • कालीबंगन की खुदाई 1953 ई. में बी. बी. लाल एवं बी. के. थापर के द्वारा करवाया गया था।
  • यह स्थल राजस्थान का हनुमानगढ़ जिले में घग्घर नदी के तट पर बसा है।
  • कालीबंगन का अर्थ है काले रंग की चूड़ियाँ।
  • कालीबंगन एक मात्र हड़प्पाकालीन स्थल था, जिसका निचला शहर (सामान्य लोगों के रहने हेतु) भी किले से घिरा हुआ था।
  • कालीबंगन से पूर्व हड़प्पा स्तरों के खेत जोते जाने के और अग्निपूजा की प्रथा के प्रमाण मिले हैं।
  • कालीबंगन से जुते हुए खेत और नक्काशीदार ईंटों के प्रयोग के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
  • यहाँ से अग्निकुण्ड भी प्राप्त हुए है।
  • कालीबंगन से सैंधवकालीन घोड़े के अस्थिपंजर मिले हैं।

चन्हूदड़ो

  • चन्हूदड़ो की खोज गोपाल मजुमदार द्वारा 1931 ई. में की गयी थी।
  • यह स्थल सिंध प्रान्त (पाकिस्तान) में सिन्धु नदी के तट पर स्थित है।
  • यह एक मात्र स्थल है जहाँ से वक्राकार ईंटें प्राप्त हुई हैं।
  • बिल्ली का पीछा करते कुत्ते का साक्ष्य मिला है।
  • सजने-सवरने के लिये लिपस्टिक का प्रयोग किया जाता था। 
  • चन्हूदड़ो में मनके बनाने के कारखाना मिले हैं।

कोटदीजी

  • इसकी खुदाई वर्ष 1955 में फजल अहमद के द्वारा करवाई गयी थी।
  • यह सिंध प्रान्त का खैरपुर स्थान में सिन्धु नदी तट पर स्थित है।
  • यहाँ से चाँदी के सर्वप्रथम प्रयोग के साक्ष्य मिले हैं। 
  • यहाँ से बारहसिंगा का नमूना मिला है।

रंगपुर

  • रंगपुर की खुदाई रंगनाथ राव द्वारा 1953-56 ई. में करवाई गयी थी।
  • यह गुजरात का काठियावाड़ जिला में मादर नदी तट पर स्थित है।
  • यहाँ से कच्ची ईंटों से बना दुर्ग मिला है।
  • रंगपुर से चावल के दाने मिले हैं, जिनसे धान की खेती होने का प्रमाण मिलता है।

रोपड़

  • इसकी खुदाई यज्ञदत्त शर्मा द्वारा 1953-56 ई. में करवाई गयी थी।
  • यह स्थल पंजाब का रोपड़ जिला में सतलुज नदी के तट पर स्थित है।
  • यहाँ से ताँबे की कुल्हाड़ी, आदमी और कुत्ते की एक कब्रगाह आदि के साक्ष्य मिले हैं।

लोथल

  • लोथल की खोज रंगनाथ राव द्वारा 1955 एवं 1962 ई. में की गयी थी।
  • यह स्थल गुजरात का अहमदाबाद जिले में भोगवा नदी के तट पर स्थित है।
  • लोथल सिन्धु सभ्यता का बंदरगाह था।
  • लोथल से चावल के दाने मिले हैं, जिनसे धान की खेती होने का प्रमाण मिलता है।
  • चावल के प्रथम साक्ष्य लोथल से ही प्राप्त हुए हैं।
  • लोथल से मनके बनाने के कारखाने मिले हैं।
  • लोथल नगर के घरों के दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुलते थे।
  • यहां पर युग्म समाधियाँ मिली हैं।

आलमगीरपुर

  • इसकी खुदाई यज्ञदत्त शर्मा द्वारा वर्ष 1958 में करवाई गयी थी।
  • यह स्थल उत्तर प्रदेश का मेरठ जिले में हिन्डन नदी के तट पर स्थित है।

सुतकांगेडोर

  • इसकी खुदाई ऑरेज स्टाइल द्वारा 1927 में तथा जार्ज डेल्स द्वारा 1962 में करवाई गयी थी।
  • यह स्थल पाकिस्तान में दाश्क नदी के तट पर स्थित है।
  • यहां से मिट्टी की बनी चूड़ियाँ, राख से भरा बर्तन, ताम्बें की कुल्हाड़ी, मनुष्य की हड्डियाँ इत्यादि के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।

बनमाली

  • इसकी खोज रवींद्र सिंह विष्ट द्वारा 1974 ई. में की गयी थी।
  • यह स्थल हरियाणा का हिसार जिले में रंगोई नदी तट पर स्थित है।
  • यहां से ताँबे का कुल्हाड़ी, हल की आकृति का खिलौना, पत्थर व ईंट के मकान, उन्नत किस्म की जौ, सड़कों पर बैलगाड़ी के निशान आदि के साक्ष्य मिले हैं।

सुरकोतदा

  • इसकी खुदाई जगपति जोशी द्वारा 1964 ई. में करवाई गयी थी।
  • यह स्थल गुजरात राज्य के कच्छ नामक जगह पर स्थित है।
  • सुरकोतदा सिन्धु सभ्यता का बंदरगाह था।
  • यहाँ से सैंधवकालीन घोड़े के अस्थिपंजर प्राप्त हुए हैं।

धौलावीरा

  • इसकी खोज में जगपति जोशी द्वारा 1967 ई. में की गयी थी, परन्तु इसकी व्यापक खुदाई रविंद्र सिंह विष्ट द्वारा 1990-91 ई. में करवाई गयी थी।
  • यह स्थल गुजरात राज्य के कच्छ जिले में मानहर एवं मानसर नदी के बीच स्थित है।
  • यहां से जल निकासी प्रबंधन, जल कुंड इत्यादि के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।

राखीगढ़ी

  • इसकी खुदाई अमरेंद्र नाथ द्वारा वर्ष 1997 करवाई गयी थी।
  • यह स्थल हरियाणा राज्य के हिसार जिले में सरस्वती तथा दुहद्वती नदियों के पास स्थित है।
  • धौलावीरा के बाद राखीगढ़ी भारत में स्थित सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा नगर है।
सिंधु घाटी सभ्यता के तीन चरण हैं-

 

1.   प्रारंभिक हड़प्पाई सभ्यता (3300ई.पू.-2600ई.पू. तक)

 

2.   परिपक्व हड़प्पाई सभ्यता (2600ई.पू-1900ई.पू. तक)

 

3.   उत्तर हड़प्पाई सभ्यता (1900ई.पु.-1300ई.पू. तक)

        प्रारंभिक हड़प्पाई चरण ‘हाकरा चरण’ से संबंधित है, जिसे घग्गर- हाकरा नदी घाटी में चिह्नित किया गया है । इस चरण  की विशेषताएं एक केंद्रीय इकाई का होना तथा बढते हुए नगरीय गुण थे।

§  व्यापार क्षेत्र विकसित हो चुका था और खेती के साक्ष्य भी मिले हैं। उस समय मटर, तिल, खजूर , रुई आदि की खेती होती थी।
§  कोटदीजी नामक स्थान परिपक्व हड़प्पाई सभ्यता के चरण को प्रदर्शित करता है।
§  2600 ई.पू. तक सिंधु घाटी सभ्यता अपनी परिपक्व अवस्था में प्रवेश कर चुकी थी।
§  परिपक्व हड़प्पाई सभ्यता के आने तक प्रारंभिक हड़प्पाई सभ्यता बड़े- बड़े नगरीय केंद्रों में परिवर्तित हो चुकी थी। जैसे- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो वर्तमान पाकिस्तान में तथा लोथल जो कि वर्तमान में भारत के गुजरात राज्य में स्थित है।
§  सिंधु घाटी सभ्यता के क्रमिक पतन का आरंभ 1800 ई.पू. से माना जाता है,1700 ई.पू. तक आते-आते हड़प्पा सभ्यता के कई शहर समाप्त हो चुके थे ।
§  परंतु प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के बाद की संस्कृतियों में भी इसके तत्व देखे जा सकते हैं।
§  कुछ पुरातात्त्विक आँकड़ों के अनुसार उत्तर हड़प्पा काल का अंतिम समय 1000 ई.पू. - 900 ई. पू. तक बताया गया है।
 
नगरीय योजना और विन्यास-
§  हड़प्पाई सभ्यता अपनी नगरीय योजना प्रणाली के लिये जानी जाती है।
§  मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के नगरों में अपने- अपने दुर्ग थे जो नगर से कुछ ऊँचाई पर स्थित होते थे जिसमें अनुमानतः उच्च वर्ग के लोग निवास करते थे ।
§  दुर्ग से नीचे सामान्यतः ईंटों से निर्मित नगर होते थे,जिनमें सामान्य लोग निवास करते थे।
§  हड़प्पा सभ्यता की एक ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि इस सभ्यता में ग्रिड प्रणाली मौजूद थी जिसके अंतर्गत सडकें एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं ।
§  अन्न भंडारों का निर्माण हड़प्पा सभ्यता के नगरों की प्रमुख विशेषता थी।
§  जली हुई ईंटों का प्रयोग हड़प्पा सभ्यता की एक प्रमुख विशेषता थी क्योंकि समकालीन मिस्र में मकानों के निर्माण के लिये शुष्क ईंटों का प्रयोग होता था।
§  हड़प्पा सभ्यता में जल निकासी प्रणाली बहुत प्रभावी थी।
§  हर छोटे और बड़े घर के अंदर स्वंय का स्नानघर और आँगन होता था।
§  कालीबंगा के बहुत से घरों में कुएँ नही पाए जाते थे।
§  कुछ स्थान जैसे लोथल और धौलावीरा में संपूर्ण विन्यास मज़बूत और नगर दीवारों द्वारा भागों में विभाजित थे।
 
कृषि-
§  हड़प्पाई गाँव मुख्यतः प्लावन मैदानों के पास स्थित थे,जो पर्याप्त मात्रा में अनाज का उत्पादन करते थे।
§  गेहूँ, जौ, सरसों, तिल, मसूर आदि का उत्पादन होता था। गुजरात के कुछ स्थानों से बाजरा उत्पादन के संकेत भी मिले हैं,जबकि यहाँ चावल के प्रयोग के संकेत तुलनात्मक रूप से बहुत ही दुर्लभ मिलते हैं।
§  सिंधु सभ्यता के मनुष्यों ने सर्वप्रथम कपास की खेती प्रारंभ की थी।
§  वास्तविक कृषि परंपराओं को पुनर्निर्मित करना कठिन होता है क्योंकि कृषि की प्रधानता का मापन इसके अनाज उत्पादन क्षमता के आधार पर किया जाता है।
§  मुहरों और टेराकोटा की मूर्तियों पर सांड के चित्र मिले हैं तथा पुरातात्त्विक खुदाई से बैलों से जुते हुए खेत के साक्ष्य मिले हैं।
§  हड़प्पा सभ्यता के अधिकतम स्थान अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में मिले हैं,जहाँ खेती के लिये सिंचाई की आवश्यकता होती है।
§  नहरों के अवशेष हड़प्पाई स्थल शोर्तुगई अफगानिस्तान में पाए गए हैं ,लेकिन पंजाब और सिंध में नहीं।
§  हड़प्पाई लोग कृषि के साथ -साथ बड़े पैमाने पर पशुपालन भी करते थे ।
§  घोड़े के साक्ष्य सूक्ष्म रूप में मोहनजोदड़ो और लोथल की एक संशययुक्त टेराकोटा की मूर्ति से मिले हैं।हड़प्पाई संस्कृति किसी भी स्थिति में अश्व केंद्रित नहीं थी।


अर्थव्यवस्था-
§  अनगिनत संख्या में मिली मुहरें ,एकसमान लिपि,वजन और मापन की विधियों से सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के जीवन में व्यापार के महत्त्व के बारे में पता चलता है।
§  हड़प्पाई लोग पत्थर ,धातुओं, सीप या शंख का व्यापर करते थे।
§  धातु मुद्रा का प्रयोग नहीं होता था। व्यापार की वस्तु विनिमय प्रणाली मौजूद थी।
§  अरब सागर के तट पर उनके पास कुशल नौवहन प्रणाली भी मौजूद थी।
§  उन्होंने उत्तरी अफगानिस्तान में अपनी व्यापारिक बस्तियाँ स्थापित की थीं जहाँ से प्रमाणिक रूप से मध्य एशिया से सुगम व्यापार होता था।
§  दजला -फरात नदियों की भूमि वाले क्षेत्र से हड़प्पा वासियों के वाणिज्यिक संबंध थे।
§  हड़प्पाई प्राचीन ‘लैपिस लाजुली’ मार्ग से व्यापार करते थे जो संभवतः उच्च लोगों की सामाजिक पृष्ठभूमि से संबधित था ।


शिल्पकला -
§  हड़प्पाई कांस्य की वस्तुएँ निर्मित करने की विधि ,उसके उपयोग से भली भाँति परिचित थे।
§  तांबा राजस्थान की खेतड़ी खान से प्राप्त किया जाता था और टिन अनुमानतः अफगानिस्तान से लाया जाता था ।
§  बुनाई उद्योग में प्रयोग किये जाने वाले ठप्पे बहुत सी वस्तुओं पर पाए गए हैं।
§  बड़ी -बड़ी ईंट निर्मित संरचनाओं से राजगीरी जैसे महत्त्वपूर्ण शिल्प के साथ साथ राजमिस्त्री वर्ग के अस्तित्व का पता चलता है।
§  हड़प्पाई नाव बनाने की विधि,मनका बनाने की विधि,मुहरें बनाने की विधि से भली- भाँति परिचित थे। टेराकोटा की मूर्तियों का निर्माण हड़प्पा सभ्यता की महत्त्वपूर्ण शिल्प विशेषता थी।
§  जौहरी वर्ग सोने ,चांदी और कीमती पत्थरों से आभूषणों का निर्माण करते थे ।
§  मिट्टी के बर्तन बनाने की विधि पूर्णतः प्रचलन में थी,हड़प्पा वासियों की स्वयं की विशेष बर्तन बनाने की विधियाँ थीं, हड़प्पाई लोग चमकदार बर्तनों का निर्माण करते थे ।


संस्थाएँ-
§  सिंधु घाटी सभ्यता से बहुत कम मात्रा में लिखित साक्ष्य मिले हैं ,जिन्हें अभी तक पुरातत्त्वविदों तथा शोधार्थियों द्वारा पढ़ा नहीं जा सका है।
§  एक परिणाम के अनुसार, सिंधु घाटी सभ्यता में राज्य और संस्थाओं की प्रकृति समझना काफी कठिनाई का कार्य है ।
§  हड़प्पाई स्थलों पर किसी मंदिर के प्रमाण नहीं मिले हैं। अतः हड़प्पा सभ्यता में पुजारियों के प्रुभुत्व या विद्यमानता को नकारा जा सकता है।
§  हड़प्पा सभ्यता अनुमानतः व्यापारी वर्ग द्वारा शासित थी।
§  अगर हम हड़प्पा सभ्यता में शक्तियों के केंद्रण की बात करें तो पुरातत्त्वीय अभिलेखों द्वारा कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती है।
§  कुछ पुरातत्त्वविदों की राय में हड़प्पा सभ्यता में कोई शासक वर्ग नहीं था तथा समाज के हर व्यक्ति को समान दर्जा प्राप्त था ।
§  कुछ पुरातत्त्वविदों की राय में हड़प्पा सभ्यता में कई शासक वर्ग मौजूद थे ,जो विभिन्न हड़प्पाई शहरों में शासन करते थे ।


धर्म-
§  टेराकोटा की लघुमूर्तियों पर एक महिला का चित्र पाया गया है, इनमें से एक लघुमूर्ति में महिला के गर्भ से उगते हुए पौधे को दर्शाया गया है।
§  हड़प्पाई पृथ्वी को उर्वरता की देवी मानते थे और पृथ्वी की पूजा उसी तरह करते थे, जिस प्रकार मिस्र के लोग नील नदी की पूजा देवी के रूप में करते थे ।
§  पुरुष देवता के रूप में मुहरों पर तीन शृंगी चित्र पाए गए हैं जो कि योगी की मुद्रा में बैठे हुए हैं ।
§  देवता के एक तरफ हाथी, एक तरफ बाघ, एक तरफ गैंडा तथा उनके सिंहासन के पीछे भैंसा का चित्र बनाया गया है। उनके पैरों के पास दो हिरनों के चित्र है। चित्रित भगवान की मूर्ति को पशुपतिनाथ महादेव की संज्ञा दी गई है।
§  अनेक पत्थरों पर लिंग तथा स्त्री जनन अंगों के चित्र पाए गए हैं।
§  सिंधु घाटी सभ्यता के लोग वृक्षों तथा पशुओं की पूजा किया करते थे।
§  सिंधु घाटी सभ्यता में सबसे महत्त्वपूर्ण पशु एक सींग वाला गैंडा था तथा दूसरा महत्त्वपूर्ण पशु कूबड़ वाला सांड था।
§  अत्यधिक मात्रा में ताबीज भी प्राप्त किये गए हैं।


सिंधु घाटी सभ्यता का पतन-
§  सिंधु घाटी सभ्यता का लगभग 1800 ई.पू. में पतन हो गया था, परंतु उसके पतन के कारण अभी भी विवादित हैं।
§  एक सिद्धांत यह कहता है कि इंडो -यूरोपियन जनजातियों जैसे- आर्यों ने सिंधु घाटी सभ्यता पर आक्रमण कर दिया तथा उसे हरा दिया ।
§  सिंधु घटी सभ्यता के बाद की संस्कृतियों में ऐसे कई तत्त्व पाए गए जिनसे यह सिद्ध होता है कि यह सभ्यता आक्रमण के कारण एकदम विलुप्त नहीं हुई थी ।
§  दूसरी तरफ से बहुत से पुरातत्त्वविद सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का कारण प्रकृति जन्य मानते हैं।
§  प्राकृतिक कारण भूगर्भीय और जलवायु संबंधी हो सकते हैं।
§  यह भी कहा जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के क्षेत्र में अत्यधिक विवर्तिनिकी विक्षोभों की उत्पत्ति हुई जिसके कारण अत्यधिक मात्रा में भूकंपों की उत्पत्ति हुई।
§  एक प्राकृतिक कारण वर्षण प्रतिमान का बदलाव भी हो सकता है।
§  एक अन्य कारण यह भी हो सकता है कि नदियों द्वारा अपना मार्ग बदलने के कारण खाद्य उत्पादन क्षेत्रों में बाढ़ आ गई हो ।
§  इन प्राकृतिक आपदाओं को सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का मंद गति से हुआ, परंतु निश्चित कारण माना गया है।  हड़प्पाई लिपि का प्रथम उदाहरण लगभग 3000 ई.पू के समय का मिलता है।

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