मौर्य वंश

 

मौर्य वंश

मगध साम्राज्य का उत्कर्ष का चोथा वंश-

मगध साम्राज्य का उत्कर्ष का सबसे महत्वपूर्ण वंश मौर्य वंश था जिसका काल 322bc से 185bc तक रहा, मौर्य वंश की स्थापना हुई थी एक एक प्रक्रिया के द्वारा जिसमें कहा जाता है कि चाणक्य जो कोटिल्य के नाम से ज्यादा प्रसिद्ध रहे हैं | वह नंदवंश के राजा घनानंद के दरबार में रहते थे | जहां घनानंद क्रुरू शासक था | एक दिन उसने चाणक्य का अपमान करके उसे अपने दरबार से निकाल दिया था | वह अपने अपमान का बदला लेने के लिए उसने एक मार्ग खोजा उसी मार्ग की तलाश के क्रम में वह चंद्रगुप्त मोर्य से मिला और उसे राजनीतिक शिक्षा दी और उसकी सहायता से मौर्य वंश की स्थापना की |

नंदवंश के राजा को हराने के क्रम में चंद्रगुप्त की सहायता चाणक्य ने की तथा सारी जो रचना थी राजा को हराने के लिए वह सब चाणक्य के द्वारा रचित की गई थी और इसी का प्रणाम हमें मुद्राराक्षस में देखने को मिलता है |

जानकारी के स्रोत-

साहित्यिक-
1. अर्थशास्त्र
2. इंडिका
3. पुराण
4. मुद्राराक्षस
5. बोद्ध और जैन ग्रंथ

पुरातात्विक-
1. अशोक अभिलेख
2. भवन
3. सपूत
4. गुफा
5. मृदभांड
6. जूनागढ़ अभिलेख

चंद्रगुप्त मौर्य

·         चंद्रगुप्त मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य थे |

·         ये 322 BC से 298 BC तक राजा बने रहे |

·         चंद्रगुप्त मौर्य को बोद्ध एवं जैन ग्रंथ में छत्रिय कहा गया है

·         जबकी मुद्राराक्षस पुराण आदि मैं उन्हें शूद्र कहा गया है

·         जस्टिस और एडूके जो यूनानी इतिहासकार हैं इन्होंने चंद्रगुप्त मोर्य को सेन्डरेकोटस कहां है |

·         एप्पियन और प्लूटार्क जो यूनानी इतिहासकार न्होंने चंद्रगुप्त मोर्य को एण्डरोकोटस कहा है |

·    सेन्डरेकोटस और एण्डरोकोटस शब्द का प्रयोग यूनानी किताबों में किया जाता है पहली बार इसकी पहचान विलियम जोंस ने की थी |

·         305 BC में चंद्रगुप्त मौर्य के साथ सेलयुकस के साथ एक महत्वपूर्ण युद्ध हुआ था |

·         जिसमें से सेलयुकस चंद्रगुप्त मोर्य से हार गया था |

    ·         इस युद्ध के बाद एक समझोता हुआ था इस समझौते के क्रम में दो तीन बातें हुई थी
  • मेगारधनीज राजदूत जो सेलयुकस के दरबार में था वह चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में चला जाता है
  • 500 हाथी चंद्रगुप्त मौर्य ने सेलयुकस को दिए थे और बदले में सेलयुकस ने अपने के चार क्षेत्र चंद्रगुप्त मौर्य को दिए थे |
  • सेलयुकस की पुत्री हैलेन की शादी चंद्रगुप्त मौर्य के साथ होती है |

·         जस्टिन और प्लूटार्क के अनुसार 6,00,000 सेना के साथ पूरे भारत को रोढ डाला था |

·         चंद्रगुप्त मोर्य जैन धर्म को मानते थे

अंत में भणभाऊ जो जैन धर्म शाखा के हेड थे | 298 में भणभाऊ जब क्षवणबैलगोला जाते हैं तो चंद्रगुप्त भी उनके साथ जाते हैं और वहां जाकर चंद्रगुप्त अपने प्राण त्याग देते हैं | प्राण त्यागने की दो विधि थी जिनका नाम संकेयन या संपरा था जिसमें भूखे रहकर प्राण त्यागे जाते हैं |

बिंदुसार

·         298 BC से 273 BC तक राजा बने रहे |

·         बिंदुसार को अमित्रघात के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ होता है शत्रु विनाशक

·         साथ ही जैन ग्रंथों में सिंहसेन कहा गया।

·         एक दिन जब बिंदुसार शासन कर रहे थे तो तक्षशिला मैं कई बार विद्रोह उभर रहे थे दो बार प्रमुख विद्रोह हुए यहां पर राजा की सत्ता को चुनौती देने का प्रयास जा रहा था इस चुनौती को दबाने के लिए बिंदुसार ने अपने दो पुत्रों को एक के बाद एक करके भेजा-

·         सबसे पहले उसने सुशीम को भेजा जो विद्रोह को दबाने में पूरी तरह से असफल रहा।

·         उसके बाद अशोक को भेजा जिसने उस विद्रोह को दबाया और उस घटना से लोगों ने कहा कि अशोक में प्रशासनिक योगिता है और वह एक अच्छा राजा बन सकता है

·         सीरिया के राजा एगियोकस थे जिसके पास बिंदुसार ने एक पत्र भेजा था उस पत्र में तीन चीजों की मांग की थी-
1. एक सुखी अंजीर
2. अंगूरी शराब
3. दार्शनिक की मांग

·         एगियोकस ने इनमें से दो चीजों को अर्थात सुखी अंजीर और अंगूरी शराब को भेजने के लिए मान गया था पर उसने दार्शनिक को नहीं भेजा था क्योंकि उसका माना था कि यह उसकी परंपरा के विरुद्ध है

·         मिस्र के राजा टॉलमी फिलाडेल्फिया मैं एक राजदूत को बिंदुसार के दबाने भेजा था

अशोक

·         269 BC से 232 BC तक राजा बना रहा |

·         269 BC मैं राजा बना और राजा बनने से पहले वह मोर्य साम्राज्य के अवंती राज के राज्यपाल के रूप में शासन कर रहा था|

·         अशोक का नाम मास्की और गुर्जर अभिलेख से मिला है|

·         सबसे महत्वपूर्ण घटना 261 में घटित हुई थी जब वह अपने शासन के 8 वर्ष पूरे करके नवे वर्ष में प्रवेश कर रहा था तो वह अपनी सुरक्षा और व्यापार को बढ़ाने के उद्देश्य से कलिंग पर आक्रमण करता है और उसे जीत लेता है इस आक्रमण के बाद लाखों की संख्या में लोग मारे गए और लाखों लोग घायल हो गए जब अशोक युद्ध के बाद युद्ध भूमि में पहुंचा तो रोते-बिलखते लोगों को देखकर उसकी आंखें खुल गई और उसनेे उसी समय घोषणा कर दी कि आज के बाद मैं युद्ध नहीं करूंगा, बल्कि युद्ध की जगह धम्म नीति को अपना लूंगा अर्थात धर्म के मार्ग पर चलूंगा इसके बारे में अशोक ने अपने 13वे शिलालेख में बताया है

·         इस युद्ध के बाद वह एक बौद्ध भिक्षुक से मिला, जिसका नाम थाउपगुप्त और उसी उपगुप्त नामक भिक्षुक से उसने धर्म की शिक्षा ली और वहां से उसने बौद्ध धर्म को अपना लिया| बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद वह धर्म प्रचार के मार्ग पर निकल पड़ा और बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए उस ने कई प्रकार की नीतियों को अपनाया जैसे धर्म महामात्रो की नियुक्ति करना, विभिन्न शिलालेख का निर्माण करवाना, अलग-अलग जगहों पर शिलालेख बनवाना और उन पर अच्छे-अच्छे बातों को लिखवाना ताकि समाज में नैतिकता का प्रचार हो सके|

·         इसके अलावा उसने घूम-घूम कर महामात्रो की मदद से धर्म प्रचार को बढ़ाया इसके साथ ही वह स्वयं कई धर्म जगहों पर यात्राएं की और अपने शासनकाल में मासाहारी को बंद करवाने का फैसला किया| इस प्रकार से उसने धर्म को बहुत महत्त्व दिया|

·         इस प्रकार से बौद्ध धर्म का बहुत अधिक विस्तार इसी काल में देखने को मिलता है

अशोक के अभिलेख

अशोक के अभिलेखों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है

1.   शिलालेख

2.   स्तम्भलेख

3.   गुहालेख

·         अशोक के शिलालेख के खोज 1750 ई० में पाद्रेटी फेंथैलर ने की थी। इनकी संख्या 14 है।

·         अशोक के अभिलेख पढ़ने में सबसे पहली सफलता 1837 ई० में जेम्स प्रिसेप को हुई।

अशोक के प्रमुख शिलालेख एवं उनमें वर्णित विषय

1.

पहला शिलालेख

इसमें पशुबलि की निंदा की गयी है।

2.

दूसरा शिलालेख

इसमें अशोक ने मनुष्य एवं पशु दोनों की चिकित्सा-व्यवस्था का उल्लेख किया है।

3.

तीसरा शिलालेख

इसमें राजकीय अधिकारियों को यह आदेश दिया गया है कि वे हर पांचवें वर्ष के उपरांत दौरे पर जाएँ। इस शिलालेख में कुछ धार्मिक नियमों का भी उल्लेख किया गया है।

4.

चौथा शिलालेख

इस अभिलेख में भेरिघोष की जगह धम्मघोष की घोषणा की गयी है।

5.

पाँचवाँ शिलालेख

इस शिलालेख में धर्म-महामात्रों की नियुक्ति के विषय में जानकारी मिलती है।

6.

छठा शिलालेख

इसमें आत्म-नियंत्रण की शिक्षा दी गयी है।

7.

सातवाँ एवं आठवाँ शिलालेख

इनमें अशोक की तीर्थ-यात्राओं का उल्लेख किया गया है।

8.

नौवाँ शिलालेख

इसमें सच्ची भेंट तथा सच्चे शिष्टाचार का उल्लेख किया गया है।

9.

दसवाँ शिलालेख

इसमें अशोक ने आदेश दिया है कि राजा तथा उच्च अधिकारी हमेशा प्रजा के हित में सोचें।

10.

ग्यारहवाँ शिलालेख

इसमें धम्म की व्याख्या की गयी है।

11.

बारहवाँ शिलालेख

इसमें स्त्री महामात्रों की नियुक्ति एवं सभी प्रकार के विचारों के सम्मान की बात कही गयी है।

12.

तेरहवाँ शिलालेख

इसमें कलिंग युद्ध का वर्णन एवं अशोक के हृदय-परिवर्तन की बात कही गयी है। इसी में पड़ोसी राजाओं का वर्णन है।

13.

चौदहवाँ शिलालेख

अशोक ने जनता को धार्मिक जीवन बिताने के लिए प्रेरित किया।

अशोक के स्तम्भ-लेख 

अशोक के स्तम्भ-लेखों की संख्या 7 है, जो केवल ब्राह्मी लिपि में लिखी गयी है। यह छह अलग-अलग स्थानों से प्राप्त हुआ है

1.

प्रयाग स्तम्भ-लेख

यह पहले कौशाम्बी में स्थित था। इस स्तम्भ-लेख को अकबर ने इलाहाबाद के किले में स्थापित कराया। 

2.

दिल्ली टोपरा

यह स्तम्भ-लेख फिरोजशाह तुगलक के द्वारा टोपरा से दिल्ली लाया गया।

3.

दिल्ली-मेरठ

पहले मेरठ में स्थित यह स्तम्भ-लेख फिरोजशाह द्वारा दिल्ली लाया गया है।

4.

रामपुरवा

यह स्तम्भ-लेख चम्पारण (बिहार) में स्थापित है। इसकी खोज 1872 ई० में कारलायल ने की।

5.

लौरिया अरेराज

चम्पारण (बिहार) में।

6.

लौरिया नंदनगढ़

चम्पारण (बिहार) में इस स्तम्भ पर मोर का चित्र बना है।

·         कौशाम्बी अभलेख कोरानी का अभिलेखकहा जाता है।

·      अशोक का सबसे छोटा स्तम्भ-लेख रूम्मिदेई है। इसी में लुम्बिनी में धम्म-यात्रा के दौरान अशोक द्वारा भू-राजस्व की दर घटा देने की घोषणा की गयी है।

·         अशोक का 7वाँ अभिलेख सबसे लंबा है।

·         प्रथम पृथक शिलालेख में यह घोषणा है कि सभी मनुष्य मेरे बच्चे हैं।

·         अशोक का शार--कुना (कंदहारअभिलेख ग्रीक एवं आर्मेइक भाषाओं में प्राप्त हुआ है।

मौर्य वंश का प्रशासन

राजा सबसे हेड राजा होता था और जितनी भी प्रशासनिक व्यवस्था थी| जितनी भी सैनिक शक्ति, न्याय शक्ति, वह सारी की सारी शक्तियां राजा के पास होती थी| राजा अपने विभिन्न मंत्रियों और अधिकारियों के माध्यम से व्यवस्थाओं को चलाते थे| लेकिन फाइनल डिसीजन यह सबसे ज्यादा ताकतवर व्यक्ति राजा ही होता था| यहां तक कि मौर्य वंश केंद्रीय प्रशासन के रुप में भी जाना जाता है क्योंकि सारी शक्तियां केंद्र में निहित थी और हमें पता है कि पूरी प्रशासन का केंद्र राजा ही होता था| राजा की सहायता के लिए बहुत मंत्री होते थे| उन मंत्रियों को आमत्य कहा जाता था|

कुछ अन्य मंत्री भी होते थे जैसेसेनापति, पुरोहित, आदि इसके अलावा भी मंत्रियों के साथ-साथ अधिकारी जन होते थे| जो राजा को प्रशासनिक व्यवस्था को चलाने में मदद करते थे उन धिकारियों को शीर्षस्थ अर्थात तीर्थ कहकर संबोधित किया जाता था| इन सभी अधिकारियों के द्वारा राजा प्रशासन को चलाता था|

प्रशासनिक समिति एवं उसके कार्य

समिति

कार्य

प्रथम

उद्योग एवं शिल्प कार्य का निरीक्षण

द्वितीय

विदेशियों की देखरेख

तृतीय

जन्म-मरना का विवरण रखना

चतुर्थ

व्यापार एवं वाणिज्य की देखभाल

पंचम

निर्मित वस्तुओं के विक्रय का निरीक्षण

षष्ठ

बिक्री कर वसूल करना

 

·  सम्राट की सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद होती थी जिसमें सदस्यों की संख्या 12, 16 या 20 हुआ करती थी।

·         अर्थशास्त्र में शीर्षस्थ अधिकारी के रूप में तीर्थ का उल्लेख मिलता हैजिसे महामात्र भी कहा जाता था। इसकी संख्या 18 थी।

·         अर्थशास्त्र में चर जासूस को कहा गया है।

·         अशोक के समय मौर्य साम्राज्य में प्रान्तों की संख्या 5 थी। प्रान्तों को चक्र कहा जाता था।

·         प्रान्तों के प्रशासक कुमार  आर्यपुत्र या राष्ट्रिक कहलाते थे।

·         प्रान्तों का विभाजन विषय में किया गया थाजो विषयपति के अधीन होते थे।

·         प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थीजिसका मुखिया ग्रामिक कहलाता था।

·         बिक्री-कर के रूप में मूल्य का 10वाँ भाग वसूला जाता था।

·         मेगास्थनीज के अनुसार अग्रोनोमाई मार्ग-निर्माण अधिकारी था।

·  जस्टिन के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य के सेना में लगभग 50,000 अश्वारोही सैनिक, 9000 हाथी एवं 8000 रथ थे।

·         युद्ध-क्षेत्र में सेना का नेतृत्व करनेवाला अधिकारी नायक कहलाता था।

·         सैन्य विभाग का सबसे बड़ा अधिकारी सेनापति होता था।

·         अशोक के समय जनपदीय न्यायालय के न्यायाधीश को राजुक कहा जाता था।

·         सरकारी भूमि को सीता भूमि कहा जाता था।

·         बिना वर्षा के अच्छी खेती होनेवाली भूमि को अदेवमातृक कहा जाता था।

प्रमुख मंत्री

·         समाहर्ता – राजस्व विभाग के प्रधान जो बलिभाग (tax) के कामों को देखतेसीताध्यक्ष – राजकीय कृषि विभाग के अध्यक्ष जो संपूर्ण किसी गतिविधियों को देखते थेसीता भूमि बहुत परिचित थी सीता भूमि का अर्थ सरकारी भूमि अर्थात राजस्व भूमि को सीता भूमि कहते थे|

·         पग्ध्यक्ष – वाणिज्य विभाग के अध्यक्ष|

·         अक्षपटलाध्यक्ष – महालेखाकार आदि।

सैन्य विभाग

यहां एक महत्वपूर्ण विभाग था क्योंकि मौर्य वंश का विस्तार बहुत बड़ा था| यह लगभग अफगानिस्तान के उत्तर, पाकिस्तान आदि क्षेत्र भी भारत में शामिल थे| इसलिए इतने बड़े साम्राज्य को चलाने के लिए सैनी विभाग होना जरूरी था| विभाग का हैड जो होता था वह सेनापति कहलाता था| सेनापति अध्यक्ष से सेना का संचालन और राजा का सहयोग करते थे| उस समय के इतिहासकारो में जस्टिक और पिन्नी ने बताया है कि मौर्य काल में चार प्रकार की सेना देखने को मिलती है-
1. पैदल सेना
2. हाथी सेना
3. घुड़सवार सेना
4. रथ सेना

पिन्नी के अनुसार लगभग 600000 पैदल सेना, 30,000 घुड़सवार सेना और 9000 हाथी सेना चंद्रगुप्त मौर्य की सेना में शामिल थी| जिसकी सहायता से उसने पूरे भारत को जीत लिया था।

सैन्य समिति एवं उनके कार्य

समिति

कार्य

प्रथम

जलसेना की व्यवस्था

द्वितीय

यातायात एवं रसद की व्यवस्था

तृतीय

पैदल सैनिकों की देख-रेख

चतुर्थ

अश्वारोहियों की सेना की देख-रेख

पंचम

गजसेना की देख-रेख

षष्ठ

रथसेना की देख-रेख

 

न्याय व्यवस्था

प्रशासन एक मुख्य बिंदु होता है कि जहां न्याय व्यवस्था अच्छी होगी वहां पर प्रशासन लंबे समय तक चल सकता है ऐसे मैं यहां पर एक अच्छा प्रशासन होने के साथ साथ न्याय व्यवस्था भी अच्छी देखने को मिली है इसमे न्याय का सबसे बड़ा व्यक्ति स्वयं राजा ही होता था| लेकिन इतने बडे और विशाल साम्राज्य मैं न्याय कर पाना कठिन था| ऐसे मैं अलग-अलग छोटे-छोटे क्षेत्र में कई ऐसे संस्थाएं न्यायालय स्थापित किए गए थे इन स्थानीय न्यायालय कि जो हैड होते थे उन्हें राजू कहा जाता था लेकिन न्यायालय दो भागों में विभाजित था-

1. पहला जिसमें दीवानी मामले सुलझाए जाते थे जैसे- जमीन से जुड़े हुए मामले आदि उन्हें धर्मस्थानीय कहते थे|

2.    दूसरा जिसमें फौजदारी मामले सुविधाएं जाते जैसे- चोरी, डकैती, खून आदि उन्हें कंरकशोधन कहते थे|

गुप्तचर

न्याय व्यवस्था के साथ-साथ राजा को अपने बाहरी विभाग से सूचना प्राप्त करने के लिए एक गुप्तचर की जरुरत होती थी और इस तरह से यहां पर एक विभाग गुप्तचर विभाग भी बनाया गया था गुप्तचर की नियुक्ति की जाती थी और गुप्तचर के माध्यम से राजा के प्रति समाज में क्या भावना है| यह पता करने का प्रयास किया जाता था| इसके अलावा राजा के विरुद्ध किए जा रहे सरयंत्र का पता लगाने के लिए भी गुप्तचर की सहायता ली जाती थी |

मौर्य प्रशासन में गुप्तचर विभाग महामात्य सर्प नामक अमात्य के अधीन था।गुप्तचर को अर्थशास्त्र में गूढ पुरुष कहा जाता था| इसके अलावा गुप्तचर के संबंध में अर्थशास्त्र में एक जानकारी मिलती है कि गुप्तचर दो प्रकार के होते थे-


1.
पहला जो किसी एक स्थान पर रहकर राजा के संबंध में या समाज के संबंध में जानकारी इकट्ठा करता है उसे संस्था कहते थे|

2. दूसरा जो पूरे समाज में घूम-घूम कर सोचना है इकट्ठा करता था उसे संचार कहते हैं|

 प्रांत

जैसे कि हमें पता है कि हमारे देश को कई राज्यों बाटा गया | उसी प्रकार से मोर्य साम्राज्य जो इतना विशाल था उसे भी 5 प्रांतों में बाटा गया था| इन प्रांतों को चक्र भी कहते है-

1.     उत्तरापंथ इसकी राजधानी तक्षशिला थी |

2.     दक्षिणापंथ इसकी राजधानी स्वर्णगिरी थी

3.    प्राशी (पूर्वी) इसकी राजधानी पाटलीपुत्र थी

4.    अवंती इसकी राजधानी उज्जयिनी थी |

5.    कलिंग इसकी राजधानी तोसली थी |

 

विषय

प्रांतो को छोटे-छोटे पार्ट में विभाजित किया गया था | जिसे विषय कहा जाता था| इन विषय के जो हैड होते थे| उसे विषयपति कहते थेजबकि प्रांतो के जो हैड होते थेवे राजा के पुत्र होते थे जिसे कुमार कहा जाता था| विषयो के नीचे भी छोटे छोटे गांव बनाए गए थे | जिसमें 10 गांव के समूह को गोप कहा जाता था| और इसमें सबसे छोटी इकाई ग्राम थी ग्राम के हेड ग्रामीक और बड़े इकाई देश

नगर प्रशासन

जैसे कि हमारे देश में कुछ नगर हैं तो कुछ गांव होते हैं तो इस प्रकार मोर्य साम्राज्य में भी कुछ नगर थे उन नगरों को चलाने के लिए एक अलग प्रकार का प्रशासनिक व्यवस्था की जरूरत थी क्योंकि नगरों की संख्या हमेशा ज्यादा होती थी प्रशासन दुविधा बढ़ जाती था तो ऐसे मैं नगर प्रशासन को चलाने के लिए विशेष प्रशासन की जरुरत पड़ी-

मेगास्थनीज मैं अपनी indica पुस्तक में इस नागरी प्रशासन के संबंध में विस्तार चर्चा की है इसने बताया है कि नगर प्रशासन को अच्छे ढंग से चलाने के लिए 6 प्रकार की समितियां बनाई गई थी और सभी समितियां को अलग-अलग काम दिए गए थे इसके अलावा सभी समितियों में पांच पांच सदस्य होते थे अर्थात एक समिति में पांच सदस्य होते थे और कुल 6 समितियां थी तो इस प्रकार से टोटल 30 सदस्यों के कमेटी होती थी इस सदस्यों द्वारा ही नगर प्रशासन काम कर पाता था

मौर्य समाज

कोटिल्य के अनुसार प्राचीन काल की तरह ही समाज ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, अर्थात 4 वर्ग में समाज बटा हुआ था |लेकिन कोटिल्य ने यह भी बताया है कि समाज में परिवर्तन गया था जिससे शूद्र की स्तिथि ठीक हो गई थी कोटिल्य के अनुसार दास प्रथा थी

मेगास्थनीज के अनुसार समाज 7 वर्ग में विभाजित था इसका वास्तविक कारण यहा है कि मेगास्थनीज ने भारतीय समाज को उसकी व्यवस्था के आधार पर नहीं, बल्कि उसके कामों के आधार पर बाटा है| यही कारण है कि मेगास्थनीज ने इन्हें भारतीय समाज को 7 वर्गों में बांटा है और मेगास्थनीज के अनुसार दास प्रथा नहीं थी |

1.     दार्शनिक

2.     किसान

3.    अहीर

4.    कारीगर

5.    सैनिक

6.    निरीक्षक

7.    समास्थ अर्थात राजा के की सभा में पार्टिसिपेट करने वाला

स्त्रीयो की स्थिति ठीक थी क्योंकि उन्हें शिक्षा का अधिकार मिला था पर इतनी भी अच्छी नहीं थी क्योंकि तलाक की प्रथा भी थी और इसके साथ ही यहां वेश्यावृत्ति की भी प्रथा थी जो स्त्रियां वेश्यावृत्ति करती थी उन्हें रूपाजीवा कहा जाता था|

मौर्य वंश की अर्थव्यवस्था

अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार कृषि था और कृषि कार्य से टैक्स प्राप्त करके राजा अपने राजस्व को बड़ते थे | मोर्य काल में जो कृषि पर टैक्स लिया जाता था वह लगभग 1/6 से 1/4 लिया जाता था और टैक्स की वसूली राजस्व करता था टैक्स वसूली करके राजकोष में रखते थेऔर इन्हीं के माध्यम से राजा खर्च और प्रशासन को संचालित करता था|

·          इसका आर्थिक स्रोत व्यापार था जो कि आंतरिक और बाहय दोनों प्रकार से होता था|

·          प्रमुख उद्योग वस्त्र था|

·          व्यापार को संचालित करने के लिए मुद्रा का प्रयोग किया जाता था|

·         यहां व्यापार के संबंध में टैक्स की चोरी भी की जाती थी और चोरी करने वालों को मृत्युदंड दिया जाता था| इतना कठोर नियम इसलिए बनाया गया था क्योंकि राजा के पास अगर आय नहीं होगी तो वह कहीं से भी प्रशासन को नहीं चला पाएगा और राजतंत्र कि यह एक परंपरा होती है कि जितना कठोर नियम होगा, उतना ही राजतंत्र access कर पाएगा।

·         भडोज एक प्रमुख बंदरगाह था जिसका बहुत अधिक प्रयोग किया जाता था

मौर्य वंश की कला

सिंधु घाटी सभ्यता के बाद कला व्यवस्थित विकास मोर्य काल में प्रारंभ होता है अर्थात सिंधु घाटी सभ्यता में कला के विभिन्न रुप देखने को मिलते हैं| जैसे- बडी संख्या में वहां से अलग-अलग नगर प्राप्त हुएनगरीय संरचना देखने को मिली, कच्ची पक्की ईटो का प्रयोग और मूर्तियां आदि देखने को मिलती हैं सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के बाद वेदिक सभ्यता में कला विलुप्त हो जाती है, बहुत कम मात्रा में कला देखने को मिलती है लेकिन मौर्य काल में कला व्यवस्थित रुप से प्रारंभ होती है | मोर्य काल में कला पत्थरों पर की जाती थी ताकि वह लंबे समय तक टिक सके |

शिलालेख

·         शिलालेख की संख्या 14 है|

·         यहा भारत के अलग-अलग जगहों से मिला है|

·         प्रथम शिलालेखपशुबली की निंदा|

·         चौथा शिलालेखभरीघोष की जगह धम्मघोष|

·         भरीघोष का मतलब “युद्ध की नीति”|

·         धम्मघोष का मतलब धर्म की नीति”|

·         पांचवा शिलालेखमहामात्रो की नियुक्ति |

·         सातवां और आठवां शिलालेखतीर्थ यात्रा का उल्लेख|

·         तेरहवा शिलालेखकलिंग युद्ध और ह्रदय परिवर्तन का वर्णन|

शीलालिखो की खोज

·         पोदेटी फेन्यलर ने 1750. वी. में की थी

·         शिलालेख पर लिखी गई भाषा ब्राहमी, खरोष्ठी, ग्रीक, अरमाइक लिपि थी| जिसके कारण शुरू में इसे पढ़ा नहीं जा सका | बाद में बहुत प्रयास के बाद 1837 मैं जेंस प्रिसेय ने पहली बार पढ़ा था |

लिपीयो की विशेषता

·          ब्राहमीबाईं ओर से दाएं और लिखी जाती है

·         खरोष्ठीदाएं ओर से बाई और लिखी जाती हैं

·         ग्रीक और अरमाइक पाकिस्सेतान और अफगानिस्तान में मिली है

स्तंभ

सारनाथ स्तंभ – यह इंपॉर्टेंट है इसमें चार शेरों के सिर लगे होते हैं और इसके नीचे घोड़े,हाथी, शेर,बैल और इसके नीचे 24 तीलियों वाला चक्र होता है इसी में से हमारे राष्ट्रीय चिंह लिया गया है|

महालेख

बराबर की पहाड़ियों में आजीविको के लिए अशोक ने निवास स्थान बनाया था और बाद में उसके पोत्र दशरथ ने नागार्जुन पहाड़ी में गुफा का निर्माण करवाया था जो कहीं ना कहीं कला को संबोधित करता है|

स्तूप

प्रमुख स्तूप सांची, भरहूल|
प्राचीन ग्रंथ से यह पता चला है कि अशोक ने 84000 स्तूप बनवाए थे|

राजप्रसाद

यह राजा का महल था| यह मोर्य काल मे बहुत प्रसिद्ध रहा चंद्रगुप्त मौर्य जो मौर्य वंश के संस्थापक थे| उन्होंने एक राजा का महल पाटलीपुत्र में बनवाया था और इस महल के संबंध में जितने भी विदेशी यात्रिओं ने इसके बारे में लिखा है कि यह एक ऐसा महल था जिसकी तुलना देवताओं के महल से की जा सकती है इस महल की सबसे बड़ी वे विशेषता यह थी कि 80 पिलर पर बना विशाल महल था उस पिलर का निर्माण पत्थरों से किया गया था और पहली बार देखने को मिलता है कि बड़े-बड़े महलों में पत्थरों का उपयोग किया जाता है इस महल की जो छत और फर्श थी वह लकड़ी की बनी हुई थी|

अशोका का धम्म

अशोक ने जब कलिंग के साथ युद्ध करने के बाद ह्परदय परिवर्तन किया तो उसने बौद्ध धर्म को अपना लिया था | बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद उसने कई तरह की नई नीति और कई सारे विचारों को अपनाया | यही कारण है कि बहुत सारे इतिहासकार अशोक के धम्म को एक अलग रुप में देखते हैं और ऐसा मानते है कि अशोका का जो धम्म है वह केवल बोद्ध धर्म ही नहीं, बल्कि उस में कई धर्म का सार था इस कारण अशोक के धर्म को सभी धर्मों के सार के रूप में देखा जाता है |और इस धर्म को केवल बौद्ध धर्म नहीं माना जाता बल्कि नैतिकता आधार सभी धर्मों का मिला-जुला रुप में देखा जाता है |

धर्म प्रचार के लिए प्रसार

·         अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा था ताकि वहां जाकर बुद्ध धर्म का प्रचार कर सके|

·         इसी प्रकार से उसने अपनी पुत्री को नेपाल भेजा ताकि वह वहां जाकर धर्म का प्रचार कर सके|

·         धम्म महामात्रो की नियुक्ति की गई यह एक ऐसा पद था जिसका काम था कि वह प्रतेक 5 वर्षों में घूम-घूम कर समाज में के लोगों को धार्मिक मामलों के बारे में जागरूक करें|

·         शिलालेख स्तंभ सपूत का निर्माण|

·         साथ ही अशोक कई धर्म यात्रो पर गया था |

धम्म यात्रा का क्रम

गया से कुशीनगर, कुशीनगर से लुम्बनी, लुम्बनी से कपिलवस्तु, कपिलवस्तु से सारनाथ, सारनाथ से क्षाव्ती

इसके अलावा अशोक पहली बार अपने शासन के 10 वे वर्ष में बोधगया की यात्रा की थी और फिर 20 वे वर्ष में रुम्मिढेई की यात्रा पर गया था |

इन सभी की वजहों के करण मगध साम्राज्य का उत्कर्ष इनता विशाल और बड़ा हुआ था |

 अर्थशास्त्र में वर्णित तीर्थ

1.

मंत्री

प्रधानमंत्री

2.

पुरोहित

धर्म एवं दान-विभाग का प्रधान

3.

सेनापति

सैन्य विभाग का प्रधान

4.

युवराज

राजपुत्र

5.

दौवारिक

राजकीय द्वार-रक्षक

6.

अन्तर्वेदिक

अंतःपुर का अध्यक्ष

7.

समाहर्ता

आय का संग्रहकर्त्ता

8.

सन्निधाता

राजकीय कोष का अध्यक्ष

9.

प्रशास्ता

कारागार का अध्यक्ष

10.

प्रदेष्ट्रि

कमिश्नर

11.

पौर

नगर का कोतवाल

12.

व्यवहारिक

प्रमुख न्यायाधीश

13.

नायक

नगर-रक्षा का अध्यक्ष

14.

कर्मान्तिक

उद्योगों एवं कारखानों का अध्यक्ष

15.

मंत्रिपरिषद

अध्यक्ष

16.

दुर्गपाल

दुर्ग-रक्षक

17.

अंतपाल

सीमावर्ती दुर्गों का रक्षक

18.

दण्डपाल

सेना का सामान एकत्र करनेवाला

मेगास्थनीज ने भारतीय समाज को सात वर्गों में विभाजित किया है

1.   दार्शनिक

2.   किसान

3.   अहीर

4.   कारीगर

5.   सैनिक

6.   निरीक्षक

7.   सभासद

·         स्वतंत्र वेश्यावृत्ति को अपनाने वाली महिला रूपाजीवा कहलाती थी।

·         नंद वंश के विनाश करने में चन्द्रगुप्त मौर्य ने कश्मीर के राजा पर्वतक से सहायता प्राप्त की थी।

·         मौर्य शासन 137 वर्षों तक रहा।

बृहद्रथ 

·         मौर्य वंश का अंतिम शासक बृहद्रथ था।

·         बृहद्रथ की हत्या इसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 185 ई० पू० में कर दी और मगध पर शुंग वंश की नींव डाली।

मौर्य साम्राज्य / मौर्य वंश / मौर्य काल से संबंधित प्रश्न उत्तर : (Maurya Samrajya GK Question Answer in Hindi)

1.   चाणक्य का अन्य नाम क्या था – विष्णुगुप्त

2.   किसकी तुलना मैकियावेली केप्रिंससे की जाती है – कौटिल्य केअर्थशास्त्र

3.   वह शासक कौन था जिसने राजसिंहासन पर बैठने के लिए अपने बड़े भाई सुसीम की हत्या की थी – अशोक

4.   सम्राट अशोक की वह पत्नी कौन थी जिसने उसको प्रभावित किया था – करूवाकी

5.   अशोक ने अपने सभी अभिलेखों में एकरूपता से किस प्राकृत का प्रयोग किया है – मागधी

6.   बिन्दुसार ने विद्रोहियों को कुचलने के लिए अशोक को कहाँ भेजा था – तक्षशिला

7.   वह व्यक्ति कौन था जिसका नामदेवान पियादशीभी था – मौर्य सम्राट अशोक

8.   भारत का प्राचीनतम राजवंश कौन-सा था – मौर्य

9.   कौटिल्य / चाणक्य किसका प्रधनमंत्री था – चन्द्रगुप्त मौर्य

10.         कलिंग विजय के उपरांत अशोक महान ने किस धर्म को अंगीकार कर लिया था – बौद्ध

11.         चन्द्रगुप्त के शासन विस्तार में किसने मुख्य रूप से मदद की थी – चाणक्य

12.         साँची किस कला मूर्तिकला का निरूपण करता है – बौद्ध

13.         प्राचीन भारत का वह प्रसिद्ध शासक जिसने अपने जीवन के अंतिम दिनों में जैन धर्म को अपनाया था – चन्द्रगुप्त मौर्य

14.         मौर्य साम्राज्य (maurya samrajya) की स्थापना किसने की – चन्द्रगुप्त मौर्य

15.         मौर्य साम्राज्य में प्रचलित मुद्रा का नाम क्या था – पण

16.         अशोक का उत्तराधिकारी कौन था – कुणाल

17.         मुद्राराक्षस के लेखक कौन थे – विशाखदत्त

18.         मालवा, गुजरात एवं महाराष्ट्र किस शासक ने पहली बार जीते – चन्द्रगुप्त मौर्य

19.         किसने सहिष्णुता, उदारता और करुणा के त्रिविध आधार पर राजवंश की स्थापना की – अशोक

20.         अर्थशास्त्रका लेखक किसका समकालीन था – चन्द्रगुप्त का

21.         नंद वंश के पश्चात मगध पर किस राजवंश ने शासन किया – मौर्य

22.         मौर्य काल में शिक्षा का सर्वाधिक प्रसिद्ध केंद्र क्या था – तक्षशिला

23.         मेगास्थनीज की पुस्तक का नाम क्या है – इण्डिका

24.         किसके ग्रंथ में चन्द्रगुप्त मौर्य का विशिष्ट रूप से वर्णन हुआ है – विशाखदत्त

25.         वह कौन-सा स्रोत है जिसमें पाटलिपुत्र के प्रशासन का वर्णन उपलब्ध है – इण्डिका

26.         अशोक के शिलालेखों में प्रयुक्त भाषा कौन-सा है – प्राकृत

27.         किस मौर्य (maurya) राजा ने दक्कन की विजय प्राप्त की थी – चन्द्रगुप्त

28.         मेगास्थनीज ने भारतीय समाज को कितनी श्रेणियों में विभाजित किया – सात

29.         कौटिल्य केअर्थशास्त्रमें किस पहलू पर प्रकाश डाला गया है – राजनीतिक नीतियाँ

30.         पाटलिपुत्र को किस शासक ने सर्प्रथम अपनी राजधानी बनाई – चन्द्रगुप्त मौर्य

31.         बराबर (गया जिला) की गुफाओं का उपयोग किसने आश्रयगृह के रूप में किया – आजीविकों ने

32.         किस अभलेख से यह साबित होता है कि चन्द्रगुप्त का प्रभाव पश्चिम भारत तक फैला हुआ था – रुद्रदमन का जूनागढ़ अभिलेख

33.         केवल वह स्तंभ जिसमें अशोक ने स्वयं को मगध का सम्राट बताया है – भाब्रू स्तंभ

34.         प्रथम भारतीय साम्राज्य किसके द्वारा स्थापित किया गया – चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा

35.         उत्तरांचल में अशोक का एक शिलालेख कहाँ पर स्थित है – कालसी में

36.         साँची का स्तूप किसने बनवाया – अशोक

37.         अशोक के शिलालेखों को पढ़नेवाला प्रथम अंग्रेज कौन था – जेम्स प्रिंसेप

38.         कलिंग युद्ध की विजय तथा क्षत्रियों का वर्णन अशोक के किस शिलालेख में है – तेरहवाँ शिलालेख

39.         प्रसिद्ध यूनानी राजदूत मेगास्थनीज भारत में किसके दरबार में आये थे – चन्द्रगुप्त मौर्य

40.         चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूकस को कब पराजित किया – 305 ई० पू० में

41.         कौन-सा राजा प्रायः जनता के संपर्क में रहता था – अशोक

42.         अशोक के अधिकांश अभिलेख किस भाषा लिपि में हैं – प्राकृत ब्राह्मी

43.         किस ग्रंथ में चन्द्रगुप्त मौर्य के लिएवृषल’ (निम्न कुल) शब्द का प्रयोग किया गया है – मुद्राराक्षस

44.         किस राज्यादेश में अशोक के व्यक्तिगत नाम (अशोक) का उललेख मिलता है – मास्की

45.         श्रीनगर की स्थापना किस मौर्य शासक ने की – अशोक

46.         उत्तरापथ प्रान्त की राजधानी क्या थी – तक्षशिला

47.         दक्षिणापथ की राजधानी क्या थी – सुवर्णगिरि

48.         अवन्ति राष्ट्र की राजधानी क्या थी – उज्जयिनी

49.         प्राची (पूर्वी प्रदेश) की राजधानी क्या थी – पाटलिपुत्र

50.         किस ग्रंथ में शूद्रों के लिएआर्यशब्द का प्रयोग हुआ है – अर्थशास्त्र

51.         अशोक ने अपने राज्याभिषेक के चौथे वर्ष मेंनिग्रोथके प्रभाव से प्रभावित होकर किससे बौद्ध धर्म की दीक्षा ली – उपगुप्त

52.         किसने पाटलिपुत्र कोपोलिब्रोथाकहा – मेगास्थनीज

53.         मौर्य काल मेंअग्रोनोमाईकिसे कहा जाता था – सड़क निमाण अधिकारी

54.         मौर्य काल में गुप्तचरों को क्या कहा जाता था – गूढ़ पुरुष

55.         किस जैन ग्रंथ में चन्द्रगुप्त मौर्य के जैन धर्म अपनाने का उल्लेख मिलता है – परिशिष्टपर्वन

56.         किस महीने से मौर्यों का राजकोषीय वर्ष (fiscal year) आरंभ होता था – आषाढ़ (जुलाई)

57.         अशोक के बारे में जानने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत क्या है – शिलालेख

58.         अशोक के काल में कौन-सी लिपि दक्षिण भारत में प्रवर्तित हुई थी – ब्राह्मी

59.         भारतीय लिखने की कला नहीं जानतेयह किसकी उक्ति थी – मेगास्थनीज

60.         किस मौर्य सम्राट ने एक विदेशी राजा — सीरिया के एण्टियोकस प्रथमसे अंजीर, शराब और दार्शनिक को भारत भेजने का आग्रह किया था – बिन्दुसार

61.         अशोक द्वारा कलिंग पर चढ़ाई की जानकारी के लिए कौन सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है – 13वाँ वृहत शिलालेख

62.         बिन्दुसार की मृत्यु के समय अशोक किस प्रान्त का गवर्नर था – उज्जैन

63.         किस शिलालेख में अशोक ने घोषणा की है किसभी मनुष्य मेरे बच्चे हैं’ – पृथक कलिंग शिलालेख

64.         कौन-सी घोषणा युद्ध और हिंसा के प्रति अशोक के आंतरिक दुःख को स्पष्ट करता है – कलिंग का पृथक शिलालेख

65.         मौर्य काल मेंसीतासे क्या तात्पर्य था – राजकीय भूमि से प्राप्त आय

66.         मौर्यकला का सबसे अच्छा नमूना कौन-सा है – स्तंभ

67.         अशोक ने श्रीलंका में बौद्ध धर्म का प्रचार हेतु किसे भेजा – महेन्द्र एवं संघमित्रा

68.         अशोक ने मनसेहरा (पाकिस्तान) एवं शहबाजगढ़ी (पाकिस्तान) से प्राप्त वृहत शिलालेखों में किस लिपि का प्रयोग किया गया है – खरोष्ठी

69.         कहाँ से अशोक के द्विभाषाई (ग्रीक और अरमाइक) अभिलेख प्राप्त हुए हैं – शर--कुना / कंधार

70.         कौटिल्य द्वारा रचितअर्थशास्त्रकितने अधिकरणों में विभाजित है – 15

71.         अशोक का समकालीन तुरमय कहाँ का राजा था – मिस्र

72.         चन्द्रगुप्त मौर्य का विवाह किसके साथ हुआ था – कार्नेलिया (हेलेना)

73.         चन्द्रगुप्त ने किससे जैनधर्म की दीक्षा ली थी – भद्रबाहु से

74.         चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु कहाँ पर हुई थी – श्रवणबेलगोला (कर्नाटक)

75.         बिन्दुसार को किस नाम से जाना जाता था – अमित्रघात

76.         एण्टियोकस ने बिन्दुसार के दरबार में किस राजदूत को भेजा था – डाइमेकस

77.         डाइमेकस को किसका उत्तराधिकारी माना जाता है – मेगास्थनीज

78.         किस अभिलेख में अशोक का नाम अशोक मिलता है – मास्की एवं गुर्जरा अभिलेख

79.         फिलाडेल्फस (टॉलमी द्वितीय) ने अशोक के दरबार में किस राजदूत को भेजा था – डियानीसियस

80.         अशोक की माता का नाम क्या था – सुभद्रांगी

81.         भारत में शिलालेख का प्रचलन सर्प्रथम किसने किया – अशोक

82.         अशोक का सबसे छोटा स्तम्भ-लेख कौन-सा था – रूम्मिदेई

83.         नंद वंश के विनाश करने में चन्द्रगुप्त मौर्य ने किस किस राजा से सहायता प्राप्त की थी – कश्मीर के राजा प्रवर्तक से

84.         मौर्य वंश का अंतिम शासक कौन था – बृहद्रथ

85.         बृहद्रथ की हत्या किसने की थी – पुष्यमित्र शुंग ने


 


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