भारत परिषद अधिनियम 1909
भारत परिषद अधिनियम 1909 (भारतीय परिषद अधिनियम 1909): भारत परिषद अधिनियम 1909 को मार्ले-मिंटो सुधार के नाम से भी जाना जाता है। उस समय लार्ड मिंटो द्वितीय तत्कालीन वायसराय और जॉन मार्ले इंग्लैंड में भारत सचिव के पद पर कार्यरत थे। वास्तव में इस अधिनियम के पारित होने से पूर्व 1906 में आगा खां के नेतृत्व में एक मुस्लिम प्रतिनिधित्व मण्डल इंग्लैण्ड में तत्कालीन भारत-सचिव जॉन मार्ले से मिला और उनसे सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व की मांग को रखा, लेकिन उनकी इस मांग पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। बाद ये माँगे भारत के वायसराय लार्ड मिंटो द्वितीय के सम्मुख रखी गयी जिन्होंने इन मांगों को मान लिया।
भारतीय परिषद अधिनियम 1909
इस अधिनियम की प्रमुख निम्नलिखित निम्नलिखित हैं-
- इस अधिनियम में प्रथम बार निर्वाचन में धर्म के आधार पर मुस्लिमों के लिए सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया गया।
- केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों के आकार में काफी वृद्धि की गयी।केंद्रीय परिषद की संख्या को 16 से बढ़ाकर 60 कर दिया गया। प्रांतीय विधानपरिषों में नंबर एक समान नहीं था।
- इस प्रकार इस अधिनियम ने सांप्रदायिकता को वैधानिकता प्रदान की। इसी कारण लार्ड मिंटो 2 (द्वितीय) को सांप्रदायिक निर्वाचन का जनक के रूप में भी जाना जाता है।
- केंद्रीय परिषद में सरकारी बहुमत को बरकरार रखा गया लेकिन प्रांतीय परिषदों में गैर-सरकारी सदस्यों के बहुमत की अनुमति थी।
- विधान परिषद के लिए प्रत्यक्ष निर्वाचन की प्रक्रिया को भी शुरू किया गया।
- इस अधिनियम से केंद्रीय और प्रांतीय स्तर में विधान परिषद के चर्चा कार्यों का मापरा बढ़ाया गया। जैसे बजट में समालोचन प्रश्न पूछना, बजट पर संकल्प रखना आदि। लेकिन वायसराय उत्तर देने के लिए बाध्य नहीं था।
- इस अधिनियम के तहत पहली बार किसी भारतीय को वायसराय और गवर्नर की कार्यपरिषद के साथ एसोसिएशन बनाने का प्रावधान किया गया। सतेन्द्र प्रसाद सिन्हा वायसराय की कार्यपालिका परिषद के प्रथम भारतीय सदस्य बने। उन्हें विधि सदस्य बनाया गया था।
- इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार मुस्लिम नेताओं के लिए केवल मुस्लिम मतदाता ही मतदान कर सकता था।
- मुस्लिमों को जनसंख्या के आधार पर केंद्रीय और प्रांतीय परिषद में अधिक अधिकार को भेजने की व्यवस्था की गयी। मुस्लिम व्यक्तियों के लिए वोट डालने के लिए आय की योग्यता भी हिंदुओं से कम रखी गई।
- इसमें प्रेसीडेंसी कॉर्पोरेशन, चैंबर्स ऑफ कॉमर्स विश्वविद्यालयों और जमींदारों के लिए अलग प्रतिनिधित्व का प्रावधान भी किया गया।
- इस अधिनियम को मार्ले – मिंटो सुधार अधिनियम के नाम से भी जाना जाता है। क्यूंकि 1909 ई. में लॉर्ड मार्ले भारत के राज्य सचिव तथा लॉर्ड मिंटो भारत के वायसराय थे।
इसके बाद आया था भारत शासन अधिनियम 1919।
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