आपात उपबन्ध
- आपात उपबंध भारत शासन अधिनियम-1935 से लिये गए हैं।
- भारतीय संविधान के भाग 18 में अनुच्छेद 352 से 360 तक आपातकाल से संबंधित उपबंध उल्लिखित हैं।
भारतीय संविधान में तीन प्रकार के आपातकाल की व्यवस्था की गयी है।
1. राष्ट्रीय आपात(अनुच्छेद 352)
2. राष्ट्रपति शासन(अनुच्छेद 356)
3. वित्तीय आपात(अनुच्छेद 360)
राष्ट्रीय आपात(अनुच्छेद-352)
- इसकी घोषणा में निम्नलिखित में किसी भी आधार पर राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है- (1)युद्ध (2) बाह्य आक्रमण (3)सशस्त्र विद्रोह
- 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा संपूर्ण देश में या उसके किसी भाग में की जा सकती है।
- राष्ट्रीय आपात के समय राज्य सरकार निलंबित नही की जाती है। अपितु वह संघ की कार्यपालिका के पूर्ण नियंत्रण में आ जाती है।
- राष्ट्रपति द्वारा की गयी आपात की घोषणा एक माह के प्रवर्तन में रहती है और यदि इस दौरान इसे संसद के दो-तिहाई बहुमत से अनुमोदित करवा लिया जाता है, तो वह 06 माह तक प्रवर्तन में रहती है। संसद इसे पुनः एक बार में छह महीने तक बढ़ा सकती है।
- आपात उद्घोषणा लोकसभा की प्रथम बैठक की तिथि से 30 दिन के अन्दर अनुमोदित होना चाहिए, अन्यथा 30 दिन के बाद यह प्रवर्तन में नही रहेगी। यदि लोकसभा आपात उद्घोषणा को साधारण बहुमत से प्रस्ताव पारित कर देती है तो राष्ट्रपति को उद्घोषणा वापस लेनी पडती है।
- आपात उद्घोषणा पर विचार करने के लिए लोकसभा का विशेष अधिवेशन 14 दिनो के भीतर लोकसभा का विशेष अधिवेशन आहूत करते है।
- आपात उद्घोषणा पर विचार करने के लिए लोकसभा का विशेष अधिवेशन तब आहूत किया जा सकता है, जब लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 1/10 सदस्यों द्वारा लिखित सूचना लोकसभा अध्यक्ष को, जब सत्र चल रहा हो या राष्ट्रपति को, जब सत्र नही चह रहा हो, दी जाती है।
आपातकाल की उद्घोषणा के प्रभाव
- राज्य की कार्यपालिका शक्ति संघीय कार्यपालिका के अधीन हो जाती है।
- संसद की विधायी शक्ति राज्य सूची से सम्बद्ध विषयों तक विस्तृत हो जाती है। दूसरे शब्दों में संसद को राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। संसद द्वारा आपातकाल में राज्य के विषयों पर बनाये गये कानून आपातकाल की समाप्ति के बाद 06 माह तक प्रभावी रहते है।
- जब राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा लागू हो तब राष्ट्रपति केन्द्र तथा राज्यों के मध्य करों के संवैधानिक वितरण को संशोधित कर सकता है। ऐसे संशोधन उस वित्त वर्ष की समाप्ति तक जारी रहते है जिसमें आपातकाल समाप्त होता है।
- जबकि अनुच्छेद 359 अन्य मूल अधिकारों के निलंबन (अनुच्छेद 20 तथा 21 द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छोड़कर) से संबंधित है।
- अनुच्छेद 358 के अनुसार, जब राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा की जाती है तब अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त छह मूल अधिकार स्वत: ही निलंबित हो जाते हैं।
- जब राष्ट्रीय आपातकाल समाप्त हो जाता है तो अनुच्छेद 19 स्वत: पुनर्जीवित हो जाता है।
- अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त 6 मूल अधिकारों को युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण के आधार पर घोषित आपातकाल में ही निलंबित किया जा सकता है।
- राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति में लोकसभा का कार्यकाल इसके सामान्य कार्यकाल 5 वर्ष से आगे संसद द्वारा कानून बनाकर एक समय में 01 वर्ष के लिए (कितने भी समय तक)बढ़ाया जा सकता है। किन्तु यह विस्तार आपातकाल की समाप्ति के बाद 06 माह से ज्यादा नहीं हो सकता।
- 1978 के 44 वें संशोधन अधिनियम ने अनुच्छेद 358 की संभावना पर दो प्रकार से प्रतिबंध लगा दिया है। प्रथम अनुच्छेद-19 द्वारा प्रदत्त छः मूल अधिकारों को युद्ध अथवा बाहा्र आक्रमण के आधार पर घोषित आपातकाल में ही निलंबित किया जा सकता है न कि सशस्त्र विद्रोह के आधार पर।
अब तक तीन बार राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा की जा चुकी है-
- अक्तूबर 1962 से जनवरी 1968 तक-चीन द्वारा 1962 में अरुणाचल प्रदेश के नेफा (North-East Fronfier Agency) क्षेत्र पर हमला करने के कारण।
- दिसंबर 1971 से मार्च 1977 तक पाकिस्तान द्वारा भारत के विरुद्ध अघोषित युद्ध छेड़ने के कारण।
- जून 1975 से मार्च 1977 तक आंतरिक अशांति के आधार पर।
राज्य में राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद-356)
- राज्य में आपात की घोषणा के बाद संघ न्यायिक कार्य छोडकर राज्य प्रशासन के कार्य अपने हाथ में ले लेता है।
- राज्य में आपात उद्घोषणा की अवधि 02 माह होती है। इससे अधिक के लिए संसद से अनुमति लेनी होती है तब यह 06 माह की होती है। अधिकतम 03 वर्ष तक यह एक राज्य के प्रवर्तन में रह सकती है। इससे अधिक के लिए संविधान में संशोधन करना पडता है।
राष्ट्रपति शासन लगने के प्रमुख कारण:
- चुनाव नतीजों के बाद किसी एक दल या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलना।
- सत्ता पक्ष के विधायकों के विपक्षी दल में शामिल होने के कारण सरकार गिरना।
- सत्तापक्ष का गठबंधन टूटने के बाद सरकार गिरना और राजनीतिक अस्थिरता ।
- बहुमत होने के बावजूद मुख्यमंत्री का इस्तीफे देना।
- वह घोषणा कर सकता है कि राज्य विधायिका की शक्तियों का प्रयोग/निर्वहन संसद द्वारा किया जाएगा।
- वह राज्य सरकार के कार्यों को अपने हाथ में ले लेता है और उसे राज्यपाल तथा अन्य कार्यकारी अधिकारियों की शक्ति प्राप्त होती है।
- वह ऐसे सभी कदम उठा सकता है जिसमें राज्य के किसी भी निकाय या प्राधिकरण से संबंधित प्रावधानों को निलंबित करना शामिल है।
वित्तीय आपात(अनुच्छेद-360)
वित्तीय आपात अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपात की उद्घोषणा राष्ट्रपति द्वारा तब की जाती है, जब उसे विश्वास हो जाए कि ऐसी स्थिति विद्यमान है, जिसके कारण भारत के वित्तीय स्थायित्व या साख को खतरा है।
- वित्तीय आपात की घोषणा की तिथि से 02 माह के भीतर संसद के दोनों सदनों की स्वीकृति मिलना अनिवार्य है।
- यदि वित्तीय आपातकाल की घोषणा के दौरान लोकसभा विघटित हो जाए अथवा 02 माह के भीतर इसे मंजूर करने से पूर्व लोकसभा विघटित हो जाए तो यह घोषणा पुनर्गठित लोकसभा की प्रथम बैठक के बाद 30 दिनों तक प्रभावी रहेगी, परंतु इस अवधि में इसे राज्यसभा को मंजूरी मिलना आवश्यक है।
- एक बार यदि संसद के दोनों सदनों से इसे मंजूरी प्राप्त हो जाए तो वित्तीय आपात अनिश्चित काल के लिए तब तक प्रभावी रहेगा जब तक इसे वापस न लिया जाए।
- वित्तीय आपातकाल की घोषणा को मंजूरी देने वाला प्रस्ताव, संसद के किसी भी सदन द्वारा सामान्य बहुमत द्वारा पारित किया जा सकता।
- राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय एक घोषणा द्वारा वित्तीय आपात की घोषणा वापस ली जा सकती है। ऐसी घोषणा को किसी संसदीय मंजूरी की आवश्यकता भी नहीं है।
वित्तीय आपातकाल के प्रभाव :-
- राष्ट्रपति केन्द्र तथा राज्यों में धन संबंधी विभाजन के प्राविधानों में आवश्यक संशोधन कर सकते है।राष्ट्रपति आर्थिक दृष्टि से किसी भी सरकार को निर्देश दे सकता है।
- राष्ट्रपति को यह अधिकार प्राप्त हो जाता है कि वह राज्य सरकारों को यह निर्देश दे कि राज्य के समस्त वित्त विधेयक उसकी स्वीकृति से विधानसभा में प्रस्तुत किये जाएं।
- उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और संघ तथा राज्य सरकारों के अधिकारियों के वेतन में कमी की जा सकती है।
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