नई आर्थिक नीति
नई आर्थिक सुधार की रूपरेखा प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सर्वप्रथम वर्ष 1985 में प्रारम्भ की।
नई आर्थिक सुधार की दूसरी लहर प्रधानमंत्री पी0वी0 नरसिम्हा राव के समय वर्ष 1991 में आयी। इस नीति शुरू करने का प्रमुख कारण भारत में भुगतान संतुलन एवं खाडी युद्ध समस्या थी।
नई आर्थिक नीति के तीन प्रमुख आयाम थे- उदारीकरण, निजीकरण, विश्वव्यापीकरण।
उदारीकरण:आर्थिक गतिविधियों के नियमन के लिए बनाए गए नियम-कानून ही संवृद्वि और विकास के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा बन गए। उदारीकरण इन्हीं प्रतिबंधों को दूर कर अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को ‘मुक्त’ करने की नीति थी।
निजीकरण: इसका तात्पर्य है, किसी सार्वजनिक उपक्रम के स्वामित्व या प्रबंधन का सरकार द्वारा त्याग। सरकारी कंपनियाँ निजी क्षेत्रक की कंपनियों में दो प्रकार से परिवर्तित हो रही हैंः (क) सरकार का सार्वजनिक कंपनी के स्वामित्व और प्रबंधन से बाहर होना तथा (ख) सार्वजनिक क्षेत्रक की कपंनियों को सीधे बेच दिया जाना।
विश्वव्यापीकरण:यद्यपि विश्वव्यापीकरण किसी अर्थव्यवस्था का विश्व अर्थव्यवस्था के साथ एकीकरण के रूप में जाना जाता है, जो एक जटिल परिघटना है। यह उन सभी नीतियों का परिणाम है, जिनका उद्देश्य है विश्व को परस्पर निर्भर और अधिक एकीकृत करना। इसके अंतर्गत आर्थिक, सामाजिक और भौगोलिक सीमाओं के अतिक्रमण की गतिविधियों और नेटवर्क का सृजन होता है।
नई आर्थिक नीति (1991) के निम्न मुख्य क्षेत्र थेः-
1. औद्योगिक नीति
2. विदेश नीति
3. व्यापार नीति
4. सार्वजनिक क्षेत्र नीति
5. राजकोषीय नीति
6. मौद्रिक नीति
7. मुख्य निर्धारण नीति
जिसमें मुख्यत हैः-
औद्योगिक नीति-सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित कार्यो का दायरा सीमित करते हुए निजी क्षेत्र को अनुमति प्रदान की गयी। उद्योगों के लिए लाइसेंस 18 उद्योगों को छोडकर हटा दिया गया।
राजकोषीय नीति(1991)-
- केन्द्र तथा राज्य सरकारो को राजकोषीय
व्यय पर अनुशासित करना।
- अनुदान राशि पर कटौती करना।
- कर एवं राजस्व की बढोत्तरी
करना।
- सार्वजनिक
व्यय को सख्ती से लागू करवाना।
- आरक्षित उद्योगो की संख्या घटाकर 8 कर दी गयी। (वर्ष 1999 में यह संख्या 8 से घटाकर 3 कर दी गयी- 1. रेल परिवहन 2.परमाणु ऊर्जा 3.परमाणु ऊर्जा विभाग
- जीर्ण उद्योगों के पुनरुत्थान का कार्य औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्निमाण बोर्ड को सौंप दिया गया।
- सार्वजनिक उद्योग के निष्पादन में उन्नति के लिए उद्योग को बोध ज्ञापन (एमओयू) के माध्यम से मजबूत किया गया।
- श्रमिकों की संख्या कम करने के लिए स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति योजनाएं आरंभ की गई।
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