भारत की संचित निधि [अनुच्छेद 266(1)] 

भारत सरकार को प्राप्त सभी राजस्व (जैसे सीमा शुल्क, आयकर, उत्पादन शुल्क, निगम आयकर आदि) की एक निधि है जिसेभारत की संचित निधिकहा जाता है। 

संचित निधि में से कोई धनराशि संसद द्वारा विनियोग विधेयक पारित कर दिये जाने के बाद ही निकाली या व्यय पूर्ति की जा सकती है अन्यथा नही[अनुच्छेद-114(3)]

विनियोग विधेयक को हर हाल में नये वित्तीय वर्ष प्रारम्भ(01 अप्रैल) होने से पहले पारित किया जाना आवश्यक होता है, किन्तु अगर वित्तीय वर्ष से पूर्व बजट प्रक्रिया 01 अप्रैल से पहले सम्पन्न नही हो पाती है तो इसके लिए जब तक बजट प्रक्रिया पूरी नही हो जाती है उस दौरान व्यय के लिए लेखानुदान पारित कर धन की व्यवस्था की जाती है।

दूसरे शब्दों में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 116 के अनुसार, लेखानुदान केंद्र सरकार के लिये अग्रिम अनुदान के रूप में है, इसे भारत की संचित निधि से अल्पकालिक व्यय की आवश्यकता को पूरा करने के लिये प्रदान किया जाता है और आमतौर पर नए वित्तीय वर्ष के कुछ शुरुआती महीनों के लिये जारी किया जाता है।

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक(CAG)इस निधि का लेखा परीक्षण करता हैं।

 

भारत की संचित निधि पर निम्न व्यय भारित हैः-

1.राष्ट्रपति का वेतन एवं भत्ता और अन्य व्यय के सभापति।

2.राज्य सभा सभापति और उपसभापति तथा लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन एवं भत्ते।

3.सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन, भत्ता तथा पेंशन।

4.भारत सरकार पर किसी न्यायालय द्वारा दी गई डिक्री या पंचाट।

5.ऐसा ऋण-भार, जिनका दायित्व भारत सरकार पर है।

6.भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का वेतन, भत्ता तथा पेंशन।

7.कोई अन्य व्यय जो संविधान द्वारा या संसद विधि द्वारा इस प्रकार भारित घोषित करें।

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