पंचायती राज

  • पंचायती राज व्यवस्था का मूल उद्देश्य विकास की प्रक्रिया में जनभागीदारी को सुनिश्चित करना तथा लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण को बढ़ावा देना है। 
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 40 में पंचायतों का उल्लेख किया गया है और अनुच्छेद 246 में राज्य विधानमंडल को स्थानीय स्वशासन से संबंधित किसी भी विषय के संबंध में कानून बनाने का अधिकार दिया।स्थानीय स्वशासन का अर्थ है स्थानीय लोगों द्वारा निर्वाचित निकायों द्वारा स्थानीय मामलों का प्रबंधन। लार्ड रिफन को भारत में स्थानीय स्वशासन का पिता कहा जाता है।उसने इन निकायों को बनाने की दिशा में पहलकदमी की। उस वक्त इसे मुकामी बोर्ड (Local Board) कहा जाता था। 
  • पंचायती राज का शुभारम्भ भारत में 02 अक्टूबर, 1959 को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के द्वारा राजस्थान राज्य के नागौर जिले में हुआ। 
  • 11 अक्टूबर, 1959 को आन्ध्र प्रदेश राज्य में पंचायती राज का प्रारम्भ हुआ।
  • भारत में प्रत्येक वर्ष 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाया जाता है। (2010 से)
पंचायत  सदस्य का कार्यकाल
  • पंचायत का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु 21 वर्ष है। (अनुच्छेद-243(च) )
  • पंचायतों का कार्यकाल पाँच वर्ष निर्धारित है लेकिन कार्यकाल से पहले भी इसे भंग किया जा सकता है। 
  • पंचायत को यदि किसी विधि के अधीन पहले ही विघटित नही कर दिया जाता है तो उसकी अवधि अपने प्रथम बैठक की तिथि से पाँच वर्ष होगी(अनुच्छेद-243(ड.))
  • यदि किसी पंचायत को समय पूर्व विघटित कर दिया जाता है तो उसका निर्वाचन 6 महीने के भीतर शेष बचे हुए अवधि के लिए कराया जाता है।
  • यदि किसी पंचायत को समय पूर्व विघटित कर दिया जाता है तो उसका निर्वाचन 6 महीने से कम बची हो तो शेष अवधि के लिए निर्वाचन कराना जरूरी नही होता है। 
पंचायती राज से संबंधित मुख्य तथ्यः
  • स्थानीय स्तर पर लोकतंत्र की स्थापना करने के लिये 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थान (Panchayati Raj Institution) को संवैधानिक स्थिति प्रदान की गई और उन्हें देश में ग्रामीण विकास का कार्य सौंपा गया।
  • पंचायती राज संस्थान भारत में ग्रामीण स्थानीय स्वशासन (Rural Local Self-government) की एक प्रणाली है।
  • पंचायती राज मंत्रालय द्वारा तैयार ई-ग्राम स्वराज पोर्टल सभी ग्राम पंचायतों को ग्राम पंचायत विकास योजनाओं (Gram Panchayat Development Plans) को तैयार एवं क्रियान्वित करता है। 
  • वर्तमान में पंचायती राज व्यवस्था नगालैण्ड, मेघालय तथा मिजोरम राज्यों एवं दिल्ली केन्द्रशासित राज्य छोडकर अन्य सभी राज्यों में लागू है। 

विषयों का स्थानांतरण:

ऐसे 29 विषय जो पहले राज्य सूची में थे, अब पहचान कर संविधान की 11वीं अनुसूची में दर्ज कर लिए गए हैं। इन विषयों को पंचायती राज संस्थाओं को हस्तांतरित किया जाना है। अधिकांश मामलों में इन विषयों का संबंध स्थानीय स्तर पर होने वाले विकास और कल्याण के कामकाज से है। इन कार्यों का वास्तविक हस्तांतरण प्रदेश के कानून पर निर्भर है। हर प्रदेश यह फैसला करेगा कि इन 29 विषयों में से कितने को स्थानीय निकायों के हवाले करना है।

73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992-93 की मुख्य बातेः

  • 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 तत्कालीन प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव के कार्यकाल में प्रभावी हुआ।
  • इस संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में भाग-9 जोड़ा गया था।
  • मूल संविधान में भाग-9 के अंतर्गत पंचायती राज से संबंधित उपबंधों की चर्चा (अनुच्छेद 243) की गई है । 
  • 73वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में 11वीं अनुसूची जोड़ी गई और इसके तहत पंचायतों के अंतर्गत 29 विषयाें की सूची की व्यवस्था की गई।
  • 73वें संविधान संशोधन के बाद पंचायती राज अधिनियम का निर्माण करने वाला प्रथम राज्य कर्नाटक है। 
  • इसके द्वारा पचांयती राज के त्रिस्तरीय ढ़ाँचे का प्रावधान किया गया है। ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, खंड (Block) या तालुका स्तर पर पंचायत समिति तथा जिला स्तर पर जिला परिषद के गठन की व्यवस्था की गयी है।
  • पंचायती राज संस्था के प्रत्येक स्तर में एक-तिहाई स्थानों पर महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गयी है।
  • इसका कार्यकाल पाँच वर्ष निर्धारित किया गया है। पंचायत भंग होने पर 6 माह के अन्दर निर्वाचन होंगे। 
  • अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिये सीटों का आरक्षण किया गया है तथा सभी स्तरों पर पंचायतों के अध्यक्ष के पद भी जनसंख्या में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अनुपात के आधार पर आरक्षित किये गए हैं।
नोट- वर्ष 1986 में गठित एल0एम0 सिंघवी समिति की सिफारिशो के आधार पर 73 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1993 के द्वारा पंचायती राज की संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।

पंचायती राज व्यवस्था में सुधार हेतु गठित समितियां

बलवंतराय मेहता समिति, 1957 की सिफारिशें:-स्वतंत्रता के पश्चात् 1957 में बलवंतराय मेहता समिति का गठन किया गया जिन्होंने पूरे देश में ”त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली” लागू करने की सिफारिश की। 

अशोक मेहता समिति 1977 की सिफारिशें :- द्विस्तरीय पंचायती राज प्रणाली को अपनाया जाय अर्थात् ग्राम पंचायत के स्थान पर मंडल पंचायते गठित की जाए। मेहता समिति की सिफारिश लागू करने वाला राजस्थान पहला राज्य बना।

जी.वी.के. राव समिति 1985 की सिफारिशें:-ग्राम पंचायतों को अधिक वित्तीय शक्तियां दी जाए। राज्य वित्त आयोग का गठन किया जाए। संस्थाओं का कार्यकाल 8 वर्ष किया जाए।

एल. एम. सिंघवी समिति 1986 की सिफारिशें:- इस समिति में पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा देने की सिफारिश की। 64वें संविधान संशोधन विधेयक द्वारा तत्कालीन केन्द्र सरकार ने प्रयास भी किया किन्तु विधेयक संसद से पास नहीं हो सका।

पी.के. थुंगन समिति 1989 की सिफारिशें:- इस समिति ने भी इन संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा देने की सिफारिशें भी की। समिति की सिफारिश थी कि स्थानीय शासन की संस्थाओं के चुनाव समय-समय पर कराने, उनके समुचित कार्यों की सूची तय करने तथा ऐसी संस्थाओं को धन प्रदान करने के लिए संविधन में संशोधन किया जाय।

पंचायती राज संबंधी संवैधानिक उपबंध

भाग—9
अनुच्छेद 243 : परिभाषाएं
अनुच्छेद 243 (क) : ग्रामसभा
अनुच्छेद 243 (ख): ग्राम पंचायतों का गठन।
अनुच्छेद 243 (ग) : पंचायतों की संरचना
अनुच्छेद 243 (घ) : स्थानों का आरक्षण
अनुच्छेद 243 (ड.) : पंचायतों की अवधि
अनुच्छेद 243 (च) : सदस्यता के लिए अयोग्यताएं
अनुच्छेद 243 (छ) : पंचायतों की शक्तियां, प्राधिकार और उत्तरदायित्व
अनुच्छेद 243 (ज) : पंचायतों द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्तियां और उनकी निधियां
अनुच्छेद 243 (झ) : वित्तीय स्थिति के पुनर्विलोकन के लिए वित्त आयोग का गठन
अनुच्छेद 243 (ञ) : पंचायतों के लेखाओं की संपरीक्षा
अनुच्छेद 243 (ट) : पंचायतों के लिए निर्वाचन
अनुच्छेद 243 (ठ) : संघ राज्य क्षेत्रों को लागू न होना
अनुच्छेद 243 (ड) : इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू न होना
अनुच्छेद 243 (ढ) : विद्यमान विधियों और पंचायतों का बना रहना
अनुच्छेद 243 (ण) : निर्वाचन सम्बन्धी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्णन


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