1861 का भारतीय परिषद अधिनियम 

भारतीय परिषद अधिनियम, 1861 भारत के संवैधानिक इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना है, क्योंकि इसके द्वारा भारत सरकार की मंत्रिमंडलीय व्यवस्था की नींव रखी गई थी। इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे – 

  • इस अधिनियम द्वारा कार्यकारी परिषद के सदस्यों की संख्या 4 से बढ़ाकर 5 कर दी गई। (इसमें तीन सदस्य प्रशासनिक सेवा के होते थे, जिनको भारत में रह कर कार्य करने का 10 वर्ष का अनुभव होना आवश्यक था। शेष 2 सदस्यों में एक को 5 वर्ष का विधि संबंधी अनुभव प्राप्त होना आवश्यक था।

  • 1862 में लॉर्ड कैनिंग ने तीन भारतीयों- बनारस के राजा, पटियाला के महाराजा और सर दिनकर राव को विधानपरिषद में मनोनीत किया। इसके द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरूआत हुई।
  • वायसराय को आवश्यक नियम एवं आदेश (अध्यादेश) जारी करने की शक्ति प्रदान की गई, जिसके तहत लॉर्ड कैनिंग ने भारतीय शासन में पहली बार ‘संविभागीय प्रणाली’ (Portfolio System) की शुरुआत की।
  • वायसराय की विधानपरिषद में न्यूनतम 6 और अधिकतम 12 अतिरिक्त मनोनीत सदस्यों का प्रावधान किया गया था। उनमें कम-से-कम आधे सदस्यों का गैर-सरकारी होना आवश्यक था, किंतु इनकी शक्तियाँ विधि-निर्माण तक ही सीमित होती थीं।
  • वायसराय को विधानसभा में भारतीयों के नाम निर्दिष्ट करने की शक्ति प्रदान की गई। यह राज्य सचिव के नियंत्रण तथा निरीक्षण में कार्य करती थी। वायसराय को विशेषाधिकार व आपात स्थिति में अध्यादेश जारी करने का अधिकार दिया गया।
  • इस अधिनियम ने बंबई और मद्रास प्रेसीडेंसियों को कानून बनाने की शक्ति वापस देकर विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया की शुरुआत की।
  • गर्वनर जनरल की कार्यकारिणी परिषद का विस्तार किया गया। विभागीय प्रणाली का प्रारम्भ लार्ड कैंनिग के द्वारा किया गया।

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