उत्तराखंड के प्रमुख रेजीमेन्ट, सैन्य छावनियां एवं प्रमुख सैन्यकर्मी
कुमाऊं रेजीमेन्ट (Kumaun Regiment)
- कुमांऊँ रेजीमेंट भारतीय सशस्त्र सेना का एक सैन्य-दल है|
- कुमांऊँ रेजीमेंट की स्थापना सन् 1788 में हैदराबाद में हुयी थी, तथा इसे कुमाऊं रेजीमेन्ट का नाम 27 अक्टूबर 1945 को दिया गया और मई 1948 में इसका मुख्यालय आगरा से रानीखेत स्थान्तरित किया गया|
- कुमाऊं रेजीमेंट की उत्पत्ति हैदराबाद में 1788 में नवाब सलावत खां ने एल्लिचर बिग्रेड नाम से एक बिग्रेड के गठन से हुई थी। जो 27 अक्टूबर, 1945 को कुमाऊं रेजीमेन्ट के नाम से जाना गया।
- कुमाऊं रैजीमेंट ने मराठा युद्ध (1803), पिन्डारी युद्ध (1817), भीलों के विरुद्ध युद्ध (1841), अरब युद्ध (1853), रोहिल्ला युद्ध (1854) तथा भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम, झॉंसी (1857) इत्यादि युद्धों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- कुमाऊं रेजीमेन्ट की 13वी व 15वी बटालियन को भारतीय सेना में वीरो का वीर कहा जाता है|
- 1988 में कुमाऊं रेजीमेन्ट पर डांक टिकट जारी किया गया
- कुमाऊं रेजीमेंट ने जनरल एसएम श्रीनगेश(1955-57), जनरल केएस थिम्मैया(1957-61) व जनरल टीएस रैना(1975-78) के रूप में भारत को तीन थल सेना अध्यक्ष देकर इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया|
- कुमाऊं रेजीमेंट को अब तक वीरता के सर्वोच्च सम्मान 2 परमवीर चक्रों के अलावा 13 महावीर चक्र, 82 वीर चक्र, 4 अशोक चक्र, 10 कीर्ति चक्र, 43 शौर्य चक्र, 6 युद्ध सेवा मेडल, 14 से अधिक परम विशिष्ट सेवा मेडल, 32 से अधिक विशिष्ट सेवा मेडल, 69 से अधिक विशिष्ट सेवा मेडल, 1 अर्जुन पुरस्कार मिल चुके हैं। 220 से अधिक मेंशन इन डिस्पेचेस तथा 734 से अधिक अन्य सम्मान भी रेजीमेंट को मिले हैं, जिनमें दो पद्मभूषण भी शामिल हैं। रेजीमेंट की बटालियनों ने 17 से अधिक यूनिट साइटेशन भी हासिल किए हैं।
परमवीर चक्र:-
- भारत का प्रथम परमवीर चक्र मेजर सोमनाथ शर्मा को मरणोपरान्त, जो कुमांऊँ रेजिमेंट की चौथी बटालियन (Four Kumaon) की डेल्टा कंपनी के कंपनी-कमांडर थे, को भारत-पाक युद्ध (1947) के दौरान।
- मेजर शैतान सिंह को मरणोपरान्त, कुमांऊँ रेजिमेंट की तेरहवीं बटालियन के थे, को भारत-चीन के लद्दाख युद्ध (1962) के दौरान।
गढ़वाल रेजीमेन्ट (Garhwal Regiment)
- गढ़वाल रेजीमेन्ट का गठन 5 मई 1887 को गोरखा रेजीमेन्ट की दूसरी बटालियन से किया गया , इस रेजीमेन्ट द्वारा 1987 में लेंसडाउन में छावनी बनायीं गयी।
- 1891 में 39 वीं (गढ़वाली) रेजीमेन्ट आफ बंगाल इन्फेटी का गठन कर बर्मा में चीनियों के खिलाफ युद्ध में 1892 में राइफल्स खिताब मिला और इसका नाम प्रथम बटालियन 39 गढ़वाल राइफल्स हो गया। 1921 में इसे रायल खिताब मिला व इसका नाम बदलकर 39 वीं रायल गढ़वाल राइफल्स कर दिया गया। 1922 में सैन्य पुनर्गठन करने के बाद इसका नाम 18 वीं रायल गढ़वाल राइफल्स हुआ। 1945 में इसे रायल गढ़वाल राइफल्स कहा जाने लगा। आजादी के बाद इसका नाम गढ़वाल राइफल्स कर दिया गया। इसमें 19 बटालियन है।
- वर्ष 1914-18 में प्रथम विश्व युद्ध में गढवाल राइफल्स के नायक दरबान सिंह नेगी को उस समय के सबसे बडे सैन्य सम्मान ‘विक्टोरिया क्रास’ से सम्मानित किया था। इसके दूसरे वर्ष गढवाल राइफल्स के दूसरी बटालियन के राइफल मैन गब्बर सिंह नेगी को मरणोपरान्त ‘विक्टोरिया क्रास’ प्रदान किया गया।
- 1909-10 में इस रेजीमेन्ट के लेफिटनेंट पी0टी0 अर्थटन तथा राइफलमैन ज्ञान सिंह फस्र्वाण ने लैन्सडौन से मास्को तक 4000 मील की यात्रा पैदल पूरी करने पर सरकार ने इन्हे ‘मैक ग्रेगर’ अलंकरण से विभूषित किया था।
- 23 अप्रैल, 1930 को पेशावर में घटित काण्ड के नायक रहे वीरचन्द्र सिंह ‘गढवाली’ थे जो इसी रेजीमेन्ट के नायक थे।
- वर्ष 2003 में संयुक्त इंडो नेपाल पर्वतारोहण अभियान में हवलदार जगत सिंह व कुंवर सिंह ने एवरेस्ट पर्वत पर भारत का झण्डा फहराकर इस रेजीमेन्ट को पर्वतारोहण के इतिहास में एक स्वर्णिम इतिहास में जोडा।
- वर्ष 2007 में इस रेजीमेन्ट को इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
प्रमुख सैन्य छावनियां व उनके स्थापना वर्ष
· अल्मोड़ा छावनी – 1815 में कर्नल गार्डनर के नेतृत्व में अंग्रेज फौज(रोहिला फौज) ने गोरखों से अल्मोडा किला जीतकर ‘फोर्ट मौयरा’नाम दिया। बाद में छावनी का रूप दे दिया गया।
· रानीखेत छावनी – 1871
· लेंसडाउन छावनी – 5 मई 1887 को स्थापित प्रथम गढवाल राइफल्स के कर्नल मैन्वेरिंग के नेत्त्व में बसाया गया।
· देहरादून छावनी – 30 नवम्बर 1814
· चकराता छावनी – 1866
· नैनीताल छावनी – 1841
· रूड़की छावनी – 1853 में स्थापित इस छावनी में भारतीय सेना का प्रतिष्ठित संस्थान ‘बंगाल सैपर्स एवं माइनर्स का ग्रुप एवं सेन्टर’ है।
उत्तराखंड के प्रमुख सैन्यकर्मी
माधो सिंह भंडारी
·माधो सिंह भंडारी गढ़वाल के राजा महीपति शाह के सेनापति थे।
· इन्हें गर्व भंजक के नाम से जाना जाता है। जनपद टिहरी के मलेथा गांव में एक पहाड़ी के अन्दर से एक लम्बी नहर बनाकर उन्होने इस क्षेत्र की भूमि को कृषि के क्षेत्र में वरदान दिया।
वीरचन्द्र सिंह गढ़वाली
वीरचन्द्र सिंह गढ़वाली का जन्म 24 दिसम्बर 1891 को पौड़ी गढ़वाल के मासों गाँव में हुआ था ये गढ़वाल रायफल्स में थे।
23 अप्रैल 1930 को घटित पेशावर कांड के नायक वीरचन्द्र सिंह गढ़वाली ही थे।
1994 में भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया गया।
वीर चन्द्र ‘गढवाली’ के लिए
आई0एन0ए0 के जनरल मोहन सिंह के शब्दो में ‘‘पेशावर विद्रोह ने हमे आजाद हिन्द फौज को संगठित करने की प्रेरणा दी’’
दरबान सिंह नेगी
- दरबान सिंह नेगी गढ़वाल राइफल्स में थे इन्हें प्रथम विश्व युद्ध में वीरता का प्रदर्शन करने के लिए 1914 में विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गयाI
- गबरसिंह नेगी गढ़वाल राइफल्स में थे इन्हें प्रथम विश्व युद्ध में वीरता का प्रदर्शन करने के लिए 1915 में विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया
- मेजर सोमनाथ शर्मा 4 कुमाऊं रेजीमेन्ट में थे इन्हें 1947 में मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया
- इन्हें 1662 के भारत चीन युद्ध में वीरता का प्रदशन करने के कारण मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गयाI
Post a Comment