पादप हार्मोन (Plant Hormones)


पौधों की जैविक क्रियाओं के बीच समन्वय स्थापित करने वाले रासायनिक पदार्थ को पादप हार्मोन (Plant hormones) या फाइटोहार्मोन (Phytohormone) कहते हैं। ये पौधों की विभिन्न भागों में बहुत सूक्ष्म मात्रा में पहुँचकर वृद्धि एवं अनेक उपापचयी क्रियाओं को नियंत्रित एवं प्रभावित करते हैं। इनके संश्लेषण का स्थान इनके क्रिया क्षेत्र से दूर होता है एवं ये विसरण द्वारा क्रिया क्षेत्र तक पहुँचते हैं। बहुत से कार्बनिक यौगिक जो पौधों से उत्पन्न नहीं होते, परन्तु पादप हार्मोन की तरह ही कार्य करते हैं, उन्हें भी वृद्धि नियंत्रक पदार्थ (Growth regulators) कहा जाता है।

 मुख्य रूप से पौधे में 6 प्रकार के हॉर्मोन पाए जाते है, जो निम्न प्रकार है:-

  1. ऑक्जिन 
  2. जिबरेलिन्स 
  3. साइटोकाइनिन 
  4. ऐबसिसिक एसिड 
  5. एथीलीन 

ऑक्जिन (Auxin):
इसकी खोज 1880 में हुई। ऑक्जिन कार्बनिक यौगिकों का समूह है जो पौधों में कोशिका विभाजन (Cell division) तथा कोशिका दीर्घन (Cell elongation) में भाग लेता है। इन्डोल एसीटिक एसिड (Indole acetic acid—I.A.A) एवं नैफ्थेलीन (Naphthalene acetic acid—N.A.A) इसके प्रमुख उदाहरण हैं। तने में जिस ओर ऑक्जिन की अधिकता होती है, उस ओर वृद्धि अधिक होती है। जड़ में इसकी अधिकता वृद्धि को कम करती है।

कार्य:

  1. यह पौधे की वृद्धि को नियंत्रित करने वाला हार्मोन है। 
  2. इसका निर्माण पौधे के ऊपरी हिस्सो में होता है। 
  3. ये बीजरहित फल के उत्पादन में सहायक होते हैं।
  4. पत्तियों के झड़ने तथा फलों के गिरने पर ऑक्जिन का नियंत्रण होता है।
  5. गेहूँ एवं मक्का के खेतों में ऑक्जिन खर-पतवार नाशक का कार्य करते हैं।

जिबरलिन्स (Gibberellins):
इसकी खोज 1926 में हुई। जिबरेलिन एक जटिल कार्बनिक यौगिक है, जिसका मुख्य उदाहरण जिबरैलिक एसिड (Gibberellic acid) है।

कार्य:

  1. यह कम वृद्धि वाले पौधो का लम्बा करने एवं फल बनने में सहायता करता है। 
  2. इसके छिडकाव द्वारा फूलो का उत्पादन एवं फलों का आकार बढाने में किया जा सकता है। 

साइटोकाइनिन (Cytokinins):
इसकी खोज 1955 में हुई। साइटोकाइनिन क्षारीय प्रकृति का हार्मोन है। काइनिटीन (Kinetin) एक संश्लेषित साइटोकाइनिन है। साइटोकाइनिन का संश्लेषण जड़ों के अग्र सिरों पर होता है, जहाँ कोशिका-विभाजन (Cell division) होता है।

कार्य:

  1. साइटोकाइनिन कोशिका विभाजन के लिए एक आवश्यक हार्मोन है।
  2. यह ऊतकों एवं कोशिकाओं का विभेदन का कार्य करती है।
  3. साइटोकाइनिन पार्श्व कलिकाओं (Lateral buds) की वृद्धि को प्रारम्भ करते हैं।
  4. यह RNA एवं प्रोटीन बनाने में सहायक है। 
एबसिनिक एसिड (Abscinic Acid):
इसकी खोज 1961-65 में हुई। यह एक  वृद्धिरोधी (Growth inhibitor) हार्मोन है, अर्थात् यह पौधे की वृद्धि को रोकता है।

कार्य:

  1. एबसिनिक अम्ल पौधों की वृद्धि को रोकता है।
  2. यह वाष्पोत्सर्जन की क्रिया का नियंत्रण रंध्रों (stomata) को बन्द करके करता है।
  3. यह पुष्पन में बाधक होता है। 
  4. यह पत्तियों के झड़ने की क्रिया को नियंत्रित करने पौधों से फूलों एवं फलों के पृथक्करण की क्रिया का भी नियंत्रण करता है।

एथिलीन (Ethylene):
एथिलीन गैसीय रूप में पौधों में पाया जाने वाला हार्मोन है। इसके द्वारा पौधों की लम्बाई में वृद्धि होती है परन्तु यह पौधे की लम्बाई में वृद्धि को रोकता है। इस हार्मोन का निर्माण पौधे के प्रत्येक भाग में होता है।

कार्य:

  1. एथिलीन हार्मोन फलों के पकने (Ripening) में मुख्य भूमिका निभाता है।
  2. यह पौधों की पत्तियों एवं फलों के झड़ने की क्रिया को नियंत्रित करता है।
  3. पौधे के विभिन्न भागों की सुषुप्तावस्था को समाप्त कर इसे अंकुरण के लिए प्रेरित करता है।

फ्लोरिजिन्स (Florigens):
फ्लोरिजिन्स का संश्लेषण पत्तियों में होता है, परन्तु ये फूलों के खिलने (Blooming) में मदद करते हैं। इसलिए फ्लोरिजिन्स को फूल खिलाने वाला हार्मोन (Flowering hormone) भी कहते है। 

कार्य:

  1. इस हार्मोन के द्वारा फ्लों का खिलना नियंत्रित होता है।

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