गुलाम वंश
तेरहवीं शताब्दी की शुरुआत में तुर्कों द्वारा भारत में स्थापित प्रथम साम्राज्य को गुलाम वंश का नाम दिया गया। गुलाम वंश की स्थापना कुतुबुद्दीन ऐबक ने की थी, जो मोहम्मद गोरी का एक प्रमुख गुलाम था तथा आरम्भिक तुर्क साम्राज्य को सुदृढ़ करने वाले सुल्तान इल्तुतमिश, बलबन आदि किसी न किसी शासक के गुलाम ही थे।
गुलाम वंश
तेरहवीं शताब्दी की शुरुआत में तुर्कों द्वारा भारत में स्थापित प्रथम साम्राज्य को गुलाम वंश का नाम दिया गया। गुलाम वंश की स्थापना कुतुबुद्दीन ऐबक ने की थी, जो मोहम्मद गोरी का एक प्रमुख गुलाम था तथा आरम्भिक तुर्क साम्राज्य को सुदृढ़ करने वाले सुल्तान इल्तुतमिश, बलबन आदि किसी न किसी शासक के गुलाम ही थे।
शासक
शासन काल
कुतुबुद्दीन ऐबक
(1206-1210 ई0)
आरामशाह
(1210-1211 ई0)
इल्तुतमिश
(1211-1236 ई0)
रुकनुद्दीन फिरोज
(1236 ई0)
सुल्तान रजिया
(1236-1240 ई0)
मुइजुद्दीन बहरामशाह
(1240-1242 ई0)
अलाउद्दीन मसूद शाह
(1242-1246 ई0)
नासिरुद्दीन महमूद
(1246-1266 ई0)
बलबन
(1266-1286 ई0)
मोइजुद्दीन कैकुबाद
(1286-1290 ई0)
कैमुर्स
(1290 ई0)
शासक |
शासन काल |
कुतुबुद्दीन ऐबक |
(1206-1210 ई0) |
आरामशाह |
(1210-1211 ई0) |
इल्तुतमिश |
(1211-1236 ई0) |
रुकनुद्दीन फिरोज |
(1236 ई0) |
सुल्तान रजिया |
(1236-1240 ई0) |
मुइजुद्दीन बहरामशाह |
(1240-1242 ई0) |
अलाउद्दीन मसूद शाह |
(1242-1246 ई0) |
नासिरुद्दीन महमूद |
(1246-1266 ई0) |
बलबन |
(1266-1286 ई0) |
मोइजुद्दीन कैकुबाद |
(1286-1290 ई0) |
कैमुर्स |
(1290 ई0) |
कुतुबुद्दीन ऐबक (1206 – 1210 ई.) :
- भारत में तुर्की राज्य / दिल्ली सल्तनत / मुस्लिम राज्य की स्थापना करने वाला शासक ऐबक ही था।
- मुहम्मद गौरी ने ऐबक को अमीर-ए-आखुर (अस्तबलों का प्रधान) के पद पर नियुक्त किया।
- 1192 ई. के तराइन के युद्ध में ऐबक ने गौरी की सहायता की।
- तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद गौरी ने ऐबक को अपने मुख्य भारतीय प्रदेशों का सूबेदार नियुक्त किया।
- मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद लाहौर के जनता ने गौरी के प्रतिनिधि के रूप में ऐबक को लाहौर पर शासन करने के लिए आमंत्रित किया जिसे ऐबक ने स्वीकार किया।
- जून 1206 ई. में राज्याभिषेक करवाया तथा सुल्तान की बजाय मलिक / सिपहसालार की उपाधि धारण की।
- 1206 ई. में मुहम्मद गोरी की मृत्यु के पश्चात उसका तुर्क गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक उत्तर भारत का पहला तुर्की शासक बना।
- गुलाम वंश की स्थापना 1206 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने किया था।
- कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपना राज्याभिषेक 24 जून, 1206 ई. को किया था।
- कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपनी राजधानी लाहौर में बनाई थी।
- उसकी उदारता के कारण ही उसे लाखबख्श कहा जाता था, अर्थात वह लाखों का दान करने वाला दानप्रिय व्यक्ति था।
- दिल्ली का कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण ऐबक ने करवाया।
- अजमेर में संस्कृत विद्यालय के स्थान पर “ढाई दिन का झोंपड़ा” का निर्माण करवाया तथा सूफी सन्त “कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी” की याद में कुतुबमीनार का निर्माण प्रारंभ करवाया जिसको इल्तुतमिश ने पूरा करवाया।
- फख्मुदब्बिर ऐबक का पहला वजीर था।
- प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को ध्वस्त करने वाला ऐबक का सहायक सेनानायक बख्तियार खिलजी था।
- कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु 1210 ई. में लाहौर में चौगान (पोलो) खेलते समय घोड़े से गिर जाने के करना ऐबक की मौत हो गई। इसका मकबरा लाहौर में ही बनाया गया है।
- कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद ऐबक का उत्तराधिकारी आरामशाह हुआ, जिसने सिर्फ आठ महीनों तक शासन किया।
- आरामशाह की हत्या करके इल्तुतमिश 1211 ई. में दिल्ली की गद्दी पर बैठा।
- भारत में तुर्की राज्य / दिल्ली सल्तनत / मुस्लिम राज्य की स्थापना करने वाला शासक ऐबक ही था।
- मुहम्मद गौरी ने ऐबक को अमीर-ए-आखुर (अस्तबलों का प्रधान) के पद पर नियुक्त किया।
- 1192 ई. के तराइन के युद्ध में ऐबक ने गौरी की सहायता की।
- तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद गौरी ने ऐबक को अपने मुख्य भारतीय प्रदेशों का सूबेदार नियुक्त किया।
- मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद लाहौर के जनता ने गौरी के प्रतिनिधि के रूप में ऐबक को लाहौर पर शासन करने के लिए आमंत्रित किया जिसे ऐबक ने स्वीकार किया।
- जून 1206 ई. में राज्याभिषेक करवाया तथा सुल्तान की बजाय मलिक / सिपहसालार की उपाधि धारण की।
- 1206 ई. में मुहम्मद गोरी की मृत्यु के पश्चात उसका तुर्क गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक उत्तर भारत का पहला तुर्की शासक बना।
- गुलाम वंश की स्थापना 1206 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने किया था।
- कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपना राज्याभिषेक 24 जून, 1206 ई. को किया था।
- कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपनी राजधानी लाहौर में बनाई थी।
- उसकी उदारता के कारण ही उसे लाखबख्श कहा जाता था, अर्थात वह लाखों का दान करने वाला दानप्रिय व्यक्ति था।
- दिल्ली का कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण ऐबक ने करवाया।
- अजमेर में संस्कृत विद्यालय के स्थान पर “ढाई दिन का झोंपड़ा” का निर्माण करवाया तथा सूफी सन्त “कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी” की याद में कुतुबमीनार का निर्माण प्रारंभ करवाया जिसको इल्तुतमिश ने पूरा करवाया।
- फख्मुदब्बिर ऐबक का पहला वजीर था।
- प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को ध्वस्त करने वाला ऐबक का सहायक सेनानायक बख्तियार खिलजी था।
- कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु 1210 ई. में लाहौर में चौगान (पोलो) खेलते समय घोड़े से गिर जाने के करना ऐबक की मौत हो गई। इसका मकबरा लाहौर में ही बनाया गया है।
- कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद ऐबक का उत्तराधिकारी आरामशाह हुआ, जिसने सिर्फ आठ महीनों तक शासन किया।
- आरामशाह की हत्या करके इल्तुतमिश 1211 ई. में दिल्ली की गद्दी पर बैठा।
इल्तुतमिश (1210-1236 ई.) :
- इल्तुतमिश तुर्किस्तान का इल्बरी तुर्क था, जो कुतुबुद्दीन ऐबक का गुलाम एवं दामाद था।
- ऐबक की मृत्यु के समय वह बदायूँ (यू.पी.) का गवर्नर (इक़्तेदार) था।
- ऐबक की मृत्यु के बाद कुछ इतिहासकारों के अनुसार आरामशाह लाहौर में नया शासक बना, लेकिन दिल्ली के तुर्की अमीरों ने इल्तुतमिश को नया सुल्तान घोषित किया।
- इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक तथा प्रथम वैधानिक सुल्तान था।
- इल्तुतमिश लाहौर से राजधानी को स्थानांतरित करके दिल्ली लाया।
- इसने हौज-ए-सुल्तानी का निर्माण देहली-ए-कुहना के निकट करवाया था।
- इल्तुतमिश पहला शासक था, जिसने 1229 ई. में बगदाद के खलीफा से सुल्तान पद की वैधानिक स्वीकृति प्राप्त की। खलीफा ने इसे ‘सुल्तान-आजम’ कहा।
- इल्तुतमिश पहला मुस्लिम शासक था जिसने सिक्कों पर टकसाल का नाम अंकित करवाया था।
- इल्तुतमिश ने अपने 40 तुर्की सरदारों को मिलाकर तुर्कान-ए-चहलगामी नामक प्रशासनिक संस्था की स्थापना की थी।
इक्ता प्रणाली का संस्थापक–
- इल्तुतमिश ने प्रशासन में इक्ता प्रथा को भी स्थापित किया। भारत में इक्ता प्रणाली का संस्थापक इल्तुतमिश ही था।
- इक्ता प्रथा के अंतर्गत सैनिकों/ राज्य अधिकारियों को वेतन के बदले भूमि दी जाती थी। इस प्रथा को इल्तुतमिश ने ने 1226 ई0 में शुरू किया था। इक्ता प्रथा का अंत अलाउद्दीन खिलजी ने किया|।
- इसने दोआब (गंगा-यमुना) क्षेत्र में हिन्दू जमीदारों की शक्ति तोड़ने के लिए शम्सी तुर्की (उच्च वर्ग) सरदारों को ग्रामीण क्षेत्र में इक्तायें (जागीर) बांटी।
इल्तुतमिश द्वारा किये गए अभियान निम्नलिखित हैं –- 1226 में रणथंभौर पर आक्रमण
- 1227 में नागौर पर आक्रमण
- 1232 में मालवा पर आक्रमण – इस अभियान के दौरान इल्तुतमिश उज्जैन से विक्रमादित्य की मूर्ति उठाकर लाया था।
- 1235 में ग्वालियर का अभियान – इस अभियान के दौरान इल्तुतमिश ने अपने पुत्रों की बजाय पुत्री रजिया को उत्तराधिकारी घोषित किया।
- 1236 में बामियान (अफगानिस्तान) पर आक्रमण – यह इल्तुतमिश का अंतिम अभियान था।
निर्माण कार्य –- स्थापत्य कला के अंतर्गत इल्तुतमिश ने कुतुबुद्दीन ऐबक के निर्माण कार्य (कुतुबमीनार) को पूरा करवाया। संभवतः पहला मकबरा निर्मित करवाने का श्रेय भी इल्तुतमिश को दिया जाता है।
- इल्तुतमिश ने बदायूँ की जामा मस्जिद एवं नागौर में अतारकीन के दरवाजा का निर्माण करवाया। उसने दिल्ली में एक विद्यालय की स्थापना की।
इल्तुतमिश के प्रशासकीय सुधार:- इल्तुतमिश प्रथम तुर्क शासक था जिसने दिल्ली के निकट दोआब के आर्थिक महत्व को समझा।
- मुद्रा प्रणाली में उसका योगदान दिल्ली के समस्त सुल्तानों में सर्वाधिक है।
- वह पहला सुल्तान था जिसके सिक्के पश्चिमी देशों के सिक्कों के समान थे।
- इल्तुतमिश पहला सुल्तान है जिसने शुद्ध अरबी के सिक्के चलाया जिसमें चांदी का टंका (175 ग्रेन) एवं तांबे का जीतल प्रमुख थे।
- इल्तुतमिश ने सर्वप्रथम दिल्ली के अमीरों का दमन किया।
इल्तुतमिश की मृत्यु –- बयाना पर आक्रमण करने के लिए जाते समय मार्ग में इल्तुतमिश बीमार हो गया। इसके बाद इल्तुतमिश की बीमारी बढ़ती गई। अंततः अप्रैल 1236 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
- इल्तुतमिश का मकबरा दिल्ली में स्थित है, जो एक कक्षीय मकबरा है।
रुकनुद्दीन फिरोज (1236 ई.) :
- इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद उसका पुत्र रूकनुद्दीन फिरोज 1236 ई. में गद्दी पर बैठा वह एक अयोग्य शासक था।
- इसके अल्पकालीन शासन पर उसकी माँ शाह तुरकान का ही बोलबाला था। शाह तुरकान के अवांछित प्रभाव से परेशान होकर तुर्की अमीरों ने रूकनुद्दीन को हटाकर रजिया को सिंहासन पर असीन किया।
- इल्तुतमिश तुर्किस्तान का इल्बरी तुर्क था, जो कुतुबुद्दीन ऐबक का गुलाम एवं दामाद था।
- ऐबक की मृत्यु के समय वह बदायूँ (यू.पी.) का गवर्नर (इक़्तेदार) था।
- ऐबक की मृत्यु के बाद कुछ इतिहासकारों के अनुसार आरामशाह लाहौर में नया शासक बना, लेकिन दिल्ली के तुर्की अमीरों ने इल्तुतमिश को नया सुल्तान घोषित किया।
- इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक तथा प्रथम वैधानिक सुल्तान था।
- इल्तुतमिश लाहौर से राजधानी को स्थानांतरित करके दिल्ली लाया।
- इसने हौज-ए-सुल्तानी का निर्माण देहली-ए-कुहना के निकट करवाया था।
- इल्तुतमिश पहला शासक था, जिसने 1229 ई. में बगदाद के खलीफा से सुल्तान पद की वैधानिक स्वीकृति प्राप्त की। खलीफा ने इसे ‘सुल्तान-आजम’ कहा।
- इल्तुतमिश पहला मुस्लिम शासक था जिसने सिक्कों पर टकसाल का नाम अंकित करवाया था।
- इल्तुतमिश ने अपने 40 तुर्की सरदारों को मिलाकर तुर्कान-ए-चहलगामी नामक प्रशासनिक संस्था की स्थापना की थी।
- इल्तुतमिश ने प्रशासन में इक्ता प्रथा को भी स्थापित किया। भारत में इक्ता प्रणाली का संस्थापक इल्तुतमिश ही था।
- इक्ता प्रथा के अंतर्गत सैनिकों/ राज्य अधिकारियों को वेतन के बदले भूमि दी जाती थी। इस प्रथा को इल्तुतमिश ने ने 1226 ई0 में शुरू किया था। इक्ता प्रथा का अंत अलाउद्दीन खिलजी ने किया|।
- इसने दोआब (गंगा-यमुना) क्षेत्र में हिन्दू जमीदारों की शक्ति तोड़ने के लिए शम्सी तुर्की (उच्च वर्ग) सरदारों को ग्रामीण क्षेत्र में इक्तायें (जागीर) बांटी।
इल्तुतमिश द्वारा किये गए अभियान निम्नलिखित हैं –
- 1226 में रणथंभौर पर आक्रमण
- 1227 में नागौर पर आक्रमण
- 1232 में मालवा पर आक्रमण – इस अभियान के दौरान इल्तुतमिश उज्जैन से विक्रमादित्य की मूर्ति उठाकर लाया था।
- 1235 में ग्वालियर का अभियान – इस अभियान के दौरान इल्तुतमिश ने अपने पुत्रों की बजाय पुत्री रजिया को उत्तराधिकारी घोषित किया।
- 1236 में बामियान (अफगानिस्तान) पर आक्रमण – यह इल्तुतमिश का अंतिम अभियान था।
निर्माण कार्य –
- स्थापत्य कला के अंतर्गत इल्तुतमिश ने कुतुबुद्दीन ऐबक के निर्माण कार्य (कुतुबमीनार) को पूरा करवाया। संभवतः पहला मकबरा निर्मित करवाने का श्रेय भी इल्तुतमिश को दिया जाता है।
- इल्तुतमिश ने बदायूँ की जामा मस्जिद एवं नागौर में अतारकीन के दरवाजा का निर्माण करवाया। उसने दिल्ली में एक विद्यालय की स्थापना की।
इल्तुतमिश के प्रशासकीय सुधार:
- इल्तुतमिश प्रथम तुर्क शासक था जिसने दिल्ली के निकट दोआब के आर्थिक महत्व को समझा।
- मुद्रा प्रणाली में उसका योगदान दिल्ली के समस्त सुल्तानों में सर्वाधिक है।
- वह पहला सुल्तान था जिसके सिक्के पश्चिमी देशों के सिक्कों के समान थे।
- इल्तुतमिश पहला सुल्तान है जिसने शुद्ध अरबी के सिक्के चलाया जिसमें चांदी का टंका (175 ग्रेन) एवं तांबे का जीतल प्रमुख थे।
- इल्तुतमिश ने सर्वप्रथम दिल्ली के अमीरों का दमन किया।
इल्तुतमिश की मृत्यु –
- बयाना पर आक्रमण करने के लिए जाते समय मार्ग में इल्तुतमिश बीमार हो गया। इसके बाद इल्तुतमिश की बीमारी बढ़ती गई। अंततः अप्रैल 1236 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
- इल्तुतमिश का मकबरा दिल्ली में स्थित है, जो एक कक्षीय मकबरा है।
रुकनुद्दीन फिरोज (1236 ई.) :
- इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद उसका पुत्र रूकनुद्दीन फिरोज 1236 ई. में गद्दी पर बैठा वह एक अयोग्य शासक था।
- इसके अल्पकालीन शासन पर उसकी माँ शाह तुरकान का ही बोलबाला था। शाह तुरकान के अवांछित प्रभाव से परेशान होकर तुर्की अमीरों ने रूकनुद्दीन को हटाकर रजिया को सिंहासन पर असीन किया।
रजिया सुल्तान (1236-1240 ई.) :
रजिया सुल्तान (1236-1240 ई.) :
- रजिया बेगम प्रथम मुस्लिम महिला थी, जिसने शासन की बागडोर संभाली।
- सुल्तान रजिया का जन्म -1205 ई. में बदायूँ में हुआ था, उसने उमदत-उल-निस्वाँ की उपाधि ग्रहण की।
- रजिया ने पर्दा प्रथा को त्यागकर पुरुषों के समान काबा (चोगा) एवं कुलाह (टोपी) पहनकर राजदरबार में खुले मुंह से जाने लगी।
- रजिया ने जब एक गैर तुर्की अफ्रीकी मुस्लिम जलालुद्दीन याकूत को अमीर-ए-आखूर (घोड़े का सरदार) नियुक्त किया तो तुर्की अमीर विरुद्ध हो गए और बंदी बनाकर दिल्ली की गद्दी पर मुइज्जुद्दीन बहरामशाह को बैठा दिया।
- रजिया की शादी अल्तुनिया के साथ हुई। इससे शादी करने के बाद रजिया ने पुनः गद्दी प्राप्त करने का प्रयास किया, लेकिन वह असफल रही।
- रजिया की हत्या 13 अक्टूबर, 1240 ई. को डाकुओं के द्वारा कैथल के पास कर दी गई।
- रजिया बेगम प्रथम मुस्लिम महिला थी, जिसने शासन की बागडोर संभाली।
- सुल्तान रजिया का जन्म -1205 ई. में बदायूँ में हुआ था, उसने उमदत-उल-निस्वाँ की उपाधि ग्रहण की।
- रजिया ने पर्दा प्रथा को त्यागकर पुरुषों के समान काबा (चोगा) एवं कुलाह (टोपी) पहनकर राजदरबार में खुले मुंह से जाने लगी।
- रजिया ने जब एक गैर तुर्की अफ्रीकी मुस्लिम जलालुद्दीन याकूत को अमीर-ए-आखूर (घोड़े का सरदार) नियुक्त किया तो तुर्की अमीर विरुद्ध हो गए और बंदी बनाकर दिल्ली की गद्दी पर मुइज्जुद्दीन बहरामशाह को बैठा दिया।
- रजिया की शादी अल्तुनिया के साथ हुई। इससे शादी करने के बाद रजिया ने पुनः गद्दी प्राप्त करने का प्रयास किया, लेकिन वह असफल रही।
- रजिया की हत्या 13 अक्टूबर, 1240 ई. को डाकुओं के द्वारा कैथल के पास कर दी गई।
रजिया के पतन के कारण
- तुर्की अमीरों की बढ़ती हुई शक्ति
- रजिया का स्त्री होना(मिनहाज के अनुसार)
- रजिया का याकूत को अमीर-ए-आखूर नियुक्त करना जिसके प्रति प्रेम का मिथ्या दोषारोपण करके तुर्क अमीरों(चालीस अमीरों का दल: चहल-गानी) ने विद्रोह किया।
- गैर तुर्को का प्रतिस्पर्धा दल बनाया।
- रजिया एक गैर-तुर्क दल बनाकर तुर्क अमीरों की शक्ति का सन्तुलन करना चाहती थी। लेकिन तुर्क अमीरों का इल्तुतमिश के शासनकाल के दौरान सभी उच्च पदों पर अधिकार हो गया था। अब वे इस एकाधिकार को बनाए रखना चाहते थे।
मुइजुद्दीन बहरामशाह (1240-1242 ई.) :
- बहरामशाह एक मुस्लिम तुर्की शासक था, जो दिल्ली का सुल्तान था।
- बहरामशाह गुलाम वंश का था।
- रजिया सुल्तान को अपदस्थ करके तुर्की सरदारों ने मुइजुद्दीन बहरामशाह को दिल्ली के तख्त पर बैठाया।
- यह इल्तुतमिश का पुत्र तथा रजिया का भाई था।
- मई, 1241 ई. में तुर्क सरदारों ने दिल्ली पर कब्जा कर बहरामशाह का वध कर दिया।
- तुर्क सरदारों ने बहरामशाह के पौत्र अलाउद्दीन मसूदशाह को अगला सुल्तान बनाया।
- बहरामशाह एक मुस्लिम तुर्की शासक था, जो दिल्ली का सुल्तान था।
- बहरामशाह गुलाम वंश का था।
- रजिया सुल्तान को अपदस्थ करके तुर्की सरदारों ने मुइजुद्दीन बहरामशाह को दिल्ली के तख्त पर बैठाया।
- यह इल्तुतमिश का पुत्र तथा रजिया का भाई था।
- मई, 1241 ई. में तुर्क सरदारों ने दिल्ली पर कब्जा कर बहरामशाह का वध कर दिया।
- तुर्क सरदारों ने बहरामशाह के पौत्र अलाउद्दीन मसूदशाह को अगला सुल्तान बनाया।
अलाउद्दीन मसूदशाह (1242-1246 ई.) :
- मसूद का शासन सुलनात्मक दृष्टि से शांतिपूर्ण रहा। इस समय सुल्तान तथा सरदारों के मध्य संघर्ष नहीं हुए।
- बलबन ने षड्यंत्र के द्वारा 1246 ई. में अलाउद्दीन मसूद शाह को सुल्तान के पद से हटाकर नासिरुद्दीन महमूद को सुल्तान बना दिया।
- मसूद का शासन सुलनात्मक दृष्टि से शांतिपूर्ण रहा। इस समय सुल्तान तथा सरदारों के मध्य संघर्ष नहीं हुए।
- बलबन ने षड्यंत्र के द्वारा 1246 ई. में अलाउद्दीन मसूद शाह को सुल्तान के पद से हटाकर नासिरुद्दीन महमूद को सुल्तान बना दिया।
नासिरुद्दीन महमूद (1246-1265 ई.):
- नासिरुद्दीन महमूद एक तुर्की शासक था, जो दिल्ली सल्तनत का सुल्तान बना।
- यह भी गुलाम वंश से था। यह मधुर एवं धार्मिक स्वभाव का व्यक्ति था।
- नासिरुद्दीन महमूद ऐसा सुल्तान था जो टोपी सीकर अपना जीवन-निर्वाह करता था।
- बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह नासिरुद्दीन महमूद के साथ किया था।
- महमूद के शासनकाल में समस्त शक्ति बलबन के हाथों में थी।
- प्रारंभ में बलबन चहलगामी का सदस्य था लेकिन धीरे-धीरे बलबन ने अपनी शक्ति का विस्तार किया।
- बलबन की शक्ति में वृद्धि को देखकर चहलगामी के एक सदस्य किचलू खां ने बलबन के विरुद्ध षड्यंत्र शुरू कर दिया।
- 1266 ई. में सुल्तान की मृत्यु हो गई।
- नासिरुद्दीन महमूद एक तुर्की शासक था, जो दिल्ली सल्तनत का सुल्तान बना।
- यह भी गुलाम वंश से था। यह मधुर एवं धार्मिक स्वभाव का व्यक्ति था।
- नासिरुद्दीन महमूद ऐसा सुल्तान था जो टोपी सीकर अपना जीवन-निर्वाह करता था।
- बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह नासिरुद्दीन महमूद के साथ किया था।
- महमूद के शासनकाल में समस्त शक्ति बलबन के हाथों में थी।
- प्रारंभ में बलबन चहलगामी का सदस्य था लेकिन धीरे-धीरे बलबन ने अपनी शक्ति का विस्तार किया।
- बलबन की शक्ति में वृद्धि को देखकर चहलगामी के एक सदस्य किचलू खां ने बलबन के विरुद्ध षड्यंत्र शुरू कर दिया।
- 1266 ई. में सुल्तान की मृत्यु हो गई।
ग्यासुद्दीन बलबन (1266-1287 ई.) :
- बचपन में बलबन को मंगोल उठा कर ले गए थे और गजनी ले जाकर उन्होंने बसरा के ख्वाजा जमालुद्दीन के हाथों बेच दिया, ख्वाजा जमालुद्दीन उसे दिल्ली ले आये।
- इल्तुतमिश ने बलबन को ग्वालियर विजय के बाद खरीदा और उसकी योग्यता से प्रवाभित होकर उसे खासदार का पद सौंपा दिया।
- बलबन 1266 ई. में गियासुद्दीन बलबन के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा।
- तुर्कान-ए-चिहलगानी का विनाश बलबन ने किया था। वह जानता था की यह संगठन उसे नुकसान पहुंचा सकता है।
- बलबन भी तुर्कान–ए-चिहलगानी का सदस्य था, इल्तुतमिश के समय खासदार, रजिया के समय अमीर–ए–शिकार का सदस्य था तथा बहरामशाह के समय अमीर–ए– आखूर (अश्वशाला का प्रधान) के पद पर, तथा अलाउद्दीन मसूदशाह के समय अमीर–ए-हाजिब(विशेष सचिव) के पद पर था। नासिरुद्दीन महमूद के समय बलबन नायब-ए-मुमालिकात(सुल्तान का संरक्षक) के पद पर था।
- यह मंगोलों के आक्रमण से दिल्ली की रक्षा करने में सफल रहा।
- राजदरबार में सिजदा एवं पैबोस प्रथा की शुरुआत बलबन ने की थी।
- बलबन ने फ़ारसी रीति-रिवाज पर आधारित नवरोज उत्सव को प्रारंभ करवाया।
- अपने विरोधियों के प्रति बलबन ने कठोर ‘लौह एवं रक्त‘ की नीति का पालन किया।
- नासिरुद्दीन महमूद ने बलबन को उलूंग खां की उपाधि प्रदान की।
- बलबन ने दीवान-ए-विजारत(वित्त विभाग) को सैन्य विभाग से अलग कर दीवान-ए-आरिज(सैन्य विभाग) की स्थापना की। विभाग के प्रमुख को आरिज-ए-मुमालिक कहा जाता था।
- बलबन के दरबार में फारसी के प्रसिद्ध कवि अमीर-खुसरो एवं अमीर हसन रहते थे।
- अमीर खुसरो ने इतिहासकार के रूप में अपने जीवन का आरम्भ शाहजादा मुहम्मद के काल से किया। अमीर खुसरो उत्तर प्रदेश के एटा जिले का निवासी था। उसने 7 सुल्तानों के काल को देखा था। अमीर खुसरो को तूतिए-हिन्द के नाम से भी जाना जाता है।
राजत्व का सिद्धान्त: बलबन ने अपने आप को नियामत-ए-खुदाई अर्थात पृथ्वी पर ईश्वर की छाया बताया कि मैं ईश्वर का प्रतिबिम्ब(जिल्ले इलाही) हूं।
- बचपन में बलबन को मंगोल उठा कर ले गए थे और गजनी ले जाकर उन्होंने बसरा के ख्वाजा जमालुद्दीन के हाथों बेच दिया, ख्वाजा जमालुद्दीन उसे दिल्ली ले आये।
- इल्तुतमिश ने बलबन को ग्वालियर विजय के बाद खरीदा और उसकी योग्यता से प्रवाभित होकर उसे खासदार का पद सौंपा दिया।
- बलबन 1266 ई. में गियासुद्दीन बलबन के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा।
- तुर्कान-ए-चिहलगानी का विनाश बलबन ने किया था। वह जानता था की यह संगठन उसे नुकसान पहुंचा सकता है।
- बलबन भी तुर्कान–ए-चिहलगानी का सदस्य था, इल्तुतमिश के समय खासदार, रजिया के समय अमीर–ए–शिकार का सदस्य था तथा बहरामशाह के समय अमीर–ए– आखूर (अश्वशाला का प्रधान) के पद पर, तथा अलाउद्दीन मसूदशाह के समय अमीर–ए-हाजिब(विशेष सचिव) के पद पर था। नासिरुद्दीन महमूद के समय बलबन नायब-ए-मुमालिकात(सुल्तान का संरक्षक) के पद पर था।
- यह मंगोलों के आक्रमण से दिल्ली की रक्षा करने में सफल रहा।
- राजदरबार में सिजदा एवं पैबोस प्रथा की शुरुआत बलबन ने की थी।
- बलबन ने फ़ारसी रीति-रिवाज पर आधारित नवरोज उत्सव को प्रारंभ करवाया।
- अपने विरोधियों के प्रति बलबन ने कठोर ‘लौह एवं रक्त‘ की नीति का पालन किया।
- नासिरुद्दीन महमूद ने बलबन को उलूंग खां की उपाधि प्रदान की।
- बलबन ने दीवान-ए-विजारत(वित्त विभाग) को सैन्य विभाग से अलग कर दीवान-ए-आरिज(सैन्य विभाग) की स्थापना की। विभाग के प्रमुख को आरिज-ए-मुमालिक कहा जाता था।
- बलबन के दरबार में फारसी के प्रसिद्ध कवि अमीर-खुसरो एवं अमीर हसन रहते थे।
- अमीर खुसरो ने इतिहासकार के रूप में अपने जीवन का आरम्भ शाहजादा मुहम्मद के काल से किया। अमीर खुसरो उत्तर प्रदेश के एटा जिले का निवासी था। उसने 7 सुल्तानों के काल को देखा था। अमीर खुसरो को तूतिए-हिन्द के नाम से भी जाना जाता है।
बलबन के राजत्व सिद्धान्त की दो विशेषताएं थी:-
1.सुल्तान का पद ईश्वर के द्वारा प्रदान किया होता है।
2.सुल्तान का निरंकुश होना आवश्यक है।
बलबन की मृत्यु के बाद का शासन
बलबन के राजत्व सिद्धान्त की दो विशेषताएं थी:-
1.सुल्तान का पद ईश्वर के द्वारा प्रदान किया होता है।
2.सुल्तान का निरंकुश होना आवश्यक है।
बलबन की मृत्यु के बाद का शासन
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