राज्य की कार्यपालिका
राज्यपाल
अनुच्छेद-153 में यह उल्लिखित था कि प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा, किन्तु सविधान के 7 वें संशोधन द्वारा इसमें एक परन्तुक जोड दिया गया जिसके अनुसार एक ही व्यक्ति को दो या दो से अधिक राज्यों के लिए भी राज्यपाल नियुक्ति किया जा सकता है।
राज्यपाल की योग्यताः
- वह भारत का नागरिक हो
- वह 35 वर्ष की आयु पूरा कर चुका हो
- किसी प्रकार के लाभ के पद पर न हो
- वह राज्य विधानसभा का सदस्य चुने जाने योग्य हो
राज्यपाल की पदावधि:
- राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा 05 वर्षो की अवधि के लिए की जाती है, परन्तु यह राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त पद धारण करता है। (अनुच्छेद-156(1))
- राज्यपाल, राष्ट्रपति को सम्बोधित अपना पद त्याग कर सकता है।(अनुच्छेद-156(2))
राज्यपाल का वेतन
- एक राज्यपाल का वेतन 3.5 लाख रुपये प्रति माह होता है। एक से अधिक राज्य के लिए राज्यपाल का वेतन राष्ट्रपति के द्वारा तय किया जाता है।
राज्यपाल की शक्तियां एवं कार्य
कार्यपालिका संबंधी कार्यः
- राज्य के समस्त कार्यपालिका कार्य राज्यपाल के नाम से किये जाते है।
- राज्यपाल मुख्यमंत्री को तथा मुख्यमंत्री की सलाह से उसकी मंत्रिपरिषद के सदस्यों की नियुक्त एवं शपथ दिलाता है।
- राज्यपाल राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में राष्ट्रपति को परामर्श देता है।
- राज्यपाल राज्य के उच्चाधिकारियों जैसे मुख्य सचिव, महाधिवक्ता, राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति करता है।
- राष्ट्रपति शासन के समय राज्यपाल केन्द्र सरकार के अभिकर्ता के रूप में राज्य का प्रशासन चलाता हैं।
- राज्यपाल राज्य के विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति होता है तथा उपकुलपतियों को भी नियुक्त करता है।
- राज्यपाल का अधिकार है कि वह राज्य के प्रशासन के संबंध में मुख्यमंत्री से सूचना प्राप्त करें।
- वह राज्य विधान परिषद की कुल सदस्य संख्या का 1/6 भाग सदस्यों को नियुक्त करता है, जिनका संबंध विज्ञान, साहित्य, समाज सेवा कला, सहकारी आन्दोलन आदि से रहता है।
वित्तीय अधिकारः
- राज्यपाल प्रत्येक वित्तीय वर्ष में वित्त मंत्री को विधानमण्डल के सम्मुख वार्षिक वित्तीय विवरण प्रस्तुत करने के लिए कहता है।
- राज्यपाल की संस्तुति के बिना अनुदान की किसी मांग को विधान मण्डल के सम्मुख नही रखा जा सकता।
- विधानसभा में धन विधेयक राज्यपाल की पूर्व अनुमति से ही पेश किया जाता हैं।
- ऐसा कोई विधेयक जो राज्य की संचित निधि से खर्च निकालने की व्यवस्था करता हो उस समय तक विधान मण्डल द्वारा पारित नही किया जा सकता जब तक राज्यपाल इसकी संस्तुति न कर दे।
राज्यपाल के विधायी अधिकारः
- राज्यपाल विधानमण्डल को बुलाने और किसी भी समय स्थगित करने का अधिकार होता है। साथ ही उसे दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाने का भी अधिकार है।
- राज्य विधानसभा के किसी सदस्य पर अयोग्यता का प्रश्न उत्पन्न होता है, तो अयोग्यता संबंधी विवाद का निर्धारण राज्यपाल चुनाव आयोग से परामर्श करके करता हैं।
- राज्य विधानसभा में कोई भी विधेयक राज्यपाल की अनुमति के बिना पारित नहीं किया जा सकता। राज्य में आपातकाल के दौरान किसी भी प्रकार का अध्यादेश जारी करने का कार्य भी राज्यपाल का होता है।
- यदि विधानसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नही प्राप्त है तो राज्यपाल उस समुदाय के एक व्यक्ति को विधानसभा का सदस्य मनोनीत कर सकता है।
- राज्यपाल धन विधेयक के अतिरिक्त किसी विधेयक को पुनः विचार के लिए राज्य विधानमण्डल के पास भेज सकता है, परन्तु राज्य विधानमण्डल द्वारा इसे दुबारा पारित किये जाने पर वह उस पर अपनी सहमति देने के लिए बाध्य होता है। राष्ट्रपति के लिए आरक्षित विधेयक जब राष्ट्रपति के निदेश पर राज्यपाल पुर्नविचार के लिए विधानमण्डल को लौटा दे। ऐसे लौटाए जाने पर विधानमण्डल छः मास के भीतर उस विधेयक पर पुर्नविचार करेगा और यदि उसे पुनः पारित किया जाता है तो विधेयक राष्ट्रपति को पुनः प्रस्तुत किया जायेगा किन्तु इस पर भी राष्ट्रपति के लिए अनुमति देना अनिवार्य नही है।
- जब विधानमण्डल का सत्र नही चल रहा हो और राज्यपाल को ऐसा लगे कि तत्काल कर्यवाही की आवश्यकता है, तो वह अध्यादेश जारी कर सकता है, जिसे वही स्थान प्राप्त है, जो विधानमण्डल द्वारा पारित किसी अधिनियम का है। ऐसे अध्यादेश 6 सप्ताह के भीतर विधानमण्डल द्वारा स्वीकृत होना आवश्यक है। यदि विधानमण्डल 6 सप्ताह के भीतर उसे अपनी स्वीकृति नही देता है, तो उस अध्यादेश की वैधता समाप्त हो जाती है।
- राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रख सकता है। यह आरक्षित विधेयक तभी प्रभावी होगा जब राष्ट्रपति उसे अनुमति प्रदान कर दे। राज्यपाल को राष्ट्रपति के लिए विधेयक आरक्षित करना उस समय अनिवार्य है जब विधेयक उच्च न्यायालय की शक्तियों का अल्पीकरण करता है जिससे यदि विधेयक विधि बन जायेगा तो उच्च न्यायालय की सांविधिनिक स्थिति को खतरा होगा।
न्यायिक
- राज्यपाल के न्यायिक कार्यों में राज्य के उच्च न्यायालय के साथ विचार कर ज़िला न्यायाधीशों की नियुक्ति, स्थानांतरण और पदोन्नति संबंधी निर्णय लेना शामिल है। वह राज्य न्यायिक आयोग से जुड़े लोगों की नियुक्ति भी करता है।
- राज्यपाल किसी दण्ड को क्षमा, उसका प्रबिलम्बन, विराम या परिहार कर सकेगा या किसी दण्डादेश का निलम्बन, परिहान या लघुकरण कर सकेगा। यह ऐसे व्यक्ति के संबंध में होगा जिसे ऐसी विधि के अधीन अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया गया हो।
आपात शक्तिः
- जब राज्य का शासन संविधान के उपबन्धों के अनुसार नही चलाया जा सकता तो वह राष्ट्रपति को प्रतिवेदन भेजकर यह कह सकता है कि राष्ट्रपति राज्य के शासन के सभी या कोई कृत्य स्वयं ग्रहण कर ले। इसे राष्ट्रपति शासन कहा जाता है।
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