ध्वनि तरंग
ध्वनि कम्पन करती हुई वस्तुओं द्वारा उत्पन्न होती है। द्रव्य या पदार्थ जिससे होकर ध्वनि संचरित होती है, माध्यम कहलाता है। यह ठोस, द्रव या गैस हो सकता है। ध्वनि तरंग अनुदैर्ध्य तरंगे होती है। हम सभी आवृत्ति की ध्वनियों को नहीं सुन सकते।
प्रति सेकण्ड कम्पनों की संख्या आवृति कहलाती है।
निर्वात में ध्वनि का संचरण नहीं होता है।
ध्वनि का संचरण = ठोस > द्रव्य > गैस।
ठोस में भी ध्वनि का सर्वाधिक संचरण एल्युमिनियम में होता है, उसके बाद कांच व लोहा में।
द्रव्य में ध्वनि का सर्वाधिक संचरण समुद्री जल में तथा उसके बाद जल, पारा, तथा एल्कोहल में होता है।
गैस में ध्वनि का सर्वाधिक संचरण भाप में तथा उसके बाद वायु व कार्बन डाई ऑक्साइड में होता है।
ध्वनियों को उनकी आवृत्ति के अनुसार तीन प्रकार की होती है।
1. अवश्रव्य तरंगे(Infrasonic Waves)-20 हर्ट्ज से नीचे की आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगों को अवश्रव्य तरंगे कहते है। इन तरंगो को मनुष्य सुन नही सकता। इस प्रकार की तरंगो को बहुत बडे आकार के स्रोतो से उत्पन्न किया जा सकता है।
2. श्रव्य तरंगे(Audible Waves)-20 हर्ट्ज से 20,000 हर्ट्ज के बीच की आवृत्ति वाली तरंगो को श्रव्य तरंग कहते है। इन तरंगो को मनुष्य सुन सकता हैं
3. पराश्रव्य तरंगे(Ultrasonic Waves)-20,000 से ऊपर की आवृत्ति वाली तरंगों को पराश्रव्य तरंगे कहा जाता है। इन तरंगो को मनुष्य सुन नही सकता। कुत्ता, चमगादड, बिल्ली आदि इसे सुन सकते है।
पराश्रव्य तरंगे का उपयोग-
1. समुद्र की गहराई को ज्ञात करने में।
2. दूध के अन्दर हानिकारण जीवाणुओं को हटाने में।
3. गठिया रोग के उपचार एवं मस्तिष्क के ट्यूमर का पता लगाने में।
4. संकेत भेजने मे।
ध्वनि की चाल(Speed of Sound)
विभिन्न माध्यमों में ध्वनि की चाल अलग-अलग होती हैं
ध्वनि की चाल गैस (332 m/s)में सबसे कम, द्रव (1,483 m/s)में गैस से अधिक व ठोस में ध्वनि(5,130 m/s) की चाल से सबसे अधिक होती है।
ध्वनि की चाल पर दाब का कोई प्रभाव नही पड़ता। अर्थात दाब घटाने या बढ़ाने में ध्वनि की चाल अपरिवर्तित रहती है।
ध्वनि की चाल पर ताप का प्रभाव-माध्यम का ताप बढाने पर उसमें ध्वनि की चाल बढ़ जाती है।
ध्वनि की चाल पर आर्द्रता का प्रभाव-शुष्क वायु की अपेक्षा नमी युक्त वायु मे ध्वनि की चाल अधिक होती है।
0℃ ताप पर वायु में ध्वनि की चाल 332 मी./से. होती है। 1℃ ताप बढ़ाने पर ध्वनि की चाल 0.61 मी./से. बढ़ जाती है।
दाब परिवर्तन का ध्वनि की चाल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
आद्र वायु का घनत्व शुष्क वायु से अधिक होने के कारण ध्वनि की चाल आद्र वायु में बढ़ जायेगी।
भिन्न-भिन्न गैसों में ध्वनि की चाल भिन्न-भिन्न होगी। हल्की गैसों में ध्वनि की चाल अधिक व भारी गैसों में कम होगी।
ध्वनि की तीव्रता का S.I. मात्रक माइक्रोवाट/मीटर²
इसका प्रयोगात्मक मात्रक बेल होता है। बेल का 10वां भाग डेसीबल होता है।
तारत्व हमेशा आवृति पर निर्भर करता है।
जैसे-जैसे ध्वनि की आवृति बढ़ती है, वैसे-वैसे तारत्व बढ़ता है, और ध्वनि पतली होती जाती है।
जैसे ध्वनि की आवृति घटती है, वैसे-वैसे तारत्व घटता है, और ध्वनि मोटी होती जाती है।
लड़की का तारत्व अधिक होने के कारण उनकी आवाज पतली तथा लड़कों का तारत्व कम होने के कारण उनकी आवाज मोटी होती है।
शेर व मच्छर में मच्छर का तारत्व अधिक होता है।
ध्वनि के गुण(Properties of sound)
प्रतिध्वनि को स्पष्ट सुनने के लिए स्त्रोत व स्त्रोता के बीच कम से कम 17 मीटर की दूरी होनी चाहिए।
खाली हाॅल गूंजता है जबकि सामान से भरा हाॅल नहीं गूंजता है क्योंकि सामान भरा होने के कारण ध्वनि का अवशोषण हो जाता है।
यदि दोनों तरंगें विपरीत कला में मिलती हैं तो व्यतिकरण विनाशी होगा व ध्वनि की तीव्रता न्यूनतम होगी।
पराध्वनिक तरंगे(Supersonic
waves):
यदि किसी गतिशील पिण्ड की चाल किसी गैस में, उसी गैस में ध्वनि की चाल से अधिक हो जाती है तो पिण्ड की चाल को पराध्वनिक चाल कहते हैं।
पिण्ड की चाल ध्वनि की चाल से अधिक होने पर, पिण्ड अपने पीछे वायु की एक शंक्वाकार हलचल छोड़ता जाता है, जिसे प्रघाती तरंग कहते हैं।
डाॅप्लर प्रभाव(Doppler effect):
- इस सिद्धांत को ऑस्ट्रिया के भौतिकवेता क्रिस्चियन जाॅन डाॅप्लर ने 1842 ई. में प्रस्तुत किया था। इस सिद्धांत के अनुसार स्त्रोता व स्त्रोत दोनों के बीच गति हो या दोनों में से एक गतिशील हो तो आवृत्ति बदलती रहती है उसके साथ-साथ तारत्व भी बदलता रहता है।
- आवृति अधिक होने पर तारत्व अधिक होता है, जिसके कारण आवाज पतली होती है, आवृति कम होने पर तारत्व कम होता है तथा आवाज मोटी होती है।
- जब स्त्रोता व स्त्रोत दोनों नजदीक होते हैं तो तारत्व अधिक होता है जिसके कारण ध्वनि पतली होती है। दोनों ज्यों-ज्यों दूर होते हैं तो तारत्व अधिक होता है जिसके कारण आवाज मोटी होती है।
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