सूर्यातप(Insolation)





सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक आने में 8 मिनट का समय लगता है। सूर्य से पृथ्वी तक पहुँचने वाले सौर विकिरण ऊर्जा को सूर्यातप कहते है। वायुमण्डल की बाहरी सीमा पर सूर्य से प्रति मिनट प्रति वर्ग सेमी0 पर 1.94 कैलोरी उष्मा प्राप्त होती है। वायुमण्डल सौर्यिक ऊर्जा का केवल 14 % ही ग्रहण कर पाता है। पृथ्वी सौर्यिक विकिरण द्वारा प्रसारित ऊर्जा का 51% भाग प्राप्त करती है। 

समताप रेखा-वह काल्पनिक रेखा जो समान तापमान वाले स्थानो को मिलाती है। 

वायुमण्डल गर्म तथा ठण्डा निम्न विधियों से होता है। 

1.विकिरण(Radiation)-किसी पदार्थ को उष्मा तंरगों के संचार द्वारा सीधे गर्म होने को विकिरण कहते है। उदाहरणार्थ सूर्य से प्राप्त होने वाली किरणों से पृथ्वी तथा उसका वायुमण्डल गर्म होते है। यही एकमात्र ऐसी प्रक्रिया है जिससे उष्मा बिना किसी माध्यम के, शून्य से होकर भी यात्रा कर सकती है। 

2.संचालन(Conduction)-जब असमान ताप वाली दो वस्तुएँ एक-दूसरे के सम्पर्क में आती है तो अधिक तापमान वाली वस्तु से कम तापमान वाली वस्तु की ओर उष्मा प्रवाहित होती है। उष्मा का यह प्रवाह तब तक चलता रहता है जब तक दोनो वस्तुओं का तापमान एक जैसा न हो जाए। संचालन प्रक्रिया से वायुमण्डल की केवल निचली परतें ही गर्म होती है। 

3.संवहन(Convection)-किसी गैसीय अथवा तरल पदार्थ के एक भाग से दूसरे भाग की ओर उसके अणुओं द्वारा उष्मा के संचार को संवहन कहते है। संवहन प्रक्रिया द्वारा वायुमण्डल क्रमशः नीचे से ऊपर गर्म होता रहता है। ऊर्जा के स्थानांतरण का यह प्रकार केवल क्षोभमंडल तक सीमित रहता है।

4.अभिवहन(Advection)-इस प्रक्रिया में उष्मा का क्षैतिज दिशा में स्थानान्तरण होता है। गर्म वायु राशियाँ जब ठण्डे इलाको मे जाती है, तो उन्हे गर्म कर देती है। इसमें उष्मा का संचार निम्न अक्षांशीय क्षेत्रों से उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों तक भी होता है। वायु द्वारा संचालित समुद्री धाराएँ भी उष्ण कटिबन्धों से ध्रुवीय क्षेत्रों में उष्मा का संचार करती है।  मध्य अक्षांशों में दैनिक मौसम में आने वाली भिन्नताएँ केवल अभिवहन के कारण होती हैं। उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में, विशेषतः उत्तरी भाग में गर्मियों में चलने वाली स्थानीय पवन लू इसी अभिवहन का ही परिणाम है।

पृथ्वी द्वारा प्राप्त प्रवेशी सौर विकिरण, जो लघु तरंगों के रूप में होता है, पृथ्वी की सतह को गर्म करता है। पृथ्वी स्वयं गर्म होने के बाद एक विकिरण पिंड बन जाती है और वायुमंडल में दीर्घ तरंगों के रूप में ऊर्जा का विकिरण करने लगती है। यह ऊर्जा वायुमंडल को नीचे से गर्म करती है। इस प्रक्रिया को ‘पार्थिव विकिरण’ कहा जाता है।

दीर्घ तरंगदैर्ध्य विकिरण वायुमंडलीय गैसों, मुख्यतः कार्बन डाईऑक्साइड एवं अन्य ग्रीन हाऊस गैसों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। इस प्रकार वायुमंडल पार्थिव विकिरण द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से गर्म होता है न कि सीधे सूर्यातप से। तदुपरांत वायुमंडल विकीर्णन द्वारा ताप को अंतरिक्ष में संचरित कर देता है। इस प्रकार पृथ्वी की सतह एवं वायुमंडल का तापमान स्थिर रहता है।


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