पवन(Wind)



उच्च दाब क्षेत्र से निम्न दाब क्षेत्र की ओर वायु की गति को ‘पवन’ कहते हैं। 

पृथ्वी के धरातल पर क्षैतिज पवनें तीन संयुक्त प्रभावों का परिणाम है :

1.दाब प्रवणता प्रभाव 2. घर्षण बल  3.कोरिआलिस बल।

दाब प्रवणता बल-दाब प्रवणता बल वायुमंडलीय दाब भिन्नता एक बल उत्पन्न करता है। दूरी के संदर्भ में दाब परिवर्तन की दर दाब प्रवणता है। जहाँ समदाब रेखाएँ पास-पास हों, वहाँ दाब प्रवणता अधिक व समदाब रेखाओं के दूर-दूर होने से दाब प्रवणता कम होती है।

घर्षण बल-घर्षण बल यह पवनों की गति को प्रभावित करता है। धरातल पर घर्षण सर्वाधिक होता है और इसका प्रभाव प्रायः धरातल से 1 से 3 कि॰मी॰ ऊँचाई तक होता है। समुद्र सतह पर घर्षण न्यूनतम होता है।

कोरिऑलिस बल-पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन पवनों की दिशा को प्रभावित करता है। सन् 1844(NCERT-स्रोत) में फ्रांसिसी वैज्ञानिक ने इसका विवरण प्रस्तुत किया और इसी पर इस बल को कोरिऑलिस बल कहा जाता है। इस प्रभाव से पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी मूल दिशा से दाहिने तरपफ व दक्षिण गोलार्द्ध में बाईं तरफ विक्षेपित  (deflect) हो जाती हैं। जब पवनों का वेग अधिक होता है, तब विक्षेपण भी अधिक होता है। कोरिऑलिस बल अक्षांशों के कोण के सीधा समानुपात में बढ़ता है। यह ध्रुवों पर सर्वाधिक और विषुवत् वृत्त पर अनुपस्थित होता है।

पवन को मुख्यतः तीन प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है।

(1)प्रचलित या स्थायी पवन

(2)मौसमी पवन

(3)स्थानीय पवन

प्रचलित या स्थायी पवन(Permanent Winds): ये वर्षभर लगातार निश्चित दिशा में चलती रहती हैं। जैसे व्यापारिक पवन, ध्रुवीय पवन, पछुआ पवन।

(I)पछुआ पवन:दोनो गोलार्द्धो में उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबंधों से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबंधों की ओर चलने वाली स्थायी हवा को, इनकी पश्चिम दिशा के कारण, पछुआ पवन कहा जाता है।
यह पवन दोनों गोलार्द्धो  में 30 डिग्री अक्षांशों से 65 डिग्री अक्षांश के मध्य पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर चलती है
पछुआ पवनें उत्तरी गोलार्द्ध की अपेक्षा दक्षिणी गोलार्द्ध  में अधिक प्रबलता से प्रवाहित होती है क्योंकि दक्षिणी गोलार्द्ध में जल क्षेत्र अधिक है तथा स्थली अवरोध कम है।

पछुआ पवनों को दक्षिणी गोलार्द्ध में 40 डिग्री दक्षिणी अक्षांश पर गरजता चालीसा,50 डिग्री दक्षिणी अक्षांश पर प्रचंड पचासा एवं 60 डिग्री दक्षिणी अक्षांश पर चीखता साठा  के नाम से पुकारते हैं,यह सारे नाम नाविकों के द्वारा प्रदान किए गए हैं।

पछुआ पवन का सर्वश्रेष्ठ विकास 40 डिग्री से 65 डिग्री दक्षिण अक्षांशो के मध्य पाया जाता है। 

(II)व्यापारिक पवन-उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशो के क्षेत्रों या उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबंधों से भूमध्य रेखीय निम्न वायुदाब कटिबंधो की ओर दोनो गोलार्द्ध में निरन्तर प्रवाहित होने वाले पवन को व्यापारिक पवन कहा जाता है। व्यापारिक पवनों का प्रवाह का क्षेत्र 30 डिग्री उत्तरी अक्षांश से 30 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के मध्य होता है

(III)ध्रुवीय पवन-ध्रुवीय उच्च वायुदाब की पेटियों से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की पेटियों की ओर प्रवाहित पवन को ध्रुवीय पवन के नाम से जाना जाता है। उत्तरी गौलार्द्ध में इसकी दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर है। 

मौसमी पवनें(Seasonal Winds): ये पवनें विभिन्न ऋतुओं में अपनी दिशा बदलती रहती हैं। उदाहरण के लिए-भारत में मानसूनी पवनें, स्थल समीर पवन तथा समुद्री समीर पवन

स्थल व समुद्र समीरः ऊष्मा के अवशोषण तथा स्थानांतरण में स्थल व समुद्र में भिन्नता पायी जाती है। दिन के दौरान स्थल भाग समुद्र की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाते हैं। अतः स्थल पर हवाएँ ऊपर उठती हैं और निम्न दाब क्षेत्र बनता है, जबकि समुद्र अपेक्षाकृत ठंडे रहते हैं और उन पर उच्च वायुदाब बना रहता है। इससे समुद्र से स्थल की ओर दाब प्रवणता उत्पन्न होती है और पवनें समुद्र से स्थल की तरफ समुद्र समीर के रूप में प्रवाहित होती हैं। रात्रि में इसके एकदम विपरीत प्रक्रिया होती है। स्थल समुद्र की अपेक्षा जल्दी ठंडा होता है। दाब प्रवणता स्थल से समुद्र की तरफ होने पर स्थल समीर प्रवाहित होती है।

स्थानीय पवनें : ये पवनें किसी छोटे क्षेत्र में वर्ष या दिन के किसी विशेष समय में चलती हैं। उदाहरण के लिए-भारत में ‘लू’ 

यह पवन पुनः दो प्रकार की होती है-

  (1)शीत या ठंडी स्थानीय पवन 

  (2)उष्ण या गर्म स्थानीय पवन 

प्रमुख स्थानीय शीतल या ठंडीपवन:

बोरा-यह स्थानीय ठंडी पवन पूर्वी युगोस्लाविया के एड्रियाटिक तट पर प्रवाहित होती है।

नॉर्दन-यह हवा संयुक्त राज्य अमेरिका के टेक्सास प्रांत में प्रवाहित होती है

नॉर्टी-यह स्थानीय ठंडी हवा भी मध्य अमेरिका में प्रवाहित होती है।

बिलीजार्ड -यह हवाएं ध्रुवीय  क्षेत्रों में प्रवाहित होती है,यह अत्यंत ही ठंडी हवाएं हैं तथा साइबेरिया क्षेत्र एवं उत्तरी अमेरिका के उत्तरी क्षेत्रों में प्रवाहित होती है।

पूर्गा-यह भी एक अत्यंत ठंडी स्थानीय हवा है,जो मुख्य रूप से साइबेरिया के टुंड्रा प्रदेशों में एवं अलास्का क्षेत्र में प्रवाहित होती है।

टरामोण्टा-यह ठंडी पवन मुख्य रूप से इटली में प्रवाहित होती है।

पोपागायो-यह पवन मुख्य रूप से मेक्सिको के तट पर प्रवाहित होती है।

मिस्ट्रल-यह ठंडी हवा मुख्य रूप से फ्रांस में सर्दी के मौसम में प्रवाहित होती है

प्रमुख गर्म स्थानीय पवन:

चिनूक -यह संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में स्थित रॉकीज पर्वत श्रेणी के पूर्वी ढलालों पर चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवा है।

शामल -यह इराक और ईरान की खाड़ी में चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवा है।

ब्लैक रोलर -यह उत्तरी अमेरिका के मैदानों में चलने वाली तेज धूल भरी हवाएं हैं।

साण्टा आना -यह कैलिफोर्निया में स्थित साण्टा आना घाटी में प्रवाहित होने वाली गर्म एवं शुष्क हवा है।

कोयमबैंग-यह जावा और इंडोनेशिया में प्रवाहित गर्म हवा है। इससे तंबाकू की खेती को बहुत नुकसान पहुंचता है।

नार्वेस्टर -यह न्यूजीलैंड के पर्वतीय क्षेत्रों में प्रवाहित गर्म एवं शुष्क हवा है।

ब्रिक फील्डर-यह आस्ट्रेलिया के विक्टोरिया प्रांत में चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवा है।

सिराको -यह सहारा मरुस्थल से भूमध्य सागर की ओर चलने वाली गर्म हवा है, भूमध्य सागर के ऊपर प्रवाहित होने से यह हवा नमी युक्त हो जाती है। इस हवा के कई स्थानीय नाम भी है जिसे मिस्र में इसे खमसीन, लीबिया में गीबिली, ट्यूनीशिया में चिली,इटली में सिराको,स्पेन में लेबेक के नाम से जाना जाता है।

हरमट्टन-इसे डॉक्टर विंड के नाम से भी जाना जाता है, यह सहारा रेगिस्तान में प्रवाहित होने वाली गर्म एवं शुष्क हवा है।

फॉन-यह मुख्य रूप से स्वीटजरलैंड में आल्प्स पर्वत के निकट प्रवाहित होने वाली स्थानीय गर्म हवा है, यह हवा अंगूर की खेती के लिए भी काफी लाभप्रद है।

लू-यह उत्तरी भारत में, विशेष रुप से थार के मरुस्थल में प्रवाहित होने वाली स्थानीय गर्म एवं शुष्क हवा है। 

अयाला-यह फ्रांस में प्रवाहित होने वाली स्थानीय गर्म हवा है

सिमूम-यह अरब रेगिस्तान में बहने वाली गर्म एवं शुष्क हवा है। 

वाताग्र(Fronts): जब दो भिन्न प्रकार की वायुराशियाँ मिलती हैं तो उनके मध्य सीमा क्षेत्र को वाताग्र कहते हैं। वाताग्रों के बनने की प्रक्रिया को वाताग्र-जनन(Frontogenesis)कहते हैं। 

वाताग्र चार प्रकार के होते हैं : (i)शीत वाताग्र (ii)उष्ण वाताग्र(iii)अचर वाताग्र(iv)अधिविष्ट वाताग्र 

शीत वाताग्र-जब शीतल व भारी वायु आक्रामक रूप में उष्ण वायुराशियों को ऊपर धकेलती हैं, इस संपर्क क्षेत्र को शीत वाताग्र कहते हैं। 

उष्ण वाताग्र-यदि गर्म वायुराशियाँ आक्रामक रूप में ठंडी वायुराशियों के ऊपर चढ़ती हैं तो इस संपर्क क्षेत्र को उष्ण वाताग्र कहते हैं। 

अचर वाताग्र-जब वाताग्र स्थिर हो जाए तो इन्हें अचर वाताग्र कहा जाता है अर्थात् ऐसे वाताग्र जब कोई भी वायु ऊपर नहीं उठती। 

अधिविष्ट वाताग्र-यदि एक वायुराशि पूर्णतः धरातल के ऊपर उठ जाए तो ऐसे वाताग्र को अधिविष्ट वाताग्र कहते हैं। 

वाताग्र मध्य अक्षांशों में ही निर्मित होते हैं और तीव्र वायुदाब व तापमान प्रवणता इनकी विशेषता है। ये तापमान में अचानक बदलाव लाते हैं तथा इसी कारण वायु ऊपर उठती है, बादल बनते हैं तथा वर्षा होती है।

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