मराठो का उत्कर्ष


  • छत्रपति शिवाजी महाराज(1627-680) इनका जन्म 19 फरवरी 1930(स्रोत- ncert बुक) को महाराष्ट्र राज्य में पुणे ज़िले के शिवनेरी किले में हुआ था।
  • शिवाजी का जन्म एक मराठा सेनापति शाहजी भोंसले के घर हुआ था।
  • शिवाजी के पिता का नाम शाहजी भोंसले एवं इनकी माता का नाम जीजाबाई था। 
  • शिवाजी के गुरू कोंडदेव थे। 
  • शिवाजी कम उम्र में ही विजयपथ पर निकल पडे़। अपने सैन्य अभियान के अन्तर्गत 1644 0 में शिवाजी ने सर्वप्रथम बीजापुर के तोरण नामक पहाड़ी किले पर अधिकार किया। 
  • 1656 0 में शिवाजी ने रायगढ़ को अपनी राजधानी बनाया। 
  • जावली पर कब्जे ने उन्हें मवाला पठारों का अविवादित मुखिया बना दिया जिसने उनके क्षेत्र-विस्तार का पथ प्रशस्त किया। 
  • बीजापुर और मुगलों के खिलाफ उनके कारनामों ने उन्हें विख्यात व्यक्तित्व बना दिया। वे अपने विरोधियों के खिलाफ प्रायः गुरिल्ला युद्ध कला का प्रयोग करते थे।
  • 05 जून, 1674 0 को शिवाजी ने राजगढ़ में वाराणसी(काशी) के प्रसिद्ध विद्धान श्री गंगाभट्ट द्वारा अपना राज्याभिषेक करवाया। 

    महत्त्वपूर्ण लड़ाई:

प्रतापगढ़ की लड़ाई, 1659

यह युद्ध मराठा राजा छत्रपति शिवाजी महाराज और आदिलशाही सेनापति अफज़ल खान की सेनाओं के बीच महाराष्ट्र के सतारा शहर के पास प्रतापगढ़ के किले में लड़ा गया था।

पवन खिंड की लड़ाई, 1660

यह युद्ध मराठा सरदार बाजी प्रभु देशपांडे और आदिलशाही के सिद्दी मसूद के बीच महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर के पास (विशालगढ़ किले के आसपासएक पहाड़ी दर्रे पर लड़ा गया।

सूरत की लड़ाई, 1664

यह युद्ध गुजरात के सूरत शहर के पास छत्रपति शिवाजी महाराज और मुगल कप्तान इनायत खान के बीच लड़ा गया।

पुरंदर की लड़ाई, 1665

यह युद्ध मुगल साम्राज्य और मराठा साम्राज्य के बीच लड़ा गया।

सिंहगढ़ की लड़ाई, 1670

यह युद्ध महाराष्ट्र के पुणे शहर के पास सिंहगढ़ के किले पर मराठा शासक शिवाजी महाराज के सेनापति तानाजी मालुसरे और जय सिंह प्रथम के अधीन गढ़वाले उदयभान राठौड़जो मुगल सेना प्रमुख थेके बीच लड़ा गया।

कल्याण की लड़ाई, 1682-83

इस युद्ध में मुगल साम्राज्य के बहादुर खान ने मराठा सेना को हराकर कल्याण पर अधिकार कर लिया।

संगमनेर की लड़ाई, 1679

यह युद्ध मुगल साम्राज्य और मराठा साम्राज्य के बीच लड़ा गया। यह आखिरी लड़ाई थी जिसमें मराठा राजा शिवाजी लड़े थे।


मुगलों के साथ संघर्ष:

  • मराठों ने अहमदनगर के पास और वर्ष 1657 में जुन्नार में मुगल क्षेत्र पर छापा मारा।
  • औरंगज़ेब ने नसीरी खान को भेजकर छापेमारी का जवाब दिया, जिसने अहमदनगर में शिवाजी की सेना को हराया था।
  • शिवाजी ने वर्ष 1659 में पुणे में शाइस्ता खान (औरंगज़ेब के मामा) और बीजापुर सेना की एक बड़ी सेना को हराया।
  • शिवाजी ने वर्ष 1664 में सूरत के मुगल व्यापारिक बंदरगाह को अपने कब्ज़े में ले लिया।
  • बीजापुर के सुल्तान आदिल शाह ने अपने योग्य सेनापति अफजल खाँ को सितम्बर, 1665 0 में शिवाजी को पराजित करने के लिए भेजा। शिवाजी ने अफजल खाँ की हत्या कर दी। इस प्रकार शिवाजी ने बीजापुर सल्तनत के तहत पुणे और सुपे की जागीरें प्राप्त की थीं। 
  • जून 1665 में शिवाजी और राजा जय सिंह प्रथम (औरंगजेब का प्रतिनिधित्व) के बीच पुरंदर की संधि (Treaty of Purandar) पर हस्ताक्षर किये गए।
  • इस संधि के अनुसार, मराठों को कई किले मुगलों को देने पड़े और शिवाजी, औरंगज़ेब से आगरा में मिलने के लिये सहमत हुए। शिवाजी अपने पुत्र संभाजी को भी आगरा भेजने के लिये तैयार हो गए।
  • 1672 0 में शिवाजी ने पन्हाला दुर्ग को बीजापुर से छीना। 
  • शिवाजी ने शक्तिशाली योद्धा परिवारों (देशमुखों) की सहायता से एक स्थायी राज्य की स्थापना की। अत्यंत गतिशील कृषक-पशुचारक (कुनबी) मराठों की सेना के मुख्य आधार बन गए। शिवाजी ने प्रायद्वीप में मुगलों को चुनौती देने के लिए इस सैन्य-बल का प्रयोग किया।
              शिवाजी की गिरफ्तारी:
  • जब शिवाजी वर्ष 1666 में आगरा में मुगल सम्राट से मिलने जयपुर भवन गए, तो मराठा योद्धा को लगा कि औरंगज़ेब ने उनका अपमान किया है जिससे वे दरबार से बाहर गए।
  • जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर बंदी बना लिया गया। शिवाजी और उनके पुत्र का आगरा से भागने की कहानी आज भी प्रामाणिक नहीं है।
  • इसके बाद वर्ष 1670 तक मराठों और मुगलों के बीच शांति बनी रही।
  • मुगलों द्वारा संभाजी को दी गई बरार की जागीर उनसे वापस ले ली गई थी।
  • इसके जवाब में शिवाजी ने चार महीने की छोटी सी अवधि में मुगलों के कई क्षेत्रों पर हमला कर उन्हें वापस ले लिया।
  • शिवाजी ने अपनी सैन्य रणनीति के माध्यम से दक्कन और पश्चिमी भारत में भूमि का एक बड़ा हिस्सा हासिल कर लिया।
              मृत्यु:
  • इनकी 3 अप्रैल, 1680 को मृत्यु हो गई।
  • शिवाजी की मृत्यु के पश्चात्, मराठा राज्य में प्रभावी शक्ति, चितपावन ब्राह्मणों के एक परिवार के हाथ में रही, जो शिवाजी के उत्तराधिकारियों के शासनकाल मेंपेशवा’ (प्रधानमंत्री) के रूप में अपनी सेवाएँ देते रहे। 
               दी गई उपाधि:
  • शिवाजी को 6 जून, 1674 को रायगढ़ में मराठों के राजा के रूप में ताज पहनाया गया।
  • इन्होंने छत्रपतिशाककार्ता, क्षत्रिय कुलवंत और हैंदव धर्मोधारक की उपाधि धारण की थी।
  • शिवाजी द्वारा स्थापित मराठा साम्राज्य समय के साथ बड़ा होता गया और 18वीं शताब्दी की शुरुआत में प्रमुख भारतीय शक्ति बन गया।
              केंद्रीय प्रशासन:
  • इसकी स्थापना शिवाजी द्वारा प्रशासन की सुदृढ़ व्यवस्था के लिये की गई थी जो प्रशासन की दक्कन शैली से काफी प्रेरित थी।
  • अधिकांश प्रशासनिक सुधार अहमदनगर में मलिक अंबर (Malik Amber) के सुधारों से प्रेरित थे।
  • राजा राज्य का सर्वोच्च प्रमुख होता था जिसे 'अष्टप्रधान' के नाम से जाना जाने वाले आठ मंत्रियों के एक समूह द्वारा सहायता प्रदान की जाती थी।
  • अष्टप्रधान में पेशवा, जिसे मुख्य प्रधान के रूप में भी जाना जाता है, मूल रूप से राजा शिवाजी की सलाहकार परिषद का नेतृत्व करता था।
  • शिवाजी ने दरबार में मराठी को भाषा के रूप में प्रयोग किया। 
राजस्व प्रशासन:
  • शिवाजी ने जागीरदारी प्रणाली को समाप्त कर दिया और इसे रैयतवारी प्रणाली से बदल दिया तथा वंशानुगत राजस्व अधिकारियों की स्थिति में परिवर्तन किया, जिन्हें देशमुख, देशपांडे, पाटिल एवं कुलकर्णी के नाम से जाना जाता था।
  • शिवाजी उन मीरासदारों (Mirasdar) का कड़ाई से पर्यवेक्षण करते थे जिनके पास भूमि पर वंशानुगत अधिकार थे।
  • राजस्व प्रणाली मलिक अंबर की काठी प्रणाली (Kathi System) से प्रेरित थी, जिसमें भूमि के प्रत्येक टुकड़े को रस्सी द्वारा माप की व्यवस्था के स्थान पर  मानक छड़ी या काठी द्वारा मापा जाता था।
  • चौथ और सरदेशमुखी नामक कर ने राजस्व संग्रह प्रणाली में मजबूत मराठा राज्य की नींव रखी।चौथ:किसी एक क्षेत्र को बर्बाद  करने के बदले दी जाने वाली रकम को कहा जाता है।                           सरदेशमुखी:इसके हक का दावा करके शिवाजी स्वयं को सर्वश्रेष्ठ देशमुख प्रस्तुत करना चाहते थे। 
    सैन्य प्रशासन:
  •   शिवाजी ने एक अनुशासित और कुशल सेना का गठन किया।
  •   सामान्य सैनिकों को नकद में भुगतान किया जाता था, लेकिन प्रमुख और सैन्य कमांडर को जागीर अनुदान (सरंजम या मोकासा) के माध्यम से भुगतान किया जाता था।
  •   शिवाजी की सेना तीन महत्वपूर्ण भागों में विभक्त थीः-

    1. पागा सेना-नियमित घुडसवार सैनिक।

    2. सिलहदार-अस्थायी घुडसवार सैनिक।

    3. पैदल-पैदल सेना। 

शिवाजी के उत्तराधिकारी

  • शिवाजी की मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारी के रूप में शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र शम्भाजी छत्रपति बना।
  • शम्भाजी ने उज्जैन के हिन्दी एवं संस्कृत के प्रकाण्ड विद्धान कवि कलश को अपना सलाहकार नियुक्त किया।
  • शम्भाजी ने औरंगजेब के विद्रोही पुत्र अकबर को शरण दी। जिसके फलस्वरूप औरंगजेब ने मखर्रब खाँ के नेतृत्व में शम्भाजी के विरूद्ध 1689 0 में संगमेश्वर में मुगल सेना भेजी। शम्भाजी एवं कवि कलश को गिरफ्तार कर उसकी हत्या कर दी गयी। 
  • शम्भाजी के बाद 1689 0 में राजाराम को नए छत्रपति के रूप में राज्याभिषेक किया गया।
  • राजाराम ने अपनी दूसरी राजधानी सतारा को बनाया।
  • 02 मार्च, 1700 को मुगलों से हुए संघर्ष में राजाराम मारा गया।
  • राजाराम की मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारी के रूप में उसकी पत्नी ताराबाई ने अपने अल्पआयु पुत्र शिवाजी द्वितीय का राज्याभिषेक करवाकर मराठा साम्राज्य की वास्तविक संरक्षिका बन गयी।
  • औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके कब्जे में रहे शम्भाजी के पुत्र साहू मुगल शिविर से वापस महाराष्ट्र गया। जिसके फलस्वरूप साहू को नये छत्रपति बनने के लिए ताराबाई के बीच 1707 0 में खेड़ा का युद्ध करना पड़ा जिसमें वह विजयी हुआ।
  •  साहू ने 1708 0 में सतारा में अपना राज्याभिषेक किया।
  • साहू के नेतृत्व में नवीन मराठा साम्राज्यवाद के प्रवर्तक पेशवा लोग थे। जो साहू के पैतृक प्रधानमंत्री थे। पेशवा पद पहले पेशवा के साथ वंशानुगत होने के साथ प्रधानमंत्री के रूप में अपनी सेवाएँ देते रहे। पुणे मराठा राज्य की राजधानी बन गया।
  • 1713 0 में साहू ने बालाजी विश्वनाथ को पेशवा बनाया। 1720 में बालाजी विश्वनाथ के उपरान्त बाजीराव प्रथम को पेशवा बनाया गया।
  • बाजीराव प्रथम की देखरेख में मराठों ने एक अत्यंत सफल सैन्य संगठन का विकास कर लिया। उनकी सफलता का रहस्य यह था कि वे मुगलों के किलाबंद इलाकों से टक्कर लेते हुए, उनके पास से चुपचाप निकलकर शहरों-कस्बों पर हमला बोलते थे और मुगल सेना से ऐसे मैदानी इलाकों में मुठभेड़ लेते थे, जहाँ रसद पाने और कुमक आने के रास्ते आसानी से रोके जा सकते थे।
  • पालखेड़ा का युद्ध-07 मार्च, 1728 0 को बाजीराव प्रथम और निजामुल मुल्क के बीच युद्ध हुआ जिसमें निजाम की हार हुई।
  • 29 मार्च, 1737 0 को दिल्ली पर आक्रमण करने वाला प्रथम पेशवा बाजीराव प्रथम था। उस समय मुगल बादशाह मुहम्मदशाह दिल्ली छोडने के लिए तैयार हो गया था। वे उत्तर में राजस्थान और पंजाब, पूर्व में बंगाल और उड़ीसा तथा दक्षिण में कर्नाटक और तमिल एवं तेलुगु प्रदेशों तक फैल गई। इन क्षेत्रों को औपचारिक रूप से मराठा साम्राज्य में सम्मिलित नहीं किया गया, मगर मराठा प्रभुसत्ता को स्वीकार करने के तरीके के रूप में उनसे भेंट की रकम ली जाने लगी।
  • 1740 0 में बाजीराव प्रथम की मृत्यु हो गयी।
  • 1740 0 में बालाजी बाजीराव पेशवा बना।
  • 14 जनवरी 1750 को मराठा छत्रपति राजाराम द्वित्तीय से बालाजी बाजीराव ने एक संगोला संधि की जिसके बाद पेशवा के हाथ सारे अधिकार सुरक्षित हो गये। 
  • हैदराबाद के निजाम एवं बालाजी बाजीराव के मध्यझलकी की संधिहुई।    बालाजी बाजीराव के समय 1761 0 में पानीपत का तृतीय युद्ध अफगानी आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली के बीच लडा गया। जिसमें मराठों की हार हुई। इस हार से बालाजी बाजीराव को गहरा धक्का लगा और उनकी मृत्यु 1761 में हो गयी।
  • 1720 से 1761 के मध्य, मराठा साम्राज्य का काफी विस्तार हुआ।
  •  माधवराव नारायण प्रथम 1761 0 में पेशवा बना। इसने मराठो की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने का प्रयास किया। माधवराव ने ईस्ट इंडिया कंपनी की पेंशन पर रह रहे मुगल बादशाह आलम द्वितीय को पुनः दिल्ली की गद्दी पर बैठाया। मुगल बादशाह अब मराठो का पेंशनभोगी बन गया।
  • पेशवा माधवराव नारायण द्वितीय की अल्पायु के कारण मराठा राज्य की देख रेख बारहभाई सभा नाम की 12 सदस्यों की एक परिषद करती थी।
  • इस परिषद के दो महत्वपूर्ण सदस्य थे-1. महादजी सिंधिया 2. नाना फड़नबीस
  •  नाना फड़नबीस का मूल नाम बालाजी जनार्दन भानु था। अंग्रेज जेम्स ग्रांट डफ ने इन्हें मराठो का मैकियावैली कहा था।
  • बाजीराव द्वितीय अंतिम पेशवा था। जो अंग्रेजो की सहायता से पेशवा बना था। जिसके फलस्वरूप मराठो का पतन शुरू हो गया। बाजीराव द्वितीय सहायक संधि स्वीकार करने वाला प्रथम मराठा सरदार था। 
  • पुरन्दर की संधि मार्च 1776 . में मराठों तथा ईस्ट इंडिया कम्पनी के बीच हुई थी। इसके तहत कंपनी ने रघुनाथ राव के समर्थन को वापस ले लिया।
  • प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध: 1782 0 में सालबाई संधि के साथ खत्म हुआ।
  • द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध: 1803-05 0 में हुआ। इसमें भोंसले (नागपुर) ने अंग्रेजो का चुनौती दी। इसके फलस्वरूप 07 सितम्बर, 1803 0 को देवगांव की संधि हुई।
  • तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध:1817-19 0 में हुआ। इस युद्ध के बाद मराठा शक्ति और पेशवा के वंशानुगत पद को समाप्त कर दिया गया। 
  • पेशवा बाजीराव द्वितीय ने कोरेगांव एवं अष्टी के युद्ध में हारने के बाद फरवरी, 1818 0 में मेल्कम के सम्मुख आत्मसमर्पण कर दिया। अंग्रेजो ने पेशवा के पद को समाप्त कर बाजीराव द्वितीय को पुणे से हटाकर कानपुर के निकट बिठूर में पेंशन पर जीने के लिए भेज दिया, जहां 1853 . में इसकी मृत्यु हो गयी। 

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