चालुक्य वंश का इतिहास 

चालुक्य राजाओं की मुख्यतः तीन शाखाएँ थी :

  1. कल्याणी के चालुक्य (पश्चिमी शाखा)
  2. वातापी / बादामी के चालुक्य (मूल शाखा)
  3. वेंगी के चालुक्य (पूर्वी शाखा)

चालुक्य वंश (कल्याणी)(973-1200 ई०)

चालुक्य दक्षिण और मध्य भारत में शासन करने वाले शासक थे जिनका प्रभुत्व छठी से बारहवीं शताब्दी तक रहा। अपने महत्तम विस्तार के समय यह वर्तमान समय के संपूर्ण कनार्टक, पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिणी मध्य प्रदेश, तटीय दक्षिणी गुजरात तथा पश्चिमी आंध्र प्रदेश में फैला हुआ था। 

चालुक्य वंश (कल्याणी) के प्रमुख शासक-तैलप प्रथम, तैलप द्वितीय, विक्रमादित्य, जयसिंह, सोमेश्वर प्रथम, सोमेश्वर द्वितीय, विक्रमादित्य-षष्ठ

तैलप द्वितीय (973-997 ई०)
  • 10वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में कल्याणी या कल्याण में चालुक्यों की एक शाखा का राजनीतिक उत्कर्ष हुआ। उस समय दक्षिणापथ की राजनैतिक स्थिति कुछ अच्छी नहीं थी। मालवा के परमार शासकों के निरन्तर आक्रमणों के कारण राष्ट्रकूट साम्राज्य कमजोर हो गया था और कृष्ण तृतीय के दुर्बल उत्तराधिकारी इसकी सुरक्षा करने में असफल रहे। अन्तिम राष्ट्रकूट शासक कर्क द्वितीय के समय उसका सामन्त चालुक्यवंशीय तैलप द्वितीय बहुत शक्तिशाली हो गया था। 973-74 ई0 में तैलप द्वितीय ने अपनी शक्ति और कूटनीति से राष्ट्रकूटों पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार तैलप द्वितीय ने एक नये राजवंश की स्थापना की जो कल्याणी के चालुक्य राजवंश के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
  • तैलप द्वितीय ने अपनी राजधानी मान्यखेट को बनाई। जो पहले राष्ट्रकूटों की भी राजधानी थी। 
  • तैलप द्वितीय ने ‘अश्वमाल‘ की उपाधि धारण की।
  • मेरुतुंग नाम का कवि इसके दरबार में था। 

सत्याश्रय (997-1006 ई०)

  • अपने पिता तैलप द्वितीय की मृत्यु के बाद सत्याश्रय शासक बना।
  • इसी के समय में महमूद गजनवी ने उत्तर भारत पर आक्रमण किया था।
  • सत्याश्रय ने 1006 ई0 में वेंगी पर आक्रमण कर अपनी अधीनता स्वीकार करायी। 
विक्रमादित्य पंचम(1006-1015 ई०)
  • सत्याश्रय का कोई पुत्र नही था उसने अपने भाई दशवर्मा के पुत्र विक्रमादित्य पंचम को अपना उत्तराधिकारी बनाया। जो सत्याश्रय की 1006 ई0 में मृत्यु होने के उपरान्त शासक बना। 
  • कैथोम लेख में उसे यशस्वी एवं दानशील शासक कहा गया। 
जयसिंह द्वितीय (1015-1043 ई०)
  • जयसिंह द्वितीय अपने भाई विक्रमादित्य पंचम की मृत्यु के बाद शासक बना।
  • वर्ष 1020 ई0 में पंवार शासक राजाभोज ने इस पर आक्रमण कर चालुक्य वंश के राज्य क्षेत्र में से लाट और कोंकण पर अधिकार कर लिया। जिसे बाद में जयसिंह न युद्ध कर पुनः प्राप्त किया। 
  • जयसिंह द्वितीय और चोल शासक राजेन्द्र प्रथम के बीच युद्ध हुआ जिसमें जयसिंह हार गया।

सोमेश्वर प्रथम (1068-1076 ई०)

  • अपने पिता जयसिंह द्वितीय की मृत्यु के बाद सोमेश्वर प्रथम राजगद्दी पर बैठा।
  • सोमेश्वर प्रथम ने मान्यखेट से राजधानी हटाकर कल्याणी (कर्नाटक) को बनाया।
  • पंवार वंश के शासक राजाभोज को भी युद्ध में आत्मसर्मपण करने के लिए विवश किया। 
  • नान्देड लेख के अनुसार इसने मगध, कलिंग और अंग के शासको को हरा कर अपने अधीन किया।
  • सोमेश्वर प्रथम चोलो पर विजय हासिल नही कर पाया। चोल शासक वीर राजेन्द्र ने इसे युद्ध में हराया। एक घातक बीमारी से पीडित होने के कारण इसने आत्महत्या कर दी। 
सोमेश्वर द्वितीय(1068-1076 ई०)
  • सोमेश्वर प्रथम की आत्महत्या करने के उपरान्त सोमेश्वर द्वितीय  1068 ई0 में शासक बना। 
  • वर्ष 1076 ई0 में सोमेश्वर द्वितीय ने कुलोतुंग नाम के राजा से संधि कर विक्रमादित्य पर आक्रमण कर युद्ध छेड दिया, परन्तु चोलो की सहायता से विक्रमादित्य विजयी रहा और सोमेश्वर द्वितीय को आजीवन बंदी बना लिया गया। 

विक्रमादित्य षष्ठ (1076-1126 ई०)

  • कल्याणी के चालुक्य वंश का सबसे प्रतापी शासक विक्रमादित्य षष्ठ था।
  • यह अपने भाई सोमेश्वर द्वितीय को युद्ध में पराजित करने के बाद शासक बना।
  • विल्हण एवं विज्ञानेश्वर विक्रमादित्य षष्ठ के दरबार में रहते थे।
  • मिताक्षरा (हिन्दू विधि ग्रंथ, याज्ञवल्क्य स्मृति पर व्याख्या) नामक ग्रंथ की रचना महान विधिवेत्ता विज्ञानेश्वर ने की थी।
  • विक्रमांकदेवचरित की रचना विल्हण ने की थी। इसमें विक्रमादित्य षष्ठ के जीवन पर प्रकाश डाला गया है।
  • इसने 1076 ई० में चालुक्य विक्रम संवत चलाया था।
  • विक्रमादित्य षष्ठ कल्याणी के चालुक्य वंश का अंतिम शक्तिशाली शासक था।
  • विक्रमादित्य षष्ठ की मृत्यु के बाद कल्याणी के चालुक्यों की अवनति शुरू हो गई।
विक्रमादित्य षष्ठ के बाद सोमेश्वर तृतीय, जगेदक मल्ल द्वितीय, तैलप तृतीय एवं जगेदक मल्ल तृतीय बने।

सोमेश्वर चतुर्थ (1184-1200ई०)
  • सोमेश्वर चतुर्थ कल्याणी चालुक्य वंश का अंतिम शासक था। 
  • सोमेश्वर चतुर्थ शासक बनने के समय चालुक्य वंश काफी संकुचित हो चुका था। इसने चालुक्यों की खोयी हुई प्रतिष्ठा वापस लाने का प्रयास किया एवं होयसल और कलचुरियों से युद्ध प्रारम्भ किया। युद्ध उपरान्त कलचुरियों का पूर्णतया उन्मूलन हो गया।
  • इस विजय के बाद इने ‘कलयूर्ककुल निर्मूलता’ की उपाधि धारण की।
  • सोमेश्वर चतुर्थ अपने अथक प्रयासों के बाद भी राज्य में बढ़ रहे विद्रोहो को दबा नही पाया और निकटवर्ती राज्यो ने पुनः स्वयं को स्वतंत्र घोषित करना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे कल्याणी चालुक्य वंश का अंत हो गया। 



कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.