चालुक्य वंश(वातापी)

महाकूट अभिलेख में चालुक्य वंश दो शासकों-जयसिंह तथा रणराग के नाम मिलते हैं परन्तु उनके शासन-काल के विषय में हमें कुछ भी ज्ञात नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि वे कदम्ब शासकों की अधीन सामंत थे। चालुक्यों की मूल शाखा का उदय स्थल वातापी /बादामी (बीजापुर, कर्नाटक) में हुआ था। चालुक्य वंश के प्रारंभिक लेखों में तो जयसिंह की किसी भी उपलब्धि का उल्लेख नहीं है किन्तु बाद के कुछ लेख इसका विवरण देते है। जगदेकमल्ल के दौलताबाद लेख के अनुसार जयसिंह ने कदम्ब वंश के ऐश्वर्य का अन्त किया। वातापी के चालुक्यों को सामन्त-स्थिति से स्वतंत्र स्थिति में लाने वाला पहला शासक पुलकेशिन् प्रथम था ।

वातापी के चालुक्य वंश के शासको ने लगभग 200 वर्षो से अधिक तक शासन किया। 

इस वंश के प्रमुख शासक थे-पुलकेशिन प्रथम, कीर्तिवर्मन, पुलकेशिन द्वितीय, विक्रमादित्य, विनयादित्य एवं विजयादित्य इनमें सबसे प्रतापी राजा पुलकेशिन द्वितीय था

पुलकेशिन प्रथम (543-566 ई०)

  • वातापी के चालुक्य वंश की स्थापना पुलकेशिन प्रथम ने की थी।
  • इसकी राजधानी वातापी (बीजापुर के निकट) थी।
  • इसने स्तायश्रय, रणविक्रम, श्रीपृथ्वीबल्लभ जैसी कई उपाधियाँ धारण की थी।
  • कीर्तिवर्मन प्रथम और मंगलेश इनके पुत्र थे।
  • पुलकेशिन प्रथम ने अश्वमेघ यज्ञ, वाजपेई यज्ञ और हिरण्यगर्भ यज्ञ करवाया।

कीर्तिवर्मन प्रथम (566-597 ई०)

  • कीर्तिवर्मन अपने पिता पुलकेशिन प्रथम के मृत्यु के बाद शासक बना।
  • इसने पुरू-रणपराक्रम एवं सत्याश्रय की उपाधी धारण की।
  • महाकूट स्तम्भलेख में इसके द्वारा किए गए बहुसुवर्ण-अग्निष्टोम यज्ञ का उल्लेख मिलता है।
  • इनके द्वारा बादामी में गुहा मंदिरों का निर्माण शुरू करवाया गया था।
  • वातापी का निर्माणकर्त्ता कीर्तिवर्मन को माना जाता है।

मंगलेश (597-610 ई०)

  • मंगलेश अपने भाई कीर्तिवर्मन प्रथम की मृत्यु के बाद राजगद्दी पर बैठा।
  • यह वैष्णव धर्म का अनुयायी था।
  • इसने परमभागवत की उपाधि धारण की थी।
  • मंगलेश ने बादामी में एक विष्णु मंदिर का निर्माण कराया।

पुलकेशिन द्वितीय (610-642 ई०)

  • पुलकेशिन द्वितीय अपने चाचा मंगलेश की हत्या कर चालुक्य वंश का अगला शासक बना।
  • यह इस वंश का सबसे प्रतापी राजा था।
  • महाकूट स्तंभलेख से यह जानकारी मिलती है कि पुलकेशिन द्वितीय ने बहू सुवर्णा यज्ञ एवं अग्निष्टोम यज्ञ करवाया और पृथ्वी वल्लभ की उपाधि धारण किया। 
  • जिनेन्द्र का मेगुती मंदिर पुलकेशिन द्वितीय ने बनवाया था।
  • पुलकेशिन द्वितीय ने हर्षवर्धन को नर्मदा नदी पर परास्त कर परमेश्वर की उपाधि धारण किया।
  • इसने दक्षिणापथेश्वर की उपाधि भी धारण की थी।
  • इसके राजकवि रविकीर्ति द्वारा रचित ऐहोल अभिलेख से इसके बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।
  • चीनी यात्री ह्वेनसांग 641 ई० में पुलकेशिन द्वितीय के दरबार में आया था।
  • 642 ई० में पल्लव शासक नरसिंहवर्मन प्रथम ने पुलकेशिन द्वितीय को परास्त कर उनकी राजधानी वातापी पर अधिकार कर लिया और ऐसा माना जाता है कि इसी युद्ध में पुलकेशिन द्वितीय की मृत्यु हो गई। इस विजय पर नरसिंहवर्मन ने वातापीकोंड की उपाधि धारण किया।
  • अजंता गुहाचित्र में पुलकेशिन द्वितीय को फारसी दूत-मंडल का स्वागत करते हुए दिखाया गया है। 
  • पुलकेशिन द्वितीय के सामंत गंगराज दुर्विनीत ने शब्दावतार नामक व्याकरण ग्रंथ की रचना किया।

विनयादित्य (680-696 ई०)

  • अपने पिता विक्रमादित्य प्रथम की मृत्यु के बाद 680 ई० में यह शासक बना।
  • मालवा को जीतने के बाद विनयादित्य ने सकलोत्तरपथनाथ की उपाधि की धारण की।

विक्रमादित्य द्वितीय (733-746 ई०)

  • विक्रमादित्य द्वितीय के शासनकाल में ही दक्कन में अरबों ने आक्रमण किया। इस आक्रमण का मुकाबला विक्रमादित्य के भतीजा पुलकेशी ने किया।
  • इस अभियान की सफलता पर विक्रमादित्य द्वितीय ने पुलकेशी को अवनिजनाश्रय की उपाधि प्रदान की।
  • विक्रमादित्य द्वितीय की प्रथम पत्नी लोकमहादेवी ने पट्टदकल में विरूपक्षमहादेव मंदिर तथा उसकी दूसरी पत्नी त्रैलोक्य देवी ने त्रैलोकेश्वर मंदिर का निर्माण करवायी।

कीर्तिवर्मन द्वितीय(746-757 ई०)

  • चालुक्य वंश के अंतिम शासक कृतिवर्मन द्वितीय था। इसे इनके सामंत दंतिदुर्ग ने परास्त कर चालुक्य वंश पर आधिपत्य कायम कर लिया और नए वंश राष्ट्रकूट वंश की स्थापना किया।


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