संविधान के अनुच्छेद 169 के अनुसार राज्यों में विधानसभा के अतिरिक्त एक विधान परिषद भी हो सकती है।
विधान परिषद राज्य विधान मण्डल का उच्च सदन होता है।
यदि किसी राज्य की विधान सभा अपने कुछ सदस्यों के पूर्ण बहुमत तक उपस्थित मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करे तो संसद उस राज्य में विधान परिषद स्थापित कर सकती है अथवा उसका लोप कर सकती है।
विधान परिषद वर्तमान में 06 राज्यों में विद्यमान है। उत्तर प्रदेश(99), कर्नाटक(75), महाराष्ट्र(78), बिहार(75), आन्ध्र प्रदेश(50), तेलंगाना(40)
नोटः-
वर्ष 1956 में आंध्र प्रदेश राज्य के गठन के पश्चात् राज्य सरकार ने विधान परिषद के गठन का प्रस्ताव पारित किया और 1 जुलाई, 1968 को राज्य में 90 सदस्यीय विधान परिषद का गठन हुआ।
वर्ष 1984 में तात्कालिक राज्य सरकार ने विधान परिषद भंग करने का प्रस्ताव दिया और संसद की सहमति से 31 मई, 1985 को आंध्र प्रदेश विधान परिषद भंग हो गई। 30 मार्च, 2007 को राज्य में पुनः विधानपरिषद का गठन हुआ। वर्ष 2020 में आंध्र प्रदेश विधानसभा ने विधान परिषद को समाप्त करने का प्रस्ताव पारित किया। अंततः परिषद को समाप्त करने के लिये भारत की संसद द्वारा इस प्रस्ताव को मंज़ूरी दी जानी बाकी है।
31 अक्तूबर,2019 को जम्मू कश्मीर राज्य के दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित होने से पहले राज्य सरकार ने 62 साल पुरानी विधान परिषद को खत्म कर दिया है।
विधान परिषद की संरचना:
- राज्यसभा की तरह ही विधान परिषद भी एक स्थायी सदन है जो कभी भंग नहीं होता है।
- विधान परिषद का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु सीमा 30 वर्ष है।
- विधान परिषद के सदस्यों का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय मत पद्धति द्वारा होता है।
- संविधान के अनुच्छेद 171
के अनुसार, विधान परिषद के कुल सदस्यों की संख्या राज्य विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या के एक-तिहाई
(1/3) से अधिक नहीं होगी।
- विधान परिषद के सदस्यों का कार्यकाल राज्यसभा सदस्यों की ही तरह 6 वर्षों का होता है तथा कुल सदस्यों में से एक-तिहाई
(1/3) सदस्य प्रति दो वर्ष में सेवानिवृत्त हो जाते हैं, व उनके स्थान पर नवीन सदस्य निर्वाचित होते हे। यदि कोई व्यक्ति किसी सदस्य की मृत्यु या त्यागपत्र द्वारा हुई आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित होता है तो वह सदस्य शेष अवधि के लिए ही सदस्य रहता है, छः वर्ष के लिए नही।
- राज्यसभा की ही तरह विधान परिषद के सदस्यों का निर्वाचन प्रत्यक्ष चुनावों द्वारा नहीं होता है।
- विधान परिषद अपने सदस्यों में से दो को क्रमशः सभापति एवं उपसभापति चुनती है।
- सभापति उपसभापति को संबोधित कर एवं उपसभापति सभापति को संबोधित कर त्यागपत्र दे सकता है, अथवा परिषद के सदस्यों के बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा उसे अपदस्थ भी किया जा सकता है। किन्तु ऐसे किसी प्रस्ताव को लाने के लिए 14 दिनों की पूर्व सूचना आवश्यक है।
- सभापति एवं उपसभापति को विधान मण्डल द्वारा निर्धारित वेतन एवं भत्ते प्राप्त होते है।
विधान परिषद की संगठनात्मक प्रक्रिया:
संविधान के अनुच्छेद 171 के तहत विधान परिषद के गठन के लिये सदस्यों के चुनाव के संदर्भ में निम्नलिखित प्रावधान किये गए हैं-
- 1/3 सदस्य राज्य की नगरपालिकाओं, ज़िला बोर्ड और अन्य स्थानीय संस्थाओं द्वारा निर्वाचित होते हैं।
- 1/3 सदस्यों का चुनाव विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है।
- 1/6 सदस्य राज्यपाल उन व्यक्तियों में से मनोनीत करता है, जिन्हें साहित्य, कला, विज्ञान, सहकारिता आन्दोलन या सामाजिक सेवा के संबंध में विषय ज्ञान हो।
- 1/12 सदस्य ऐसे व्यक्तियों द्वारा चुने जाते हैं जिन्होंने कम-से-कम 3 वर्ष पूर्व स्नातक की उपाधि प्राप्त कर ली हो एवं उस विधानसभा क्षेत्र के मतदाता हों।
- 1/12 सदस्य उन अध्यापकों द्वारा निर्वाचित किया जाता है, जो 3 वर्षो से माध्यमिक पाठशालाओं अथवा उनसे ऊँची कक्षाओं में शिक्षण कार्य कर रहे हो।
विधान मंडल की कार्य एवं शक्तियाँ:
- साधारण विधेयक को दोनों सदनों में पेश किया जा सकता है परंतु असहमति की स्थिति में विधानसभा प्रभावी होती है।
- विधान परिषद किसी भी विधेयक को अधिकतम चार माह तक ही रोक सकती है।
- मुख्यमंत्री और मंत्रियों का चयन किसी भी सदन से किया जा सकता है, यदि विधानपरिषद के सदस्य को मंत्री या मुख्यमंत्री बनाया जाता है तब भी वह विधान सभा के प्रति उत्तरदायी होता है।
- वित्त विधेयक को सिर्फ विधानसभा में ही पेश किया जा सकता है, विधान परिषद वित्त विधेयक को न ही अस्वीकृत कर सकती है और न ही 14 दिनों से अधिक रोक सकती है।
- 14 दिनों के बाद विधेयक को विधानपरिषद से स्वतः ही पारित मान लिया जाएगा।
- राज्यसभा के लिये राज्यों से जाने वाले प्रतिनिधियों और राष्ट्रपति के निर्वाचन में विधानपरिषद का कोई योगदान नहीं होता है।
- संविधान संशोधन विधेयक के संदर्भ में विधानपरिषद को कोई अधिकार प्राप्त नहीं हैं।
- विधानसभा को विधानपरिषद के सुझावों का अध्यारोहण करने का अधिकार प्राप्त होता है।
संविधान में राज्य विधान परिषद से जुड़े प्रावधान:
- संविधान के अनुच्छेद 169 के अनुसार, राज्यों को विधान परिषद के गठन अथवा विघटन करने का अधिकार है, परंतु इसके लिये प्रस्तुत विधेयक का विधानसभा में विशेष बहुमत (2/3) से पारित होना अनिवार्य है।
- विधानसभा के सुझावों पर विधान परिषद के निर्माण व समाप्ति के संदर्भ में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार संसद के पास होता है। संसद में पास होने के बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद इस विधेयक (विधान परिषद का गठन अथवा विघटन) को संवैधानिक मान्यता प्राप्त हो जाती है।
राज्य सभा की तुलना में विधान परिषद:
परिषदों की विधायी शक्ति सीमित है। राज्यसभा के विपरीत, जिसके पास गैर-वित्तीय विधान को आकार देने की पर्याप्त शक्तियाँ हैं, विधान परिषदों के पास ऐसा करने के लिये संवैधानिक जनादेश नहीं है।
विधानसभाएँ, परिषद द्वारा कानून में किये गए सुझावों/संशोधनों को रद्द कर सकती हैं।
इसके अलावा राज्यसभा सांसदों के विपरीत, MLCs, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में मतदान नहीं कर सकते। उपराष्ट्रपति राज्यसभा का सभापति होता है जबकि परिषद का अध्यक्ष परिषद के किसी एक सदस्य को ही चुना जाता है।
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