ऊष्मा (Heat)
◆ ऊष्मा वह ऊर्जा (Energy) है, जो एक वस्तु से दूसरी वस्तु में केवल तापांतर (Temperature Difference) के कारण स्थानांतरित होती है। किसी वस्तु में निहित ऊष्मा उस द्रव्य के द्रव्यमान पर निर्भर करती है।
◆ जब कभी कार्य W ऊष्मा Q में बदलता है, या ऊष्मा कार्य में बदलती है, तो किये गये कार्य व उत्पन्न ऊष्मा का अनुपात एक स्थिरांक होता है, जिसे ऊष्मा का यांत्रिक तुल्यांक (Mechanical Equivalent of Heat) कहते हैं तथा इसको J से प्रदर्शित करते हैं। यदि W कार्य करने से उत्पन्न ऊष्मा की मात्रा Q हो तो-
W/Q = J W = JQ
J का मान 4186 जूल/किलो कैलोरी या 4.186 जूल/कैलोरी या 4.186X107 अर्ग/कैलोरी होता है। इसका तात्पर्य हुआ कि यदि 4186 जूल का यांत्रिक कार्य किया जाये तो उत्पन्न ऊष्मा की मात्रा है 1 किलो कैलोरी होगी।
ऊष्मा के मात्रक (Units of Heat)
◆ ऊष्मा का SI मात्रक जूल है। इसके लिए निम्न मात्रक का भी प्रयोग किया जाता है-
(i) कैलोरी (Calorie) : एक ग्राम जल का ताप 1° बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को अन्तरराष्ट्रीय कैलोरी कहते हैं। इसी प्रकार एक किग्रा. पानी का ताप 14.5°C से 15.5°C तक बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को किलोकैलोरी कहते हैं।
(ii) अन्तरराष्ट्रीय कैलोरी (International Calorie) : एक ग्राम शुद्ध जल का ताप 14.5°C से 15.5°C तक बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को अन्तरराष्ट्रीय कैलोरी कहते हैं। इसी प्रकार एक किग्रा. पानी का ताप 14.5°C से 15.5°C तक बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को किलोकैलोरी कहते हैं।
(iii) ब्रिटिश थर्मल यूनिट (B.Th.U.) : एक पौंड जल का ताप 1°F बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को IB.Th.U कहते हैं।
विभिन्न मात्रकों में सम्बन्ध :
1B.ThU – 252 कैलोरी
1 कैलोरी = 4.186 जूल
1 किलोकैलोरी = 4.186 जूल = 1000 कैलोरी
ताप (Temperature)
◆ ताप वह भौतिक कारक है, जो एक वस्तु से दूसरी वस्तु में ऊष्मीय ऊर्जा के प्रवाह की दिशा निश्चित करता है। अर्थात् जिस कारण से ऊर्जा स्थानांतरण होती है, उसे ताप कहते हैं। ताप मापने (Measurement) के लिए जिस उपकरण को प्रयोग में लाया जाता है, उसे तापमापी (Thermometer) कहते हैं।
ताप का मापक्रम (Scale of Temperature) : वैसे तो इस बात का आकलन किसी वस्तु को छूकर ही किया जा सकता है कि कौन सी वस्तु गरम है और कौन सी ठंडी है परन्तु वस्तु का वास्तविक ताप क्या है, इसका पता नहीं लगाया जा सकता है। इसके लिए विभिन्न तापमापियों का प्रयोग किया जाता है तथा तापमान में निम्नलिखित पैमानों का उपयोग करते हैं।
ताप मापने के पैमाने (Scales of Temperature Measurement)
◆निम्न प्रकार के ताप पैमाने प्रचलित हैं-
(i) सेल्सियस पैमाना(Celsius Scale): इस पैमाने का आविष्कार स्वीडेन के वैज्ञानिक सेल्सियस ने किया था। इस पैमान में हिमांक बिन्दु या निचले बिन्दु को 0°C व भाप बिन्दु या ऊपरी बिन्दु को 100°C में अंकित किया जाता है तथा इनके बीच की दूरी को 100 बराबर भागों में बाँट दिया जाता है। प्रत्येक भाग को 1°C कहते हैं। इस पैमाने का उपयोग अधिक वैज्ञानिक कारणों के लिए किया जाता है।
(ii)फारेनहाइट पैमाना(Fahrenheit Scale): इस पैमाने का आविष्कार जर्मन वैज्ञानिक फारेनहाइट ने किया था। इस पैमाने में ताप को अंग्रेजी के बड़े अक्षर F से प्रदर्शित करते हैं। इस पैमाने में हिमांक बिन्दु या निचले बिन्दु को 32°F तथा भाप बिन्दु या ऊपरी बिन्दु को 212°F पर अंकित किया जाता है तथा इनके बीच की दूरी को 180 बराबर भागों में
बाँट दिया जाता है। एक भाग का मान 1°F होता है।
(iii) रोमर पैमाना (Romar Scale) : इस पैमाने पर हिमांक बिन्दु या निचले बिन्दु को 0°R तथा भाप बिन्दु या ऊपरी बिन्दु को 80°R पर अंकित किया जाता है। इन दोनों बिन्दुओं के बीच की दूरी को 80 बराबर भागों में बाँट दिया जाता है। इस पैमाने पर ताप को R से प्रदर्शित करते हैं।
(iv) केल्विन पैमाना (Kelvin Scale) : इस पैमाने पर हिमांक बिन्दु या निचले बिन्दु को 273K तथा भाप बिन्दु या ऊपरी बिन्दु को 373K पर अंकित किया जाता है। इन दोनों बिन्दुओं के बीच की दूरी को समान 100 भागों में बाँट दिया जाता है। इस पैमाने पर ताप को केल्विन (K) से व्यक्त किया जाता है।
परमशून्य(Absolute Zero): सिद्धान्त रूप में अधिकतम ताप की कोई सीमा नहीं है परन्तु निम्नतम ताप की सीमा है। किसी भी वस्तु का ताप -273.15°C से कम नहीं हो सकता है। इसे परमशून्य ताप कहते हैं। केल्विन पैमाने पर OK लिखते हैं। अर्थात् OK = 273.15°C एवं 273.16K = 0°C
◆ पहले सेल्सियस पैमाने को सेंटीग्रेड पैमाना कहा जाता था।
◆ केल्विन में व्यक्त ताप में डिग्री (°) नहीं लिखा जाता है।
◆ पारा-39°C पर जमता है, अत: इससे निम्न ताप ज्ञात करने के लिए अल्कोहल तापमापी का प्रयोग किया जाता है। अल्कोहल -115°C पर जमता है।
तापमापी (Thermometers)
◆ तापमापी एक ऐसा यंत्र है, जिससे ताप मापा जाता है। मुख्य रूप से अल्कोहल व पारा ही ऐसे द्रव हैं, जो थर्मामीटर में प्रयोग किये जाते हैं। विभिन्न परिसरों का ताप मापने के लिए निम्नलिखित प्रकार के तापमापी प्रयोग में लाये जाते हैं-
(i) द्रव तापमापी: इस प्रकार के तापमापी का उदाहरण पारे का तापमापी है। पारा तापमापी लगभग -30°C से 350°C तक के ताप मापने के लिए प्रयुक्त होता है।
(ii) गैस तापमापी: इस प्रकार के तापमापियों में स्थिर आयतन हाइड्रोजन गैस तापमापी से 500°C तक के ताप को मापा जा सकता है। हाइड्रोजन की जगह नाइट्रोजन गैस लेने पर 1500°C तक के ताप का मापन किया जाता सकता है।
(iii)प्लेटिनम प्रतिरोध तापमापी: ताप बढ़ाने से धातु के तार के विद्युत प्रतिरोध में परिवर्तन होता है। इसी सिद्धान्त पर प्लेटिनम प्रतिरोध तापमापी कार्य करता है। इसके द्वारा -200°C से 1200°C तक के ताप को मापा जाता है।
(iv)ताप-युग्म तापमापी: ताप-युग्म तापमापी (Theromo-couple Thermometer) का उपयोग 200°C से 1600°C तक के तापों के मापन के लिए किया जाता है।
(v)पूर्ण विकिरण उत्तापमापी: पूर्ण विकिरण उत्तापमापी (Total Radiation Pyrometer) से दूर स्थित वस्तु के ताप को मापा जाता है, जैसे- सूर्य का ताप। इसके द्वारा प्राय: 800°C से ऊँचे ताप ही मापे जा सकते हैं। इससे नीचे का ताप नहीं, क्योंकि इससे कम ताप की वस्तुएँ ऊष्मीय विकिरण उत्सर्जित नहीं करती हैं। यह तापमापी स्टीफेन के नियम (Stefan’s Law) पर आधारित है, जिसके अनुसार उच्च ताप पर किसी वस्तु से उत्सर्जित विकिरण की मात्रा इसके परमताप (Absolute Temperature) के चतुर्थघात के अनुक्रमानुपाती होती है।
विशिष्ट ऊष्मा (Specific Heat)
◆ किसी पदार्थ की विशिष्ट ऊष्मा, ऊष्मा की वह मात्रा है जो उस पदार्थ की विशिष्ट द्रव्यमान में एकांक ताप वृद्धि उत्पन्न करती है। इसे प्रायः ‘C’ द्वारा व्यक्त किया जाता है। विशिष्ट ऊष्मा का SI मात्रक जूल किलोग्राम¯¹ केल्विन‾¹ (JKg¯¹K¯¹) होता है।
◆ एक ग्राम जल का ताप 1°C बढ़ाने के लिए एक कैलोरी ऊष्मा की जरूरत होती है। अत: जल की विशिष्ट ऊष्मा धारिता एक कैलोरी/ग्राम°C होता है। जल की विशिष्ट ऊष्मा धारिता अन्य पदार्थों की तुलना में सबसे अधिक होती है।
ऊष्मीय प्रसार (Thermal expansion): किसी पदार्थ का ताप बढ़ाने से उसके आयतन में वृद्धि होती है क्योंकि ताप बढ़ाने से पदार्थ के अणुओं के बीच की दूरी बढ़ जाती है। यदि किसी ठोस पदार्थ का ताप बढ़ाया जाये तो उसके क्षेत्रफल, लम्बाई तथा आयतन में वृद्धि हो जाती है अर्थात् यदि किसी लोहे की प्लेट का ताप बढ़ायें तों उसके क्षेफल में वृद्धि हो जाती है और यह वृद्धि उसी प्रकार से होती है जैसे किसी फोटो-ग्राफिक प्लेट से बड़े आकार का फोटो तैयार किया जता है। ठोसों के ऊष्मीय प्रसार पर आधिारित कई घटनायें हमारे दैनिक जीवन में दिखायी देती हैं जैसे लकड़ी के पहिए पर लोहे का हाल चढ़ाने के लिए लोहे को गर्म किया जाता है, बोतल में फॅसी हुई कार्क को निकालने के लिए बोतल को गर्मकर दिया जाता है, रेल की पटरियाॅ जो कि लोहे की बनी होती हैं, उनके जोड़ो पर थोड़ी सी जगह छोड़ दी जाती है जिससे गर्मी के महीनों में पटरियों का प्रसार होने पर वे तिरक्षी न हों। ताप का प्रभाव लोलक के आवर्तकाल पर भी है। गर्मी में लोलक की लम्बाई बढ़ जाने के कारण घड़ियों का आवर्तकाल बढ़ जाता है तथा ठंडक में लोलक की लम्बाई घट जाने के कारण आवर्तकाल घट जाता है।
ठोंसों की तरह द्रवों को गरम करने पर द्रवों के आयतन में वृद्धि होती है तथा आयतन बढ़नेे के साथ-साथ द्रव का घनत्व घटता जाता है। द्रवों के घनत्व में यह कमी ठोसों में अपेक्षाकृत अधिक होती है। परन्तु जल अन्य द्रवों की अपेक्षाकृत कुछ असामान्य व्यवहार प्रदर्शित करता है। यदि 0ºC से 4ºC तक इसका आयतन घटता है परन्तु घनत्व बढ़ता है। 4ºC से ऊपर ताप पर जल भी अन्य द्रवों की तरह ही व्यवहार करता है अर्थात ताप बढ़ाने से इसका आयतन बढ़ता है व घनत्व घटता है। जल को यदि बर्फ में परिवर्तन कर दिया जाये तो उसका आयतन बढ़ जाता है। इसी कारण से ठंडे प्रदेशों में पानी की आपूर्ति करने वाली पाइप जल के बर्फ में बदल जाने के कारण फट जाती है।
उष्मा का संचरण (Transmission of Heat)
◆ पदार्थ में तापांतर के कारण ऊष्मा का एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानांतरण होता है। जिस प्रकार कोई द्रव सदैव ऊँचे तल से नीचे तल की ओर बहता है, ठीक उसी प्रकार से ऊष्मा भी ऊँचे ताप की वस्तु से नीचे ताप की वस्तु की ओर जाती है। ऊष्मा के इस स्थानांतरण को ही ऊष्मा का संचरण कहते हैं। ऊष्मा का संचरण निम्नलिखित तीन विधियों से होता है-
1. चालन 2. संवहन और 3. विकिरण।
1. चालन (Conduction)
◆ चालन के द्वारा ऊष्मा पदार्थ के एक स्थान से दूसरे स्थान तक पदार्थ के कणों को अपने स्थान का परित्याग किये बिना पहुँचती है। ठोस पदार्थ में ऊष्मा का संचरण चालन विधि द्वारा होता है। पदार्थ में चालन द्वारा ऊष्मा का संचरण उष्मा चालकता कहलाती है। ऊष्मा चालकता के आधार पर हम पदार्थों का वर्गीकरण तीन वर्गों में कर सकते हैं-
(i) चालक (Conductor):
उन्हें चालक कहते हैं। ऐसे पदार्थों की ऊष्मा चालकता अधिक होती है। सभी धातु, अम्लीय
जल, मानव शरीर आदि ऊष्मा के अच्छे चालक हैं।
जिन पदार्थों से होकर ऊष्मा का चालन सरलता से हो जाता है,
(ii)कुचालक (Bad Conductor): जिन पदार्थों में ऊष्मा का चालन सरलता से नहीं होता या बहुत कम होता है, उन्हें कुचालक कहते हैं। जैसे – लकड़ी, काँच, सिलिका, वायु, गैसें, रबर आदि।
(iii)ऊष्मारोधी (Heat Resistance): जिन पदार्थों में ऊष्मा का चालन एकदम नहीं होता उन्हें ऊष्मारोधी पदार्थ कहते हैं। ऐसे पदार्थों की ऊष्मा चालकता शून्य होती है। जैसे – ऐस्बेस्टस व एवोनाइट ऊष्मारोधी पदार्थ हैं।
2. संवहन (Convection)
◆ इस विधि में ऊष्मा का चालन पदार्थ के कणों के स्थानांतरण के द्वारा होता है। इस प्रकार पदार्थ के कणों के स्थानांतरण से धाराएँ बहती हैं, जिन्हें संवहन धाराएँ कहते हैं। गैसों एवं द्रवों में ऊष्मा का संचरण संवहन द्वारा ही होता है। वायुमंडल संवहन विधि द्वारा ही गर्म होता है।
3. विकिरण (Radiation)
◆ इस विधि में ऊष्मा गर्म वस्तु से ठंडी वस्तु की ओर बिना किसी माध्यम को गर्म किये प्रकाश की चाल से सीधी रेखा में संचरित होती है। सूर्य से हम तक ऊष्मा विकिरण के द्वारा ही आती है।
ऊष्मा चालकता :पदार्थों का वह गुण है जिसके कारण उनमें चालन द्वारा ऊष्मा का संचरण होता है। ऊष्मीय विकिरण अथवा विकिरण में ताप के कारण वस्तुओं द्वारा ऊष्मीय ऊर्जा का उत्सर्जन होता है।
न्यूटन का शीतलन नियम (Newton’s Law of Cooling)
इस नियम के अनुसार किसी वस्तु के ठंडे होने की दर वस्तु तथा उसके चारों ओर के माध्यम के तापांतर के अनुक्रमानुपाती होती है। अत: वस्तु जैसे-जैसे ठंडी होती जायेगी उसके ठंडे होने की दर कम होती जायेगी। उदाहरणार्थ- गर्म पानी को 80°C से 70°C तक ठंडा होने में लिया गया समय, 40°C से 30°C तक ठंडा होने में लिए गये समय की अपेक्षा बहुत कम होता है।
किरचौफ का नियम (Kirchhoff’s Law)
इस नियम के अनुसार, अच्छे अवशोषक ही अच्छे उत्सर्जक होते हैं। अर्थात् जो पिंड किसी ताप पर अधिक ऊष्मा का उत्सर्जन करते हैं, वही कम ताप पर ऊष्मा का अच्छा अवशोषण भी करते हैं तथा अच्छे अवशोषक अच्छे उत्सर्जक भी होते हैं इसके विपरीत बुरे अवशोषक बुरे उत्सर्जक भी होते हैं। अंधेरे कमरे में यदि एक काली और एक सफेद वस्तु को समान ताप पर गर्म करके रखा जाये जो काली वस्तु अधिक विकिरण उत्सर्जित करेगी। अतः काली वस्तु अंधेरे में अधिक चमकेगी।
अवस्था परिवर्तन तथा गुप्त ऊष्मा (Change of State and Latent Heat)
◆ निश्चित ताप पर पदार्थ का एक अवस्था से दूसरी अवस्था में परिवर्तित होना अवस्था परिवर्तन कहलाता है। अवस्था परिवर्तन में पदार्थ का ताप नहीं बदलता है।
◆ त्रिक बिन्दु : वह बिन्दु जिस पर तीनों अवस्थाएँ ठोस, तरल (द्रव) एवं गैस एक साथ पायी जाती है।
गलनांक (Melting Point)
◆ निश्चित ताप पर ठोस का द्रव में बदलना गलन कहलाता है तथा इस निश्चित ताप को ठोस का गलनांक कहते हैं।
◆ जो पदार्थ ठोस से द्रव में बदलने पर सिकुड़ते हैं, (जैसे- बर्फ) उनका गलनांक दाब बढ़ाने पर घटता है तथा जो पदार्थ ठोस से द्रव में बदलने पर फैलते हैं, उनका गलनांक दाब बढ़ाने पर बढ़ता है।
◆ अपद्रव्यों (Impurities) को मिलाने से गलनांक सामान्यतः घटता है। उदाहरणार्थ- 0°C पर पिघलती बर्फ में कुछ नमक तथा शोरा आदि मिलाने से बर्फ का गलनांक 0°C से घटकर -22°C तक कम हो जाता है। ऐसे मिश्रण को हिम-मिश्रण (Freezing Mixture) कहते हैं। इस मिश्रण का उपयोग कुल्फी तथा आइसक्रीम आदि बनाने में किया जाता है।
हिमांक (Freezing Poing)
◆ निश्चित ताप पर द्रव के ठोस में बदलने को हिमीकरण कहते हैं यह निश्चित ताप द्रव का हिमांक कहते हैं।
◆ प्राय: गलनांक एवं हिमांक बराबर होते हैं।
क्वथनांक (Boiling Point)
◆ निश्चित ताप पर द्रव का वाष्प में बदलना वाष्पन कहलाता है तथा इस निश्चित ताप को द्रव का क्वथनांक कहते हैं। दाब बढ़ाने पर क्वथनांक बढ़ता है। अशुद्धियों (Impurities) को मिलाने से भी क्वथनांक बढ़ता है।
संघनन (Condensation)
◆ निश्चित ताप पर वाष्प का द्रव में बदलना संघनन कहलाता है।
◆ प्रायः क्वथनांक एवं संघनन का ताप समान होता है।
ऊष्मा ग्राहिता (Thermal Capacity)
◆ ऊष्मा का वह परिमाण जो वस्तु के तापमान को 1°C बढ़ाने के लिए आवश्यक होता है, वस्तु की ऊष्मा – ग्राहिता कहलाता है
वाष्पीकरण (Evaporation)
◆ द्रव के खुली सतह से प्रत्येक ताप पर धीरे धीरे द्रव का अपने वाष्प में बदलना वाष्पीकरण कहलाता है।
प्रशीतक (Refrigerator)
◆ प्रशीतक में वाष्पीकरण द्वारा ठंडक (Cooling) उत्पन्न की जाती है। तांबे की एक वाष्प कुंडली में द्रव फ्रीऑन भरा रहता है जो वाष्पीकृत होकर ठंडक उत्पन्न करता है।
आपेक्षिक आर्द्रता (Relative Humidity)
◆ किसी दिये हुए ताप पर वायु के किसी आयतन में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा तथा उसी ताप पर, उसी आयतन की वायु को संतृप्त करने के लिए आवश्यक जलवाष्प की मात्रा के अनुपात को सापेक्षिक आर्द्रता कहते हैं। इस अनुपात को 100 से गुणा करते हैं, क्योंकि आपेक्षिक आर्द्रता को प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।
◆ समाचारों में मौसम सम्बन्धी जानकारी आपेक्षिक आर्द्रता को प्रतिशत में व्यक्त करते हैं। आपेक्षिक आर्दता को मापने के लिए हाइग्रोमीटर (Hygrometer) नामक यंत्र का प्रयोग करते हैं।
◆ ताप बढ़ाने पर आपेक्षिक आर्द्रता (Relative Humidity) बढ़ जाती है।
वातानुकूलन (Air-Conditioning)
सामान्यतः मनुष्य के स्वास्थ्य व अनुकूल जलवायु के लिए निम्नलिखित परिस्थतियाँ होनी चाहिए-
(i) ताप : 23°C से 25°C
(ii) आपेक्षिक आर्द्रता : 60 प्रतिशत से 65 प्रतिशत के मध्य
(iii) वायु की गति : 0.75 मी/मिनट से 2.5मी/मिनट तक
यदि किसी स्थान की जलवायु उपर्युक्त परिस्थितियों के अनुसार नहीं होती है तो वह जलवायु मनुष्य के लिए आरामदेह व स्वस्थ्यकर नहीं होती है। अतः इसको अनुकूल बनाने के लिए इन बाह्य परिस्थितियों को कृत्रिम रूप से निर्धारित व नियंत्रित करने की प्रक्रिया को ही वातानुकूलन कहते हैं।
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