गति (motion)

अदिश राशि (Scalar Quantity) –

वैसी भौतिक राशि, जिनमें केवल परिणाम होता है, दिशा नहीं, उसे अदिश राशि कहते है। जैसे – चाल, आयतन, कार्य, समय, ऊर्जा आदि।

सदिश राशि (Vector Quantity) –

वैसी भौतिक राशि, जिनमे परिणाम के साथ-साथ दिशा भी रहती है और जो योग के निश्चित नियमो के अनुसार जोड़ी जाती है उन्हें सदिश राशि कहते है। जैसे – वेग, विस्थापन, बल, त्वरण आदि।

आइए जानते है कौन सी राशि सदिश है और कौन सी अदिश 

  1. दूरी (Distance) – किसी दिए गए समयांतराल में वस्तु द्वारा किये गए मार्ग की लम्बाई को दुरी कहते है।  यह एक अदिश राशि है। यह सदैव धनात्मक  होती है।
  2. विस्थापन (Displacement) – एक निश्चित दिशा में दो बिंदुओं के बिच की लंबवत दुरी को विस्थापन कहते है।  यह सदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक मीटर है। विस्थापन धनात्मक, … , और शून्य कुछ भी हो सकता है।
  3. चाल (Speed) – किसी वस्तु द्वारा प्रति सेकंड तय की गयी दुरी को चाल कहते है। चाल एक अदिश राशि है।  इसका S.I. मात्रक मीटर पर सेकंड है।
  4. वेग (Velocity) – किसी वस्तु के विस्तापन की दर को या एक निश्चित दिशा में प्रति सेकंड वस्तु द्वारा तय की गयी दुरी को वेग कहते है। यह एक सदिश राशि है।  इसका S.I. मात्रक मीटर पर सेकंड है।
  5. त्वरण (Acceleration) – किसी वस्तु के वेग में परिवर्तन की दर को त्वरण कहते है। यह एक सदिश राशि है।  इसका S.I. मात्रक मीटर पर सेकंड स्क्वायर है।
  6. वृत्तीय गति (Circular Motion) – जब कोई वस्तु किसी वृताकार मार्ग पर गति करती है, तो उसकी गति को व्रतीय गति कहते है। वृत्तीय गति एक त्वरित गति होती है, क्योंकि वेग की दिशा प्रत्येक बिंदु पर बदल जाती है।
  7. कोणीय वेग (Angular Velocity) – वृताकार मार्ग पर गतिशील कण को वृत के केंद्र से मिलाने वाली रेखा एक सेकंड में जितने कोण से घूम जाती है, उसे उस कण का कोणीय वेग कहते है। इसे प्राय ओमेगा से प्रकट किया जाता है।
  8. बल (Force) – यह एक बाह्य कारक है जो किसी वस्तु की प्रारंभिक अवस्था में परिवर्तन करता है या परिवर्तन करने की कोशिश करता है। बल एक सदिश राशि है, इसका S.I. मात्रक न्यूटन है।
  9. संवेग (Momentum) – किसी वस्तु के द्रव्यमान तथा वेग के गुणनफल को उस वस्तु का संवेग कहते है। यह एक सदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक किलोग्राम * मी./सै. है।
  10. आवेग (Impulse) – जब कोई बड़ा बल किसी वस्तु पर थोड़े समय के लिए कार्य करता है, तो बल तथा समय अंतराल के गुणनफल को उस बल का आवेग कहते है। यह एक सदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक न्यूटन सेकंड है।
  11. अभिकेंद्रीय बल (Centripetal Force) – जब कोई वस्तु किसी वृताकार मार्ग पर चलती है, तो उस पर एक बल वृत के केंद्र की ओर कार्य करता है इस बल को ही अभिकेंद्रीय बल कहते है। इस बल के अभाव में वस्तु वृताकार मार्ग में नहीं चल सकती। ‘मौत के कुँए’ में कुँए की दीवार मोटर-साइकिल पर अंदर की ओर क्रिया बल लगाती है। जो कि अभिकेंद्रीय बल का उदाहरण है।
  12. अपकेंद्रीय बल (Centrifugal Force) – यह एक ऐसा बल है जिसकी कल्पना करनी होती है जिन्हे परिवेश में किसी पिंड से संबंधित नहीं किया जा सकता।  इसकी दिशा अभिकेंद्री बल के विपरीत दिशा में होती है। कपड़ा सूखने की मशीन, दूध से मक्खन निकालने की मशीन आदि अपकेंद्रीय बल के सिद्धांत पर कार्य करती है।
  13. बल-आघूर्ण (Moment of Force) – बल द्वारा एक पिंड को एक अक्ष के परितः घूमने की प्रवृति को बल-आघूर्ण कहते है।  किसी अक्ष के परितः एक बल का बल-आघूर्ण उस बल के परिमाण तथा अक्ष से बल की क्रिया रेखा के बिच की लंबवत दुरी के गुणनफल के बराबर होता है। यह एक सदिश राशि है। इसका मात्रक न्यूटन मी. होता है।

न्यूटन का गति नियम (Newton's laws of motion)

भौतिकी के पिता न्यूटन ने सन 1687 ईस्वी में अपनी पुस्तक ‘प्रिसिपीया’ में सबसे पहले गति के नियम को प्रतिपादित किया था।

न्यूटन का प्रथम गति-नियम(Newton's first law of motion)–

यदि कोई वस्तु विराम अवस्था में है, तो वह विराम अवस्था में रहेगी या यदि वह असमान चाल से सीधी रेखा में चल रही है, तो वैसी ही चलती रहेगी, जब तक कि उस पर कोई बाह्य बल लगाकर उसकी वर्तमान अवस्था में परिवर्तन न किया जाए।

प्रथम नियम को गैलीलियो का नियम या जड़त्व का नियम भी कहा जाता है।

न्यूटन का द्वितीय गति-नियम(Newton's second law of motion) –

किसी वस्तु के संवेग में परिवर्तन की दर उस वस्तु पर आरोपित बल के समानुपाती होता है तथा संवेग परिवर्तन बल की दिशा में होता है। अब यदि आरोपित बल F, बल की दिशा में उत्पन्न त्वरण a एवं वस्तु का द्रव्यमान m हो, तो न्यूटन के गति के दूसरे नियम से F=ma अर्थात न्यूटन के दूसरे नियम से बल का व्यंजक प्राप्त होता है। न्यूटन का तृतीय गति-नियम –

प्रत्येक क्रिया के बराबर, परन्तु विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है।
उदाहरण –

  • वाहनों के शॉकर, दीवार पर फेंकी हुई बॉल
  • बंदूक से गोली चलने पर लगने वाला धक्का,
  • नाव से किनारे पर कूदने पर नाव का पीछे हट जाना,
  • रॉकेट के उड़ने में।

सरल मशीन (Simple Machine) 

यह बल-आघूर्ण के सिद्धांत पर कार्य करती है। सरल मशीन एक ऐसी युक्ति है जिसमें किसी सुविधाजनक बिंदु पर बल लगाकर, किसी अन्य बिंदु पर रखे हुए भर को उठाया जाता है जेसे – उत्तोलक, घिरनी, आनत ताल, स्क्रू जैक आदि।

उत्तोलक (Lever) :

यह एक सीधी या टेढ़ी दृढ़ छड़ होती है, जो किसी निश्चित बिंदु के चारो ओर स्वतंत्रतापूर्वक घूम सकती है। उत्तोलक में तीन बिंदु होते है –

  1. आलम्ब (Fulcrum)- जिस निश्चित बिंदु के चारो और उत्तोलक की छड़ स्वतंत्रतापूर्वक घूम सकती है, उसे आलम्ब कहते है।
  2. आयास (Effort) – उत्तोलक को उपयोग में लेन के लिए उस पर जो बल लगाया जाता है, उसे आयास कहते है।
  3. भार (Load) – उत्तोलक के द्वारा जो बोझ उठाया जाता है, उसे भार कहते है।

उत्तोलक के प्रकार 

  1. प्रथम श्रेणी का उत्तोलक – कैंची, पिलाश, सिंडासी, कील उखाड़ने की मशीन, शीश झूला, साइकिल का ब्रेक, हैंड पंप आदि।
  2. द्वितीय श्रेणी का उत्तोलक – सरौता, नींबू निचोड़ने की मशीन, एक पहिये की कूड़ा ढ़ोने की गाड़ी आदि।
  3. तृतीय श्रेणी का उत्तोलक – चिमटा, मनुष्य का हाथ आदि।

गुरुत्वकेंद्र (center of gravity): किसी वस्तु का गुरुत्व केंद्र, वह बिंदु है जहां वस्तु का समस्त भार कार्य करता है. अतः गुरुत्वकेंद्र पर वस्तु के भार के बराबर उपरिमुखी बल लगाकर हम वस्तु को संतुलित करते हैं, चाहे वह जिस स्थि‍ति में रखी जाएं. वस्तु का भार गुरत्वकेंद्र से ठीक नीचे की ओर कार्य करता है. अत: गुरुत्व केंद्र पर वस्तु के भार के बराबर ऊपरीमुखी बल लगाकर हम वस्तु को संतुलित रख सकते हैं.

संतुलन के प्रकार: संतुलन 3 प्रकार के होते हैं- स्थायी, अस्थायी तथा उदासीन:
(i) स्थाई संतुलन (stable equilibrium): यदि किसी वस्तु को उसकी संतुलन स्थिति से थोड़ा विस्थापित किया जाए और बल हटाते ही पुनः वह पूर्व स्थिति में आ जाए तो ऐसे संतुलन को स्थाई संतुलन कहते हैं.
(ii) अस्थाई संतुलन (unstable equilibrium): यदि किसी वस्तु को उसकी संतुलन स्थिति से थोड़ा सा विस्थापित करके छोड़ने पर वह संतुलन की अवस्था में न आए तो ऐसे संतुलन को अस्थाई संतुलन कहते हैं.
(iii) उदासीन संतुलन (neutral equilibrium): यदि वस्तु को संतुलन की स्थिति से थोड़ा सा विस्थापित करने पर उसका गुरुत्वकेंद्र (G) उसी ऊंचाई पर बना रहता हैं तथा छोड़ देने पर वस्तु अपनी नई स्थिति में संतुलित हो जाती है, तो उसका संतुलन उदसीन कहलाता है.

स्थायी संतुलन की शर्तें: किसी वस्तु के स्थाई संतुलन के लिए दो शर्तों का पूरा होना जरूरी है:
(i) वस्तु का गुरुत्व केंद्र अधिकाधिक नीचे होना चाहिए.
(ii) गुरुत्व केंद्र से होकर जाने वाली ऊर्ध्वाधर रेखा वस्तु के आधार से गुजरनी चाहिए.

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