भारत की नदियाँ

भारत के अपवाह तंत्र का नियंत्रण मुख्यतः भौगोलिक आकृतियों के द्वारा होता है। इस आधार पर भारतीय नदियों को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया गया है-

  • हिमालय की नदियाँ तथा
  • प्रायद्वीपीय नदियाँ

हिमालय की नदियाँ (बारहमासी): हिमालय की अधिकतर नदियाँ बारहमासी नदियाँ होती हैं। इनमें वर्ष भर पानी रहता है, क्योंकि इन्हें वर्षा के अतिरिक्त ऊँचे पर्वतों से पिघलने वाले हिम द्वारा भी जल प्राप्त होता है। हिमालय की दो मुख्य नदियाँ सिंधु तथा ब्रह्मपुत्र इस पर्वतीय शृंखला के उत्तरी भाग से निकलती हैं। इन नदियों ने पर्वतों को काटकर गॉर्जों का निर्माण किया है। हिमालय की नदियाँ अपने उत्पत्ति के स्थान से लेकर समुद्र तक के लंबे रास्ते को तय करती हैं। ये अपने मार्ग के ऊपरी भागों में तीव्र अपरदन क्रिया करती हैं तथा अपने साथ भारी मात्रा में सिल्ट एवं बालू का संवहन करती हैं। मध्य एवं निचले भागों में ये नदियाँ विसर्प, गोखुर झील तथा अपने बाढ़ वाले मैदानों में बहुत-सी अन्य निक्षेपण आकृतियों का निर्माण करती हैं। ये पूर्ण विकसित डेल्टाओं का भी निर्माण करती है।


प्रायद्वीपीय नदियाँ(मौसमी): अधिकतर प्रायद्वीपीय नदियाँ मौसमी होती हैं, क्योंकि इनका प्रवाह वर्षा पर निर्भर करता है। शुष्क मौसम में बड़ी नदियों का जल भी घटकर छोटी-छोटी धाराओं में बहने लगता है। हिमालय की नदियों की तुलना में प्रायद्वीपीय नदियों की लंबाई कम तथा छिछली हैं। फिर भी इनमें से कुछ केंद्रीय उच्चभूमि से निकलती हैं तथा पश्चिम की तरफ बहती हैं। प्रायद्वीपीय भारत की अधिकतर नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलती हैं तथा बंगाल की खाड़ी की तरफ बहती हैं।

हिमालय की नदियों और प्रायद्वीपीय नदियों में अंतर 

              हिमालय की नदियाँ 

    प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ 

  • हिमालय की नदियों की लम्बाई अधिक होती है और ये गहरी होती है 
  • प्रायद्वीपीय भारत की नदियों की लम्बाई अपेक्षाकृत कम होती है और ये कम गहरी होती है 
  • हिमालय की नदियाँ बारहमासी होती है 
  • प्रायद्वीपीय नदियाँ मौसमी होती है 
  • ये नदियों काफी बड़े डेल्टा का निर्माण करती है ,विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा 'सुंदरवन ' डेल्टा का निर्माण गंगा ब्रह्मपुत्र नदियाँ करती है 
  • ये नदियाँ छोटे डेल्टा ज्वारमुख का निर्माण करती है 
  • हिमालय की नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती है 
  • प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ बंगाल की खाड़ी और अरब सागर दोनों में गिरती है 
  • हिमालय की नदियाँ नवीन है 
  • प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ प्रौढ़ावस्था में हैं

अपवाह तंत्र 

नदी द्वारा उसके बहाव का एक दिशा तंत्र होता है जिसे अपवाह तंत्र कहते है भारत में लगभग 4000 छोटी बड़ी नदियाँ है इन्हें इनके अपवाह तंत्र  के अनुसार मुख्यतः दो भागो में बांटा जा सकता है  

हिमालय अपवाह तंत्र - हिमालय अपवाह तंत्र  के अंतर्गत हिमालय से निकलने वाली नदियाँ आती है । जो की हिमालय में स्थित ग्लेशियरो से निकलती है । हिमालय अपवाह तंत्र  में जो नदियाँ शामिल है उनके नाम कुछ इस प्रकार है - सिन्धु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, यमुना, चम्बल, बेतवा, सोन, गंडक, कोसी, घाघरा, केन, टोंस आदि

प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र - प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र  के अंतर्गत प्रायद्वीपीय पठार से निकलने वाले नदियाँ और पश्चिमी घाट से निकलने वाली नदियाँ शामिल है। प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ या तो बंगाल की खाड़ी में या अरब सागर में गिरती है । प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र  में जो नदियाँ शामिल है उनके नाम कुछ इस प्रकार है - महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, नर्मदा, ताप्ती, साबरमती, माही, लूनी, पेन्नार, वैगई, दामोदर, स्वर्णरेखा, घग्घर आदि

हिमालय अपवाह तंत्र को मुख्यतः तीन नदी तंत्रों में बांटा जा सकता है l 

  • सिन्धु नदी तंत्र
  • गंगा नदी तंत्र 
  • ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र 

सिन्धु नदी तंत्र - यह विश्व के सबसे बड़े नदी द्रोणियों में से एक है, इसकी कुल लंबाई 2,880 कि.मी. है और भारत में, इसकी लंबाई 1,114 किलोमीटर है। भारत में यह हिमालय की नदियों में सबसे पश्चिमी है। सिन्धु नदी हिमालय के मानसरोवर के निकट स्थित सानोख्याबाब हिमनद  में निकलती हैलद्दाख व जास्कर श्रेणियों के बीच से उत्तर-पश्चिमी दिशा में बहती हुई यह लद्दाख और बालतिस्तान से गुजरती है। लद्दाख श्रेणी को काटते हुए यह नदी जम्मू और कश्मीर में गिलगित के समीप एक दर्शनीय महाख्यस्त्र का निर्माण करती है। यह पाकिस्तान में चिल्लस के निकट दरदिस्तान प्रदेश में प्रवेश करती है। सिंधु नदी की बहुत-सी सहायक नदियाँ हिमालय पर्वत से निकलती हैं जैसे - शयोक, गिलगित, जास्कर, हुंजा, नुबरा, शिगार, गास्टिंग व द्रास। अंततः यह नदी अटक के निकट पहाड़ियों से बाहर निकलती है जहाँ दाहिने तट पर काबुल नदी इसमें मिलती है। इसके दाहिने तट पर मिलने वाली अन्य मुख्य सहायक नदियाँ खुर्रम, तोची, गोमल, विबोआ और संगर हैं। ये सभी नदियाँ सुलेमान श्रेणियों से निकली हैं। यह नदी दक्षिण की ओर बहती हुई मीथनकोट के निकट पंचनद का जल प्राप्त करती है। पंचनद नाम पंजाब की पाँच मुख्य नदियों सतलुज, व्यास, रावी, चेनाब और झेलम को दिया गया है। अंत में सिंधु नदी कराची के पूर्व में अरब सागर में जा गिरती है। भारत में सिंधु जम्मू और कश्मीर राज्य में बहती है।

झेलम नदी: झेलम जो सिंधु की महत्त्वपूर्ण सहायक नदी है, कश्मीर घाटी के दक्षिण-पूर्वी भाग में पीर पंजाल गिरिपद में स्थित वेरीनाग झरने से निकलती है। पाकिस्तान में प्रवेश करने से पहले यह नदी श्रीनगर और वूलर झील से बहते हुए एक तंग व गहरे महाख्यस्त्र से गुजरती है, पाकिस्तान में झंग के निकट यह चेनाब नदी से मिलती है।

चेनाब नदी: चेनाब, सिंधु की सबसे बड़ी सहायक नदी है। यह चंद्रा और भागा दो सरिताओं के मिलने से बनती है। ये सरिताएँ हिमाचल प्रदेश में केलाँग के निकट तांडी में आपस में मिलती हैं। इसलिए इसे चंद्रभागा के नाम से भी जाना जाता है। पाकिस्तान में प्रवेश करने से पहले यह नदी 1,180 कि0मी0 बहती है।

रावी नदी: रावी, सिंधु की एक अन्य महत्त्वपूर्ण सहायक नदी है। यह हिमाचल प्रदेश की कुल्लू पहाड़ियों में रोहतांग दर्रे के पश्चिम से निकलती है और राज्य की चंबा घाटी से बहती है। पाकिस्तान में प्रवेश करने व सराय सिंधु के निकट चेनाब नदी में मिलने से पहले यह नदी पीर पंजाल के दक्षिण-पूर्वी भाग व धैलाधर के बीच प्रदेश से प्रवाहित होती है।

व्यास नदी: व्यास सिंधु की अन्य महत्त्वपूर्ण सहायक नदी है, जो समुद्र तल से 4,000 मीटर की ऊँचाई पर रोहतांग दर्रे के निकट व्यास कुंड से निकलती है। यह नदी कुल्लू घाटी से गुजरती है और धैलाधर श्रेणी में काती और लारगी में महाखड्ड का निर्माण करती है। यह पंजाब के मैदान में प्रवेश करती है जहाँ हरिके के पास सतलज नदी में जा मिलती है।

सतलज नदी: सतलज नदी तिब्बत में 4,555 मीटर की ऊँचाई पर मानसरोवर के निकट राक्षस ताल से निकलती है, जहाँ इसे लॉगचेन खंबाब के नाम से जाना जाता है। भारत में प्रवेश करने से पहले यह लगभग 400 किलोमीटर तक सिंधु नदी के समांतर बहती है और रोपड़ में एक महाखड्ड से निकलती है। यह हिमालय पर्वत श्रेणी में शिपकीला से बहती हुई पंजाब के मैदान में प्रवेश करती है। यह एक पूर्ववर्ती नदी है। यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण सहायक नदी है, क्योंकि यह भाखड़ा नांगल परियोजना के नहर तंत्र का पोषण करती है।

सिन्धु नदी तंत्रों की नदियों का उद्गम स्थल 

        नदी 

उद्गम स्थल 

संगम/मुहाना                     

लम्बाई (कि0मी0 में)                  

सिन्धु 

मानसरोवर की निकट सानोख्याबाब हिमनद से 

अरब सागर 

2,880(कुल लम्बाई) (भारत में 1,114)

सतलज 

मानसरोवर के निकट  राक्षस ताल से 

चेनाब नदी  

1,500(कुल लम्बाई) (भारत में 1,050)

झेलम 

जम्मू कश्मीर के निकट वेरीनाग झरने से

चेनाब  नदी 

724 (भारत में 400)

चेनाब 

हिमाचल प्रदेश में बरालान्चा दर्रे के निकट से 

सतलज नदी 

1180

रावी

हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे से 

चेनाब  नदी 

725

व्यास 

हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे के निकट व्यास कुंड से 

सतलज नदी 

470


गंगा नदी तंत्र - अपनी द्रोणी और सांस्कृतिक महत्त्व दोनों के दृष्टिकोणों से गंगा भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी है। यह नदी उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी जिले में गोमुख के निकट गंगोत्री हिमनद से 3,900 मीटर की ऊँचाई से निकलती है। यहाँ यह भागीरथी के नाम से जानी जाती है। यह मध्य व लघु हिमालय श्रेणियों को काट कर तंग महाखड्डो से होकर गुजरती है। देवप्रयाग में भागीरथी, अलकनंदा से मिलती है और इसके बाद गंगा कहलाती है। अलकनंदा नदी का ड्डोत बद्रीनाथ के ऊपर सतोपथ हिमनद है। ये अलकनंदा धैली और विष्णु गंगा धाराओं से मिलकर बनती है, जो जोशीमठ या विष्णुप्रयाग में मिलती है। अलकनंदा की अन्य सहायक नदी पिंडर है जो इससे कर्ण प्रयाग में मिलती है, जबकि मंदाकिनी या काली गंगा इससे रूद्रप्रयाग में मिलती है। गंगा नदी हरिद्वार में मैदान में प्रवेश करती है। यहाँ से यह पहले दक्षिण की ओर फिर दक्षिण-पूर्व की ओर और फिर पूर्व की ओर बहती है। अंत में, यह दक्षिणमुखी होकर दो जलवितरिकाओं (धाराओं) भागीरथी और पदमा में विभाजित हो जाती है। इस नदी की लंबाई 2,525 किलोमीटर है। यह उत्तराखण्ड में 110 किलोमीटर, उत्तरप्रदेश में 1,450 किलोमीटर, बिहार में 445 किलोमीटर और पश्चिम बंगाल में 520 किलोमीटर मार्ग तय करती है। गंगा द्रोणी क्षेत्रफल भारत में लगभग 8.6 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रा में फैली हुई है। यह भारत का सबसे बड़ा अपवाह तंत्र है, जिससे उत्तर में हिमालय से निकलने वाली बारहमासी व अनित्यवाही नदियाँ और दक्षिण में प्रायद्वीप से निकलने वाली अनित्यवाही नदियाँ शामिल हैं। सोन इसके दाहिने किनारे पर मिलने वाली प्रमुख सहायक नदी है। बाँये तट पर मिलने वाली महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी व महानंदा हैं। सागर द्वीप के निकट यह नदी अंततः बंगाल की खाड़ी में जा मिलती है।

यमुना नदी: यमुना, गंगा की सबसे पश्चिमी और सबसे लंबी सहायक नदी है। इसका स्रोत यमुनोत्री हिमनद है, जो हिमालय में बंदरपूँछ श्रेणी की पश्चिमी ढाल पर 6,316 मीटर ऊँचाई पर स्थित है। प्रयाग (इलाहाबाद) में इसका गंगा से संगम होता है। प्रायद्वीप पठार से निकलने वाली चंबल, सिंध, बेतवा व केन इसके दाहिने तट पर मिलती हैं। जबकि हिंडन, रिंद, सेंगर, वरुणा आदि नदियाँ इसके बाँये तट पर मिलती हैं। इसका अधिकांश जल सिंचाई उद्देश्यों के लिए पश्चिमी और पूर्वी यमुना नहरों तथा आगरा नहर में आता है।

चंबल नदी: चंबल नदी मध्य प्रदेश के मालवा पठार में महु के निकट निकलती है और उत्तरमुखी होकर एक महाखड्ड से बहती हुई राजस्थान में कोटा पहुंचती है, जहाँ इस पर गांधीसागर बाँध बनाया गया है। कोटा से यह बूँदी, सवाई माधोपुर और धैलपुर होती हुई यमुना नदी में मिल जाती है। चंबल अपनी उत्खात् भूमि वाली भू-आकृति के लिए प्रसिद्ध है, जिसे चंबल खड्ड (Ravine)कहा जाता है।

घाघरा नदी: घाघरा नदी मापचाचुँगों हिमनद से निकलती है तथा तिला, सेती व बेरी नामक सहायक नदियों का जलग्रहण करने के उपरांत यह शीशापानी में एक गहरे महाखड्ड का निर्माण करते हुए पर्वत से बाहर निकलती है। शारदा नदी (काली या काली गंगा) इससे मैदान में मिलती है और अंततः छपरा में यह गंगा नदी में विलीन हो जाती है।

कोसी नदी: कोसी एक पूर्ववर्ती नदी है जिसका स्रोत तिब्बत में माउंट एवरेस्ट के उत्तर में है, जहाँ से इसकी मुख्य धारा अरुण निकलती है। नेपाल में, मध्य हिमालय को पार करने के बाद इसमें पश्चिम से सोन, कोसी और पूर्व से तमुर कोसी मिलती है। अरुण नदी से मिलकर यह सप्तकोसी बनाती है।

रामगंगा नदी: रामगंगा नदी गैरसेन के निकट गढ़वाल की पहाड़ियों से निकलने वाली अपेक्षाकृत छोटी नदी है। शिवालिक को पार करने के बाद यह अपना मार्ग दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर बनाती है और उत्तर प्रदेश में नजीबाबाद के निकट मैदान में प्रवेश करती है। अंत में कन्नौज के निकट यह गंगा नदी में मिल जाती है।

दामोदर नदी: छोटानागपुर पठार के पूर्वी किनारे पर दामोदर नदी बहती है और भ्रंश घाटी से होती हुई हुगली नदी में गिरती है। बराकर इसकी एक मुख्य सहायक नदी है। कभी बंगाल का शोक (Sorrow of Bengal) कही जाने वाली इस नदी को दामोदर घाटी कार्पोरेशन नामक एक बहुद्देशीय परियोजना ने वश में कर लिया है।

शारदा या सरयू नदी: शारदा या सरयू नदी का उद्गम नेपाल हिमालय में मिलाम हिमनद में है, जहाँ इसे गौरीगंगा के नाम से जाना जाता है। यह भारत-नेपाल सीमा के साथ बहती हुई, जहाँ इसे काली या चाइक कहा जाता है, घाघरा नदी में मिल जाती है।

महानंदा नदी: गंगा नदी की एक अन्य महत्त्वपूर्ण सहायक नदी महानंदा है, जो दार्जिलिंग पहाड़ियों से निकलती है। यह नदी पश्चिमी बंगाल में गंगा के बाएँ तट पर मिलने वाली अंतिम सहायक नदी है।

सोन नदी: गंगा के दक्षिण तट पर सोन एक बड़ी सहायक नदी है, जो अमरकंटक पठार से निकलती है। पठार के उत्तरी किनारे पर जलप्रपातों की श्रृंखला बनाती हुई यह नदी पटना से पश्चिम में आरा के पास गंगा नदी में विलीन हो जाती है।

गंगा नदी तंत्र की सहायक नदियों के उद्गम स्थल 

        नदी

उद्गम स्थल 

संगम 

लम्बाई 

गंगा 

गोमुख के निकट गंगोत्री हिमनद से 

बंगाल की खाड़ी 

2525

यमुना 

बन्दरपूँछ के निकट यमुनोत्री हिमनद से 

प्रयागराज(इलाहाबाद) में गंगा नदी में 

1375

चंबल 

मध्य प्रदेश के मऊ के निकट स्थित जनापावं की पहाड़ी से 

उत्तर प्रदेश के इटावा के समीप यमुना नदी में 

1050

घाघरा 

मापचाचुँगों हिमनद से निकलती है

सारण बलिया जिले की सीमा पर गंगा नदी में 

1080

गंडक 

नेपाल हिमालय से 

पटना के समीप सोनपुर में  गंगा नदी में 

425

कोसी 

गोसाईथान के समीप

करागोल के दक्षिण पश्चिम में गंगा नदी में 

730

बेतवा 

मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के समीप विध्यांचल पर्वत से

हमीरपुर के पास यमुना नदी में 

480

सोन 

अमरकंटक की पहाड़ी 

पटना के समीप गंगा नदी में 

780

रामगंगा 

उत्तरखंड के नैनीताल के समीप से 

कन्नौज के पास गंगा नदी में

696

शारदा 

नेपाल हिमालय में मिलाम हिमनद में

घाघरा नदी में

     602

महानंदा 

पगलाझोरा जलप्रपातदार्जिलिंग

गंगा नदी में 

    360


ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र - विश्व की सबसे बड़ी नदियों में से एक ब्रह्मपुत्र का उद्गम कैलाश पर्वत श्रेणी में मानसरोवर झील के निकट चेमायुँगडुंग (Chemayungdung) हिमनद में है। यहाँ से यह पूर्व दिशा में अनुदैर्ध्य (longitudinal)रूप में बहती हुई दक्षिणी तिब्बत के शुष्क व समतल मैदान में लगभग 1,200 किलोमीटर की दूरी तय करती है, जहाँ इसे सांग्पो (Tsangpo) के नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है ‘शोधक’। तिब्बत के रागोंसांग्पो इसके दाहिने तट पर एक प्रमुख सहायक नदी है। मध्य हिमालय में नमचा बरवा (7,755 मीटर) के निकट एक गहरे महाखड्ड का निर्माण करती हुई यह एक प्रक्षुब्ध व तेज बहाव वाली नदी के रूप में बाहर निकलती है। हिमालय के गिरिपद में यह सिशंग या दिशंग के नाम से निकलती है। अरुणाचल प्रदेश में सादिया कस्बे के पश्चिम में यह नदी भारत में प्रवेश करती है। (भारत में 916 कि0मी0 की दूरी तय करती है।) दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहते हुए इसके बाएँ तट पर इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ दिबांग या सिकांग और लोहित मिलती हैं और इसके बाद यह नदी ब्रह्मपुत्र के नाम से जानी जाती है।

असम घाटी में अपनी 750 किलोमीटर की यात्रा में ब्रह्मपुत्र में असंख्य सहायक नदियाँ आकर मिलती हैं। इसके बाएँ तट की प्रमुख सहायक नदियाँ बूढ़ी दिहिंग और धनसरी (दक्षिण) हैं, जबकि दाएँ तट पर मिलने वाली महत्त्वपूर्ण सहायक नदियों में सुबनसिरी, कामेग, मानस व संकोश हैं। सुबनसिरी जिसका उद्गम तिब्बत में है, एक पूर्ववर्ती नदी है। बह्मपुत्र नदी बांग्लादेश में प्रवेश करती है और फिर दक्षिण दिशा में बहती है। बांग्लादेश में यह जमुना कहलाती है और तिस्ता नदी इसके दाहिने किनारे पर मिलती है। अंत में, यह नदी पद्मा के साथ मिलकर बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है। बह्मपुत्र नदी बाढ़, मार्ग परिवर्तन एवं तटीय अपरदन के लिए जानी जाती है।

प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र

प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र हिमालयी अपवाह तंत्र से पुराना है। यह तथ्य नदियों की प्रौढ़ावस्था और नदी घाटियों के चौड़ा व उथला होने से प्रमाणित होता है। पश्चिमी तट के समीप स्थित पश्चिमी घाट बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली प्रायद्वीपीय नदियों और अरब सागर में गिरने वाली छोटी नदियों के बीच जल-विभाजक का कार्य करता है। नर्मदा और तापी को छोड़कर अधिकतर प्रायद्वीपीय नदियाँ पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हैं। प्रायद्वीप के उत्तरी भाग में निकलने वाली चंबल, सिंध, बेतवा, केन व सोन नदियाँ गंगा नदी तंत्र का अंग हैं। प्रायद्वीप के अन्य प्रमुख नदी-तंत्र महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी हैं। प्रायद्वीपीय नदियों की विशेषता है कि ये एक सुनिश्चित मार्ग पर चलती हैं, विसर्प नहीं बनातीं और ये बारहमासी नहीं हैं, यद्यपि भ्रंश घाटियों में बहने वाली नर्मदा और तापी इसका अपवाद हैं।

महानदी: महानदी छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में सिहावा के निकट निकलती है और ओडिशा से बहती हुई अपना जल बंगाल की खाड़ी में विसर्जित करती है। यह नदी 851 किलोमीटर लंबी है और इसका जलग्रहण क्षेत्र लगभग 1.42 लाख वर्ग किलोमीटर है। इसके निचले मार्ग में नौसंचालन भी होता है। इस नदी की अपवाह द्रोणी का 53 प्रतिशत भाग मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में और 47 प्रतिशत भाग ओडिशा राज्य में विस्तृत है। छत्तीसगढ़ में महानदी के बेसिन को 'धान का कटोरा' कहते है

गोदावरी नदी: गोदावरी सबसे बड़ा प्रायद्वीपीय नदी तंत्र है। इसे दक्षिण गंगा या वृद्व गंगा के नाम से जाना जाता है। यह महाराष्ट्र में नासिक जिले से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में जल विसर्जित करती है। इसकी सहायक नदियाँ महाराष्ट्र मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश राज्यों से गुजरती हैं। यह 1,465 किलोमीटर लंबी नदी है। इसके जलग्रहण क्षेत्र का 49 प्रतिशत भाग महाराष्ट्र में, 20 प्रतिशत भाग मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में और शेष भाग आंध्रप्रदेश में पड़ता है। इसकी मुख्य सहायक नदियों में पेनगंगा, इंद्रावती, प्राणहिता और मंजरा हैं। पोलावरम् के दक्षिण, में जहाँ इसके मार्ग के निचले भागों में भारी बाढ़ें आती हैं, गोदावरी एक सुदृश्य प्रपात की रचना करती है। इसके डेल्टाई भाग में ही नौसंचालन संभव है। राजामुंद्री के बाद यह नदी कई धाराओं में विभक्त होकर एक बृहत डेल्टा का निर्माण करती है। यह नदी नौकायन हेतु भी उपयुक्त है अपने बड़े आकार और विस्तार के कारण इसे 'दक्षिण गंगा' कहते है श्रीराम सागर, गोदावरी बांध, जायकवाड़ी आदि कुछ प्रमुख बांध गोदावरी नदी पर हैं। 

कृष्णा नदी: कृष्णा पूर्व दिशा में बहने वाली दूसरी बड़ी प्रायद्वीपीय नदी है, जो सह्याद्रि में महाबलेश्वर के निकट निकलती है। इसकी कुल लंबाई 1,401 किलोमीटर है। कोयना, तुंगभद्रा और भीमा इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। इस नदी के कुल जलग्रहण क्षेत्र का 27 प्रतिशत भाग महाराष्ट्र में, 44 प्रतिशत भाग कर्नाटक में और 29 प्रतिशत भाग आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पड़ता है।

कावेरी नदी: कावेरी नदी कर्नाटक के कोगाडु जिले में बह्मगिरी पहाड़ियों (1,341 मीटर) से निकलती है। इसकी लंबाई 800 किलोमीटर है और यह 81,155 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अपवाहित करती है। प्रायद्वीप की अन्य नदियों की अपेक्षा कम उतार-चढ़ाव के साथ यह नदी लगभग वर्ष भर बहती है, क्योंकि इसके ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में दक्षिण-पश्चिम मानसून (गमी) से और निम्न क्षेत्रों में उत्तर-पूर्वी मानसून (सर्दी) से वर्षा होती है। इस नदी की द्रोणी का 3 प्रतिशत भाग केरल में, 41 प्रतिशत भाग कर्नाटक में और 56 प्रतिशत भाग तमिलनाडु में पड़ता है। इसकी महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ काबीनी, भवानी और अमरावती हैं। कावेरी नदी की घाटी धान उत्पादन हेतु प्रसिद्द है अतः इसे 'दक्षिण भारत का  धान का कटोरा' भी कहते है

नर्मदा नदी: नर्मदा नदी अमरकंटक पठार के पश्चिमी पार्श्व से लगभग 1,057 मीटर की ऊँचाई से निकलती है। दक्षिण में सतपुड़ा और उत्तर में विंध्याचल श्रेणियों के मध्य यह भ्रंश घाटी से बहती हुई संगमरमर की चट्टठ्ठानों में खूबसूरत महाखड्ड और जबलपुर के निकट धुआँधर जल प्रपात बनाती है। लगभग 1, 312 किलोमीटर दूरी तक बहने के बाद यह भड़ौच के दक्षिण में अरब सागर में मिलती है और 27 किलोमीटर लंबा ज्वारनदमुख बनाती है। सरदार सरोवर परियोजना इसी नदी पर बनाई गई है।

तापी नदी: तापी पश्चिम दिशा में बहने वाली एक अन्य महत्त्वपूर्ण नदी है। यह मध्य प्रदेश में बेतूल जिले में मुलताई से निकलती है। यह 724 किलोमीटर लंबी नदी है और लगभग 65,145 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अपवाहित करती है। इसके अपवाह क्षेत्र का 79 प्रतिशत भाग महाराष्ट्र में, 15 प्रतिशत भाग मध्य प्रदेश में और शेष 6 प्रतिशत भाग गुजरात में पड़ता है।

माही नदी: माही नदी  का उद्गम मध्यप्रदेश के धार जिले के समीप मिन्डा ग्राम की 'विध्यांचल पर्वत श्रंखला' से होता है “माही नदी कर्क रेखा को दो बार काटने वाली भारत की एकमात्र नदी है बजाज सागर  (बांसवाड़ा)एवं कदाणा बाँध  माही नदी पर बना है l माही नदी की कुल लम्बाई 576 किमी है

लूनी नदी: अरावली के पश्चिम में लूनी राजस्थान का सबसे बड़ा नदी-तंत्र है। यह पुष्कर के समीप दो धाराओं (सरस्वती और सागरमती) के रूप में उत्पन्न होती है, जो गोबिंदगढ़ के निकट आपस में मिल जाती हैं। यहाँ से यह नदी अरावली पहाड़ियों से निकलती है और लूनी कहलाती है। तलवाड़ा तक यह पश्चिम दिशा में बहती है और तत्पश्चात् दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहती हुई कच्छ के रन में जा मिलती है। यह संपूर्ण नदी-तंत्र अल्पकालिक है। यह भारत की एकमात्र अन्तर्वाही नदी है।

भारत की नदियाँ किन-किन राज्यों से होकर गुजरती है ?

भारत की नदियाँ हिमालय व प्रायद्वीपीय भारत के निकलती है और बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर तक के सफ़र को पूरा करती है  और इस दौरान यह विभिन्न राज्यों से होकर गुजरती है और वहां उपजाऊ भूमि प्रदान करती है  

भारत की प्रमुख नदियाँ जिन राज्यों से होकर गुजरती है उनकी सूची निम्नलिखित है -

नदी 

सम्बंधित राज्य 

गंगा 

उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल 

यमुना 

उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश 

सिन्धु 

जम्मू कश्मीर

रावी 

हिमाचल प्रदेशजम्मू कश्मीर, पंजाब 

सतलज 

हिमाचल प्रदेश, पंजाब 

चिनाब 

हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, पंजाब 

व्यास 

हिमाचल प्रदेश, पंजाब  

झेलम 

जम्मू कश्मीर 

ब्रह्मपुत्र 

अरुणाचल प्रदेश, असम 

चंबल 

राजस्थान, मध्य प्रदेश 

गोदावरी 

महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश , तेलंगाना 

कृष्णा 

महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश 

नर्मदा 

राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश 

ताप्ती 

मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात 

कावेरी 

कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु 

लूनी 

राजस्थान 

घग्घर 

उत्तर प्रदेश, बिहार 

महानदी 

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा 


सहायक नदियाँ: वे नदियाँ होती है जो किसी मुख्य नदी में समाहित हो जाती है। सहायक नदियाँ सीधे जाकर किसी सागर में नहीं गिरती बल्कि मुख्य नदियों की साथ मिलकर सागर में गिरती है। सहायक नदियों के कुछ उदाहरण इस प्रकार है - यमुना, रावी, व्यास, सतलज, घाघरा, गोमती।

उपसहायक नदियाँ: वे नदियाँ होती है जो किसी मुख्य नदी में न मिलकर उस नदी की सहायक नदी में जाकर मिलती है। ये नदियाँ अपना जल मुख्य नदी की सहायक नदी में गिराती है और फिर सहायक नदी जाकर अपना जल मुख्य नदी में गिराती है। उपसहायक नदियों के कुछ उदाहरण इस प्रकार है - चंबल, केन, बेतवा, सिंध, टोंस (ये सभी अपना जल गंगा की सहायक नदी यमुना में गिराती है।)

अन्तःस्थलीय नदियाँ: अन्तः स्थलीय नदियाँ वे नदियाँ है जो किसी सागर में नहीं गिरती बल्कि मार्ग में विलुप्त हो जाती है, लूनी नदी व घग्घर नदी इसका उदहारण है। लूनी नदी कच्छ के रण में विलुप्त हो जाती है और घग्घर नदी राजस्थान के हनुमानगढ़ में विलुप्त हो जाती है

डेल्टा: नदियों के मुहाने पर नदियों द्वारा लाये गये अवसादों के निक्षेपण से बनी त्रिभुजाकार आकृति को 'डेल्टा' कहते है , डेल्टा शब्द का  प्रयोग सर्वप्रथम हेरोडोटस ने नील नदी के लिए किया था, भारत में डेल्टा बनाने वाली प्रमुख नदियाँ - गंगा, कावेरी, कृष्णा, महानदी 

मुहाना:भारत की नदियाँ या तो बंगाल की खाड़ी में या अरब सागर में गिरती है। जहाँ पर नदी का जल सागर में गिरता है वहां पर मीठा पानी खारे पानी में जाकर मिलता है और वहां पर नदियों द्वारा लायी गयी मिटटी व अवसाद जमा होने लगते है , इस प्रकार नदियों की धारा कई छोटी-छोटी धाराओ में बंट जाती है। यह क्षेत्र नदी का 'मुहाना' कहलाता है

विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा भारत व बांग्लादेश के बीच गंगा व ब्रह्मपुत्र नदी द्वारा निर्मित 'सुंदरवन डेल्टा' है। इसे गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा, बंगाल डेल्टा या ग्रीन डेल्टा भी कहते है। गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा दुनिया में सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रो में से एक है। यह क्षेत्र अत्याधिक उपजाऊ है और यहाँ चावल, चाय, जूट सहित कई अन्य फसलों की खेती की जाती है

यहाँ विश्व का सबसे अधिक जूट उत्पादन भी होता है

इस क्षेत्र के लोगो के लिए मत्स्य पालन भी प्रमुख व्यवसाय है, यहाँ पर बड़ी मात्रा में ‘सुन्दरी’ नामक वृक्ष पाए जाते है जिस कारण इन वनों का नाम ‘सुंदरवन’ पड़ा

ज्वारनदमुख या एस्चुरी:नदियाँ जब समुद्र में मिलती हैं। तब नदी द्वारा बहाकर लाई गई मिट्टी समुद्र के समीप जमा होने लगती है। इस कारण धीरे धीरे नदी की धारा कई छोटे छोटे भागों में बँट जाती है। इस प्रकार से 'एस्चुरी' का निर्माण होता है। एस्चुरी बनाने वाली नदियाँ - नर्मदा, ताप्ती


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