वैदिक सभ्यता

वैदिक सभ्यता भारत की प्राचीन सभ्यता है जिसमें वेदों की रचना हुई। वैदिक शब्द ‘वेद’ से बना है, जिसका अर्थ होता है- ‘ज्ञान’। वैदिक संस्कृति के निर्माता आर्य थे। वैदिक संस्कृति में आर्य शब्द का अर्थ-श्रेष्ठ, उत्तम, अभिजात, कुलीन तथा उत्कृष्ट होता है। सर्वप्रथम मैक्समूलर ने 1853 ई. में आर्य शब्द का प्रयोग एक श्रेष्ठ जाति के आशय से किया था। 

वैदिक काल का विभाजन दो भागों ऋग्वैदिक काल-1500-1000 .पूऔर उत्तर वैदिक काल-1000-600 .पूमें किया गया है.

आर्य सर्वप्रथम पंजाब और अफगानिस्तान में बसे थेमैक्समूलर ने आर्यों का निवास स्थान मध्य एशिया को माना हैआर्यों द्वारा निर्मित सभ्यता ही वैदिक सभ्यता कहलाई है.

विद्वानआर्यों का मूल निवास स्थान
प्रो. मैक्समूलरमध्य एशिया
पं. गंगानाथ झाब्रह्मर्षि देश
गार्डन चाइल्डदक्षिणी रूस
बाल गंगाधर तिलकउत्तरी ध्रुव
गाइल्सहंगर एवं डेन्यूब नदी की घाटी
दयानंद सरस्वतीतिब्बत
डॉ. अविनाश चन्द्रसप्त सैन्धव प्रदेश
प्रो. पेंकजर्मनी के मैदानी भाग

ऋग्वैदिक काल (1500-1000 ई.पू.)

इस काल का तिथि निर्धारण जितना विवादास्पद रहा है, उतना ही इस काल के लोगों के बारे में सटीक जानकारी प्राप्त करना। ‘ऋग्वेद संहिता’ की रचना इस काल में हुई थी। अतः यह इस काल की जानकारी का एकमात्र साहित्यिक स्रोत है।

सिंधु सभ्यता के विपरीत वैदिक सभ्यता मूलतः ग्रामीण थी। आर्यों का आरंभिक जीवन पशु चारण पर आधारित था। कृषि उनके लिये गौण कार्य था।

1400 ई. पू. के बोगशकोई (एशिया माइनर) के अभिलेख में ऋग्वैदिक काल के देवताओं- इंद्र, वरुण, मित्रा तथा नासत्य का उल्लेख मिलता है। इससे अनुमान लगाया जाता है कि वैदिक आर्य ईरान से होकर भारत में आए होंगे।

ऋग्वेद की अनेक बातें ईरानी भाषा के प्राचीनतम ग्रंथ अवेस्ता से मिलती हैं। आर्यों के मूल निवास के संदर्भ में विभिन्न विद्वानों के विचार अलग-अलग हैं

गंगा व यमुना के दोआब क्षेत्र एवं उसके सीमावर्ती क्षेत्रों पर भी आर्यों ने कब्जा कर लिया, जिसे ‘ब्रह्मर्षि देश’ कहा गया। कालांतर में संपूर्ण उत्तर भारत में आर्यों ने विस्तार कर लिया जिसे ‘आर्यावर्त’ कहा जाता है।

ऋग्वैदिककालीन देवता

देवता

संबंध

इंद्र

युद्ध का नेता और वर्षा का देवता

अग्नि

देवता और मनुष्य के बीच मध्यस्थ

वरुण

पृथ्‍वी और सूर्य के निर्माता, समुद्र का देवता, विश्‍व के नियामक एवं शासक, सत्‍य का प्रतीक, ऋ‍तु परिवर्तन एवं दिन-रात का कर्ता

द्यौ

आकाश का देवता (सबसे प्राचीन)

सोम

वनस्‍पति देवता

मरुत

आंधी-तूफान का देवता

विष्‍णु

विश्‍व के संरक्षक और पालनकर्ता

पूषन

पशुओं का देवता

आश्विन

विपत्तियों को हरने वाले देवता

उषा

प्रगति एवं उत्‍थान देवता

(3) आर्यों द्वारा विकसित सभ्यता ग्रामीण सभ्यता थी.    

(4) आर्यों की भाषा संस्कृत थी

(5)आर्यों की प्रशासनिक इकाई इन पांच भागों में बंटी थी: (i) कुल (ii) ग्राम (iii) विश (iv) जन (iv) राष्ट्र

(6) वैदिक काल में राजतंत्रात्मक प्रणाली प्रचलित थी

(7) ग्राम के मुखिया ग्रामीणी और विश का प्रधान विशपति कहलाता थाजन के शासक को राजन कहा जाता थाराज्याधिकारियों में पुरोहित और सेनानी प्रमुख थे. 

(8) शासन का प्रमुख राजा होता था. राजा वंशानुगत तो होता था लेकिन जनता उसे हटा सकती थी. वह क्षेत्र विशेष का नहीं बल्कि जन विशेष का प्रधान होता था. 

(9) राजा युद्ध का नेतृत्वकर्ता था. उसे कर वसूलने का अधिकार नहीं था. जनता अपनी इच्‍छा से जो देती थी, राजा उसी से खर्च चलाता था. 

(10) राजा का प्रशासनिक सहयोग पुरोहित और सेनानी 12 रत्निन करते थे. चारागाह के प्रधान को वाज्रपति और लड़ाकू दलों के प्रधान को ग्रामिणी कहा जाता था.

(11) 12 रत्निन इस प्रकार थे: पुरोहित- राजा का प्रमुख परामर्शदाता, सेनानी- सेना का प्रमुख, ग्रामीण- ग्राम का सैनिक पदाधिकारी, महिषी- राजा की पत्नी, सूत- राजा का सारथी, क्षत्रि- प्रतिहार, संग्रहित- कोषाध्यक्ष, भागदुध- कर एकत्र करने वाला अधिकारी, अक्षवाप- लेखाधिकारी, गोविकृत- वन का अधिकारी, पालागल- राजा का मित्र.

(12) पुरूप, दुर्गपति और स्पर्श, जनता की गतिविधियों को देखने वाले गुप्तचर होते थे. (13) वाजपति-गोचर भूमि का अधिकारी होता था.

ऋग्वेद के रचयिता
मण्डलऋषि
द्वितीयगृत्समद
तृतीयविश्वामित्र
चतुर्थधमदेव
पंचमअत्री
षष्टभारद्वाज
सप्तमवशिष्ठ
अष्टमकण्व तथा अंगीरम

(13) वाजपति-गोचर भूमि का अधिकारी होता था.

(14) उग्र-अपराधियों को पकड़ने का कार्य करता था. 

(15) सभा और समिति राजा को सलाह देने वाली संस्था थी.

(16) सभा श्रेष्ठ और संभ्रात लोगों की संस्था थी, जबकि समिति सामान्य जनता का प्रतिनिधित्व करती थी और विदथ सबसे प्राचीन संस्था थी. ऋग्वेद में सबसे ज्यादा विदथ का 122 बार जिक्र हुआ है.

(17) विदथ में स्त्री और पुरूष दोनों सम्मलित होते थे. नववधुओं का स्वागत, धार्मिक अनुष्ठान जैसे सामाजिक कार्य विदथ में होते थे.

(18) अथर्ववेद में सभा और समिति को प्रजापति की दो पुत्रियां कहा गया हैसमिति का महत्वपूर्ण कार्य राजा का चुनाव करना थासमिति का प्रधान ईशान या पति कहलाता था.

(19) अलग-अलग क्षेत्रों के अलग-अलग विशेषज्ञ थे. होत्री- ऋग्वेद का पाठ करने वाला, उदगात्री- सामवेद की रिचाओं का गान करने वाला, अध्वर्यु- यजुर्वेद का पाठ करने वाला और रिवींध- संपूर्ण यज्ञों की देख-रेख करने वाला.

(20) युद्ध में कबीले का नेतृत्व राजा करता था, युद्ध के गविष्ठ शब्द का इस्तेमाल किया जाता था जिसका अर्थ होता है गायों की खोज.

(21) दसराज्ञ युद्ध का उल्लेख ऋग्वेद के सातवें मंडल में हैयह युद्ध रावी नदी के तट पर सुदास और दस जनों के बीच लड़ा गया थाजिसमें सुदास जीते थे.

(22) ऋग्वैदिक समाज ब्राह्मणक्षत्रियवैश्य और शुद्र में विभाजित थायह विभाजन व्यवसाय पर आधारित थाऋग्वेद के 10वें मंडल में कहा गया है कि ब्राह्मण परम पुरुष के मुख सेक्षत्रिय उनकी भुजाओं सेवैश्य उनकी जांघों से और शुद्र उनके पैरों से उत्पन्न हुए हैं.

(23) एक और वर्ग ' पणियों ' का था जो धनि थे और व्यापार करते थे.

(24) भिखारियों और कृषि दासों का अस्तित्व नहीं थासंपत्ति की इकाई गाय थी जो विनिमय का माध्यम भी थीसारथी और बढ़ई समुदाय को विशेष सम्मान प्राप्त था.

(25) आर्यों का समाज पितृप्रधान थासमाज की सबसे छोटी इकाई परिवार या कुल थी जिसका मुखिया पिता होता था जिसे कुलप कहते थे.

ऋग्वैदिक नदियाँ
प्राचीन नामआधुनिक नाम
शतुद्रिसतलज
आस्किनीचिनाब
विपाशाव्यास
कुभाकाबुल
सदानीरागंडक
सुवस्तुस्वात
पुरुष्णीरावी
वितस्ताझेलम
गोमतीगोमल
दृशद्वतीघग्घर
क्रुभकुर्रम

(26) महिलाएं इस काल में अपने पति के साथ यज्ञ कार्य में भाग लेती थीं.

(27) बाल विवाह और पर्दाप्रथा का प्रचलन इस काल में नहीं था.

(28) विधवा अपने पति के छोटे भाई से विवाह कर सकती थीविधवा विवाहमहिलाओं का उपनयन संस्कारनियोग गन्धर्व और अंतर्जातीय विवाह प्रचलित था.

(29) महिलाएं पढ़ाई कर सकती थींऋग्वेद में घोषाअपालाविश्वास जैसी विदुषी महिलाओं को वर्णन है.

(30) जीवन भर अविवाहित रहने वाली महिला को अमाजू कहा जाता था.

(31) आर्यों का मुख्य पेय सोमरस थाजो वनस्पति से बनाया जाता था.

(32)आर्य तीन तरह के कपड़ों का इस्तेमाल करते थे. (i) वास (ii) अधिवास (iii) उष्षणीय (iv) अंदर पहनने वाले कपड़ों को निवि कहा जाता थासंगीतरथदौड़घुड़दौड़ आर्यों के मनोरंजन के साधन थे.

(33) आर्यों का मुख्य व्यवसाय खेती और पशुपालन था.

(34) गाय को न मारे जाने पशु की श्रेणी में रखा गया था.

(35) गाय की हत्या करने वाले या उसे घायल करने वाले के खिलाफ मृत्युदंड या देश निकाला की सजा थी.

(36) आर्यों का प्रिय पशु घोड़ा और प्रिय देवता इंद्र थे.

(37) आर्यों द्वारा खोजी गई धातु लोहा थी.

(38) व्यापार के दूर-दूर जाने वाले व्यक्ति को पणि कहा जाता था.

(39) लेन-देन में वस्तु-विनिमय प्रणाली मौजूद थी.

(40) ऋण देकर ब्याज देने वाले को सूदखोर कहा जाता था.

(41) सभी नदियों में सरस्वती सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र नदी मानी जाती थी.

(42) उत्तरवैदिक काल में प्रजापति प्रिय देवता बन गए थे.

(43) उत्तरवैदिक काल में वर्ण व्यवसाय की बजाय जन्म के आधार पर निर्धारित होते थे.

(44) उत्तरवैदिक काल में हल को सीरा और हल रेखा को सीता कहा जाता था.

(45) उत्तरवैदिक काल में निष्क और शतमान मु्द्रा की इकाइयां थीं.

(46) सांख्य दर्शन भारत के सभी दर्शनों में सबसे पुराना थाइसके अनुसार मूल तत्व 25 हैंजिनमें पहला तत्व प्रकृति है.

(47) सत्यमेव जयतेमुण्डकोपनिषद् से लिया गया है.

(48) गायत्री मंत्र सविता नामक देवता को संबोधित है जिसका संबंध ऋग्वेद से है.

(49) उत्तर वैदिक काल में कौशांबी नगर में पहली बार पक्की ईंटों का इस्तेमाल हुआ था.

(50) महाकाव्य दो हैंमहाभारत और रामायण.

(51) महाभारत का पुराना नाम जयसंहिता है यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है.

(52) सर्वप्रथम 'जाबालोपनिषद ' में चारों आश्रम ब्रम्हचर्यगृहस्थवानप्रस्थ तथा सन्यास आश्रम का उल्लेख मिलता है.

(53) गोत्र नामक संस्था का जन्म उत्तर वैदिक काल में हुआ.

(54) ऋग्वेद में धातुओं में सबसे पहले तांबे या कांसे का जिक्र किया गया हैवे सोना और चांदी से भी परिचित थेलेकिन ऋग्वेद में लोहे का जिक्र नहीं है.


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