अर्थशास्त्र एवं अर्थव्यवस्था

अर्थशास्त्र और अर्थव्यवस्था के बीच संबंध सामान्य रूप से सिद्वांत और अभ्यास के रूप में देखा जा सकता है। अर्थशास्त्र में आर्थिक गतिविधियों से संबंधित सिद्वांतों, नियमों इत्यादि का वर्णन होता है, जबकि अर्थव्यवस्था में इन्हीं सिद्वांतों का व्यावहारिक प्रयोग किया जाता है। आर्थिक सिद्वांतों एवं नियमों की वास्तविक परख अर्थव्यवस्था में ही होती है। जब हम किसी देश को उसकी समस्त आर्थिक क्रियाओं के संदर्भ में परिभाषित करते हैं तो उसे ‘अर्थव्यवस्था’ कहते हैं। अर्थव्यवस्था किसी देश या क्षेत्र-विशेष में अर्थशास्त्र के व्यावहारिक स्वरूप को प्रदर्शित करती है, जैसे- भारतीय अर्थव्यवस्था, चीनी अर्थव्यवस्था।

पूँजीवादी अर्थव्यवस्थाः इसमें अर्थव्यवस्था में क्या उत्पादन करना है, कितना उत्पादन करना है और उसे किस कीमत पर बेचना है, ये सब बाजार तय करता है, इसमें सरकार की कोई आर्थिक भूमिका नही होती है। 

राज्य अर्थव्यवस्थाः इस अर्थव्यवस्था की उत्पति पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की लोकप्रियता के विरोध स्वरूप हुआ। इसमें उत्पादन, आपूर्ति और कीमत सबका निर्णय सरकार द्वारा लिया जाता हैं। ऐसी अर्थव्यवस्थाओं को केंद्रीकृत नियोजित अर्थव्यवस्था कहते है जो गैर बाजारी अर्थव्यवस्था होती है। 

मिश्रित अर्थव्यवस्थाः इसमें कुछ लक्षण राज्य अर्थव्यवस्था के मौजूद होते है तो कुछ लक्षण पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के। इसलिए इसे मिश्रित अर्थव्यवस्था कहते है। भारत, मलेशिया, इण्डोनेशिया आदि देशों में यह अर्थव्यवस्था पायी जाती है। 

अर्थव्यवस्था के क्षेत्र(Sectors of economy):

प्राथमिक क्षेत्रः अर्थव्यवस्था का वह क्षेत्र जहाँ प्राकृतिक संसाधनों को उत्पाद के रूप में प्राप्त किया जाता है अर्थात् इसके अंतर्गत अर्थव्यवस्था के प्राकृतिक क्षेत्रों का लेखांकन किया जाता है, ‘प्राथमिक क्षेत्र’ कहलाता है। इसे ‘कृषि एवं संबद्व क्षेत्र’ भी कहा जाता है। इसमें निम्नलिखित आर्थिक क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है-कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, खनन आदि। 

द्वितीयक क्षेत्र:अर्थव्यवस्था का वह क्षेत्र जो प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादों को अपनी गतिविधियों में कच्चे माल की तरह उपयोग करता है, ‘द्वितीयक क्षेत्र’ कहलाता है। इस क्षेत्र के अंतर्गत अर्थव्यवस्था के प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादों के प्रयोग से विनिर्मित वस्तुओं के उत्पाद का लेखांकन किया जाता है। इसे ‘औद्योगिक क्षेत्र’ भी कहा जाता है। इसमें निम्नलिखित आर्थिक गतिविधियाँ शामिल होती हैं-वाहन उद्योग, वस्त्र उद्योग, लोहा-इस्पात उद्योग, इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग आदि। 

तृतीयक क्षेत्र:इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की सेवाओं का उत्पादन किया जाता है, इसलिये इस क्षेत्र को ‘सेवा क्षेत्र’ भी कहा जाता है। यह क्षेत्र अर्थव्यवस्था के प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्र को अपनी सेवाएँ प्रदान करता है। इसमें निम्नलिखित आर्थिक क्रियाएँ शामिल होती हैं -बीमा, बैकिंग, चिकित्सा, शिक्षा, पर्यटन आदि। 






 



















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