- विधायी संबंध अनु० (245-255)
- प्रशासनिक संबंध अनु० (256-263)
- वितीय संबंध अनु० (301-307)
केंद्र राज्य विधायी सम्बन्ध
- भारतीय संविधान में केंद्र व राज्यों के बीच विधायी शक्तियों के रूप में सातवीं अनुसूची में तीन प्रकार की सूचियाँ उपस्थित हैं। प्रथम ‘संघ सूची’ में महत्त्वपूर्ण विषयों का उल्लेख है जिसमें रक्षा, संचार, विदेश नीति आदि शामिल हैं और जहाँ सिर्फ केंद्र के कानून प्रभावी हैं।
- द्वितीय ‘राज्य सूची’ में राज्य सरकार के पास कानून बनाने की शक्ति है लेकिन मतभेद की स्थिति में राज्य कानून के ऊपर केंद्रीय कानून को वरीयता मिलेगी। इस सूची में 61 विषय (मूलतः 66 विषय) हैं, जैसे- स्थानीय शासन, मत्स्य पालन, सार्वजनिक व्यवस्था आदि।
- तीसरी ‘समवर्ती सूची’ जहाँ केंद्र व राज्य के कानूनों में विरोध नहीं होना चाहिये अन्यथा केंद्र के कानून प्रभावी होंगे। वर्तमान में इसमें 52 विषय (मूलतः 47) हैं, जैसे- आपराधिक कानून प्रक्रिया, सिविल प्रक्रिया, विवाह एवं तलाक, जनसंख्या नियंत्रण तथा परिवार नियोजन, विद्युत, श्रम कल्याण, आर्थिक एवं सामाजिक योजना, दावा, अखबार, पुस्तक, प्रेस इत्यादि.
- 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के तहत पाँच विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में शामिल किया गया है। वे हैं- शिक्षा, वन, नाप-तौल, वन्यजीवों एवं पक्षियों का संरक्षण, न्याय का प्रशासन।
- संविधान के अनुच्छेद 248 (1) में यह कहा गया है कि संसद को उन सभी विषयों पर कानून बनाने का अनन्य अधिकार है जिनका उल्लेख राज्य व समवर्ती सूची में नहीं है। दूसरे शब्दों में अवशिष्ट शक्तियाँ केंद्र सरकार के पास हैं।
केंद्र-राज्य प्रशासनिक सम्बन्ध
संविधान के भाग XI में अनुच्छेद 256 से 263 तक केंद्र राज्य प्रशासनिक संबंधों का उल्लेख है. केंद्र राज्य समबन्धों में प्रशासनिक संबंधों का संयोजन सबसे कठिन कार्य है. संविधान के अनुच्छेद 73 के अनुसार संघ की प्रशासनिक शक्ति उन विषयों पर सीमित है जिन पर संघीय संसद के विधि निर्माण के अधिकार हैं. इसी प्रकार अनुच्छेद 162 के अनुसार राज्यों की प्रशासनिक शक्तियाँ उन विषयों पर सीमित हैं जिन पर राज्य विधान्मंदलों को विधायन का अधिकार है. संवारती सूची के विषयों पर साधारणतः प्रशासनिक अधिकार राज्यों में निहित हैं किन्तु इन विषयों पर राज्यों की प्रशासनिक शक्ति कुछ विशेष परिस्थितियों में संघ को प्रशासनिक शक्ति के अधीन है जहाँ संविधान या संसद द्वारा ऐसा प्रावधान किया गया है.
राज्यों की प्रशासनिक स्वायतत्ता पर संविधान द्वारा राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से संघ का नियंत्रण स्थापित किया गया है. ये उपबंध हैं –
- संविधान के अंतर्गत केंद्र राज्यों को निम्नलिखित मामलों में निर्देश दे सकता है कि राज्य अपनी कार्यकारी शक्ति का प्रयोग इस प्रकार करें कि –
- संचार के साधनों को बनाए रखें एवं उनका रखरखाव करें.
- राज्य रेलवे सम्पत्ति की रक्षा करें.
- प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर राज्य से सम्बंधित भाषाई अल्पसंख्यक समूह के बच्चों के लिए मातृभाषा सीखने की व्यवस्था करें.
- राज्य में अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए विशेष योजनाएँ बनाए और उनका किर्यान्व्यन करें.
- राज्यपाल का पद भी राज्यों पर केन्द्रीय नियंत्रण का अधिकरण है. राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होने के साथ-साथ राज्य में केंद्र का एजेंट भी होता है.
- संविधान के अनुच्छेद 257 के अनुसार राज्य का यह दायित्व है कि अपनी कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग इस प्रकार करें जिससे संसद के कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित हो तथा केन्द्रीय प्रशासन में कोई बाधा उत्पन्न न हो.
- संविधान संघीय संसद को यह अधिकार प्रदान करता है कि वह किसी अंतर्राजीय नदी और नदी घाटी के पानी के प्रयोग वितरण और नियंत्रण के सम्बन्ध में किसी विवाद या शिकायत पर न्याय निर्णयन दे सकती है.
- संविधान राष्ट्रपति को शक्ति प्रदान करता है (अनुच्छेद 263) कि वह केंद्र व राज्यों के मध्य सामूहिक महत्त्व के विषयों की जाँच वह बहस के लिए अंतर्राज्यीय परिषद् का गठन कर सकता है. इस तरह की परिषद् का गठन 1990 में किया गया था.
- संविधान संसद को संवैधानिक उद्देश्य से अंतर्राज्यीय व्यापार वाणिज्य एवं अंतर्संबंध की स्वतंत्रता हेतु किसी प्राधिकरण का गठन करने के लिए प्राधिकृत करता है.
- राज्यों पर केंद्र के प्रशासनिक नियंत्रण का सबसे उपकरण अनुच्छेद 365 है. अनुच्छेद 365 के अनुसार यदि राज्य सरकार केंद्र के निर्देशों का पालन करने में विफल रहती है तो राष्ट्रपति यह उद्घोषणा कर सकता है कि राज्य में संवैधानिक ढाँचा विफल हो गया है. इस घोषणा के परिणामस्वरूप राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो जाएगा.
- राष्ट्रपति राज्यों की सरकारों या उनके पदाधिकारियों को संघ सूची में वर्णित विषयों से सम्बंधित कोई कार्य सौंप सकता है.
- संविधान में यह प्रावधान है कि केंद्र तथा राज्य सरकारों का कर्त्तव्य है कि वे सभी सरकारी कृत्यों का आदर करें व देश के सभी न्यायालयों द्वारा दिए गये अंतिम निर्णयों को लागू करें.
- संविधान संघ तथा राज्यों की पृथक लोक सेवाओं के अतिरिक्त अखिल भारतीय सेवाओं (IAS, IPS, IFS) की व्यवस्था करते हैं. इन सेवाओं को स्थापना का अधिकार संघ को है. इन सेवाओं के सदस्य राज्यों के उच्च पदों पर आसीन होते हैं. अतः यह भी राज्यों पर नियंत्रण का एक अभिकरण है.
केंद्र राज्य वित्तीय सम्बन्ध
संविधान के भाग XII में अनुच्छेद 265 से 293 तक केंद्र राज्य वित्तीय संबंधों का विवरण है. संघीय व्यवस्था में विधायी तथा प्रशासनिक शक्तियों के साथ-साथ वित्तीय प्रान्तों का संघ एवं इकाइयों में स्पष्ट एवं संतोषजनक विभाजन भी संघवाद का एक अनिवार्य तत्त्व है. संविधान द्वारा केंद्र व राज्यों के मध्य वित्तीय संबंधों का निरूपण निम्न प्रकार से किया गया है –
- पारस्परिक कर विमुक्ति
- वित्तीय आपात में वित्तीय सम्बन्ध
- संघ एवं राज्यों के आय का लेखा परीक्षण
- करारोपण शक्ति तथा कर आगमों का विभाजन
- सहायक अनुदान तथा अन्य सावर्जनिक उद्देश्यों हेतु अनुदान
- ऋण लेने सम्बन्धी उपबंध
केन्द्र-राज्य संबंधों से जुडे कुछ प्रमुख अनुच्छेद
- अनुच्छेद 249 के अनुसार राष्ट्रहित में राज्य सूची से संबंधित किसी मामले में संसद की कानून बनाने की शक्ति।
- अनुच्छेद 250 के अनुसार यदि आपातकाल की उद्घोषणा प्रवर्तन में हो तो राज्य सूची के विषय के संबंध में विधि बनाने की शक्ति संसद की होगी।
- अनुच्छेद 252 के अनुसार, दो या दो से अधिक राज्यों के विधानमंडल एक संकल्प पारित करके संसद से अनुरोध कर सकते हैं कि वे राज्य सूची के किसी विषय के बारे में विधियाँ बनाएँ। ऐसी विधियों का विस्तार अन्य राज्यों पर भी किया जा सकता है बशर्ते संबद्ध राज्यों के विधानमंडल इस आशय के संकल्प पारित करें।
- साथ ही संसद को यह शक्ति दी गई है कि वह किसी अंतर्राष्ट्रीय संधि, करार, अभिसमय को कार्य रूप देने के लिये समूचे देश या उसके किसी भाग के लिये कोई विधि बना सके (अनुच्छेद 253)।
- अनुच्छेद 257 के अनुसार -कुछ मामलों में संघ का राज्यों के ऊपर नियंत्रण।
- अनुच्छेद 262 के अनुसार -अंतर्राज्यीय नदियों अथवा नदी घाटियों के पानी से संबंधित विवादो के संबंध में न्यायनिर्णयन।
- अनुच्छेद 270 के अनुसार-केन्द्र एवं राज्यों के बीच लगाये गये कर एवं संघ तथा राज्यों के बीच वितरण।
- अनुच्छेद 275 के अनुसार-कुछ राज्यों को संघ से अनुदान।
केद्र-राज्य संबंध के लिए गठित किए गये आयोग
सितलवाड कमेटी: सितलवाड कमेटी का गठन 1966 में प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा केंद्र-राज्य संबंधों में सुधार के लिए संस्तुतियां देने के लिए किया गया था। कमेटी ने संविधान के दायरे में रहते हुए राज्यों को अधिक स्वायत्तता देने की वकालत की थी।
राजा मन्नार कमेटी: इस कमेटी का गठन 1969 में तमिलनाडु सरकार द्वारा राज्य सरकारों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करने के लिए सुझाव देने के किया गया था। कमेटी ने ऑल इंडिया सिविल सर्विस को समाप्त करने, अंतरराज्यीय परिषद का गठन करने और राज्यों को अधिक अधिकार देने जैसी संस्तुतियां कीं।
सरकारिया आयोग: जस्टिस रंजीत सिंह सरकारिया के नेतृत्व में गठित सरकारिया आयोग का गठन 24 मार्च, 1983 में केद्र सरकार ने केद्र-राज्य संबंधों की समीक्षा करने व उसके संबंध में संस्तुतियां करने के लिए किया था।
पुंछी आयोगः अप्रैल, 2007 में केन्द्र सरकार के केन्द्र राज्य संबंधों की समीक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश मदन मोहन पुंछी की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया। इस आयोग का गठन इसलिये किया गया था कि दो दशक पहले गठित सरकारिया आयोग के बाद बदलते राजनैतिक एवं आर्थिक परिदृश्य के कारण काफी परिवर्तन हो चुके है। अतः नयी परिस्थितियों में केन्द्र राज्य संबंधों का पुनः आंकलन किया जाना आवश्यक है।
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