आद्यऐतिहासिक काल
पुराण-
- स्कन्दपुराण में 5 हिमालयी खंडो (केदारखंड , मानसखंड , नेपाल , जालंधर तथा कश्मीर ) का उल्लेख है जिनमे से दो केदारखंड (गढ़वाल ) तथा मानसखंड (कुमाऊ ) उत्तराखंड में स्थित है |
- गढ़वाल क्षेत्र को स्कंद पुराण में केदारखंड व कुमाँऊ क्षेत्र को मानसखंड कहा गया है।
- पुराणों में केदारखंड व मानसखंड के संयुक्त क्षेत्र के लिए उत्तर-खंड, खसदेश एवं ब्रह्मपुर आदि नामो का प्रयोग किया गया है
- स्कंद पुराण में कुमाँऊ के लिये कुर्मांचल शब्द का उल्लेख मिलता है।
- कांतेश्वर पर्वत(कानदेव) पर भगवान विष्णु ने कुर्मा या कच्छपावतार लिया इसलिए कुमांऊ क्षेत्र को प्राचीन में कुर्मांचल के नाम से जाना जाता था। बाद में कुर्मांचल को ही कुमाँऊ कहा गया।
- ब्रह्म एवं वायु पुराण के अनुसार यहाँ किरात , किन्नर , यक्ष , गन्धर्व , नाग आदि जातियां निवास करती थी , अल्मोड़ा का जाखन देवी मंदिर यक्षो के निवास की पुष्टि करता है |
अभिज्ञान शंकुतलम
- अभिज्ञान शंकुतलम की रचना कालिदास ने की।
- प्राचीन काल मे उत्तराखंड में दो विद्यापीठ थे- बद्रिकाश्रम एवं कण्वाश्रम।
- कण्वाश्रम उत्तराखंड के कोटद्वार से 14 km दूर हेमकूट व मणिकूट पर्वतों की गोद मे स्थित है।
- कण्वाश्रम में दुष्यंत व शकुंतला का प्रेम प्रसंग जुड़ा है शकुंतला ऋषि विश्वामित्र तथा स्वर्ग की अप्सरा, मेनका की पुत्री थी।
- शकुंतला व दुष्यंत का एक पुत्र हुआ भरत जिनके नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा।
- कण्वाश्रम मालिनी नदी के तट पर स्थित है महाकवि काली दास ने अभिज्ञान सकुंतलम की रचना कण्वाश्रम में ही की थी वर्तमान में इस स्थान की चौकाघाट कहा जाता है |
वेद
- वेद चार है-ऋग्वेद,यजुर्वेद, सामवेद,अथर्ववेद।
- सबसे पुराना वेद ऋग्वेद व नवीनतम वेद अथर्ववेद है।
- उत्तराखंड का प्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है जिसमे इसे देवभूमि एवं मनीषियों की पुण्य भूमि कहा गया है
- ऋग्वेद के अनुसार प्रलय के बाद इस क्षेत्र के प्राणा ग्राम में सप्तऋषियों ने अपने प्राणों की रक्षा की थी और यहीं से पुनः सृष्टि प्रारम्भ हुई।
महाभारत
- महाभारत के वनपर्व में राजा विराट का उल्लेख मिलता है जिसकी राजधानी विराट गढ़ी थी।
- महाभारत के वनपर्व में हरिद्वार से केदारनाथ तक के क्षेत्रों का वर्णन मिलता है उस समय इस क्षेत्र में पुलिंद व किरात जातियों का अधिपत्य था।
- पुलिंद राजा सुबाहु जिसने पांडवों की और से युद्ध मे भाग लिया था कि राजधानी श्रीनगर थी।
- महाभारत के वनपर्व में लोमश ऋषि के साथ पांडवों के इस क्षेत्र में आने का उल्लेख है ।
· रामायण
- टिहरी गढ़वाल की हिमयाण पट्टी में विसोन नामक पर्वत पर वशिष्ट गुफा, बशिष्ठ आश्रम, एबं वशिष्ट कुंड स्थित है।
- श्री राम के वनवास जाने और वशिष्ठ मुनि ने अपनी पत्नी अरुंधति ने यहीं निवास किया था।
- तपोवन टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित है जहां लक्ष्मण ने तपस्या की थी
- पौड़ी गढ़वाल के कोट विकासखंड में सितोन्सयूं नामक स्थान है इस स्थान पर माता सीता पृथ्वी में समायी थी। इसी कारण कोट ब्लॉक में प्रत्येक वर्ष मनसार मेला लगता है।
मेघदूत-
- कालिदास द्वारा रचित मेघदूत के अनुसार अल्कापुरी कुबेर की राजधानी थी
प्रमुख मन्दिर-
- जाखन देवी मंदिर - अल्मोड़ा के जाखन देवी मंदिर से यक्षों के निवास की पुष्टि हुई
- बेनिनाग मंदिर- पिथौरागढ़ के बेनिनाग मन्दिर से कुमाऊँ क्षेत्र से नाग जातियों की पुष्टि हुई
उत्तराखंड के कुमाँऊ क्षेत्र में बहुत से नाग मन्दिर(बेनिनाग, कालीनाग, पिंगलनाग,बासुकिनाग आदि) स्थित है जो कि प्राचीन काल मे नाग जातियों के निवास की पुष्टि करते हैं
प्रमुख लेख -
राजकुमारी ईश्वरा का लाखामण्डल शिलालेख-
· देहरादून के जौनसार-बाबर स्थित लाखामण्डल से राजकुमारी ईश्वरा का शिलालेख प्राप्त हुआ ।
· राजकुमारी ईश्वरा के पिता का नाम भास्कर वर्मन था।
· इनके पति जालंधर के राजकुमार चन्द्रगुप्त थे।
· इस शिलालेख से यदुवंशी यादवों के राज्य की पुष्टि हुई।
कालसी शिलालेख-
· अशोक ने 257 ई .पू एक अभिलेख कालसी में स्थापित किया ।
· कालसी देहरादून के उत्तर में टोंस व यमुना नदी के संगम पर स्थित है।
· यह अभिलेख पालिभाषा में था।
· इस अभिलेख में अशोक द्वारा यह घोषणा की गयी है कि उसने अपने राज्य में हर स्थान पर मनुष्यों व पशुओं की चिकित्सा की व्यवस्था कर दी है और साथ ही साथ इसमें लोगों से हिंसा त्यागने तथा अहिंसा को अपनाने की बात भी कही गयी है।
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