मुगल साम्राज्य के अन्तर्गत आने वाले प्रांतो में बंगाल सर्वाधिक उपजाऊ एवं धनी राज्य था। इस प्रान्त में उस समय बांग्लादेश, बिहार एवं उड़ीसा राज्य सम्मिलित थे। इस प्रान्त की आधिकारिक शक्ति बंगाल के नवाब के हाथ में थी।
मुर्शीद कुली खाँ(1713-1727)
मुर्शीद कुली खाँ बंगाल का स्वतंत्र शासक होने के बावजूद भी मुगल बादशाह को नियमित रूप से राजस्व भेजता था। उसने अपनी राजधानी ढाका से मुर्शिदाबाद(मकसूदाबाद) स्थानान्तरित की। इसने कृषको को तत्काबी ऋण प्रदान किया। इसने इजारेदारी प्रथा प्रारम्भ की। मुर्शीद की मृत्यु के बाद उसका उत्तराधिकारी उसका दामाद शुजाउद्दीन हुआ।
सुजाउद्दीन (1727-39)
अली वर्दी खाँ (1740-56)
यह बंगाल के नवाबों में सबसे योग्य नवाब था चूँकि यह सरफराज खाँ को मारकर गद्दी पर बैठा था इसीलिए मुगल सम्राट को दो करोड़ घूस देकर अपने पद को स्थायी बनाया परन्तु उसके बाद अपने 16 वर्षों के शासनकाल में इसने मुगल बादशाह को कभी राजस्व नही भेजा।
रघू जी के लगातार आक्रमणों से बाध्य होकर इसे उड़ीसा का क्षेत्र 1751 में मराठों को देना पड़ा।
यूरोपीय की तुलना इसने मधुमक्खियों से की और कहा कि ’’यदि न छेड़ा जाय तो शहद देगी और यदि छेड़ा जाय तो काट-काट कर मार डालेंगी।’’
अली वर्दी खाँ के कुली तीन पुत्रियाँ थी उसके तीनों दामाद उसके जीवन काल में खत्म हो चुके थे। उसने अपने सबसे छोटे लड़की के पुत्र सिराजुद्दौला को अपना उत्तराधिकारी बनाया।
सिराजुद्दौला (1756-57)
बंगाल के नवाब अलीवर्दी खान की मृत्यु के बाद सिराजुद्दौला इस गद्दी का उत्तराधिकारी बना।
सिराजुद्दौला अपने ही दरबार में कई प्रतिद्वंद्वियों से घिरा हुआ था, जिन्होंने प्लासी का युद्ध जीतने में अंग्रेज़ों की मदद की।
1756 ई0 में यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध छिड़ जाने से अंग्रेजों ने कलकत्ता और फ्रांसीसियों ने चन्द्र नगर की किले बन्दी प्रारम्भ की। नवाब के मना करने पर फ्रांसीसी मान गये परन्तु अंग्रेज नहीं माने फलस्वरूप सिराजुद्दौला ने 20 जून 1756 को फोर्ट विलियम (कलकत्ता) पर अधिकार कर लिया। अंग्रेज गर्वनर डेªक ने भागकर फुल्टा द्वीप में शरण ली।
Black Hole की घटना (20 जून 1756)
इस घटना का वर्णन हालवेल द्वारा किया गया। फोर्ट विलियम के आत्मसमर्पण के कुछ ही समय बाद 20 जून, 1756 को सिराजुद्दौला ने कलकत्ता की एक छोटे सी काल कोठरी में 146 ब्रिटिश कैदियों को कैद कर लिया, जिनमें से 123 कैदियों की दम घुटने से मौत हो गई। इस घटना को 'कलकत्ता के ब्लैक होल' (Black Hole of Calcutta) के रूप में जाना जाता है। परन्तु इस घटना का वर्णन तत्कालीन अन्य किसी इतिहासकार ने नहीं किया है।
प्लासी के युद्ध की पृष्ठभूमि
कलकत्ता के पतन का समाचार मद्रास पहुँचने पर क्लाइव और वाट्सन के नेतृत्व में एक सेना नवाब को उखाड़ फेंकने और बंगाल में ब्रिटिश स्थिति को मज़बूत करने के लिये भेजा गया।
- नवाब के असंतुष्टों जैसे- मीर ज़ाफर जो सिराजुद्दौला का सेनापति एवं रिश्तेदार था, और अन्य बंगाली जनरलों को अंग्रेज़ों के साथ गठबंधन करने के लिये रिश्वत दी गई।
- मीर ज़ाफर ने अंग्रेज़ों से बंगाल की गद्दी के बदले उनका समर्थन करने की गुप्त संधि कर ली थी।
सिराजुद्दौला को जब यह पता चला तब कलकत्ता पहुँचकर उसने क्लाइव से अली नगर की सन्धि कीं
अलीनगर की सन्धि (9 फरवरी 1757)-
अलीनगर सिराज द्वारा कलकत्ता को दिया गया नया नाम था। इस सन्धि के द्वारा अंग्रेजो को कलकत्ता किले बन्द करने की अनुमति दे दी गई। परन्तु जब अंग्रेजों ने फ्रांसीसी क्षेत्र पर पर पुनः आक्रमण किया तब अंग्रेजों और नवाब के बीच संघर्ष हो गया। फलस्वरूप प्लासी का प्रसिद्ध युद्ध हुआ।
प्लासी का युद्ध (23 जून 1757)
23 जून, 1757 में रॉबर्ट क्लाइव ने प्लासी के मैदान में सिराजुद्दौला के ख़िलाफ कंपनी की सेना का नेतृत्व किया। नवाब सिराजुद्दौला की हार का एक बड़ा कारण उसके अपने सेनापति मीर जाफर की टुकड़ियों ने इस युद्ध में हिस्सा नहीं लिया। रॉबर्ट क्लाइव ने यह कहकर उसे अपने साथ मिला लिया था कि सिराजुद्दौला को हटा कर मीर जाफर को नवाब बना दिया जाएगा। प्लासी की जंग के बाद सिराजुद्दौला को मार दिया गया और मीर जाफर नवाब बना। प्लासी की जंग इसलिए महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि भारत में यह कंपनी की पहली बड़ी जीत थी।
मीर कासिम (1760-62)
यह मीर जाफर का दामाद था। मीर जाफर को हटाने के बाद इससे मुघेर की सन्धि की गयी।
मुघेर की सन्धि (27 September 1760)
- इस सन्धि के द्वारा इसने अंग्रेजों को वर्दवान, मेदिनापुर, तथा चटगाँव के क्षेत्र देना स्वीकार किया।
- सिल्हट के चूने के व्यापार में कम्पनी का आधा भाग मान लिया गया।
- बेन्सिटार्ट ने सन्धि पर मीर कासिम से हस्ताक्षर कराने के बाद ही उसे बंगाल के नवाब बना दिया।
मीर कासिम के सुधार
बंगाल के नवाबों में अली वर्दी खाँ के बाद यह दूसरा सबसे योग्य नवाब था इसने बंगाल की दशा को सुधारने के लिए निम्नलिखित उपाय किये-
- राजधानी मुर्शिदाबाद से मुंघेर स्थानान्तरित की। यह मुर्शीदाबाद के षडयन्त्रात्मक वातावरणों से ऊब चुका था अतः उसने नयी जगह पर अपनी राजधानी स्थानान्तरित की।
- इसने नये कर अबवाब (उपरिकर) लगाये तथा पुराने करों में 3/32 भाग अतिरिक्त लेना स्वीकार किया।
- अधिकारियों से बचत के रूप में एक और कर खिंजरी जमा भी वसूल किया।
- इसने मुघेर में तोड़दार बन्दूकों और तोपों को बनाने की व्यवस्था की।
अंग्रेजों को उपर्युक्त कोई सुधार भी पसन्द नही आया इसी बीच अंग्रेज अपनी दस्तक (पास) का दुरपयोग करने लगे इसे वे भारतीय व्यापारियों को बेंचकर पैसा लेने लगे। भारतीय व्यापारियों को भी कम मात्रा में ही शुल्क देकर व्यापार करने का फायदा मिलने लगा। लेकिन इस सबका प्रभाव अन्ततः नवाब पर ही पड़ा अतः उसने व्यापारियों पर से चुंगी को माफ कर दिया। अंग्रेंज इससे बौखला गये और उन्होंने मीर कासिम को हटाकर पुनः मीर जाफर को बंगाल का नवाब बना दिया।
मीर जाफर (1763-65)
बक्सर के युद्ध में विजय के बाद बंगाल में वास्तविक रूप से अंग्रेजों की प्रभुसत्ता की शुरूआत हुई। इसे प्लासी के युद्ध के बाद से नहीं माना जाता है। बक्सर की सफलता के बाद क्लाइव को बंगाल का गर्वनर बनाकर भेजा गया। 1765 ई0 में ही मीर जाफर की मृत्यु के बाद नजमुद्दौला को बंगाल का नवाब बनाया गया।
निजाम-उद्दौला (1765-66)
- इस सन्धि के द्वारा शाहआलम द्वितीय ने 12 अगस्त के फरमान के जरिये 26 लाख रुपए के वार्षिक भुगतान के बदले बंगाल बिहार और उड़ीसा की दीवानी अंग्रेजों (क्लाइव) को प्रदान कर दी।
- बादशाह को कंपनी के संरक्षण में इलाहाबाद में रहने के लिये कहा गया।
समकालीन इतिहासकार गुलाम हुसैन ने अपनी पुस्तक शियारुल मुत्खैरीन में लिखा है कि इस सन्धि की शर्तों को तय करने में और उस पर हस्ताक्षर करने में उतना भी समय नहीं लगा जितना की एक गधा को खरीदने में लगता है।
इलाहाबाद की दूसरी सन्धि (16 अगस्त 1765)
हस्ताक्षर कर्ता:-शुजाउद्दौला (अवध का नवाब) एवं क्लाइव। यह सन्धि अवध के नवाब शुजाउद्दौला एवं क्लाइव के बीच हुई। इसकी प्रमुख शर्तें निम्नलिखित थी-
- इलाहाबाद तथा काणा के जिले अवध से लेकर शाहआलम द्वितीय को दे दिये गये।
- बनारस की जागीरदार बलवन्त सिंह को अपने जागीर में स्वायत्तता प्राप्त हो गयी।
- युद्ध की क्षतिपूर्ति के लिए कम्पनी के अवध के नवाब ने 50 लाख रूपये दिये।
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