भारत में यूरोपीय कम्पनियों का आगमन

भारत की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत, आर्थिक संम्पन्नता, आध्यात्मिक उपलब्धियाँ, दर्शन, कला आदि प्रभावित होकर मध्यकाल में बहुत से व्यापारियों एवं यात्रियों का आगमन हुआ सबसे पहले भारत में यूरोपीय पुर्तगाली कम्पनी ने प्रवेश किया।

पुर्तगालियों के पश्चात डच भारत आए ये नीदरलैंड एवं हॉलैंड के निवासी थे डच के बाद भारत में अंग्रेजों का आगमन हुआ उसके बाद फ्रांसीसी भारत आए

 

पुर्तगालीयों का आगमन

  • सर्वप्रथम पुर्तगाली भारत पँहुचे थे।
  • 17 मई 1498 0 को वास्को-डि-गामा ने भारत के पश्चिमी तट पर स्थित कालीकट (केरल) बन्दगाह पर पहुँचकर भारत तथा यूरोप के मध्य नए समुद्री मार्ग की खोज की।
  • इस यात्रा में वास्को-डी-गामा की सहायता गुजराती व्यापारी अब्दुल मनीद ने की।
  • 1499 में वास्को-डी-गामा स्वदेश लौट गया और उसके वापस पहुँचने के बाद ही लोगों को भारत के सामुद्रिक मार्ग की जानकारी मिली।
  • सन् 1500 में पुर्तगालियों ने कोचीन (केरल) के पास अपनी कोठी बनाई।
  • 1502 0 में कोचीन में प्रथम व्यापारिक कोठी की स्थापना की।
  • 1505 0 में फ्रांसिस्को अल्मेडा प्रथम पुर्तगाली वायसराय बनकर भारत आया।
  • 1509 0 में अलफांसो अल्बुकर्क भारत में दूसरा पुर्तगाली वायसराय बना।
  • अलफांसो अल्बुकर्क ने 15100  में पुर्तगालियों ने गोवा पर अपना अधिकार कर लिया तथा उसे अपना प्रशासनिक केंद्र बनाया।
  • 1571 में बीजापुर, अहमदनगर और कालीकट के शासकों ने मिलकर पुर्तगालियों को निकालने की चेष्टा की पर वे सफल नहीं हुए।
  • 1579 0 में वे मद्रास के निकच थोमें, बंगाल में हुगली और चटगाँव में अधिकार करने मे सफल रहे।
  • 1580 0 में मुगल बादशाह अकबर के दरबार में पुर्तगालियों ने पहला ईसाई मिशन भेजा।
  • पुर्तगालीयों ने गोवा, दमन, दीव, साषअटी, बसर्ड चौल, बंबईसन-थोमे और हुगली में अपनी बस्तियाँ बसाई।
  • सन-थोमे पुर्तगालियों की दक्षिणी पूर्वी तट पर स्थित एक मात्र बस्ती थी। 

डचो का आगमन

  • पुर्तगालियो के बाद भारत में डचो का आगमन हुआ।
  • 1578 में सर फ्रांसिस ड्रेक नामक एक अंग्रेज़ नाविक ने लिस्बन जाने वाले एक जहाज को लूट लिया।
  • इस जहाज़ से उसे भारत जाने वाले रास्ते का मानचित्र मिला।
  • पहला डच अषेवेण कर्ता कार्नेलियन हाऊटमैन पूर्वी रास्ते से सन् 1596 0 में भारत पँहुचा।
  • 31 दिसम्बर सन् 1600 को कुछ व्यापारियों ने इंग्लैँड की महारानी एलिज़ाबेथ को ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना का अधिकार पत्र दिया।
  • डचों ने भारत में अपनी प्रथम व्यापारिक कोठी (फैक्ट्री) 1605 0 में मसूलीपट्टम में स्थापित की।
  • डचों की दूसरी व्यापारिक कोठी पुलीकट में स्थापित की।
  • उन्होंने अपने स्वर्ण सिक्के को ढाला और पुलीकट को ही अपना केन्द्र बनाया।
  • इनकी प्रमुख बस्ती पुलीकट, सूरत, कारिकल, पटना, बालासोर अन्य प्रमुख बस्तियाँ थी।
  • डचो ने पहली बार वेतन पर मजदूरों को रखा।
  • पुर्तगालियों को अंग्रेजों ने 1611 में जावली की लड़ाई (सूरत) में पराजित कर दिया।
  • सर थॉमस रो को इंग्लैंड के शासक जेम्स प्रथम ने अपना राजदूत बनाकर जहाँगीर के दरबार में भेजा।
  • इसके बाद बालासोर (बालेश्वर), हरिहरपुर, मद्रास (1633), हुगली (1651) और बंबई (1688) में अंग्रेज कोठियाँ स्थापित की गईं।
  • डचों का भारत में से अन्त वेदरा के युध्द (17590) के उपरान्त ही हो गया।
  • डच अंग्रेजो की बीच लड़ा गया जिसमें डचों की हार हुई। तथा वह भारत छोड़ने को विवश हुये।

अंग्रेजो का आगमन

  • 1600 0 में महारानी एलिजाबेथ प्रथम से प्राप्त चार्टर एक्ट से ईस्ट इंड़िया कम्पनी की स्थापना हुई।
  • 1609 0 में पहली बार मुगल दरबार में आने वाला अंग्रेज कैप्टन हांकिन्स था।
  • अंग्रेज कैप्टन हांकिन्स ने तत्कालीन मुगल स्रमाट जहांगीर से अपनी पहली फैक्टी सूरत में खोलने के लिये उसकी इजाजत माँगी।
  • सन् 1613 0 में मुगल बादशाह जहाँगीर द्वारा एक फरमान जारी किया गया जिसके जरिये अंग्रेजो को सूरत में अपनी पहली व्यापारिक कोठी खोलने की स्वीकृति दे दी गई।
  • जेम्स प्रथम का राजदूत बनकर सर टाँमस रो मुगल स्रमाट जहाँगीर के दरबार में आया।
  • सन् 1615 0 से 1619 0 तक जहाँगीर के दरबार में रहा जहा उसने अंग्रेजो के हित में कई व्यापारिक सफलताये प्राप्त कराई।
  • सन् 1611 0 में अंग्रेजो ने अपनी दक्षिण-पूर्वी तट पर पहली कोठी (फैक्ट्री) मुसलीपट्टनम् में स्थापित की
  • 1661 0 में इंग्लैण्ड के राजा चार्ल्स द्वतीय को पुर्तगालियों ने अपनी पत्नी ब्रेगोजा की कैथरीन के दहेज के रुप में बंबई मिली थी।
  • 1632 0 में गोलकुण्डा के सुल्तान ने अँग्रेजो को एक सुनहरा फरमान दे दिया
  • अंग्रेज सुल्तान को 500 पैगोडा वार्षिक देकर गोलकुण्डा राज्य के बन्दरगाह पर स्वतंत्रता पूर्वक व्यापार कर सकते थे।
  • 1639 0 अंग्रेज अधिकारी फ्रांसिस डे ने मद्रास के राजा चन्द्रगिरि से मद्रास को पट्टे पर ले लिया तथा यही एक किला बन्द कोठी का निर्माण कराया गया।
  • जिसे फोर्ट सेन्ट जार्ज के नाम से जाना जाने लगा तथा यह अंग्रेजो का मुख्यालय बन गया। फ्रासिस डे को चेन्नई स्थांपक कहा जाता है।
  • जाँब चारनाक ने कलकत्ता की नींव रखी। यहाँ की नवीन किलाबन्दी फोर्ट विलियम कहलाई।
  • गैराल्ड औगियर ने 1669-1677 0 सूरत बम्बई प्रेसीडेन्ट का गर्वनर रहा इनसे बम्बई शहर की स्थापना की।

फ्राँसीसियों का आगमन

  • 1664 0 में कोलबर्ट के अनुरोध पर कपंनी इंडीज ओरिएंटल की स्थापना हुई।
  • भारत में फ्रांसीसियों की प्रथम कोठी फ्रैंको कैरों के द्वारा सूरत में 1668 0 में स्थापित की गयी थी।
  • 16740 में पांडिचेरी की स्थापना का श्रेय फ्रांसिस मार्टिन को दिया जाता है।
  • प्रथम कर्नाटक युध्दअंग्रेजो फांसीसियों के मध्य आस्ट्रिया के उत्तराधिकार को लेकर हुआ।
  • इसमें -ला-शापल की संधि के द्वारा आस्ट्रिया का उत्तराधिकार विवाद समाप्त हो गया और इसी संधि के तहत प्रथम कर्नाटक युध्द की भी समाप्ति हो गई।
  • दूसरा कर्नाटक युध्द – 1749 0 से 1754 0 के बीच हुआ।
  • इस युध्द में फ्रासीसी गर्वनर डुप्ले की हार हुई। उसे फ्रांस वापस बुला लिया गया तथा उसके स्थान पर गोडेहू को भारत में अगले गर्वनर के रुप में भेजा गया।
  • पांडेचेरी की संधि से इस युध्द की समाप्ति हुई।
  • तीसरा कर्नाटक युध्दयह युध्द 17560- 17630 के बीच लड़ा गया। इस सप्तवर्षीय युध्द की समाप्ति पेरिस की संन्धि होने पर हुई।
  • 1760 0 में अंग्रेजो ने फाँसीसियों को वाडिवाश की लड़ाई में बूरी तरह हरा दिया था।
  • जिसके बाद फ्रांसीसी कभी कभी अंग्रेजो की राह रोड़ा नहीं बन सके तथा धीरे-धीरे भारत की राजनीति में दखल देने लगे तथा कालांन्तर में भारत की गध्दी पर भी बैठे।
  • 1761 0 में अंग्रेजो ने पाँडिचेरी को फ्रांसीसियों से छीन लिया।
  • 1763 0 में हुई पेरिस संधि द्वारा अंग्रेजो ने चन्द्रनगर को छोडकर फ्रासीसियों के सभी प्रदेश उनको वापस कर दिये।
  • सन् 1749 0 तक फ्रासीसीयो के कब्जे में थे। ये प्रदेश भारत की आजादी तक फ्रांसीसीयों पर बने रहे तथा भारत के आजाद होने पर ही यह उनसे छीने गये।
यूरोपियों का आगमन- 
प्रारंभ में पूर्वी देशों के लिए नए विचार,व्यापारिक मार्गों की खोज की दिशा में सर्वप्रथम प्रयास पुर्तगाल ने किए। भारत आने वाले यूरोपियों के संदर्भ में सर्वप्रथम पुर्तगाली भारत आये तत्पश्चात क्रमशः डच, अंग्रेज, डेंस तथा फ्रांसीसी आए थे।
इन यूरोपीय कंपनियों का मूल नाम और स्थापना वर्ष का विवरण इस प्रकार है-
1.पुर्तगाली ईस्ट इंडिया कंपनी - एस्तादो द इंडिया (1498)
2.डच ईस्ट इंडिया कंपनी -वरिंगिदे आस्ट इंडिशे कंपनी (1602)
3.ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी - द गवर्नर एंड कंपनी ऑफ मर्चेंट ऑफ इंग्लैंड ट्रेडिंग इन टू द ईस्ट इंडीज(1600)
4. डेन ईस्ट इंडिया कंपनी- डेनमार्क(1616)
5. फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी- कम्पने डेश इंडेश ओरियंटल(1664)

                    -पुर्तगालियों का आगमन -
1. पुर्तगाल के शासक डॉन हेनरिक (हेनरी द नेविगेटर के नाम से प्रसिद्ध ) ने वर्ष1498 में पूर्वी देशों के लिए नए व्यापारिक मार्गों की खोज में वास्कोडिगामा को भेजा।
2. वास्कोडिगामा 'केप ऑफ़ गुड होप' को पार कर एक गुजराती नाविक 'अब्दुल मनीक' का पीछा करते हुए 17 मई 1498 को केरल के 'कालीकट' बंदरगाह पहुँचा। कालीकट के स्थानीय शासक 'जमोरिन' ने वास्कोडिगामा का स्वागत किया और मैत्रीपूर्ण व्यवहार करते हुए अपने राज्य में कुछ व्यापारिक सुविधाएं प्रदान की। 
3. वास्कोडिगामा  के स्वागत  एवं  उसे प्रदत्त व्यापारिक सुविधाओं का अरब व्यापारियों ने विरोध किया था।
4. वास्कोडिगामा यहां से बहुत सारी औषधियां और मसाले लेकर वापस पुर्तगाल पहुंचा ,जिसे बेचकर अपनी यात्रा खर्च निकालने के बाद उसे 60 गुना ज्यादा मुनाफा हुआ।इस मुनाफे से प्रभावित होकर अन्य व्यापारी भी भारत आने को प्रेरित हुए।
5. इसके बाद वर्ष 1500 ई० में दूसरा पुर्तगाली व्यापारी पेड्रो अल्ब्रेज़ कैब्राल भारत आया
6. वर्ष 1502 ईसवी में वास्कोडिगामा दूसरी बार तथा 1524 ईसवी में तीसरी बार भारत आया और यही उसकी मृत्यु हो गई और उसे सर्वप्रथम कोचीन में ही दफना दिया गया वस्तुतः जब पुर्तगाली 1961 में गोवा छोड़कर पुर्तगाल वापस गए तब वास्कोडिगामा की अस्थियों को खुद कर ले गए और उसे एक बार पुनः राजकीय सम्मान के साथ लिस्बन( पुर्तगाल) में दफना दिया गया।
पुर्तगाली वायसराय- 
पुर्तगाल ने भारत में अपने व्यापार को बढ़ावा देने के लिए वायसरायों की नियुक्ति की-

फ्रांसिस्को डी अल्मीडा(1505- 09 ई०)
1.भारत में पहला पुर्तगाली वायसराय था।
2. इसे ब्लू वाटर पॉलिसी के लिए जाना जाता है जो हिंद महासागरीय क्षेत्र में वर्चस्व स्थापित कर व्यापारिक एकाधिकार को स्थापित करने के लिए प्रारंभ की गई थी।

अल्फांसो डी अल्बुकर्क(1509- 15 ई०)
1. यह भारत में पुर्तगाली साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था।
2. इसने 1510 ई०  में बीजापुर के सुल्तान युसूफ आदिलशाह से गोवा को छीन लिया और गोवा पर अपना सैन्य नियंत्रण स्थापित किया।
3. इसने अपनी राजधानी कोचीन को बनाया।
4. इसने दक्षिण पूर्व एशिया में मलक्का एवं फारस की खाड़ी क्षेत्र में स्थित होरमुज़ पर जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर अधिकार स्थापित कर लिया था।
5. इतने भारत में पुर्तगालियों की संख्या बढ़ाने के लिए पुर्तगालियों के भारतीय महिलाओं से विवाह करने पर बल दिया।

नीनो-डी - कुन्हा(1529- 38 ई०)
1. इसने 1530 ई० में गोवा को पुर्तगाली राज्य की राजधानी बनाया।
2. इसने 1535 ईस्वी में दीव पर अधिकार स्थापित कर लिया।

नोट:- पुर्तगालियों द्वारा 1559 ईसवी में दमन पर अधिकार कर लिया गया।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य-
1. पुर्तगालियों के भारत में प्रमुख उद्देश्य- व्यापारिक लाभ कमाना और ईसाई धर्म का प्रचार थे।
2. पुर्तगालियों ने भारत में अपनी पहली व्यापारिक कोठी 1503 ईसवी में कोचीन में स्थापित की।
3. पुर्तगालियों ने भारत की पहली प्रिंटिंग प्रेस 1556 ईसवी में गोवा में प्रारंभ की।
4. इन्होंने भारत में तंबाकू की कृषि भी प्रारंभ की।
5. भारत में जहाज निर्माण की तकनीक लाने का श्रेय पुर्तगालियों को ही है।
6. पुर्तगालियों के समुद्री साम्राज्य को एस्तादो-द-इंडिया कहा जाता था। इन्होंने कार्ट्ज़- आर्मेडा काफिला पद्धति प्रारंभ की जिसके अंतर्गत पुर्तगाली समुद्री क्षेत्र से कोई भी जहाज गुजरता था तो उसे कार्ट्ज़ अर्थात परमिट लेना होता था। काफिला प्रणाली के अंतर्गत छोटे स्थानीय जहाजों को पुर्तगाली सुरक्षा प्रदान करते थे और चुंगी बसूलते थे।
7. एक महत्वपूर्ण तथ्य है की सम्राट अकबर को भी पुर्तगाली क्षेत्रों से व्यापार करने के लिए कार्टज़ लेना पड़ता था।
8. पुर्तगाली भारत में सबसे पहले आने वाले यूरोपीय थे और सबसे बाद में अर्थात 1961 ईस्वी में वापस गए

                      -डचों का आगमन-
1.डच हालैंड/नीदरलैंड के निवासी थे तथा पुर्तगालियों के बाद भारत आने वाले दूसरे यूरोपीय थे।
2. डच 1595- 96 ई० में कार्नेलियस हॉउटमैन के नेतृत्व में पूर्वी देशों से व्यापार हेतु आए तथा पहले यह इंडोनेशिया में गए तथा वहां मसाले के व्यापार को प्रमुखता दी। उसके बाद डच व्यापार हेतु भारत आए।इस प्रकार कार्नेलियस हाउटमैन प्रथम डच नागरिक था जो भारत आया था।
3डचों की भारत में व्यापार एवं निर्यात की प्रमुख वस्तु सूतीवस्त्र थी। पोर्टोनोवा डचों का प्रमुख वस्त्र उत्पादक केंद्र था।
4. डचों ने भारत में अपना पहला कारखाना 1605 ईस्वी में मूसलीपट्टनम /मछलीपट्टनम में खोला।
5. बंगाल में प्रथम डच फैक्ट्री 1627 ई० में पीपली में स्थापित हुई थी। 1653 ई० हुगली के निकट चिनसुरा में फैक्ट्री स्थापित की जो बाद में डचों का प्रमुख व्यापारिक केंद्र बना, यही पर गुस्तावस फोर्ट का निर्माण किया।
6. पुलीकट में डचों ने स्वर्ण निर्मित सिक्के चलाएं जिन्हें पैगोडा कहा जाता था।
7. डचों ने पुर्तगालियों को भारत में समुद्री व्यापार से बाहर कर दिया परंतु वह अंग्रेजों का सामना नहीं कर पाए।
8. 1759 ईस्वी में डचों और अंग्रेजों के बीच हुए बेदरा के युद्ध में अंग्रेजों ने डचों को अंतिम रूप से परास्त कर उन्हें भारत के व्यापार से बाहर कर दिया।

                    -अंग्रेजों का आगमन-
1. इंग्लैंड में  31 दिसंबर 1600 ई० को पूर्वी देशों से व्यापार करने के लिए महारानी एलिजाबेथ प्रथम के समय ईस्ट इंडिया कंपनी का गठन किया गया।
2. इस समय भारत में मुगल सम्राट अकबर का शासन था।
3. 1603 ईसवी में महारानी एलिजाबेथ प्रथम की मृत्यु के बाद ब्रिटेन के शासक जेम्स प्रथम बने, जिसने कैप्टन हॉकिंस  को अपने दूत के रूप में भारत भेजा था।
4. कैप्टन हॉकिंस( जोकि भारत आने वाला प्रथम अंग्रेज था) 1608 ई० में जहांगीर के दरबार में पहुंचा जिसे कुछ व्यापारिक सुविधाएं प्रदान की गयी।
5. जिसके अंतर्गत अंग्रेजों ने भारत में अपना प्रथम कारखाना 1608 ई० में सूरत में खोला। दक्षिण भारत में अंग्रेजों का प्रथम कारखाना मसूलीपट्टनम में खोला गया था।
6सर टॉमस रो नामक अंग्रेज दूत 1615 ई० जहांगीर के दरबार में व्यापारिक सुविधाएं प्राप्त करने के लिए भारत आया था।
7. वर्ष 1632 ईसवी में अंग्रेज अंग्रेजों ने गोलकुंडा के शासक से सुनहरा फरमान प्राप्त कर लिया जिसके अंतर्गत उन्हें गोलकुंडा राज्य में मुक्त व्यापार और बंदरगाहों के प्रयोग की अनुमति मिल गई।
8मुंबई जिस पर पुर्तगालियों का अधिकार था, 1661ई० में जब पुर्तगाली राजकुमारी कैथरीन का विवाह अंग्रेज राजकुमार चार्ल्स द्वितीय से कर दिया गया तो मुंबई दहेजस्वरूप अंग्रेजों को दे दी गई जिसे चार्ल्स द्वितीय ने 1668 ई० में  10 पौंड के वार्षिक किराए कंपनी को दे दिया।
9. औरंगजेब के समय हुगली क्षेत्र में अंग्रेज अपना प्रभाव बढ़ा रहे थे तथा कई बार मुगल फरमानों को मानने से भी इंकार कर देते थे जिसके कारण औरंगजेब ने हुगली क्षेत्र से अंग्रेजों को बाहर खदेड़ दिया परंतु 1688 में औरंगजेब और सर जॉन चाइल्ड के मध्य हुए समझौते के द्वारा उन्हें पुनः रुकने एवं व्यापार की अनुमति दे दी।
10. सन 1717 ई० का वर्ष अंग्रेजों के लिए ऐतिहासिक सिद्ध हुआ जब जान सुर्मन के नेतृत्व में एक दल मुगल बादशाह फर्रूखसियर से मिला।इस दल में एक सर्जन हैमिल्टन भी था जिसने बादशाह के एक असाध्य रोग को ठीक कर दिया जिससे खुश होकर फर्रूखसियर ने निम्नलिखित रियायतें अंग्रेजों को प्रदान की- 
     ० 3000 रु० वार्षिक कर के बदले अंग्रेजों को बंगाल में मुक्त व्यापार की अनुमति प्रदान की
     ० 10000 रु० वार्षिक कर के बदले सूरत में मुक्त व्यापार की अनुमति प्रदान की।
     ० मुंबई में प्रचलित सिक्को को संपूर्ण भारत में चलने की अनुमति दे दी।
नोट:-  फर्रूखसियर का यह आदेश ईस्ट इंडिया कंपनी के इतिहास में मैग्नाकार्टा के नाम से जाना जाता है।

महत्वपूर्ण तथ्य-
1. बम्बई का संस्थापक गेराल्ड औंगियार को माना जाता है।
2.  कलकत्ता का संस्थापक जॉब चारनाक था जिसने कालिकाता,गोवंदपुर और सूतानाती को मिलाकर कलकत्ता की नींव डाली थी।
3. कोलकाता में ही फोर्ट विलियम बनाया गया था जिसके प्रथम गवर्नर चार्ल्स आयर थे।
4. अंग्रेजों को( फ्रांसिस डे नामक अंग्रेज को) मद्रास चंदगिरि के राजा से पट्टे पर प्राप्त हुआ था जहां पर फोर्ट सेंट जॉर्ज की स्थापना की गई।
5. पांडिचेरी में फोर्ट लुई बनाया गया था जिसे फ्रांसीसियों ने बनवाया था।
6. शोभा सिंह ,वर्धमान का जमींदार था जिसने अंग्रेजो के विरुद्ध विद्रोह 1690 के दशक में किया था।

                   -डेन्स का आगमन-
1. अंग्रेजों के बाद आने वाले यूरोपीय डेनमार्क के थे जिन्हें डेंस कहा जाता है इनकी कंपनी की स्थापना 1616 ईस्वी में हुई थी।
2. इन्होंने अपना प्रथम कारखाना में तंजौर में स्थापित किया था।
3. कोलकाता के समीप सेरामपुर में इन्होंने अपनी मुख्य व्यापारिक बस्ती 1755 ई० में बसाई जो इनकी व्यापारिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र था।
4. भारत में इनकी रुचि व्यापारिक गतिविधियों से ज्यादा मिशनरी कार्यों में थी इसलिए यह अपनी व्यापारिक अवसंरचनाओं को 1854 ई० में अंग्रेजों को बेचकर भारत से चले जाते हैं।


                  -फ्रांसीसियों का आगमन-
1. फ्रांस के शासक लुई चौदहवें के शासनकाल में मंत्री काल्बर्ट द्वारा फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1664 में की गई।
2. फ्रांसीसियों ने भारत में अपना प्रथम कारखाना 1668 में सूरत में स्थापित किया ,इसके बाद 1669 में पूर्वी तट पर मसूलीपट्टनम में अपना दूसरा कारखाना खोला।
3. 1673 ई० में बलिकोंडापुरम के शासक शेर खां लोदी से पुदुचेरी का एक छोटा क्षेत्र प्राप्त होता है जिसे पांडिचेरी के रूप में विकसित करने का कार्य फ्रैंको मार्टिन द्वारा किया जाता है।
4. इसके बाद 1674 में चंद्रनगर का क्षेत्र फ्रांसीसियों के नियंत्रण में आ जाता है।
5. चूंकि फ्रांसीसी कंपनी पूर्णतः राज्याधीन थी इसलिए फ्रांसीसी कंपनी की स्थिति अच्छी नहीं थी ,1720 में इसका पुनर्गठन किया जाता है।
6. फ्रांसीसी कंपनी के व्यापारिक हित भारत में अंग्रेजों से टकराते थी ,1742 ईस्वी तक फ्रांसीसी कंपनी का ध्यान व्यापार तक सीमित था परंतु 1742 में जब फ्रांसीसी गवर्नर डूप्ले भारत आया तो उसने साम्राज्यवादी विस्तार पर बल दिया,जिससे अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के मध्य तीन कर्नाटक युद्ध हुए।

प्रथम कर्नाटक युद्ध(1746- 48 ई०)-
1740 में यूरोप में ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकार को लेकर फ्रांस एवं ब्रिटेन के बीच संघर्ष की स्थिति बनी,जिसका विस्तार भारत में प्रथम कर्नाटक युद्ध के रूप में दिखाई देता है।डूप्ले(पांडिचेरी का फ़्रेन्च गवर्नर) के नेतृत्व में फ्रांसीसी सेना ने अंग्रेजों को हराकर मद्रास पर कब्जा कर लिया। इसी दौरान सेंट टोमे का प्रसिद्ध युद्ध लड़ा गया जिसमें डूप्ले की फ्रांसीसी सेना ने कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन की सेना को परास्त कर दिया था।( डूप्ले ने मद्रास को जीतकर कर्नाटक के नबाब को देने का वादा किया था परन्तु बाद में इससे इंकार कर दिया,जिस कारण नबाब को उससे युद्ध करना पड़ा)
प्रथम कर्नाटक युद्ध का अंत 'एक्स- ला- शापेल' की संधि द्वारा हुआ इसके द्वारा यूरोप में ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकार के मुद्दे को सुलझा लिया गया जिससे भारत में भी यह युद्ध समाप्त हो गया तथा मद्रास पुनः अंग्रेजों को दे दिया गया।

द्वितीय कर्नाटक युद्ध(1749- 54 ई०)-
द्वितीय कर्नाटक युद्ध हैदराबाद और कर्नाटक के उत्तराधिकार के विवाद को लेकर फ्रांसीसियों तथा अंग्रेजों के मध्य हुआ। इसमें डूप्ले ने कर्नाटक में चन्दासाहिब और हैदराबाद में मुजफ्फरजंग का साथ दिया तो अंग्रेजों ने कर्नाटक में अनवरुद्दीन तथा हैदराबाद में नासिरजंग का साथ दिया। 3 अगस्त 1949 को अम्बूर के युद्ध में डूप्ले और चन्दसाहिब ने अनवरुउद्दीन को मार डाला। जिससे अनवरुउद्दीन के पुत्र ने भागकर त्रिचनापल्ली में शरण ली जिसको फ्रांसीसी सेना ने घेर लिया दूसरी तरफ क्लाइव ने इस दबाव को कम करने के लिए कर्नाटक की राजधानी अर्काट पर अधिकार कर लिया। लारेंस के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने त्रिचनापल्ली पर फ्रांसीसी घेरे को हटाकर अधिकार कर लिया, जिससे फ्रांसीसी सेना को अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा।
इस युद्ध का अंत 1755 ईस्वी में हुई पांडिचेरी की संधि द्वारा हुआ। जिसमें कहा गया कि फ्रांसीसी व अंग्रेजी शक्तियां भारतीय राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगी।

तृतीय कर्नाटक युद्ध(1756- 63 ई०)-
तृतीय कर्नाटक युद्ध यूरोप में हुए सप्तवर्षीय युद्ध का ही विस्तार था जो भारत में फ्रांसीसी एवं अंग्रेजों के बीच युद्ध का कारण बना। भारत में अंग्रेजों के विस्तार को नियंत्रित करने के लिए फ्रांस ने काउंट-डी - लाली को गवर्नर बनाकर भारत भेजा जिसने सर्वप्रथम सर्वप्रथम 1958 में फोर्ट सेंट डेविड पर कब्ज़ा कर लिया। दूसरी तरफ इस समय तक अंग्रेज बंगाल पर आधिपत्य स्थापित करके काफी मजबूत हो चुके थे। लाली ने अंग्रेजों को घेरने के लिए तंजावुर और मद्रा पर गहरा डाला परंतु उसे सफलता नहीं मिली। अंततः 1760 ईस्वी में अंग्रेजी सेना( नेतृत्व आयरकूट द्वारा) और फ्रांसीसी सेना( नेतृत्व लाली द्वारा) के मध्य वांडीवाश का प्रसिद्ध युद्ध हुआ इसमें अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों को अंतिम रूप से परास्त कर दिया। यह युद्ध निर्णायक साबित हुआ तथा अंग्रेजों ने भारत में फ्रांसीसी शक्ति का अंत कर दिया। 1761 ई. में अग्रेजों ने पांडिचेरी को फ्रासीसियों से छीन लिया।

यूरोप में 1763 ईस्वी में हुई पेरिस की संधि के द्वारा तृतीय कर्नाटक युद्ध का अंत हुआ। इस संधि के तहत पांडिचेरी, चंद्रनगर फ्रांसीसियों को लौटा दिए गए परंतु यह भी तय हुआ कि फ्रांसीसी अब भारत में सेना नहीं रखेंगे।

कम्पनी

स्थापना वर्ष

पुर्तगाली ईस्ट इंडिया कम्पनी

1498 0

अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी

1600 0

डच ईस्ट इंडिया कम्पनी

1602 0

डैनिश ईस्ट इंडिया कम्पनी

1616 0

फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी

1664 0

स्वीडिश ईस्ट इंडिया कम्पनी

1731 0

कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.