अंग्रेज एवं मैसूर
F ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने भारत में साम्राज्यवादी विस्तार के अंतर्गत सबसे पहले बंगाल पर विजय प्राप्त किया|बंगाल विजय के बाद अंग्रेजों की नजर मैसूर राज्य पर पड़ी|
F वर्ष 1612 में वाडियार राजवंश के अंतर्गत मैसूर क्षेत्र हिंदू राज्य के रूप में उभरा। चिक्का कृष्णराज वाडियार द्वितीय ने वर्ष 1734 से वर्ष 1766 तक शासन किया।
F हैदर अली जो वाडियार वंश की सेना में एक सैनिक के रूप में नियुक्त किया गया था, अपने महान प्रशासनिक कौशल एवं सैन्य रणनीति के बल पर मैसूर का वास्तविक शासक बन गया।
F हैदर अली की मृत्यु के बाद उसका पुत्र टीपू उत्तराधिकारी बना।
F वाडियार वंश का अंतिम शासक कृष्णराज तृतीय था| उसने सहायक संधि स्वीकार कर ली।
हैदर अली
F एक अज्ञात परिवार में जन्मे हैदर अली (1721-1782) ने अपने सैन्य जीवन की शुरुआत राजा चिक्का कृष्णराज वाडियार की मैसूर सेना में घुड़सवार के रूप में की थी। वह अशिक्षित किंतु बुद्धिजीवी था और कूटनीतिक एवं सैन्य रूप से कुशल था।
F वह वर्ष 1761 में मैसूर का वास्तविक शासक बना एवं उसने फ्राँसीसी सेना की सहायता से अपनी सेना में पश्चिमी ढंग से प्रशिक्षण की शुरुआत की।
प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध(1767-69)
F युद्ध बिना किसी परिणाम के डेढ़ वर्ष तक जारी रहा।
F हैदर ने अपनी रणनीति परिवर्तित की और अचानक मद्रास पर आक्रमण कर दिया इससे मद्रास में अव्यवस्था एवं दहशत फैल गई।
F इसकी वजह से अंग्रेज हैदर के साथ 4 अप्रैल, 1769 को मद्रास की संधि करने के लिये विवश हो गए।
- इस संधि से कैदियों एवं विजित क्षेत्रों का आदान-प्रदान हुआ।
- किसी अन्य राज्य द्वारा आक्रमण किये जाने की स्थिति में हैदर अली को अंग्रेज़ों ने सहायता प्रदान करने का वादा किया।
द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1780-84)
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वर्ष 1771 में जब मराठा सेना ने मैसूर पर आक्रमण किया था तब अंग्रेज़ मद्रास की संधि का पालन करने में विफल रहे।
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हैदर अली ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध मराठों एवं निजाम के साथ गठबंधन किया।
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7 दिसंबर, 1782 को कैंसर के कारण हैदर अली की मृत्यु हो गई।
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उसके पुत्र टीपू सुल्तान ने बिना किसी सकारात्मक परिणाम के एक वर्ष तक युद्ध जारी रखा।
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एक अनिर्णायक युद्ध से तंग आकर दोनों पक्षों ने शांति का विकल्प चुना और मैंगलोर की संधि (मार्च 1784) हुई, इसके तहत दोनों पक्षों ने एक दूसरे से जीते गए क्षेत्रों को वापस लौटा दिया।
टीपू सुल्तान
F टीपू सुल्तान का जन्म नवंबर 1750 में हुआ। वह हैदर अली का पुत्र था एवं एक महान योद्धा था जिसे ‘मैसूर टाइगर’ के रूप में भी जाना जाता है।
F वह उच्च शिक्षित था तथा अरबी, फारसी, कन्नड़ और उर्दू भाषा में पारंगत था।
F वह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का संरक्षक भी था और उसे भारत में ‘रॉकेट प्रौद्योगिकी के प्रणेता’ के रूप में श्रेय दिया जाता है।
F 1787 ई0 में टीपू ने अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टनम में ‘पादशाह’ की उपाधि धारण की।
F टीपू ने अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टनम में स्वतंत्रता का वृक्ष लगवाया और साथ ही जैकोबिन क्लब का सदस्य बना। उसने स्वयं को ‘नागरिक टीपू’ कहलवाया।
तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1790-92)
F मराठों एवं निजाम के समर्थन के साथ अंग्रेज़ों ने दूसरी बार श्रीरंगपटनम पर आक्रमण किया।
F टीपू ने अंग्रेज़ों का डटकर सामना किया परंतु सफल नहीं हो सका।
F वर्ष 1792 में श्रीरंगपटनम की संधि के साथ युद्ध समाप्त हुआ।
F तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध के कारण दक्षिण में टीपू की प्रभावशाली स्थिति नष्ट हो गई एवं वहाँ ब्रिटिश वर्चस्व स्थापित हो गया।
चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध (1799)
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टीपू और अंग्रेजो के बीच चतुर्थ आँग्ल-मैसूर युद्ध 1799 ई0 में श्रीरंगपट्टनम में लडा गया।
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इस युद्ध के दौरान टीपू की मृत्यु हो गयी।
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मैसूर को अपने अधीन करने में अंग्रेजों को 32 वर्ष लग गए थे।
आंग्ल-मैसूर संघर्ष–एक नजर में
प्रथम आंग्ल–मैसूर युद्ध(1767-69)-इस समय अंग्रेज गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स तथा यह मद्रास की संधि (हैदर और अंग्रेजों के बीच) के द्वारा खत्म हुआ।
द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध(1780-84)-वारेन हेस्टिंग्स के समय मंगलैर की संधि द्वारा (हैदर अली और अंग्रेजों के बीच) खत्म हुआ।
तृतीय आंग्ल–मैसूर युद्ध(1790-92)-इस युद्ध के समय अंग्रेज जनरल कार्नवालिस था तथा इस युद्ध का पतन श्रीरंगपट्टनम् की संधि (टीपू और अंग्रेजों के बीच) द्वारा हुआ।
चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध(1799)-यह युद्ध वेलेजली के नेतृत्व में हुआ तथा टीपू की मृत्यु के साथ ही इस युद्ध का पतन हुआ।
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