प्रकाश संश्लेषण

प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा हरे पौधे और कुछ अन्य जीव प्रकाशीय ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलते हैं।



हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण के दौरान प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करते हैं। इस ऊर्जा की सहायता से वे जल, कार्बन डाइऑक्साइड तथा कई खनिजों को ऑक्सीजन व ऊर्जा से समृद्ध कार्बनिक यौगिकों में परिवर्तित करते हैं।

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प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को प्रभावित करने वाले कारक (Factors governing photo synthesis): प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को प्रभावित करनेवाले कारक निम्नलिखित हैं-

  1. प्रकाश (Light): प्रकाश संश्लेषण की क्रिया लाल एवं नीले प्रकाश में सबसे अधिक होती है जबकि पराबैंगनी, हरी, पीली एवं अवरक्त प्रकाश में यह बिल्कुल नहीं होती है। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रकाश की निम्न तीव्रता पर तो बढ़ती है परन्तु जैसे- जैसे तीव्रता उच्च होती है, यह घटती जाती है।
  2. ताप (Temperature): प्रकाश संश्लेषण में अनेक एन्जाइमों की प्रतिक्रियाएँ होती हैं। एन्जाइम तापक्रम की एक अनुकूलतम परास सीमा में ही क्रियाशील होते हैं। अतः 0°C से 37°C तक तापक्रम बढ़ने पर प्रकाश संश्लेषण की दर बढ़ती जाती है, परन्तु 37°C से उच्च ताप पर यह घट जाती है।
  3. कार्बन डाइऑक्साइड (CO2): एक निश्चित स्तर तक कार्बन डाइऑक्साइड की सान्द्रता बढ़ने पर प्रकाश संश्लेषण की दर बढ़ती है लेकिन इसके उपरान्त कार्बन डाइऑक्साइड की सान्द्रता का प्रकाश संश्लेषण की दर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इसके विपरीत बढ़ी हुई सान्द्रता निरोधी हो सकती है।
  4. जल (water): जल के अभाव की स्थिति में प्रकाश संश्लेषण की दर कम हो जाती है। क्योंकि ऐसा वाष्पोत्सर्जन की दर कम करने के लिए रंध्रों के बंद रहने के कारण होता है इससे पत्तियों में CO2 का प्रवेश रुक जाता है।
  5. पर्णहरित (Chlorophyll): पर्णहरित वर्णक मुख्यतः हरित लवक नामक पादप कोशिकांग में पाया जाता है। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के लिए पर्णहरित बहुत ही आवश्यक है। दूसरे शब्दों में यह प्रकाश संशलेषण क्रिया का केन्द्र होता है। पौधों की जिन कोशिकाओं में पर्णहरित उपस्थित होता है केवल वे ही प्रकाश संशलेषण क्रिया कर पाती हैं। पौधों में पर्णहरित प्रायः हरी पत्तियों में पाया जाता है, इस कारण पत्तियों को पौधे का प्रकाश संश्लेषी अंग (Photosynthetic organs of plant) कहा जाता है। शैवाल (Algae) और हाइड्रिला (Hydrila) जो प्रायः जल में मिलते हैं का पूरा शरीर ही प्रकाश संश्लेषी होता है। हरित लवक एक सतत् दोहरी झिल्ली से घिरे होते हैं। उच्च पादपों में हरित लवक में स्तरमय रचनाओं की पट्टियाँ होती हैं, जिन्हें ग्रेना (Granna) कहते हैं। हरित लवक का आन्तरिक स्तर इसकी गुहा (Cavity) को आस्तरित करता है जिसे पीठिका (stroma) कहते हैं।

प्रकाश संश्लेषण क्रिया की अवस्थाएँ: प्रकाश संश्लेषण क्रिया की दो अवस्थाएँ होती हैं-

  1. प्रकाश रासायनिक क्रिया तथा
  2. रासायनिक प्रकाशहीन क्रिया
प्रकाश रासायनिक क्रिया (Photo chemical reaction): यह क्रिया पर्णहरित के ग्रेना में सम्पन्न होती है। इसे हिल क्रिया (Hill Reaction) भी कहते हैं। इस प्रक्रिया में जल का अपघटन होकर हाइड्रोजन आयन तथा इलेक्ट्रॉन बनता है। जल के अपचयन के लिए ऊर्जा प्रकाश द्वारा मिलती है। इस प्रक्रिया के अन्त में ऊर्जा के रूप में ATP तथा NADPH निकलता है जो अंधकार क्रिया (Dark reaction) में क्रिया संचालित करने में मदद करते हैं।

रासायनिक प्रकाशहीन क्रिया (Chemical dark reaction): यह क्रिया क्लोरोफिल के स्ट्रोमा (stroma) में सम्पन्न होती है। इस अभिक्रिया के लिए ऊर्जा प्रकाश अभिक्रिया से मिलती है। इस कारण इसे अप्रकाशिक अभिक्रिया (Dark reaction) कहा जाता है। इस अभिक्रिया में प्रकाश अभिक्रिया के दौरान उत्पन्न NADPH2 एवं ATP दोनों ही अणुओं का उपयोग कार्बन डाइऑक्साइड से कार्बोहाइड्रेटों के संश्लेषण के लिए किया जाता है। इसमें कार्बन डाइऑक्साइड रिबुलेंस बाइफॉस्फेट से प्रारम्भ होकर अभिक्रिया के एक चक्र में प्रवेश करता है। इस चक्र के अन्त में कार्बोहाइड्रेट का संश्लेषण एवं रिबुलेस बाइफॉस्फेट का पुनरुद्भवन होता है। चूंकि मेल्विन केल्विन (Melvin Kelvin) एवं एन्डिल बेन्सन (Andil Benson) ने इस चक्र की खोज की थी। इस कारण इसे केल्विन-बेन्सन चक्र (Kelvin-Benson Cycle) भी कहते हैं।

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