भारत में सिंचाई
योजना आयोग ने देश में सिंचाई परियोजनाओं को तीन भागों में विभाजित किया है –(1)वृहद् सिंचाई परियोजनाएँ (2)मध्यम सिंचाई परियोजनाएँ (3)लघु सिंचाई परियोजनाएँ
- इस परियोजना के तहत ऐसी सिंचाई परियोजनाओं को शामिल किया जाता है, जो 10,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र को सिंचित करती हैं| उदाहरण के लिए देश के सभी बड़े बाँध जैसे– भाखड़ा नांगल बाँध, बगलीहार परियोजना और टिहरी परियोजना आदि को शामिल किया जाता है|
- इसके साथ ही बड़े बाँधो से निकाली गयी नहरें भी इसी परियोजना के अन्तर्गत शामिल की जाती हैं| जैसे– इन्दिरा गाँधी नहर, शारदा नहर आदि |
मध्यम सिंचाई परियोजनाएँ
- ऐसी सिंचाई परियोजनाएँ जो 2,000 हेक्टेयर से अधिक और 10,000 हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल को सिंचित करती हैं, उन्हें मध्यम सिंचाई परियोजना के अन्तर्गत शामिल किया गया है|उदाहरण के लिए- छोटी नहरों को मध्यम सिंचाई परियोजना के अन्तर्गत रखा गया है |
लघु सिंचाई परियोजनाएँ
- 2,000 हेक्टेयर से कम क्षेत्र को सिंचित करने वाली परियोजना को लघु सिंचाई परियोजना के तहत् शामिल किया जाता है|लघु सिंचाई परियोजना के अन्तर्गत तालाब, नलकूप, कुआँ और ड्रीप सिंचाई आदि को
शामिल किया जाता है |
- देश में सर्वाधिक सिंचित क्षेत्रफल लघु सिंचाई परियोजना अर्थात् तालाब, कुआँ और नलकूप आदि के द्वारा ही किया जाता है|
सिंचाई से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यः-
- एक से दो हेक्टेयर वाली जोतों को लघु जोत कहा जाता है|
- दो से चार हेक्टेयर बाली जोतों को अर्ध मध्यम जोत कहा जाता है|
- चार से दस हेक्टेयर बाली जोत को मध्यम जोत कहा जाता है|
- दस हेक्टेयर या इससे बड़ी जोत को बडी जोत कहा जाता है|
- भारत में फसल बीमा योजना का शुभारंभ 1985 में हुआ|
- भारत का प्रथम जैविक राज्य सिक्किम है|
- भारत में सिंचाई के लिए कुआँ, तालाब, नहर और नलकूप आदि साधन उपयोग में लाए जाते हैं|
- भारत में सर्वाधिक सिंचित क्षेत्रफल वाला राज्य उत्तर प्रदेश है| इसके बाद सिंचित क्षेत्रफल वाला राज्य क्रमश: राजस्थान, पंजाब और आंध्र प्रदेश हैं|
- कुल क्षेत्रफल के प्रतिशत की दृष्टि से देश का सर्वाधिक सिंचित राज्य पंजाब है| पंजाब का लगभग 97% हिस्सा सिंचित क्षेत्र के अन्तर्गत आता है|
- भारत में सर्वाधिक असिंचित क्षेत्रफल वाला राज्य महाराष्ट्र है तथा दूसरे स्थान पर राजस्थान राज्य है|
- विश्व का सर्वाधिक सिंचित क्षेत्र चीन(21%) है इसके बाद भारत(20.2%) है।
सिंचाई के प्रमुख साधन
- कुएं एवं नलकूप सिंचाई के प्रमुख साधन है।
- दूसरे स्थान पर नहरों द्वारा सिंचाई होती है।
- तालाबों द्वारा सिंचाई सर्वाधिक प्रायद्वीपीय भारत में होती है।
1. कुएं एवं नलकूप द्वारा सिंचाई
- भारत में सिंचित क्षेत्र के लगभग 56% भाग में कुओं और नलकूपों द्वारा सिंचाई होती है।
- उत्तर प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गोवा, बिहार और झारखण्ड में कुएं एवं नलकूप प्रमुख साधन है।
- हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार, राजस्थान तथा गुजरात में भी इन साधनों का प्रयोग होता है।
1.उत्तरप्रदेश
2.आन्ध्रप्रदेश
3.राजस्थान
2. तालाबों द्वारा सिंचाई
- मध्य और दक्षिण भारत में जहाँ प्रायः कुएँ खोदना या नहरें निकालना बहुत कठिन है, वहाँ तालाबों द्वारा सिंचाई की जाती है।
- कुल सिंचित भाग का लगभग 6% भाग तालाबों के पानी द्वारा सिंचित है।
- तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश प्रमुख सिंचित राज्य हैं।
- कर्नाटक, पश्चिम बंगाल तथा उत्तर प्रदेश में भी तालाबों द्वारा सिंचाई की जाती है।
1.तमिलनाडु
2.आन्ध्रप्रदेश
3.कर्नाटक
3.नहरों द्वारा सिंचाई
- नहरों द्वारा सिंचाई अधिक सस्ती और आसान है।
- उत्तरी और मध्य भारत में नहरों द्वारा सिंचाई होती है।
- हमारे देश में कुल सिंचित क्षेत्र का लगभग 31% से अधिक भाग नहरों द्वारा ही सिंचित है।
- नहरों द्वारा सिंचाई के सिंचित क्षेत्र उत्तरी भारत के मैदानी भाग-उत्तर प्रदेश, तथा पंजाब, जम्मू और कश्मीर, असम, त्रिपुरा, हरियाणा, ओडिशा, कर्नाटक, प. बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश तथा दक्षिण की नदियों के डेल्टा प्रदेश है।
1.उत्तर प्रदेश
2.आन्ध्र प्रदेश
3.राजस्थान
सिंचाई की नवीनतम प्रौद्योगिकियां
फर्टिगेशन: एक आधुनिक तकनीक है, जिसके अंतर्गत उर्वरक के साथ-साथ सिंचाई की तकनीकी का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें दबाव से बहती जलधारा में उर्वरक घोल प्रविष्ट किया जाता है। फर्टीगेशन में विशिष्ट सिंचाई तकनीक का प्रयोग किया जाता है, इसमें प्रमुख हैं- ड्रिप सिंचाई एवं छिड़काव या स्प्रींकलर सिंचाई पद्धतियां।
ड्रिप सिंचाई: इसे टपक सिंचाई भी कहा जाता है। इस प्रणाली में खेत में पाइप लाइन बिछाकर स्थान-स्थान पर नोजल लगाकर सीधे पौधे की जड़ में बूंद-बूंद करके जल पहुंचाया जाता है। सिंचाई की यह विधि रेतीली मृदा, उबड़-खाबड़ खेत तथा बागों के लिए अधिक उपयोगी है।
छिड़काव सिंचाई: सिंचाई की इस विधि में पाइप लाइन द्वारा पौधों पर फब्बारों के रूप में पानी का छिड़काव किया जाता है। कपास, मूंगफली, तंबाकू, आदि के लिए यह विधि काफी उपयोगी है। रेगिस्तानी क्षेत्रों के लिए यह विधि उपयुक्त है। इससे 70% तक जल की बचत की जा सकती है।
रेन वाटर हारवेस्टिंग: वर्षा के जल (जो अपवाह क्षेत्र में जाकर नष्ट हो जाते हैं) को एकत्रित करके सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इसी प्रकार ऐसे जल को बोरिंग द्वारा भूमि के अंदर जाने दिया जाता है ताकि भूमिगत जल का स्तर ऊपर की ओर बना रहे। वर्तमान में घरों की छतों पर विशाल पात्रों में जल को एकत्रित कर एवं विविध प्रकार के पक्के लघु जलाशय बनाकर भी वर्षा जल की कुछ मात्रा को एकत्रित किया जा रहा है। रेनवाटर हारवेस्टिंग की तकनीक भू-क्षरण और बाढ़-नियंत्रण में भी सहायक होती है।
वाटरशेड प्रबंधन: वाटरशेड प्रबंध की नीति पारिस्थितिकी के अनुरूप लघु स्तरीय प्रादेशिक विकास की नीति है, जिसके केंद्र में स्थानीय जल व भूमि संसाधन हैं। इस नीति के अंतर्गत लघु स्तर पर जल विभाजक रेखा की मदद से वाटरशेड प्रदेशों का सीमांकन कर लिया जाता है। प्रत्येक वाटरशेड प्रदेश की मृदा और जलीय उपलब्धता, आदि विशेषताओं का आकलन किया जाता है। इस प्रकार वाटरशेड प्रबंध पद्धति के अंतर्गत कृषि विकास, मृदा संरक्षण के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण के भी लक्ष्य को प्राप्त किया जाता है।
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