उपराष्ट्रपति
भारत के संविधान का अनुच्छेद 63 यह उपबंध करता है कि भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा। अनुच्छेद 64 और 89 यह उपबंध करते हैं कि भारत का उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होगा और अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा। संवैधानिक व्यवस्था में उपराष्ट्रपति पद का धारक कार्यपालिका का भाग है परंतु राज्य सभा के सभापति के रूप में वह संसद का भाग है। इस प्रकार उपराष्ट्रपति की दोहरी भूमिका होती है और वह दो अलग-अलग और पृथक पद धारण करता है।
अनुच्छेद-65 में
कहा
गया
है
कि
उपराष्ट्रपति
निम्न
परिस्थितियों
में
राष्ट्रपति
का
पद
ग्रहण
कर
सकता
है-
राष्ट्रपति की
मृत्यु,
पदत्याग,
महाभियोग
अथवा
अन्य
किसी
प्रकार
से
पदच्युत
होने
तथा
रोग
या
अनुपस्थिति
के
कारण
कार्यभार
संचालन
में
असमर्थ
होने
पर।
जब उपराष्ट्रपति,
राष्ट्रपति
के
रूप
में
कार्य
करेगा
या
राष्ट्रपति
के
कृत्यों
का
निर्वहन
करेगा,
तब
वह
राज्यसभा
के
सभापति
के
पद
के
कर्तव्यों
का
पालन
नहीं
करेगा।
जब उपराष्ट्रपति
राष्ट्रपति
के
रूप
में
उसके
कार्यों
का
निर्वहन
करेगा,
तब
उसे
राष्ट्रपति
की
सम्पूर्ण शक्तियां और
उन्मुक्तियां
उपलब्ध
होगी।
संविधान
की
द्वितीय
सूची
के
अनुसार
जब
कभी
उपराष्ट्रपति,
राष्ट्रपति
का
पद
ग्रहण
करता
है
तो
उसे
राष्ट्रपति
पद
के
वेतन
भत्ते
तथा
विशेषाधिकार
सभी
प्राप्त
होते
हैं।
उपराष्ट्रपति
केवल
छः
महीने
तक
ही
राष्ट्रपति
का
पद
संभाल
सकता
है।
योग्यता:उपराष्ट्रपति के रूप में किसी व्यक्ति के निर्वाचन के लिए पात्रता की शर्ते वही हैं, जो राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए हैं।
- भारत का नागरिक
- पैंतीस वर्ष से ऊपर की आयु
- राज्य सभा का सदस्य निर्वाचित होने के योग्य हो
- निर्वाचन के समय किसी प्रकार के लाभ के पद पर नही हो।
- वह संसद के किसी सदन या राज्य के विधान मण्डल के किसी सदन का सदस्य नही हो सकता और यदि ऐसा व्यक्ति उपराष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है, तो वह समझा जाएगा कि उसने उस सदन का अपना स्थान अपे पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है। (अनुच्छेद 66)।
निर्वाचन प्रक्रिया: उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक-मंडल के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा किया जाता है (अनुच्छेद-66)। उपराष्ट्रपति का चुनाव भी अप्रत्यक्ष प्रणाली के आधार पर किया जाता है। संविधान के ग्यारहवें संशोधन (1961) के अनुसार, अब आवश्यक नहीं है। उपराष्ट्रपति के चुनाव संबंधी विवाद सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुलझाये जाते हैं।
1.उपराष्ट्रपति पद की पदावधि पांच वर्षों की होती है। उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकता है।
2.उपराष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए संकल्प या राज्य सभा में पेश किया जाता है, लेकिन उपराष्ट्रपति को पद से हटाने का संकल्प राज्यसभा में पेश करने के पहले उसकी सूचना उन्हें 14 दिन पूर्व देना आवश्यक है। राज्यसभा में संकल्प पारित होने के बाद उसे अनुमोदन के लिए लोकसभा को भेजा जाता है। यदि लोकसभा संकल्प को अनुमोदित कर देती है तो उपराष्ट्रपति को पद से हटा दिया जाता है। कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने की स्थिति में उपराष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा केवल उसी प्रक्रिया के तहत हटाया जा सकेगा, जिस प्रक्रिया से संविधान में राष्ट्रपति पर महाभियोग स्थापित करने का प्रावधान है।
राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते समय उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति को मिलने वाली वेतन तथा सभी सुविधाओं का उपभोग करता है।
शपथ: उपराष्ट्रपति अपने पद की शपथ राष्ट्रपति अथवा उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष लेता है।
भारत के उपराष्ट्रपति के कार्य: राष्ट्रपति के पद में आकस्मिक रिक्ति के दौरान या उसकी अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति का राष्ट्रपति के रूप में कार्य करना या उसके कृत्यों का निर्वहन:-
- राष्ट्रपति की मृत्यु, पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से उसके पद में हुई रिक्ति की दशा में उपराष्ट्रपति उस तारीख तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा जिस तारीख को ऐसी रिक्ति को भरने के लिए इस अध्याय के उपबंधों के अनुसार निर्वाचित नया राष्ट्रपति अपना पद ग्रहण करता है।
- जब राष्ट्रपति अनुपस्थिति, बीमारी या अन्य किसी कारण से अपने कृत्यों का निर्वहन करने में असमर्थ है तब उपराष्ट्रपति उस तारीख तक उसके कृत्यों का निर्वहन करेगा जिस तारीख को राष्ट्रपति अपने कर्तव्यों को फिर से संभालता है।
उपराष्ट्रपति को उस अवधि के दौरान और उस अवधि के संबंध में, जब वह राष्ट्रपति के रूप में इस प्रकार कार्य कर रहा है या उसके कृत्यों का निर्वहन कर रहा है, राष्ट्रपति की सभी शक्तियाँ और उन्मुक्तियाँ होंगी तथा वह ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का जो संसद, विधि द्वारा, अवधारित करे और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं, हकदार होगा।
राज्यसभा के सभापति के रूप में: उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति के रूप में कार्य करता है। राज्यसभा के सभापति का कार्य लोकसभा के अध्यक्ष से मिलता-जुलता है। वह सदन के विधेयकों पर बोलने के लिए सदस्यों को बुलाता है और बहस समाप्त होने पर मतदान कराता है। इसके पश्चात् मतदान के परिणाम की घोषणा करता है कि विधेयक पारित हुआ या नहीं। विधेयक पर मतों की स्थिति समान हो जाने पर वह अपना निर्णायक मत
देता
है।
वह
यह
भी
निर्णय
देता
है
कि
कौन-से
प्रश्न
सदन
में
पूछने
योग्य
हैं
और
कौन
से
नहीं।
जब
विधेयक
राज्यसभा
द्वारा
पारित
कर
दिए जाते हैं
तो
विधेयकों
पर
उसके
हस्ताक्षर
आवश्यक
हैं।
वह
सदन
के
सदस्यों
के
विशेषाधिकारों
की
रक्षा
करता
है।
उपराष्ट्रपति का नाम | कार्यकाल अवधि |
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन | 13 मई 1952 से 14 मई 1957 तक |
डॉ. जाकिर हुसैन | 13 मई 1962 से 12 मई 1967 तक |
वराहगिरि वेंकटगिरि | 13 मई 1967 से 03 मई 1969 तक |
गोपाल स्वरूप पाठक | 31 अगस्त 1969 से 30 अगस्त 1974 तक |
बी.डी. जत्ती | 31 अगस्त 1974 से 30 अगस्त 1979 तक |
मोहम्मद हिदायतुल्लाह | 31 अगस्त 1979 से 30 अगस्त 1984 तक |
आर. वेंकटरमण | 31 अगस्त 1984 से 27 जुलाई 1987 तक |
डॉ. शंकर दयाल शर्मा | 03 सितम्बर 1987 से 24 जुलाई 1992 तक |
के. आर. नारायणन | 21 अगस्त 1992 से 24 जुलाई 1997 तक |
कृष्णकांत | 21 अगस्त 1997 से 27 जुलाई 2002 तक |
भैरों सिंह शेखावत | 19 अगस्त 2002 से 21 जुलाई 2007 तक |
मोहम्मद हामिद अंसारी | 11 अगस्त 2007 से 19 जुलाई 2017 तक |
वेंकैया नायडू | 11 अगस्त 2017 से अब तक |
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