पदार्थ एवं उसकी प्रकृति(Matter and its nature)
विज्ञान की वह शाखा हैं जिसके अंतर्गत पदार्थों के गुण ,संघटन ,संरचना तथा उनमें होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता हैं। Chemistry शब्द की उत्पत्ति मिस्र के प्राचीन शब्द "कीमिया (Chemi)" से हुई हैं। लेवायसिये (Lavoisier) को रसायन विज्ञान का जनक कहा जाता हैं।
पदार्थ (Matter): कोई भी वस्तु जो स्थान घेरती हैं ,जिसमे द्रव्यमान होता हैं और जो अपनी संरचना में परिवर्तन का विरोध करती हैं उसे पदार्थ कहते हैं। जैसे-पानी,बालू,ईट, टेवल,पेन,कॉपी,बुक आदि।
- ताप एवं दाब में परिवर्तन करके किसी भी पदार्थ की अवस्था को बदला जा सकता है। परंतु कुछ ऐसे ही पदार्थ है जिसके ऊपर ताप एवं दाब लगाकर कोई भी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए लकड़ी, पत्थर इसके ऊपर ताप एवं दाब का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
- जल तीनों भौतिक अवस्था में रह सकता है।
- कुछ पदार्थ गर्म करने पर ठोस से गैस में बदल जाता है, इस क्रिया को उर्ध्वपातन कहते हैं। उदाहरण के लिए --- आयोडीन, कपूर, नेप्थलीन।
- पदार्थ की तीनों भौतिक अवस्थाओं में निम्न रूप से साम्य होता है-ठोस-द्रव -गैस। उदाहरण-जल
ठोस(Solid): वह भौतिक अवस्था जिसका आकर एवं आयतन दोनों निश्चित होते है ठोस कहलाता हैं। उदाहरण के लिए बर्फ, ईट,टेबल आदि।
द्रव(Liquid): वह भौतिक अवस्था जिसका आकार अनिश्चित एवं आयतन निश्चित हो द्रव कहलाता हैं। उदाहरण के लिए पानी,तेल,अल्कोहल आदि।
गैस(Gas): वह भौतिक अवस्था जिसका आकर एवं आयतन दोनों अनिश्चित हो गैस कहलाता हैं। उदाहरण के लिए हवा आदि।
पदार्थ की चौथी अवस्था प्लाज्मा एवं पाँचवी अवस्था बोस-आइन्सटीन कंडनसेट है।
तत्व वह शुद्ध पदार्थ है, जिसे किसी भी ज्ञात भौतिक एवं रसायन वीडियो से नौ तो दो या दो से अधिक पदार्थ में विभाजित किया जा सकता है और ना ही आंसर पदार्थ के योग से बनाया जा सकता है। उदाहरण के लिए सोना चांदी ऑक्सीजन आदि।
वह शुद्ध पदार्थ है जो रासायनिक रूप से दो या दो से अधिक तत्व के निश्चित अनुपात में मिलाकर रासायनिक विधि द्वारा बनाया जा सकता है। यौगिक के गुण उनके अवयवी तत्वों के गुणों से अलग होता है। उदाहरण के लिए जल, सल्फ्यूरिक अम्ल, अमोनिया आदि।
वह पदार्थ जो दो या दो से अधिक तत्व या यौगिकों के किसी भी अनुपात में मिलाकर बनाया जा सकता है। सरल विधि द्वारा पुनः प्रारंभिक तत्व एवं यौगिकौं में बदला जा सकता है। उदाहरण के लिए हवा। मिश्रण को दो भागों में विभाजित किया गया है।
निश्चित अनुपात में अवयवों के मिलने से जो मिश्रण का निर्माण होता है उसे समांग मिश्रण कहते हैं।इसके प्रत्येक भाग के गुण धर्म एक समान होते है। जैसे-चीनी या नमक का जलीय विलयन, हवा आदि।
विषमांगी मिश्रण:
अनिश्चित अनुपात में अवयवों के मिलने से जो मिश्रण का निर्माण होता है उसे विषमांगी मिश्रण करते हैं। इसके प्रत्येक भाग के गुण धर्म एवं संगठन भिन्न-भिन्न होते है। जैसे बारूद, कुहासा आदि।
मिश्रण को अलग करने के लिए कुछ प्रमुख विधियां
आसवन विधि(Distillation): जब दो पदार्थों के क्वथनांकौं में अंतर अधिक होता है, तो उसके मिश्रण को आसवन विधि से अलग किया जाता है। यह द्रवऔं के मिश्रण को अलग करने की विधि है। इस विधि का 2 भाग होता है। प्रथम भाग वाष्पीकरण एवं दूसरा भाग संघनन कहलाता है।
रवाकरण(Crystallisation): इस विधि के द्वारा अकार्बनिक ठोस मिश्रण को अलग किया जाता है इस विधि में औषध ठोस मिश्रण को उचित विलायक के साथ मिलाकर गर्म किया जाता है तथा गर्म अवस्था में ही कीप द्वारा छीन लिया जाता है। सोने के बाद मिलियन को कम ताप पर धीरे-धीरे ठंडा किया जाता है। ठंडा होने पर शुद्ध पदार्थ क्रिस्टल के रूप में विलियम से अलग हो जाता है।
उर्ध्वपातन(Sublimation): इस विधि द्वारा दो ऐसे ठोसो के मिश्रण को अलग करते है, जिसमें एक ठोस उर्ध्वपातित हो दूसरा नही। इस विधि से नेफ्थलीन, अमोनियम क्लोराइड, कर्पूर, ऐंथ्रासीन आदि को अलग करते है।
आंशिक आसवन(Fractional distillation): इस विधि से वैसे मिश्रित द्रव को अलग करते हैं जिनके पटना अंकों में बहुत कम अंतर होता है। खनिज तेल या कच्चे तेल में से शुद्ध डीजल ,पेट्रोल, मिट्टी का तेल, कोलतार इत्यादि को अलग किया जाता है।
भाप आसवन(Steam distillation): इस विधि से कार्बनिक मिश्रण को शुद्ध किया जाता है, जो जल में और अघुलनशील होता है, संतु भाव के साथ व सुशील होता है। इस विधि द्वारा विशेष रुप से उन पदार्थों का शुद्धिकरण किया जाता है जो अपने क्वथनांक पर अब घटित हो जाते हैं। उदाहरण के लिए -एसीटोन, मेथिल अल्कोहल।
वर्णलेखन(Chromatography): इस विधि द्वारा किसी भी मिश्रण के विभिन्न घटकों की अवशोषण क्षमता अलग-अलग होती है तथा वे किसी अधिशोषक पदार्थ में विभिन्न दूरियों पर अवशोषित होते हैं, इस प्रकार में पृथक कर लिए जाते हैं।
रवाकरण(Crystallisation): इस विधि के द्वारा अकार्बनिक ठोस मिश्रण को अलग किया जाता है इस विधि में औषध ठोस मिश्रण को उचित विलायक के साथ मिलाकर गर्म किया जाता है तथा गर्म अवस्था में ही कीप द्वारा छीन लिया जाता है। सोने के बाद मिलियन को कम ताप पर धीरे-धीरे ठंडा किया जाता है। ठंडा होने पर शुद्ध पदार्थ क्रिस्टल के रूप में विलियम से अलग हो जाता है।
उर्ध्वपातन(Sublimation): इस विधि द्वारा दो ऐसे ठोसो के मिश्रण को अलग करते है, जिसमें एक ठोस उर्ध्वपातित हो दूसरा नही। इस विधि से नेफ्थलीन, अमोनियम क्लोराइड, कर्पूर, ऐंथ्रासीन आदि को अलग करते है।
आंशिक आसवन(Fractional distillation): इस विधि से वैसे मिश्रित द्रव को अलग करते हैं जिनके पटना अंकों में बहुत कम अंतर होता है। खनिज तेल या कच्चे तेल में से शुद्ध डीजल ,पेट्रोल, मिट्टी का तेल, कोलतार इत्यादि को अलग किया जाता है।
भाप आसवन(Steam distillation): इस विधि से कार्बनिक मिश्रण को शुद्ध किया जाता है, जो जल में और अघुलनशील होता है, संतु भाव के साथ व सुशील होता है। इस विधि द्वारा विशेष रुप से उन पदार्थों का शुद्धिकरण किया जाता है जो अपने क्वथनांक पर अब घटित हो जाते हैं। उदाहरण के लिए -एसीटोन, मेथिल अल्कोहल।
वर्णलेखन(Chromatography): इस विधि द्वारा किसी भी मिश्रण के विभिन्न घटकों की अवशोषण क्षमता अलग-अलग होती है तथा वे किसी अधिशोषक पदार्थ में विभिन्न दूरियों पर अवशोषित होते हैं, इस प्रकार में पृथक कर लिए जाते हैं।
पदार्थ की अवस्था में परिवर्तन(Change in state of matter)
द्रवणांक(Melting Point):गर्म करने पर जब ठोस पदार्थ द्रव अवस्था में परिवर्तित होते हैं, तो उनमें से अधिकांश में परिवर्तन एक विशेष दाब पर तथा नियत ताप पर होता है उस नियत ताप को उस वस्तु का द्रवणांक कहते हैं।
हिमांक(Freezing Point): किसी विशेष दाब पर व नियत ताप पर जिस पर कोई द्रव जमता है या ठोस में परिवर्तित होता है वह पॉइंट हिमांक कहलाता है।
- सामान्यतः पदार्थ का द्रवणांक एवं हिमांक सामान होता है। उदाहरण के लिए बर्फ का द्रवणांक एवं हिमांक जीरो डिग्री सेल्सियस हैं।
- अशुद्धियों की उपस्थिति में पदार्थ का हिमांक और द्रवणांक दोनों कम हो जाता है।
उन पदार्थो के द्रवणांक दाब बढ़ाने पर बढ़ जाते है, जिनका आयतन गलने पर बढ़ जाता है। जैसे-मोम, ताँबा आदि।
उन पदार्थो के द्रवणांक दाब बढ़ाने से घट जाता है, जिनका आयतन गलने पर घट जाता है। जैसे-बर्फ, ढलवाँ लोहा आदि।
वाष्पीकरण(Vaporization): द्रव से वाष्प में परिणत होने की क्रिया ‘वाष्पीकरण’ कहलाती है। यह दो प्रकार से होती है। (1) वाष्पन (2) क्वथनांक
वाष्पन(Evaporation):क्वथनांक से कम तापमान पर द्रव के वाष्प में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को वाष्पन कहते है।
वाष्पन की क्रिया निम्न बातों पर निर्भर करती है-
- क्वथनांक जितना कम होगा, वाष्पन की क्रिया उतनी ही अधिक तेजी से होगी।
- द्रव का ताप अधिक होने से वाष्पन अधिक होगा।
- क्षेत्रफल अधिक होने पर वाष्पन तेजी से होगा।
- द्रव के पृष्ठ पर वायु बदलने पर वाष्पन तेज होगा।
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