न्यायपालिकाभारतीय संविधान एकीकृत न्यायिक व्यवस्था की स्थापना करता है। इसका अर्थ यह है कि विश्व के अन्य संघीय देशों के विपरीत भारत में अलग से प्रांतीय स्तर के न्यायालय नहीं हैं। भारत में न्यायपालिका की संरचना पिरामिड की तरह है जिसमें सबसे ऊपर सर्वोच्च न्यायालय फिर उच्च न्यायालय तथा सबसे नीचे जिला और अधीनस्थ न्यायालय है। नीचे के न्यायालय अपने ऊपर के न्यायालयों की देखरेख में काम करते हैं।



भारत का सर्वोच्च न्यायालय(अनुच्छेद-124)

  • वर्ष 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ। साथ ही भारत का उच्चतम न्यायालय भी अस्तित्व में आया एवं इसकी पहली बैठक 28 जनवरी, 1950 को हुई।
  • उच्चतम न्यायालय की स्थापना, गठन, अधिकार क्षेत्र, शक्तियों के विनियमन से संबंधित विधि निर्माण की शक्ति भारतीय संसद को प्राप्त है। 
  • उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित कानून भारत के सभी न्यायालयों के लिये बाध्यकारी है।
  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को सामान्य तौर पर मूल अधिकार क्षेत्र, अपीलीय क्षेत्राधिकार और सलाहकार क्षेत्राधिकार में वर्गीकृत किया जा सकता है। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय के पास अन्य कई शक्तियाँ हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय एक संघीय न्यायालय, अपील का सर्वोच्च न्यायालय, नागरिकों के मौलिक अधिकारों का प्रदाता और संविधान का संरक्षक है।

सर्वोच्च न्यायालय का संगठन 

  • मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा होती है। 
  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों बनने के लिए न्यूनतम आयु सीमा निर्धारित नही की गयी है। एक बार नियुक्त होने के बाद इनके अवकाश ग्रहण करने की आयु सीमा 65 वर्ष है। 
  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश साबित कदाचार तथा असमर्थता के आधार पर संसद के प्रत्येक सदन में विेशेष बहुमत से पारित समावेदन के आधार पर राष्ट्रपति के द्वारा हटाये जा सकते है। 
  • उच्चतम न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा 34 अन्य न्यायाधीश(2009 में 31 से बढ़ाकर 34) होते है। 
  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का पद एवं गोपनीयता की शपथ राष्ट्रपति दिलाता है।
  • संसद उन्हें विनियमित करने के लिये अधिकृत है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। यदि राष्ट्रपति आवश्यक समझता है तो मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिये सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सलाह ली जाती है।
  • अन्य न्यायाधीशों को राष्ट्रपति द्वारा मुख्य न्यायाधीश एवं सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के ऐसे अन्य न्यायाधीशों के साथ परामर्श के बाद नियुक्त किया जाता है, यदि वह आवश्यक समझता है। मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त किसी अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में मुख्य न्यायाधीश के साथ परामर्श करना अनिवार्य है।
  • जब भारतीय न्यायिक पद्धति में लोकहित मुकादमा लाया गया तब भारत के मुख्य न्यायमूर्ति पी0एन0 भगवती थे। 
  • वर्तमान में जस्टिस नाथुलापति वेंकट रमन्ना सर्वोच्च न्यायालय के 48वें मुख्य न्यायधीश बन गए हैं.
नोटः-मूल रूप से सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या 8 (एक मुख्य न्यायाधीश एवं सात अन्य न्यायाधीश) निर्धारित की गई थी।

न्यायाधीश के लिए योग्यताएँ

  • उसे भारत का नागरिक होना चाहिये।
  • वह किसी उच्च न्यायालय अथवा दो या दो से अधिक न्यायालयों में लगातार कम से कम 5 वर्षो तक न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुका हो। या किसी उच्च न्यायालय या न्यायालयों में लगातार 10 वर्षो तक अधिवक्ता रह चुका हो। या राष्ट्रपति की दृष्टि में कानून का उच्च कोटि का ज्ञाता हो। 
  • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिये संविधान में न्यूनतम आयु निर्धारित नहीं की गई है।
  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश अवकाश प्राप्त करने के बाद भारत में किसी भी न्यायालय या किसी भी अधिकारी के सामने वकालत नही कर सकते है। 

न्यायाधीशों का कार्यकाल

  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश एक बार नियुक्ति होने के बाद इनके अवकाश ग्रहण करने की आयु सीमा 65 वर्ष है। 
  • संसद की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा उसे पद से हटाया जा सकता है।
  • वह राष्ट्रपति को लिखित त्यागपत्र देकर पद त्याग सकता है।
  • न्यायाधीशों को अपदस्थ करना
  • राष्ट्रपति के आदेश से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को पद से हटाया जा सकता है। राष्ट्रपति उसे हटाने का आदेश तभी जारी कर सकता है, जब इस प्रकार हटाए जाने हेतु संसद द्वारा उसी सत्र में ऐसा संबोधन किया गया हो।
  • इस आदेश को संसद के दोनों सदस्यों के विशेष बहुमत (अर्थात् सदन की कुल सदस्यता का बहुमत एवं सदन में उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों का दो-तिहाई) का समर्थन प्राप्त होना चाहिये। उसे हटाने का आधार दुर्व्यवहार या अक्षमता होना चाहिये।
  • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने के संबंध में महाभियोग की प्रक्रिया का उपबंध करता है
वेतन एवं भत्ते
  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन, भत्ता तथा पेंशन संचित निधि से भारित होते है।
  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन, भत्ते, विशेषाधिकार, अवकाश और पेंशन समय-समय पर संसद द्वारा निर्धारित किये जाते हैं। वित्तीय आपातकाल के अतिरिक्त नियुक्ति के बाद इनमें कटौती नहीं की जा सकती है।
  • उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का वेतन रू0 2,80,000 एवं अन्य न्यायाधीश का वेतन रू0 2,50,000 है।

सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियाँ एवं क्षेत्राधिकार


1. प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार

एक संघीय न्यायालय के रूप में सर्वोच्च न्यायालय भारतीय संघ की विभिन्न इकाइयों के बीच विवादों का फैसला करता है। अधिक विस्तृत रूप से देखें तो निम्न के मध्य किसी भी विवाद का निर्णय करता है-
  • केंद्र व एक या अधिक राज्यों के मध्य, या
  • केंद्र एवं कोई राज्य या राज्यों का एक तरफ होना तथा एक अथवा अधिक राज्यों का दूसरी तरफ होना, या
  • दो या अधिक राज्यों के मध्य ऐसे विवाद में, जिसमें उनके वैधानिक अधिकारो को प्रश्न निहित है। 
  • मूल क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत उच्चतम न्यायालय उसी विवाद को निर्णय के लिए स्वीकार करेगा, जिसमें किसी तथ्य या विधि का प्रश्न शामिल है। 
2.मौलिक अधिकारों का रक्षक
  • भारत का उच्चतम न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का रक्षक है। अनुच्छेद 32 में उच्चतम न्यायालय को विशेष रूप से उत्तरदायी ठहराता है कि वह मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए आवश्यक कार्रवाई करें। सर्वोच्च न्यायालय को अधिकार प्राप्त है कि वह बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, उत्प्रेषण, प्रतिषेध एवं अधिकार प्रेच्छा आदि पर न्यायादेश जारी कर विक्षिप्त नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करे।
  • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय का न्यायादेश अधिकार क्षेत्र पर विशेषाधिकार नहीं है। उच्च न्यायालयों को भी मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिये रिट जारी करने का अधिकार है।
  • इससे संबंधित सर्वोच्च न्यायालय का मूल अधिकार क्षेत्र इस अर्थ में है कि एक पीड़ित नागरिक सीधे सर्वोच्च न्यायालय में जा सकता है, ज़रूरी नहीं कि यह कार्य याचिका के माध्यम से किया जाए।
3.अपीलीय क्षेत्राधिकार 
उच्चतम न्यायालय अपील का सर्वोच्च न्यायालय है। कोई भी व्यक्ति उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। लेकिन उच्च न्यायालय को यह प्रमाणपत्र देना पड़ता है कि वह मुकदमा सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने लायक है अर्थात् उसमें संविधान या कानून की व्याख्या करने जैसा कोई गंभीर मामला उलझा है। अगर फौजदारी के मामले में निचली अदालत किसी को फाँसी की सजा दे दे, तो उसकी अपील सर्वोच्च या उच्च न्यायालय में की जा सकती है। यदि किसी मुकदमे में उच्च न्यायालय अपील की आज्ञा न दे तब भी सर्वोच्च न्यायालय के पास यह शक्ति है कि वह उस मुकदमे में की गई अपील को विचार के लिए स्वीकार कर ले। अपीली क्षेत्राधिकार का मतलब यह है कि सर्वोच्च न्यायालय पूरे मुकदमे पर पुनर्विचार करेगा और उसके कानूनी मुद्दों की दुबारा जाँच करेगा। यदि न्यायालय को लगता है कि कानून या संविधान का वह अर्थ नहीं है जो निचली अदालतों ने समझा तो सर्वोच्च न्यायालय उनके निर्णय को बदल सकता है तथा इसके साथ उन प्रावधानों की नई व्याख्या भी दे सकता है। उच्च न्यायालयों को भी अपने नीचे की अदालतों के निर्णय के विरुद्ध अपीली क्षेत्राधिकार है। इसके अन्तर्गत निम्न प्रकार के प्रकरण आते है:-
  • संवैधानिक मामलों में अपील
  • दीवानी मामलों में अपील
  • आपराधिक मामलों में अपील
  • विशेष अनुमति द्वारा अपील

4.सलाहकार या परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार 

मौलिक और अपीली क्षेत्राधिकार के अतिरिक्त सर्वोच्च न्यायालय का परामर्श संबंधी क्षेत्राधिकार भी है। इसके अनुसार, भारत का राष्ट्रपति लोकहित या संविधान की व्याख्या से संबंधित किसी विषय को सर्वोच्च न्यायालय के पास परामर्श के लिए भेज सकता है। लेकिन न तो सर्वोच्च न्यायालय ऐसे किसी विषय पर सलाह देने के लिए बाध्य है और न ही राष्ट्रपति न्यायालय की सलाह मानने को। अनुच्छेद 143 के तहत संविधान राष्ट्रपति को दो श्रेणियों के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय की राय लेने का अधिकार देता है:
  • सार्वजनिक महत्त्व के किसी मामले पर विधिक प्रश्न उठने पर अथवा प्रश्न उठने की संभावना पर।
  • किसी पूर्व संवैधानिक संधि, समझौते, प्रसंविदा आदि सनद संबंधी मामलों पर कोई विवाद उत्पन्न होने पर।
अनुच्छेद 137 ’’उच्चतम न्यायालय को अपने द्वारा सुनाए गए निर्णय या दिए गए आदेश का पुनरावलोकन करने की शक्ति होगी।’’
अनुच्छेद 144 ‘‘भारत के राज्य-क्षेत्र के सभी सिविल और न्यायिक प्राधिकारी उच्चतम न्यायालय की सहायता से कार्य करेंगे।’’

5.अभिलेख का न्यायालय

संविधान का अनुच्छेद-129 में उच्चतम न्यायालय को अभिलेख न्यायालय का स्थान दिया गया है। इसका आशय यह है कि इस न्यायालय के निर्णय को सर्वोपरि मानकर स्वीकार किया जायेगा तथा इस निर्णय की प्रामणिकता के विषय पर प्रश्न नही किया जायेगा।


6.पुनर्विचार संबंधी क्षेत्राधिकार
संविधान के अनुच्छेद 137 के अनुसार उच्चतम न्यायालय को यह अधिकार प्राप्त है कि वह स्वयं द्वारा दिये गये निर्णय या आदेश पर पुनर्विचार कर सके तथा यदि उचित समझे तो उसमें आवश्यक परिवर्तन कर सकता है। 


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