संघीय कार्यपालिका

भारतीय संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है।
भारत में संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया है। अतः राष्ट्रपति नाममात्र की कार्यपालिका है तथा प्रधानमंत्री तथा उसका मंत्रिमण्डल वास्तविक कार्यपालिका है। 


संविधान के भाग-V के अध्याय-1 (अनुच्छेद-52 से 78 तक) के अंतर्गत संघीय कार्यपालिका का उल्लेख किया गया है। भारत की संघीय कार्यपालिका राष्ट्रपतिउप-राष्ट्रपतिप्रधानमंत्री एवं मंत्रिपरिषद से मिलकर बनती है। संविधान के अनुच्छेद-73 के अधीन संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार उन विषयों तक होगा, जिनके बारे में संसद कानून बना सकती है और उन समस्त  अधिकारों के प्रयोग तक होगा जो किसी अंतरराष्ट्रीय संधि अथवा समझौते के आधार पर भारत सरकार को प्राप्त होंगे।

राष्ट्रपति

भारतीय संघ की कार्यपालिका के प्रधान की राष्ट्रपति कहा जाता है (अनुच्छेद-52)। हमारे संविधान में राष्ट्रपति के पद को सर्वाधिक सम्मान, गरिमा एवं प्रतिष्ठा प्राप्त है। यह राष्ट्र का अध्यक्ष होता है। 

संघ की सम्पूर्ण कार्यपालिका शक्ति उसी में निहित होती है और भारत सरकार की समस्त कार्यपालिका कार्यवाही राष्ट्रपति के नाम से ही संचालित की जाती है। भारत में संसदीय प्रणाली होने के कारण ब्रिटेन की साम्राज्ञी की भांति भारत का राष्ट्रपति कार्यपालिका का औपचारिक प्रधान होता है और मंत्रिमण्डल वास्तविक कार्यकारी। 

राष्ट्रपति की स्थिति वैधानिक अध्यक्ष की है तथा उनका पद धुरी के समान है जो राजनीतिक व्यवस्था को संतुलित करता है।  राष्ट्रपति अपने अधिकारों का प्रयोग स्वयं या अपने अधीनस्थ सरकारी अधिकारियों के माध्यम से करता है।

पद के लिए योग्यता:

संविधान के अनुच्छेद-58 के अनुसार कोई भी व्यक्ति राष्ट्रपति पद के लिए योग्य तब होगा, जब वह
1. भारत का नागरिक होना चाहिए।
2. पैंतीस (35) वर्ष की आयु पूर्ण होनी चाहिए।
3. लोक सभा का सदस्य होने के लिए अर्हित होना चाहिए।
4. भारत सरकार या किसी भी राज्य सरकार के अधीन या किसी भी स्थानीय या अन्य प्राधिकरण के अधीनउक्त किसी भी सरकार के नियंत्रणाधीन किसी भी लाभ का पदधारी नहीं होना चाहिएतथापिराष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति का पदधारी या किसी भी राज्य के राज्यपाल का पदधारी या केन्द्र या राज्य मंत्री का पदधारी अभ्यर्थी हो सकता हैएवं निर्वाचन लड़ने का पात्र होगा।

राष्ट्रपति का निर्वाचन
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अधीन राष्ट्रपति के पद का निर्वाचन कराने का अधिकार भारत निर्वाचन आयोग में निहित है।

राष्ट्रपति का चयन एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता हैजिसमें संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य एवं राज्यों की विधान सभाओं एवं साथ ही राष्ट्रीय राजधानीदिल्ली क्षेत्र तथा संघ शासित क्षेत्रपुदुचेरी के निर्वाचित सदस्य सम्मिलित होते हैं। [भारत के संविधान का अनुच्छेद 54]

राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीति
(1)जहां तक साध्य होराष्ट्रपति के निर्वाचन में भिन्नभिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व के मान में एकरूपता होगी।

(2)राज्यों में आपस में ऐसी एकरूपता तथा समस्त राज्यों और संघ में समतुल्यता प्राप्त कराने के लिए संसद और प्रत्येक राज्य की विधान सभा का प्रत्येक निर्वाचित सदस्य ऐसे निर्वाचन में जितने मत देने का हकदार है उनकी संख्या निम्नलिखित रीति से अवधारित की जाएगीअर्थात्:—

(किसी राज्य की विधान सभा के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के उतने मत होंगे जितने कि एक हजार के गुणित उस भागफल में हों जो राज्य की जनसंख्या को उस विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने पर आए;

(यदि एक हजार के उक्त गुणितों को लेने के बाद शेष पांच सौ से कम नहीं है तो उपखंड () में निर्दिष्ट प्रत्येक सदस्य के मतों की संख्या में एक और जोड़ दिया जाएगा;

(संसद के प्रत्येक सदन के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के मतों की संख्या वह होगी जो उपखंड () और उपखंड () के अधीन राज्यों की विधान सभाओं के सदस्यों के लिए नियत कुल मतों की संख्या कोसंसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने पर आएजिसमें आधे से अधिक भिन्न को एक गिना जाएगा और अन्य भिन्नों की उपेक्षा की जाएगी।

(3)राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होगा।

पदावधि एवं हटाये जाने की स्थिति:राष्ट्रपति की पदावधि पद ग्रहण की तिथि से 05 वर्ष की होती है। 05 वर्ष के पहले राष्ट्रपति की पदावधि दो प्रकार से समाप्त हो सकती है-

  1.  उप-राष्ट्रपति को संबोधित अपने त्यागपत्र द्वारा। 
  2. महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा संविधान के उल्लंघन के आरोप में हटाए जाने पर।(अनुच्छेद 56 और 61)
  3.  राष्ट्रपतिअपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भीतब तक पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है।

पुनर्निर्वाचन के लिए पात्रता: कोई व्यक्ति, जो राष्ट्रपति के रूप में पद धारण करता है अथवा कर चुका है, इस संविधान के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए उस पद हेतु पुनर्निर्वाचन का पात्र होगा।(एक ही व्यक्ति जितनी बार चाहे राष्ट्रपति के पद पर निर्वाचित हो सकता है।)

राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया
(1)जब संविधान के अतिक्रमण के लिए राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाना होतब संसद का कोई सदन आरोप लगाएगा।

(2)ऐसा कोई आरोप तब तक नहीं लगाया जाएगा जब तक कि

(ऐसा आरोप लगाने की प्रस्थापना किसी ऐसे संकल्प में अंतर्विष्ट नहीं हैजो कम से कम चौदह दिन की ऐसी लिखित सूचना के दिए जाने के पश्चात् प्रस्तावित किया गया है जिस पर उस सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम एकचौथाई सदस्यों ने हस्ताक्षर करके उस संकल्प को प्रस्तावित करने का अपना आशय प्रकट किया हैऔर

(उस सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दोतिहाई बहुमत द्वारा ऐसा संकल्प पारित नहीं किया गया है।

(3)जब आरोप संसद के किसी सदन द्वारा इस प्रकार लगाया गया है तब दूसरा सदन उस आरोप की जांच करेगा या कराएगा और ऐसी जांच में उपस्थित होने का तथा अपना प्रतिनिधित्व कराने का राष्ट्रपति को अधिकार होगा।

(4)यदि जांच के परिणामस्वरूप यह घोषित करने वाला संकल्प कि राष्ट्रपति के विरुद्ध लगाया गया आरोप सिद्ध हो गया हैआरोप की जांच करने या कराने वाले सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दोतिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया जाता है तो ऐसे संकल्प का प्रभाव उसके इस प्रकार पारित किए जाने की तारीख से राष्ट्रपति को उसके पद से हटाना होगा।

राष्ट्रपति के पद की रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन संचालित करने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि

(1)राष्ट्रपति की पदावधि की समाप्ति से हुई रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचनपदावधि की समाप्ति से पहले ही पूर्ण कर लिया जाएगा।

(2)राष्ट्रपति की मृत्युपद त्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से हुई उसके पद की रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचनरिक्ति होने की तारीख के पश्चात् यथाशीघ्र और प्रत्येक दशा में छह मास बीतने से पहले किया जाएगा और रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्तिअनुच्छेद 56 के उपबंधों के अधीन रहते हुएअपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की पूरी अवधि तक पद धारण करने का हकदार होगा।

शपथ:- राष्ट्रपति को पद एवं गोपनीयता की शपथ  उच्चतम न्यायालय (सर्वोच्च न्यायालय) के मुख्य न्यायाधीश द्वारा दिलाई जाती है।

राष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी विवादराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधित विवादों का निपटारा उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाता है। निर्वाचन अवैध घोषित होने पर उसके द्वारा किये गये कार्य अवैध नही होते है। चुनाव संबंधी विवाद राष्ट्रपति के चुनाव को जिन आधारों पर चुनौती दी जा सकती है, वे इस प्रकार हैं-

  1. मतदाताओं पर अनुचित दबाव का आरोप,
  2. अवैध तरीके से मत पत्र रद्द किये जाने का आरोप,
  3. राष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित संवैधानिक नियमों की अवहेलना का आरोपतथा;
  4. किसी भी उम्मीदवार का नामांकन पत्र अनुचित ढंग से स्वीकार या रद्द किये जाने का आरोप।

राष्ट्रपति के निर्वाचन की वैधता की चुनौती से संबंधित याचिका वही दायर कर सकता है जो उम्मीदवार हो अथवा निर्वाचक। संविधान के अनुच्छेद 71 में उपबंध है कि राष्ट्रपति या उप-राष्ट्रपति के निर्वाचन से उत्पन्न सभी शंकाओं और विवादों की जांच तथा निपटारा उच्चतम न्यायालय करेगा और उसका निर्णय अंतिम होगा।

उल्लेखनीय है कि 1976 में डॉ. जाकिर हुसैन तथा 1969 में श्री वी.वी. गिरि के चुनावों को उच्चतम न्यायालय ने वैध घोषित किया था। श्री ज्ञानी जैल सिंह के चुनाव के संबंध में जो चुनाव याचिकाएं दायर की गई थीं, उच्चतम न्यायालय द्वारा वे सभी रद्द कर दी गई। 13 दिसंबर, 1983 को उच्चतम न्यायालय ने श्री जैल सिंह के चुनाव की वैध घोषित किया।

वेतन और भत्ते:
संविधानतः राष्ट्रपति को निःशुल्क शासकीय आवास (राष्ट्रपति भवन) उपलब्ध होगा और उसे संसद द्वारा समय-समय पर निश्चित किए जाने वाले वेतन, भत्ते एवं विशेषाधिकार प्राप्त होंगे। पदावधि की समाप्ति के पश्चात् उसे पेंशन दिए जाने संबंधी भी व्यवस्था की गई है। संविधान के अनुच्छेद-59 के अनुसार राष्ट्रपति की उपलब्धियां और भत्ते उसके कार्यकाल में घटाए नहीं जा सकते। वर्तमान में भारत के राष्ट्रपति की वेतन 5 लाख रुपये प्रति माह है। राष्ट्रपति के लिए 9 लाख रूपये वार्षिक पेंशन निर्धारित किया गया है। 
राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष क्यों?
भारत में राष्ट्रपति का निर्वाचन जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप न होकर एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है। इस निर्वाचक मंडल में संसद एवं राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं।

राष्ट्रपति की शक्तियां:
संविधान द्वारा राष्ट्रपति की जो शक्तियां प्रदान की गई हैं, वे अत्यंत विस्तृत एवं व्यापक हैं। अनुच्छेद-53 के अनुसार संघीय कार्यपालिका की सभी शक्तियां राष्ट्रपति में निहित हैं, इनका प्रयोग संविधान के अनुसार या तो राष्ट्रपति स्वयं करता है, या उसके नाम से उसके अधीनस्थ पदाधिकारी करते हैं।

राष्ट्रपति की शक्तियों को निम्नलिखित श्रेणियों में रखा जा सकता है-

कार्यकारी शक्तियां:
कार्यकारी शक्ति का प्राथमिक अर्थ है- विधानमंडल द्वारा अधिनियमित विधियों का कार्यपालन। किंतु आधुनिक राज्य में कार्यपालिका का कार्य उतना सादा नहीं है जितना अरस्तू के युग में था। कार्यपालिका शक्ति की परिधि के परिप्रेक्ष्य में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस प्रकार व्याख्या की गई है- कार्यपालिका कृत्य का क्या अर्थ है और उसकी क्या विवक्षा है, इसकी सर्वग्राही परिभाषा कर पाना संभव नहीं है। विधायी और न्यायिक शक्ति को निकाल देने पर शासकीय कृत्यों में जो भी अवशिष्ट रहता है, सामान्यतः वही कार्यपालिका का कृत्य है। किंतु यह संविधान या किसी अन्य विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए हैं।

कार्यपालिका कृत्य में आते हैं- नीति-निर्धारण और उसकी कार्य में परिणिति, व्यवस्था बनाए रखना, सामाजिक और आर्थिक कल्याण का प्रोन्नयन, विदेश नीति का मार्गदर्शन, राज्यके साधारण प्रशासनकोचलाना या उसका अधीक्षण।

1976 से पूर्व संविधान में यह अभिव्यक्त उपबंध नहीं था कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद द्वारा दिए गए परामर्श के अनुसार कार्य करने के लिए आबद्ध है। 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 से अनुच्छेद 74(1) का संशोधन करके स्थिति स्पष्ट कर डी गयी है कि- राष्ट्रपति को अपनी सहायता और परामर्श देने के लोए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रधान, प्रधानमंत्री होगा और राष्ट्रपति अपने कृत्यों का प्रयोग करने में इनके परामर्श के अनुसार कार्य करेगा।

अर्थात् उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्दिष्ट कुछ मामलों को छोड़कर राष्ट्रपति को किसी मामले में अपने विवेकानुसार कार्य करने की स्वतंत्रता नहीं प्रदान नहीं की गयी है।

राष्ट्रपति की कार्यपालिका संबंधी शक्तियों को मुख्यतः तीन भागों में बांटा जा सकता है-

मंत्रिपरिषद का गठन: अनुच्छेद 74 के अनुसार राष्ट्रपति, संघ की कार्यपालिका शक्ति के संचालन में परामर्श देने के लिए मंत्रिपरिषद का गठन करता है। सामान्यतः राष्ट्रपति ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त करता है, जो लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता हो। प्रधानमंत्री कें परामर्श पर राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्यों की नियुक्ति करता है। प्रायः यह परंपरा रही है कि प्रधानमंत्री, लोकसभा का सदस्य होता है क्योंकि मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है, लेकिन राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि यदि लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल किसी ऐसे व्यक्ति को अपना नेता चुनता है जो संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं है तो राष्ट्रपति ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है लेकिन इस प्रकार नियुक्त किये गये व्यक्ति को 6 माह के अंदर संसद का सदस्य होना पड़ता है। इसी तरह प्रधानमंत्री के परामर्श पर राष्ट्रपति ऐसे व्यक्ति को मंत्रिपरिषद में शामिल कर सकता है, जो संसद सदस्य नहीं है। यदि ऐसा व्यक्ति मंत्रिपरिषद में शामिल किया जाता है, तो उसे छः मास के अंदर संसद के किसी सदन का सदस्य बनना पड़ता है।

नियुक्ति संबंधी शक्ति: संविधान के द्वारा राष्ट्रपति को उच्च पदाधिकारियों को नियुक्त करने तथा उन्हें हटाने की शक्ति प्रदान की गई है। कार्यपालिका का अध्यक्ष होने के नाते राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है और प्रधानमंत्री के परामर्श से अन्य मंत्रियों को नियुक्त करता है। इनके अतिरिक्त राष्ट्रपति निम्नलिखित उच्च पदाधिकारियों की नियुक्ति करता है-

1.     1.भारत का महान्यायवादी,

2.     2.भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक,

3.     3.उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश,

4.     4.राज्य के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश,

5.     5.राज्यों के राज्यपाल,

6.     6.मुख्य निर्वाचन आयुक्त,

7.     7.संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा अन्य सदस्य।

राष्ट्रपति अपने द्वारा नियुक्त प्राधिकारियों तथा अधिकारियों को पदमुक्त भी कर सकता है।

आयोगों का गठनकार्यपालिका संबंधी शक्तियों के अंतर्गत राष्ट्रपति को आयोगों को गठित करने की शक्तियां भी प्रदान की गयी हैं। राष्ट्रपति द्वारा गठित किए जाने वाले आयोग हैं-

1.     1.जल प्रदाय में हस्तक्षेप का अन्वेषण करने के लिए आयोग,

2.     2.वित्त आयोग,

3.     3.संघ लोक सेवा आयोग और राज्यों के समूहों के लिए संयुक्त आयोग

4.     4.अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन पर प्रतिवेदन देने के लिए आयोग,

5.     5.राजभाषा आयोग,

6.     6.भाषायी अल्पसंख्यक आयोग,

7.     7.पिछड़े वर्ग की दशाओं का अन्वेषण करने के लिए आयोग।

विधायी शक्तियां:
भारत का राष्ट्रपति भी संघ की संसद का अभिन्न अंग है। अनुच्छेद 74(1) के अनुसार, राष्ट्रपति विधायी शक्तियों का प्रयोग मंत्रियों की सलाह पर ही कर सकता है। संविधान द्वारा राष्ट्रपति की जो विधायी शक्तियां प्रदान की गई हैं, वे निम्नलिखित हैं-

1.संसद से संबंधित शक्तियां: राष्ट्रपति संसद के सदनों के अधिवेशन बुलाता है, सत्रावसान करता है तथा लोकसभा को भंग कर सकता है। गतिरोध उत्पन्न होने की स्थिति में संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक आहूत करने की भी शक्ति उसे प्राप्त है। 

राष्ट्रपति को लोकसभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात् प्रथम सत्र के आरंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में एक साथ समवेत संसद के दोनों सदनों में अभिभाषण करने की शक्ति प्रदान की गई है।  राष्ट्रपति संसद के किसी एक सदन में या संसद के संयुक्त अधिवेशन में अभिभाषण कर सकता है।

अभिभाषण करने के अधिकार के अतिरिक्त भारत के राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह संसद में उस समय जब विधेयक लम्बित है किसी विधेयक के संबंध में या किसी अन्य विषय के संबंध में किसी भी सदन को संदेश भेज सकता है और उसके संदेश पर यथाशीघ्र विचार करना आवश्यक होता है।

संसद के दोनों सदनों का गठन मुख्यतः निर्वाचन के द्वारा होता है चाहे वह प्रत्यक्ष हो या अप्रत्यक्ष। किंतु राष्ट्रपति को दोनों सदनों में कुछ सदस्यों के नाम निर्दिष्ट करने की शक्ति दी गई है-

1.राष्ट्रपति राज्यसभा में ऐसे 12 व्यक्तियों को मनोनीत कर सकता है जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला और सामाजिक विषयों का विशेष ज्ञान या व्यवहारिक अनुभव हो [अनुच्छेद 80(1)]

2.अनुच्छेद- 331 के अनुसार राष्ट्रपति की यह शक्ति भी प्रदान की गई है कि यदि उसे यह लगता है कि लोकसभा में एंग्लो-इंडियन समुदाय का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है तो वह लोकसभा में उस समुदाय के दो सदस्यों को मनोनीत कर सकता है।

3.वार्षिक वित्तीय बजट और अनुपूरक विवरण। राष्ट्रपति को कुछ प्रतिवेदनों और कथनों को संसद के समक्ष रखने की शक्ति और कुछ कर्तव्यों के माध्यम से वह संसद के सम्पर्क में आता है। राष्ट्रपति का यह कर्तव्य है कि संसद के समक्ष ये दस्तावेज रखवाएं-

  • भारत सरकार के लेखाओं के संबंध में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का प्रतिवेदन।
  • वित्त आयोग की सिफारिश और उसके साथ उन पर की गई कार्यवाही का स्पष्टीकारक ज्ञापन
  • संघ लोक सेवा आयोग का प्रतिवेदन।
  • अनुसूचित जातियों और जनजातियों के विशेष अधिकारी का प्रतिवेदन।
  • पिछड़े वर्ग के आयोग का प्रतिवेदन।
  • भाषाई अल्पसंख्यकों के विशेष अधिकारों का प्रतिवेदन।4.

विधेयक पेश करने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी या सिफारिश:
निम्नलिखित विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी या सिफारिश के बिना संसद में पेश नहीं किये जा सकते-

  • नए राज्यों के निर्माण या वर्तमान राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन संबंधी विधेयक।ऐसे विधान की सिफारिश करने की अनन्य शक्ति राष्ट्रपति की दी गई है जिससे वह ऐसा विधान प्रारंभ करने के पूर्व प्रभावित राज्यों के विचार प्राप्त कर सके।
  • धन विधेयक (अनुच्छेद 110)
  • कोई विधेयकजो सही अर्थों में धन विधेयक नहीं है किंतु जिससे भारत की संचित निधि सेव्यय करना पड़ेगा।[अनुच्छेद 117(3)]
  • जिस कराधान से राज्य का हित होउस कराधान पर प्रभाव डालने वाले विधेयक।
  • अनुच्छेद 304 के अनुसार व्यापार की स्वतंत्रता पर निर्बंधन अधिरोपित करने वाले राज्य विधेयक।

संसद द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद ही कानून बनता है। 

राज्य विधान मंडल द्वारा बनायी जाने वाली विधि के संबंध में राष्ट्रपति की शक्ति:
राज्य विधान मण्डल द्वारा बनायी जाने वाली विधि के सम्बंध में राष्ट्रपति को निम्नलिखित शक्तियां प्राप्त हैं:

  • यदि राज्य विधान मण्डल कोई ऐसा विधेयक पारित करता है जिससे उच्च न्यायालय की अधिकारिता प्रभावित होती है तो राज्यपाल उस विधेयक पर अनुमति नहीं देगा और उसे राष्ट्रपति की अनुमति के लिए आरक्षित कर देगा।
  • राज्य विधान मण्डल द्वारा सम्पत्ति प्राप्त करने के लिए पारित विधेयक को राष्ट्रपति की अनुमति के लिए आरक्षित रखा जाएगा।
  • किसी राज्य के अंदर दूसरे राज्यों के साथ व्यापार आदि पर प्रतिबंध लगाने वाले विधेयकों को विधानसभा में पेश करने के पहले राष्ट्रपति की अनुमति लेनी होगी।
  • वित्तीय आपात स्थिति के प्रवर्तन की स्थिति में राष्ट्रपति निर्देश दे सकता है कि सभी धन विधेयकों की राज्य विधानसभा में पेश करने से पहले उन पर राष्ट्रपति का अनुमोदन लिया जाये।

अध्यादेश जारी करने की शक्ति: संसद के स्थगन के समय अनुच्छेद-123 के तहत अध्यादेश जारी कर सकता है, जिसका प्रभाव संसद के अधिनियम के समान होता है। इसका प्रभाव संसद सत्र के शुरू होने के छह सप्ताह तक रहता है। परन्तु राष्ट्रपति राज्य सूची के विषयों पर अध्यादेश नही जारी कर सकता, जब दोनो सदन सत्र में होते है, तब राष्ट्रपति को यह शक्ति नही होती है।

विशेषाधिकार या वीटो की शक्ति:
संसद द्वारा पारित कोई भी विधेयक अधिनियम तब तक नहीं बन सकता जब तक कि उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति नहीं मिल जाती। जब दोनों सदनों से पारित किये जाने के पश्चात् कोई विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष स्वीकृति के लिए प्रस्तुत किया जाता है तो राष्ट्रपति निम्नलिखित तीन बातों में से कोई एक कर सकता है-

  • वह यह घोषित कर सकता है कि वह विधेयक को अनुमति देता है,
  • वह यह घोषित कर सकता है कि वह विधेयक को अनुमति देने से इंकार करता है
  • यदि वह धन विधेयक नहीं है तो पुनर्विचार के लिए पुनः संसद में भेज सकता है धन विधेयक को पुनर्विचार के लिए नहीं लौटाया जा सकता।

राष्ट्रपति की वीटो शक्ति:
संविधान के अनुसार किये गये कार्यो तथा परम्पराओं के आधार पर यह माना जाता है कि राष्ट्रपति को निम्नलिखित वीटो शक्तियां प्राप्त हैं-

आत्यंतिक वीटो: भारत के संविधान में पूर्ण मंत्रिमंडलीय दायित्व होते हुए भी इस उपबंध को समाविष्ट किया गया है। राष्ट्रपति सामान्यतया इस शक्ति का प्रयोग गैर-सरकारी विधेयकों को अनुमति न प्रदान करके कर सकता है। सरकारी विधेयकों के संदर्भ में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिसमें विधेयक के पारित हो जाने के पश्चात् और दूसरा मंत्रिमंडल, जिसका संसद में बहुमत है, राष्ट्रपति को उस विधेयक के विरुद्ध वीटो के प्रयोग की सलाह देता है। ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रपति के लिए वीटो का प्रयोग संवैधानिक होगा।

निलम्बनकारी वीटो: जब किसी विधेयक का अध्यारोहण विधानमंडल के सामान्य बहुमत से ही संभव हो जाता है तो उसे निलंबनकारी वीटो कहते हैं।  भारत में राष्ट्रपति द्वारा लौटाए जाने का प्रभाव निलंबन मात्र होता है।

जेबी वीटो: समय-सीमा के अभाव में, भारत का राष्ट्रपति जेबी वीटो की शक्ति का प्रयोग करता है। इसे पॉकेट वीटो भी कहा जाता है। जब राष्ट्रपति अनुमति के लिए प्रस्तुत विधेयक पर न तो अनुमति देता है, न ही इंकार करता है अथवा न ही उसे पुनर्विचार के लिए वापस भेजता है विशेषकर तब जब वह पाता है कि मंत्रिमंडल का पतन शीघ्र होने वाला है, तो यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रपति ने जेबी वीटो का प्रयोग किया है। 

सैन्य शक्ति:
राष्ट्रपति भारत की तीनो सेनाओं अर्थात् जल, थल और वायु सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति होता है। इन सेनाओं के प्रमुखों की नियुक्ति राष्ट्रपति ही करता है। राष्ट्रपति को युद्ध या शांति की घोषणा करने या रक्षा बलों को अभिनियोजित करने की शक्ति है किंतु संसद इन शक्तियों के प्रयोग को नियंत्रित कर सकती है। भारत के राष्ट्रपति की सैन्य शक्तियां अमेरिकी राष्ट्रपति या इंग्लैंड के सम्राट की तुलना में सीमित हैं।

संविधान में यह उपबंध है कि संसद की मंजूरी के अभाव में राष्ट्रपति इन शक्तियों का प्रयोग करने में सक्षम नहीं होगा। उदाहरणार्थ वे कार्य, जिनमें धन व्यय होगा [अनुच्छेद 114(3)], जैसे-सैन्य बलों की भर्ती, प्रशिक्षण और अनुरक्षण।

राजनयिक शक्तियां:
राजनयिक शक्ति एक व्यापक विषय है। इसमें वे सभी विषय आते हैं जो संघ को किसी विदेशी राज्य के संस्पर्श में लाते हैं। अंतरराष्ट्रीय मामलों में राष्ट्रपतिदेशका प्रतिनिधित्व करता है। वह विदेशों में भारतीय राजदूतों, व्यापार दूतों और राजनयिक प्रतिनिधियों की नियुक्ति करता है। संसद के अनुसमर्थन के अधीन रहते हुए अन्य देशों से संधि और करार करने का कार्य राष्ट्रपति मंत्रियों की सलाह के आधार पर करता है।

विधान के विषय के रूप में राजनयिक प्रतिनिधित्व संसद का विषय है किन्तु राज्य का प्रधान होने के नाते भारत का राष्ट्रपति अंतरराष्ट्रीय क्रिया-कलापों में भारत का प्रतिनिधित्व करता है। इसके अतिरिक्त अन्य देशों से भारत में आने वाले राजदूत अपने प्रमाण-पत्र राष्ट्रपति को ही प्रस्तुत करते हैं।

न्यायिक शक्तियां:
कार्यपालिका को न्यायिक शक्ति प्रदान करने का उद्देश्य यह है कि यदि कोई न्यायिक भूल हुई हो तो उसमें सुधार किया जा सके। इस प्रकार राष्ट्रपति की मुख्यतः दो प्रकार की न्यायिक शक्तियां प्राप्त हैं-

क्षमादान की शक्ति: संविधान के अनुच्छेद-72 के अनुसार राष्ट्रपति को यह अधिकार प्रदान किए गए हैं कि वह किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा कर दे अथवा दंड कम कर दे या निलंबित कर दे अथवा दंड को किसी अन्य दंड में बदल दे। क्षमा से अभिप्राय यह है कि, जिसमें अपराधी को सभी दंडों और निरर्हताओं से मुक्ति मिल जाती है। किंतु क्षमा प्रदान करने अथवा दंड को कम करने की शक्तियों का प्रयोग राष्ट्रपति इन परिस्थितियों में ही कर सकता है- उन मामलों में जिनमें किसी व्यक्ति को केंद्रीय कानूनों के तहत दंडित किया गया हो; उन सभी मामलों में जिनमें मृत्युदंड न्यायालय द्वारा दिया गया हो; उन मामलों में जिनमें दंड सैनिक न्यायालय द्वारा दिया गया हो।

केहर सिंह बनाम भारत संघ, 1989 विवाद के पश्चात् उच्चतम न्यायालय ने क्षमादान की शक्ति के संबंध में अग्रलिखित सिद्धांत प्रतिपादित किए-

  • जो व्यक्ति राष्ट्रपति को क्षमादान के लिए आवेदन करता है उसे राष्ट्रपति के समक्ष मौखिक सुनवाई का अधिकार नहीं है।
  • इस शक्ति का प्रयोग राष्ट्रपति के विवेकाधीन है। न्यायालय मार्गदर्शन के सिद्धांत अधिकथित करने की आवश्यकता नहीं समझता।
  • इस शक्ति का प्रयोग केंद्रीय सरकार की सलाह पर किया जाएगा।
  • राष्ट्रपति न्यायालय के निर्णय पर विचार करके उससे भिन्न मत अपना सकता है।
  • राष्ट्रपति के निर्णय का न्यायालय पुनर्विलोकन मारूराम के मामले में बताई गई सीमा में ही कर सकते हैं।

मारूराम के मामले में बताये गये निर्देश के अनुसार न्यायालय वहां हस्तक्षेप कर सकेगा, जहां राष्ट्रपति का निर्णय अनुच्छेद 72 के उद्देश्यों से पूर्णतया असंगत है या तर्कहीन, मनमाना, विभेदकारी या असद्भावी है। भारत के संविधान में क्रमशः अनुच्छेद 72 और 161 के अधीन राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपाल दोनों को ही क्षमादान की शक्ति प्राप्त है।

सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श की शक्ति:
संविधान का अनुच्छेद-143 राष्ट्रपति को सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श की अधिकारिता प्रदान करता है। सार्वजनिक महत्व की विधि या तथ्य के किसी ऐसे प्रश्न पर राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय की राय मांग सकता है जिसके बारे में उसका विचार हो कि ऐसी राय प्राप्त करना समीचीन है। राष्ट्रपति से प्राप्त ऐसे निर्देश के बाद सर्वोच्च न्यायालय, ऐसी सुनवाई के बाद जो उचित समझे, राष्ट्रपति को उस पर अपनी राय के बारे में रिपोर्ट देगा। राय केवल सलाह के रूप में होती है। राष्ट्रपति सलाह मानने को बाध्य नहीं है।

वित्तीय शक्तियां:
कोई भी वित्त-विधेयक लोकसभा में राष्ट्रपति की अनुमति के बिना प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। उसकी अनुमति के बिना वित्तीय अनुदान की मांग नहीं की जा सकती। इसका अभिप्राय यह है कि वित्त-विधेयक केवल मंत्री द्वारा ही प्रस्तुत किया जा सकता है। देश का वार्षिक बजट और पूरक बजट तैयार करना और उसे लोकसभा के समक्ष प्रस्तुत कराना राष्ट्रपति का दायित्व है। देश की आकस्मिक निधि पर भी राष्ट्रपति का नियंत्रण रहता है। राष्ट्रपति की यह शक्ति प्रदान की गई है कि वह आवश्यकता पड़ने पर संसद की स्वीकृति के बिना भी आकस्मिक निधि से धन निकाल सके।

राष्ट्रपति वित्त आयोग की नियुक्ति करता है। वितीय आयोग केंद्र और राज्यों के मध्य वित्तीय संबंधों की जाँच करता है तथा राज्यों को दी जाने वाली राशि का निर्धारण करता है।

राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ-आपातकाल से संबंधित भारतीय संविधान के भाग-18 के अनुच्छेद 352 से 360 के अन्तर्गत मिलता है। मंत्रिपरिषद के परामर्श से राष्ट्रपति तीन प्रकार के आपात लागू कर सकता है।

(1) युद्ध या बाहा्र आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण लगाया गया आपात(अनुच्छेद-352)

(2) राज्यों में सांविधानिक तंत्र के विफल होने से उत्पन्न आपात(अनुच्छेद-356 राष्ट्रपति शासन)

(3) वित्तीय आपात जिसकी न्यूनतम अवधि-दो माह की होगी(अनुच्छेद-360)


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