भारतीय वित्त व्यवस्था
भारतीय वित्त व्यवस्था से तात्पर्य ऐसी व्यवस्था से है, जिसमें व्यक्तियों, वित्तीय संस्थाओं, बैंकों औद्योगिक कम्पनियों तथा सरकार द्वारा वित्त की मॉंग होती है तथा इसकी पूर्ति करना है
भारतीय वित्त व्यवस्था के दो पक्ष है--पहला मॉंग पक्ष दूसरा पूर्ति पक्ष
भारतीय वित्त व्यवस्था को दो भागों में बांटा गया है-
1. भारतीय मुद्रा बाजार तथा
2. भारतीय पूंजी बाजार
मुद्रा बाजार-मुद्रा बाजार के अतर्गत प्रमुख प्रतिभागी भारतीय रिजर्व बैंक, कमर्शियल बैंक, गैर बैकिंग वित्त कंपनियाँ, राज्य सरकारें, वृहद औद्योगिक घराने तथा म्चयुअल फंड आदि हैं।
भारतीय मुद्रा बाजार को तीन भागों में बाँटा गया --
i) असंगठित क्षेत्र
ii) संगठित क्षेत्र में बैंकिंग क्षेत्र
iii) मुद्रा बाजार का उप-बाजार
असंगठित क्षेत्र-असंगठित क्षेत्र के अंतर्गत देशी बैंकर, साहूकार और महाजन आदि परम्परागत स्रोत आते है। ग्रामीण तथा कृषि साख में जब भी इसकी महती भूमिका होती है।
संगठित क्षेत्र-संगठित क्षेत्र में भारतीय रिजर्व बैंक शीर्ष संस्था है, तथा इसके अतिरिक्त सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक, विदेशी बैंक तथा अन्य वित्तीय संस्थाएँ आती है।
पूँजी बाजार-पूँजी बाजार वह जगह है जहाँ दीर्घकालिक निधियों को सरकारों तथा निगमित उद्यमों द्वारा संचारित किया जाता है।पूंजी बाजार के अतर्गत विकास बैंक, वाणिज्यिक बैंक तथा स्टॉक एक्सचेंज या शेयर बाज़ार समाहित होते हैं।
भारतीय पूंजी बाजार को दो भागों में बाँटा जा सकता है
(i) प्राथमिक बाज़ार (ii) द्वितीयक बाज़ार
प्राथमिक बाज़ार-प्राथमिक बाज़ार को नए निर्गमन बाज़ार के रूप में भी जानते हैं। प्राथमिक बाज़ारों द्वारा उन नई प्रतिभूतियों से निपटता है जो पहले सार्वजनिक रूप से व्यापारीकृत नहीं थीं। प्राथमिक बाज़ार में प्रतिभूतियों का केवल क्रय होता है इनको बेचा नहीं जा सकता। इस बाज़ार के निवेशक बैंक, वित्तीय संस्थान, बीमा कंपनियाँ, म्चयुअल फंड तथा वैयक्तिक रूप में होते हैं।
द्वितीयक बाज़ार-द्वितीयक बाजार को स्टॉक एक्सचेंज या स्टॉक बाजार (या शेयर बाजार) के नाम से भी जाना जाता है। यह विद्यमान प्रतिभूतियों के लिए क्रय एवं विक्रय का बाजार है। यह विद्यमान निवेशकों को विनिवेश तथा नए निवेशकों का प्रवेश करने में सहायता प्रदान करता है। इसके साथ ही यह वर्तमान प्रतिभूतियों को द्रवता एवं विक्रेयता उपलब्ध कराता है। इसके साथ ही यह निधियों का अधिक उत्पादक निवेशों में विनिवेश एवं पुनर्निवेश के माध्यम से निधियों को सरणित करके आर्थिक प्रगति में हाथ बँटाता है।
भारतीय रिजर्व बैंक देश में मौद्रिक गतिविधियों के नियमन का नियंत्रण करता है।
भारतीय रिजर्व बैंक के दो प्रकार के कार्य है --
1. सामान्य केन्द्रीय बैंकिंग कार्य
2. विकास सम्बन्धी और प्रवर्तक कार्य।
सामान्य केन्द्रीय बैंकिंग कार्य के अधीन भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा निम्नलिखित कार्य किये जाते है--
I) करेंसी नोटों का निर्गमन
II) सरकारी बैंकर का काम
III) बैंकों के बैंक का काम
IV) विदेशी विनिमय को नियंत्रित करना
V) साख नियंत्रण
VI) ऑंकडों को संग्रहण और प्रकाशन
विकास सम्बन्धी एवं प्रवर्तक कार्य के अधीन भारतीय रिजर्व बैंक का कार्य निम्न प्रकार है -
I) मुद्रा बाजार पर प्रतिबन्धात्मक नियंत्रण
II) बचतों को बैंको व अन्य वित्तीय संस्थाओं के माध्यम से उत्पादन के लिए उपलब्ध कराना
III) लोगों में बैंकिंग की आदत बढानें के लिए प्रयास करना आदि।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा साख पर नियंत्रण निम्न तरीकों से किया जाता है --
1. बैंक दर नीति द्वारा
2. खूले बाजार की क्रियाओं द्वारा
3. बैंकों की नकद कोष सम्बन्धी वैधानिक आवश्यकताओं में परिवर्तन करके।
4. तरलता सम्बन्धी वैधानिक आवश्यकताओं को पूरा करके
5. विभेदक ब्याज-दरों की प्रणाली अपनाकर
6. चयनात्मक साख नियंत्रण नीति से
7. नैतिक प्रभाव की नीति द्वारा
नोट : बैंकों के ग्राहकों की शिकायतों का निदान कराने के लिए बैंकिंग लोकपाल योजना भारत में रिजर्व बैंक में 14 जून, 1995 ई, में लागू किया था।
बैंकिंग की आदत बढाने के उद्देश्य से ही सन् 1964 में भारतीय यूनिट ट्रस्ट (UTI) की स्थापना की गई। UTI अर्थात भारतीय यूनिट ट्रस्ट भारत की सबसे बडी म्यूजुअल फण्ड संस्था है।
सन् 1963 में कृषि पूनर्वित एवं विकास निगम की स्थापना की गई।
DHFI अर्थात डिस्काउन्ट एंड फाइनेन्स हाउस आफ इंडिया लिमिटेड, मुद्रा बाजार की एक विशिष्ट संस्था है जिसकी स्थापना सन् 1988 में की गई थी इसका कार्य बैंकों का वित्तीय संस्थाओं की कटौती और फिर कटौती की आवश्यकताओं को पूरा करना है।
भारतीय पूँजी बाजार को मोटे तौर पर दो भागों में बांटा जाता है--गिल्ड एज्ड बाजार और औद्योगिक प्रतिभूति बाजार।
गिल्ड एज्ड बाजार में रिजर्व बैंक के माध्यम से सरकारी और अर्द्ध सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय किया जाता है।
औद्योगिक प्रतिभूति बाजार में नये स्थापित होने वाले या पहले से स्थापित औद्योगिक उपक्रमों के शेयरों और डिेबेंन्चरों का क्रय-विक्रय किया जाता है।
भारतीय पूँजी बाजार में पूँजी के स्रोत है: अंश-पूँजी, ग्रहण-पत्र इसके अतिरिक्त स्रोत के रूप में वे संस्थाएँ भी हैं, जो वित्तीय मध्यस्थ की भूमिका निभाती हैं। ऐसी संस्थाएँ है--मर्चेन्ट बैंक, म्यूचुअल फण्ड, लीजिंग कम्पनियॉं, जोखिम पूँजी कम्पनियॉं आदि।
स्टॉंक एक्सचेंज एक ऐसी व्यवस्था का बाजार है, जिसमें छोटे निवेशक निवेश कर सकते है तथा मौजूद प्रतिभूतियों का आसानी से क्रय-विक्रय कर सकते है।
RBI के द्वारा नकद कोष अनुपात में कमी करने से साख सृजन में वृद्धि होती है।
नियत न्यूनतम आरक्षण प्रणाली के अंतर्गत RBI करेंसी, नोट जारी करता है।
भारत में नोट निर्गमन हेतु न्यूनतम कोष प्रणाली प्रचलन में है जिसे 1957में अपनाया गया। इस प्रणाली के तहत जारी किये जाने वाले नोटों के पीछे भारतीय रिजर्व बैंक को कुल रू0 200 करोड़ का रिजर्व कोष अपने पास रखना होता है जिसमें रू0 115 करोड मूल्य का स्वर्ण तथा रू0 85 करोड की विदेशी मुद्रा शामिल हैं। व्यापारिक बैंकों के शाखा विस्तार का नियमन, व्यापार समापन का नियमन करती है। व्यापारिक बैंकों की साख सृजन क्षमता को मार्जिन बढ़ाकर नियंत्रित कर सकता है।
RBI को खुला बाजार कार्यवाही का अर्थ है-सरकारी बाण्डों का क्रय एवं विक्रय।
भारत के विदेशी व्यापार से सम्बन्धित आंकडे RBI द्वारा एकत्रित तथा प्रकाशित होते है।
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